मार्ग की खोज में
यह छोटी-सी पुस्तक स्वाभाविक और आत्मीयतापूर्ण शैली में लिखी गई है। इसमें 1940 के दशक में, एक अंग्रेज़ महिला का इस मार्ग से परिचित होने का तथा महाराज सावन सिंह जी से नाम प्राप्त करने का वृत्तांत दिया गया है। 1960 के दशक में उसकी अगली भारत यात्रा का वर्णन भी है जिसमें उसकी महाराज चरन सिंह जी से भेंट हुई। नम्रता और कोमल परिहास से पूर्ण इस पुस्तक में लेखिका की सतगुरुओं और साथी शिष्यों के साथ बिताए गए समय की स्मृतियाँ अंकित हैं। इसमें उन्होंने सतगुरुओं के सत्संगों का सारांश दिया है और उनके द्वारा बताई गई ख़ास-ख़ास बातों और संतमत की शिक्षा पर हुई चर्चाओं का उल्लेख भी किया है। इस रचना में निश्चिंत प्रसन्नता का आभास है, जो लेखिका को सतगुरु की उपस्थिति में महसूस हुआ।
लेखक: फ़्लोरा ई. वुडऑनलाइन ऑर्डर के लिए: भारत से बाहर के देशों में ऑर्डर के लिए भारत में ऑर्डर के लिए डाउन्लोड (162MB) | यू ट्यूब |
- प्रकाशक की ओर से
- भूमिका
- भाग-1 पुरानी यादें (1940-1946)
- भाग-2 वापसी (25 दिसंबर-29 जनवरी) 1961-1962
- भाग-2 वापसी (31 जनवरी-7 मार्च) 1961-1962
- भाग-2 वापसी (8 मार्च-लास्ट) 1962-1963
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यह छोटी-सी पुस्तक स्वाभाविक और आत्मीयतापूर्ण शैली में लिखी गई है। इसमें 1940 के दशक में, एक अंग्रेज़ महिला का इस मार्ग से परिचित होने का तथा महाराज सावन सिंह जी से नाम प्राप्त करने का वृत्तांत दिया गया है। 1960 के दशक में उसकी अगली भारत यात्रा का वर्णन भी है जिसमें उसकी महाराज चरन सिंह जी से भेंट हुई। नम्रता और कोमल परिहास से पूर्ण इस पुस्तक में लेखिका की सतगुरुओं और साथी शिष्यों के साथ बिताए गए समय की स्मृतियाँ अंकित हैं। इसमें उन्होंने सतगुरुओं के सत्संगों का सारांश दिया है और उनके द्वारा बताई गई ख़ास-ख़ास बातों और संतमत की शिक्षा पर हुई चर्चाओं का उल्लेख भी किया है। इस रचना में निश्चिंत प्रसन्नता का आभास है, जो लेखिका को सतगुरु की उपस्थिति में महसूस हुआ।
लेखक: फ़्लोरा ई. वुड