भगवद्गीता – सार संदेश
‘भगवद्गीता’ का अर्थ है ‘भगवान का गीत’, इसे आम तौर पर गीता के नाम से जाना जाता है। गीता का विश्वव्यापी संदेश कर्म की इच्छा को त्यागना है, कर्म को नहीं। गीता का सार संदेश इसके मुख्य पात्र अर्जुन की दुविधापूर्ण मन:स्थिति पर आधारित है। महाभारत के युद्ध से पूर्व अर्जुन को एक भारी उलझन का सामना करना पड़ा कि क्या अधर्म का विरोध करते हुए उसे अपने ही कुल के सदस्यों के साथ युद्ध करना चाहिए या फिर परिवार के प्रति निष्ठा और युद्ध के प्रति घृणा के कारण अपने कर्त्तव्य से पलायन करना चाहिए? उसके गुरु भगवान कृष्ण उसे इस दुविधा से निकलने का मार्ग बताते हैं और मनुष्य जीवन के उद्देश्य को गहराई से समझाते हुए आत्मा की मुक्ति के मार्ग से भी परिचित कराते हैं। पुस्तक के पहले भाग में भगवद्गीता का विद्वतापूर्ण अनुवाद प्रस्तुत किया गया है जिसमें लेखक ने आवश्यकता के अनुसार श्लोकों का विस्तार से वर्णन किया है। इसके दूसरे भाग में गीता के उपदेश की व्याख्या की गई है।
लेखक: के.एन.उपाध्यायऑनलाइन ऑर्डर के लिए: भारत से बाहर के देशों में ऑर्डर के लिए भारत में ऑर्डर के लिए डाउन्लोड (421MB) | यू ट्यूब |
- प्रकाशक की ओर से
- लेखक की ओर से
- भूमिका
- भाग-1 मूल पाठ और अनुवाद
- अर्जुन की निराशा
- सांख्य सिद्धांत और योग अभ्यास
- कर्मयोग
- ईश्वरीय ज्ञान और निष्काम कर्मयोग
- सच्चा संन्यास
- ध्यानयोग
- ज्ञानयोग और परमात्मा की प्राप्ति
- अक्षर ब्रह्म का मार्ग
- ज्ञान मार्ग : परम रहस्य
- दैवी महिमा
- परमात्मा के ब्रह्मांडीय स्वरूपों का प्रदर्शन
- भक्तियोग
- क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ
- तीन गुणों का विभाजन
- पुरुषोत्तम की प्राप्ति का मार्ग
- दैवी और आसुरी संपदा
- तीन प्रकार की श्रद्धा
- मुक्तिप्राप्ति का सच्चा साधन
- भाग-2 उपदेश
- मानव जीवन – भाग-1
- मानव जीवन – भाग-2
- ध्यान
- जीवित गुरु – भाग-1
- जीवित गुरु – भाग-2
- परमात्मा और उसके अवतार
- आत्मा, बंधन और मुक्ति
- भगवद्गीता के अनुसार युद्ध और शांति
- परमात्मा की प्राप्ति के साधन – भाग-1
- परमात्मा की प्राप्ति के साधन – भाग-2
- परिशिष्ट – भगवद्गीता की रचना का समय
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‘भगवद्गीता’ का अर्थ है ‘भगवान का गीत’, इसे आम तौर पर गीता के नाम से जाना जाता है। गीता का विश्वव्यापी संदेश कर्म की इच्छा को त्यागना है, कर्म को नहीं। गीता का सार संदेश इसके मुख्य पात्र अर्जुन की दुविधापूर्ण मन:स्थिति पर आधारित है। महाभारत के युद्ध से पूर्व अर्जुन को एक भारी उलझन का सामना करना पड़ा कि क्या अधर्म का विरोध करते हुए उसे अपने ही कुल के सदस्यों के साथ युद्ध करना चाहिए या फिर परिवार के प्रति निष्ठा और युद्ध के प्रति घृणा के कारण अपने कर्त्तव्य से पलायन करना चाहिए? उसके गुरु भगवान कृष्ण उसे इस दुविधा से निकलने का मार्ग बताते हैं और मनुष्य जीवन के उद्देश्य को गहराई से समझाते हुए आत्मा की मुक्ति के मार्ग से भी परिचित कराते हैं। पुस्तक के पहले भाग में भगवद्गीता का विद्वतापूर्ण अनुवाद प्रस्तुत किया गया है जिसमें लेखक ने आवश्यकता के अनुसार श्लोकों का विस्तार से वर्णन किया है। इसके दूसरे भाग में गीता के उपदेश की व्याख्या की गई है।
लेखक: के.एन.उपाध्याय