रूहानी रिश्ता
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भाग 21 • अंक 2
पंच परवाण पंच परधानु॥ पंचे पावहि दरगहि मानु॥ पंचे सोहहि दरि राजानु॥ पंचा का गुरु एकु धिआनु॥ जे को कहै करै वीचारु॥ करते कै करणै नाही सुमारु॥ …
इनसान ने अपनी ज़िंदगी में वर्तमान पल को सबसे कम आँका है, सबसे कम अहमियत दी है। हम यादों, पछतावों और …
अगर इस बात पर विचार करें कि हम कितना जानते हैं, तो हमें एहसास होगा कि जो कुछ भी जानने के लायक़ है, हम उसका केवल अंश-मात्र ही …
मित्रता, हमें प्राप्त अनमोल उपहारों में से एक है। मनुष्य स्वभाव से ही संगति में रहना पसंद करता है और हम सतगुरु को अकसर मित्र …
सतगुरु अकसर परमात्मा के साथ रिश्ता जोड़ने का महत्त्व समझाते हैं। आम तौर पर कोई भी संबंध दो लोगों के बीच में होता है। …
हम इस रूहानी मार्ग पर खिंचे चले आए और सतगुरु ने हमें नामदान की बख़्शिश कर दी, मगर इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि हमने परमात्मा को …
ब्रह्माण्ड अनन्त समाए प्रभु में, जीव-रूप प्रभु मेरे अन्दर। प्रभु बिराजे तन-मन्दिर में, खोजने जाएँ क्यों और मन्दिर।। …
हर चीज़ के बारे में हमारा दृष्टिकोण हमारी सोच पर आधारित होता है। हमारे दृष्टिकोण पर हमारे सीमित ज्ञान और सोचे-समझे बिना पहले से बने हमारे विचारों …
हम अकसर यह सुनते हैं कि सतगुरु हमारे लिए बहुत कुछ करते हैं, मगर बदले में वह हमसे बहुत कम उम्मीद रखते हैं। वह हमसे जो उम्मीदें …
हम कठिनाइयों से भरे संसार में रहते हैं, इसलिए हमें यहाँ मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसा समय भी आता है जब हमारे किसी अपने का निधन हो …
रामचरितमानस से उद्धरित …
हर दूसरे महीने प्रकाशित होने वाली पत्रिका, रूहानी रिश्ता, दुनिया भर के विभिन्न देशों के सेवादारों की टीमों द्वारा निर्मित की जाती है। इसके मौलिक लेख, कविताएँ और कार्टून संत मत की शिक्षाओं को अनेक दृष्टिकोणों और सांस्कृतिक परिवेशों से प्रस्तुत करते हैं। नए संस्करण प्रत्येक दूसरे महीने की पहली तारीख को, 1 जनवरी से शुरू होते हुए, पोस्ट किए जाएंगे।
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