गुरु रविदास
![]() गुरु रविदास जी पंद्रहवी शताब्दी में कबीर साहिब के समकालीन थे और बनारस में ही रहते थे। रविदास जी ने हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के कर्मकांड का खंडन किया। उन्होंने मानव-जीवन की अस्थिरता, मृत्यु की निकटता तथा सतगुरु के मार्ग दर्शन में अंतर में गूँज रहे शब्द की साधना यानी परमात्मा की सच्ची भक्ति करने के महत्त्व पर बल दिया। उनकी वाणी के पद सच्ची नम्रता, प्रभु-प्रेम और उनके द्वारा अनुभव की गई विरह-पीड़ा से परिपूर्ण हैं। उनकी भाषा-शैली निर्भीक और स्पष्ट है। पुस्तक में सम्मिलित आपके पद संतमत के मूलभूत आध्यात्मिक सिद्धांतों—जैसे जीवित गुरु की आवश्यकता, नामभक्ति, शाकाहार और कर्म-सिद्धांत पर प्रकाश डालते हैं। लेखक: काशीनाथ उपाध्यायऑनलाइन ऑर्डर के लिए: भारत से बाहर के देशों में ऑर्डर के लिए भारत में ऑर्डर के लिए डाउन्लोड (193MB) | यू ट्यूब |
- प्रकाशक की ओर से
- लेखक की ओर से
- जीवन
- संदेश
- मानव जीवन का उद्देश्य
- घट-घट वासी परमात्मा
- जीवित गुरु की आवश्यकता
- सत्संग का महत्त्व
- नामभक्ति
- सच्चा प्रेम
- मन
- कर्म
- शाकाहार
- कर्मकांड का खंडन

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