गुरु नानक का रूहानी उपदेश – राधास्वामी सत्संग ब्यास ऑडियो बुक्स

गुरु नानक का रूहानी उपदेश

पंद्रहवीं शताब्दी में भारत के पंजाब प्रदेश में हुए गुरु नानक देव जी, दस गुरुओं की शृंखला में प्रथम गुरु थे। इनकी शिक्षा, सिक्ख धर्म की आधारशिला है। गुरु नानक ने अपनी वाणी में निडरता से ईश्वर की एकता और महानता; मूर्तिपूजा और कर्मकांड की व्यर्थता; देहधारी गुरु के प्रति भक्ति-भाव का महत्त्व; और आत्मा का आंतरिक शब्द की ध्वनि और प्रकाश के साथ जुड़ने का उल्लेख किया है। पुस्तक गुरु नानक देव जी की आध्यात्मिक शिक्षा पर बल देती है। यह हमें समझाती है कि ईश्वर से मिलाप के आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए नामभक्ति (शब्द का अभ्यास) और गुरुभक्ति दोनों आवश्यक हैं।  गुरु नानक देव जी की वाणी हमें बताती है कि गुरु की दया-मेहर और निर्देश द्वारा सभी मनुष्य आत्मिक शोभा तथा दिव्यता प्राप्त कर सकते हैं। इस पुस्तक में आध्यात्मिकता और नैतिकता के गहरे संबंध पर गुरु नानक देव जी की बानी से उदाहरण देते हुए विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है।

लेखक: जनक राज पुरी
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