गुरु अर्जुन देव
गुरु अर्जुन देव जी (1563-1606 ई.) गुरु नानक देव जी की गद्दी के पाँचवें गुरु थे। आदि ग्रन्थ का संकलन उन्होंने ही किया था। प्रस्तुत पुस्तक में उनके जीवन, शिक्षा और उनके संदेश पर प्रकाश डाला गया है जो जिज्ञासु को प्रभु की खोज के द्वारा मनुष्य-जन्म की अनमोल दात का पूरा लाभ उठाने की प्रेरणा देते हैं। भाषा और रचना की दृष्टि से सरल होते हुए भी गुरु अर्जुन देव जी की वाणी आध्यात्मिक रत्नों का भंडार है।
लेखक: महिन्दर सिंह जोशीऑनलाइन ऑर्डर के लिए: भारत से बाहर के देशों में ऑर्डर के लिए भारत में ऑर्डर के लिए डाउन्लोड (237MB) | यू ट्यूब |
- प्रकाशक की ओर से
- जीवन
- उपदेश – मिलन की बरीआ
- उपदेश - साहिब मेहरबान
- उपदेश – मित्र बिचोला
- उपदेश – नउ निध अमृत – भाग 1
- उपदेश – नउ निध अमृत – भाग 2
- उपदेश – अन्धी गलियाँ
- उपदेश – जल महि कमल
- उपदेश – चरण-शरण
- उपदेश – निमख-निमख बलिहार
- उपदेश– एक विनती
- वाणी – सुखमनी
- वाणी – बारहमाहा
- वाणी – बावन अखरी
- वाणी – सलोक सहसक्रिती
- वाणी – दिन-रैण
- वाणी - दखणी - (श्लोक)
- वाणी – गुरु की रहमत
- वाणी – सर्वसमर्थ
- वाणी – गुरु की महिमा
- वाणी – मनुष्य बेचारा
- वाणी – एक ही टेक
- वाणी – प्रभु की कृपा से
- वाणी – नाम का दाता
- वाणी – कुलमालिक की सेवा
- वाणी – मालिक की मेहर और बख़्शिश
- वाणी – एक ही नाम
- वाणी – हरि रस – अमृत रस
- वाणी – सहज अवस्था
- वाणी – झूठे सहारे
- वाणी – विषय-विकार
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गुरु अर्जुन देव जी (1563-1606 ई.) गुरु नानक देव जी की गद्दी के पाँचवें गुरु थे। आदि ग्रन्थ का संकलन उन्होंने ही किया था। प्रस्तुत पुस्तक में उनके जीवन, शिक्षा और उनके संदेश पर प्रकाश डाला गया है जो जिज्ञासु को प्रभु की खोज के द्वारा मनुष्य-जन्म की अनमोल दात का पूरा लाभ उठाने की प्रेरणा देते हैं। भाषा और रचना की दृष्टि से सरल होते हुए भी गुरु अर्जुन देव जी की वाणी आध्यात्मिक रत्नों का भंडार है।
लेखक: महिन्दर सिंह जोशी