डेरा बाबा जैमल सिंह का संक्षिप्त विवरण
राधास्वामी सत्संग ब्यास का हेडक्वार्टर डेरा बाबा जैमल सिंह है। यह नाम डेरा के संस्थापक बाबा जैमल सिंह जी के नाम पर रखा गया है जो सन् 1800 के अंतिम दशक में यहाँ आकर बसे थे। भारत के पंजाब राज्य में स्थित ‘डेरा’ एक आत्मनिर्भर कम्यूनिटी है जहाँ प्रशासन संबंधी गतिविधियों के साथ-साथ रहने की भी सुविधाएँ हैं। हालाँकि विश्व के सभी सेंटर राधास्वामी सत्संग ब्यास (भारत) से जुड़े हुए हैं, लेकिन हर देश का एक बोर्ड ऑफ़ मैनेजमेंट है जो एक सर्वस्वीकृत संविधान (स्टैंडर्ड कॉन्स्टिट्यूशन) के अंतर्गत उस देश के क़ानून और नियमों के अनुसार काम करता है। इस तरह हर देश की स्वतंत्र प्रशासनिक व्यवस्था है। प्रशासन का काम पूरी तरह से सेवादार सँभालते हैं; यह कार्य सेवा में आए पैसों से होता है, जिसकी कभी माँग नहीं की जाती। यह संस्था धन इकट्ठा करने की किसी भी तरह की गतिविधि में कोई हिस्सा नहीं लेती।
भारत में राधास्वामी सत्संग ब्यास संस्था के 5000 से भी ज़्यादा सेंटर हैं, और विश्व में राधास्वामी सत्संग ब्यास से जुड़ी संस्थाएँ 90 से भी ज़्यादा देशों में सत्संग आयोजित करती हैं। ये सत्संग किराये के हॉल में, कम्यूनिटी सेंटर में या राधास्वामी सत्संग ब्यास संस्था द्वारा ख़रीदी गई प्रापर्टी पर होते हैं। इन सत्संगों का मक़सद राधास्वामी सत्संग ब्यास की रूहानी शिक्षा समझाना है। सत्संग किसी ख़ास धर्म या जाति के लिए न होकर हर एक के लिए है। इन सत्संगों को सुनने के लिए न कोई फ़ीस ली जाती है, न ही इनमें किसी तरह का प्रचार किया जाता है या धर्म बदलने की कोशिश की जाती है।
राधास्वामी सत्संग ब्यास का अपना एक प्रकाशन विभाग है जहाँ रूहानियत पर लगभग 135 किताबें छापी गई हैं। सेवादारों ने बहुत-सी किताबों का 35 भाषाओं में अनुवाद किया है। भारत के हैडक्वार्टर ब्यास में 20,000 स्क्वायर मीटर की एक लाइब्रेरी है जिसमें क़रीब 5,00,000 किताबें हैं। ये किताबें विश्व के विभिन्न धर्मों, अध्यात्म, दर्शन शास्त्र आदि विषयों से संबंधित हैं। सभी धर्मों के विद्वान और शोधकर्ता इसका लाभ उठा सकते हैं।
राधास्वामी सत्संग ब्यास संस्था ने अपनी चिकित्सा और स्वास्थ्य देखभाल की सेवाओं का विस्तार करने के लिए तथा उन्हें और मज़बूत करने के लिए महाराज जगत सिंह मेडिकल रिलीफ़ सोसॉयटी के नाम से एक सहयोगी संस्था स्थापित की, जो तीन ग्रामीण चैरिटेबल अस्पताल चलाती है: पंजाब के ब्यास शहर में; हरियाणा के सिकंदरपुर में, और हिमाचल प्रदेश के बहोटा शहर में। तीनों अस्पताल प्राथमिक सुविधाएँ प्रदान करते हैं, जिसमें नेत्र विज्ञान, हड्डी रोग, स्त्री रोग और प्रसूति विभाग, कान, नाक और गला रोग, शल्य चिकित्सा और एनेस्थीसिया, बाल रोग विज्ञान, रेडियोलॉजी और दंत विभाग पूरी तरह कार्यशील हैं। सभी चिकित्सा सेवाएँ जिनमें दवाईयाँ और रोगी की देखभाल शामिल है, नि:शुल्क हैं। इन तीनों अस्पतालों में ब्यास अस्पताल सबसे बड़ा है जिसमें 260 बेड की सुविधा है और लगभग 1200 रोगियों का रोज़ ओ.पी.डी. में इलाज होता है, सिकंदरपुर में 50 बेड हैं और बहोटा में 75 बेड की सुविधा है और लगभग 450 रोगियों का रोज़ाना ओ.पी.डी. में उपलब्ध होता है। ओ.पी.डी. रोगियों की इतनी बड़ी संख्या यह दर्शाती है कि इन गाँवों के लोगों को चिकित्सा सुविधाओं की कमी है। इलाज के लिए आए रोगी का आर्थिक-सामाजिक दर्जे और धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता।
हालाँकि संतमत का मुख्य मक़सद रूहानियत है, यानी अंतर में भजन-सुमिरन का अभ्यास; लेकिन साथ ही सेवादारों को प्रेरणा दी जाती है कि वे धर्म, जाति और रंग का भेदभाव किए बिना, अपने खाली समय में लोगों की सेवा करें। इस संदर्भ में राधास्वामी सत्संग ब्यास ने कई आपातकालीन स्थितियों में आपदा राहत कार्यों में भी योगदान दिया है। 2000 में गुजरात भूकंप, 2005 में कश्मीर भूकंप, 2010 में लेह में बादलों का फटना और लैंडस्लाइड और 2015 में नेपाल भूकंप के दौरान इस संस्था ने अलग-अलग मक़सद के लिए इस्तेमाल किए जानेवाले शैड, आश्रय स्थल और घर बनाए।
हेडक्वार्टर
डेरा बाबा जैमल सिंह 7000 लोगों की एक छोटी-सी कॉलोनी है। चूँकि राधास्वामी सत्संग ब्यास के मौजूदा संत-सतगुरु डेरा में रहते हैं, इसलिए भारी तादाद में संगत भंडारों के दौरान उनके सत्संग सुनने के लिए आती है। मौसम के अनुसार संगत की संख्या 2-5 लाख के बीच होती है। डेरा प्रशासन थोड़े समय के लिए इतनी बड़ी तादाद में आए लोगों की ज़रूरतों का प्रबंध बड़ी कुशलता से करता है।
इतनी तादाद में सत्संग सुनने आई संगत के लिए, डेरा के इंजीनियरिंग विभाग ने एक विशाल शैड का निर्माण किया है जो एशिया का सबसे बड़ा शैड है। इसकी छत हलके वज़न वाली स्टील के स्पेस-फ्रेम की बनी है, जिसे डेरा में ही डिज़ाइन किया गया और यहीं बनाया गया। इसमें 5 लाख तक संगत बैठ सकती है और ज़रूरत पड़ने पर बैठने की जगह बढ़ाई भी जा सकती है। इतने बड़े पंडाल में हर एक आवाज़ स्पष्ट सुनाई दे, इसके लिए अति आधुनिक तकनीक वाला ख़ास साउंड सिस्टम डिज़ाइन किया गया है।
भोजन
संगत को दिन में तीन बार भोजन उपलब्ध करवाने के लिए तरह-तरह की व्यवस्थाएँ की गई हैं। लंगर मुख्य ज़रिया है। लंगर 48 एकड़ में फैला हुआ है, और चौबीस घंटे खुला रहता है। लंगर में 3 लाख लोगों को एक वक़्त का भोजन परोसा जा सकता है। यहाँ एक बार में 50,000 व्यक्ति इकट्ठे बैठकर खाना खा सकते हैं। सेवादार सादा और पौष्टिक भोजन बनाते हैं, और संगत को परोसते हैं। उदाहरण के लिए, लंगर में साल में 3,50,000 किलो से ज़्यादा चावल और 26 लाख किलो से ज़्यादा गेहूँ का इस्तेमाल होता है। इसके अलावा भोजन भंडार, स्नैक बार और कैंटीन में भी बहुत कम क़ीमत पर खाना उपलब्ध है।
रिहाइश
विश्व भर से अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोग डेरा आते हैं। संगत को ठहराने के लिए तरह-तरह की सुविधाएँ उपलब्ध हैं जो नि:शुल्क हैं। यहाँ कई हॉस्टल हैं जिनमें हर कमरे के साथ बाथरूम हैं; लोगों को इकट्ठा ठहराने के लिए सराय में बड़े-बड़े हॉल हैं, इसके अलावा शेड भी हैं।
चिकित्सा
डेरा अस्पताल डेरा बाबा जैमल सिंह कॉलोनी के बीचो-बीच स्थित है। यह अस्पताल डेरा निवासियों और बाहर से आई संगत को चिकित्सा की सुविधा प्रदान करता है। डेरा में निर्धारित सत्संगों के दौरान यहाँ रोज़ाना सैंकडो – हज़ारों मरीज़ों का इलाज होता है। इसके अलावा तीन फ़स्ट एड केंद्र हैं जो अस्पताल की निगरानी में निर्धारित सत्संगों के दौरान कार्यशील होते हैं। फ़स्ट एड की ये सुविधाएँ बड़ी-बड़ी सराय और शैड के पास स्थित हैं।
कम्यूनिटी
डेरा की कोशिश है कि वह ज़्यादा से ज़्यादा आत्मनिर्भर बने और पर्यावरण के प्रति अनुकूल रवैया रखे। हर साल हज़ारों पेड़ उगाए जाते हैं। बहुत-से हरे-भरे लॉन और पार्क डेरे की ख़ूबसूरती बढ़ाते हैं। संगत और डेरा निवासियों को पेड़ों की छाया में आराम और शीतलता मिलती है। 1,250 एकड़ से ज़्यादा भूमि में फल और सब्ज़ियाँ उगाई जाती हैं जिनका इस्तेमाल लंगर में होता है, और डेरा निवासी भी उपयोग में लाते हैं। डेरे में ऑर्गेनिक तरीक़े से कृषि होती है। डेरे में अपना पानी का प्रबंध है, वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और सालिड वेस्ट ट्रीटमेंट की सुविधाएँ हैं। डेरे का अपना इलेक्ट्रिकल सब-स्टेशन और एक विशाल इलेक्ट्रिकल जेनरेटर है जो अचानक बिजली चले जाने पर पूरे डेरे को बिजली देता है। इसके अलावा डेरा 8 विशाल शेड के छतों पर लगे सोलर पैनल के ज़रिए 19.5 मेगावॉट बिजली पैदा करता है।
हाल ही में डेरा और ब्यास अस्पताल के सेवादारों और कर्मचारियों के बच्चों के लिए पॉथसीकर्स स्कूल शुरू किया गया है। इसमें लगभग 1026 बच्चे प्री स्कूल से लेकर सीनियर सेकेंडरी स्तर तक शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। स्कूल में आधुनिक लेबोरेटरी और कम्प्यूटर हैं। यहाँ कला, खेल, शिक्षा से संबंधित हर तरह के प्रोग्राम हैं। इस स्कूल में बच्चों को भारत के सी.बी.एस.सी के स्तर की उत्तम शिक्षा दी जाती है।