जैन धर्म – सार सन्देश
इस पुस्तक में संक्षिप्त और सरल ढंग से जैन धर्म की नैतिक तथा आध्यात्मिक शिक्षा पर प्रकाश डाला गया है और इस प्राचीन धर्म के क्रियात्मक पहलुओं पर बल दिया गया है। आदि से अंत तक जहाँ कहीं भी व्याख्यात्मक सामग्री दी गई है, उसका समर्थन प्रामाणिक जैन पुस्तकों के उद्धाहरणों द्वारा किया गया है। इसलिए यह पुस्तक बुद्धि जीवियों तथा आध्यात्मिक साधना में लगे जिज्ञासुओं दोनों के लिए बहुत महत्त्व रखती है।
लेखक: डॉ. काशी नाथ उपाध्याय ऑनलाइन ऑर्डर के लिए: भारत से बाहर के देशों में ऑर्डर के लिए भारत में ऑर्डर के लिए डाउन्लोड (331MB) | यू ट्यूब |
- प्रकाशक की ओर से
- प्रस्तावना
- जैन धर्म की प्राचीनता
- जैन धर्म का स्वरूप - भाग 1
- जैन धर्म का स्वरूप - भाग 2
- जीव, बन्धन और मोक्ष - भाग 1
- जीव, बंधन और मोक्ष - भाग 2
- अहिंसा
- मानव-जीवन
- गुरु - भाग 1
- गुरु - भाग 2
- दिव्य ध्वनि
- अनुप्रेक्षा (भावना)
- अन्तर्मुखी साधना - भाग 1
- अन्तर्मुखी साधना - भाग 2
- आत्मा से परमात्मा
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इस पुस्तक में संक्षिप्त और सरल ढंग से जैन धर्म की नैतिक तथा आध्यात्मिक शिक्षा पर प्रकाश डाला गया है और इस प्राचीन धर्म के क्रियात्मक पहलुओं पर बल दिया गया है। आदि से अंत तक जहाँ कहीं भी व्याख्यात्मक सामग्री दी गई है, उसका समर्थन प्रामाणिक जैन पुस्तकों के उद्धाहरणों द्वारा किया गया है। इसलिए यह पुस्तक बुद्धि जीवियों तथा आध्यात्मिक साधना में लगे जिज्ञासुओं दोनों के लिए बहुत महत्त्व रखती है।
लेखक: डॉ. काशी नाथ उपाध्याय