सहजोबाई और दयाबाई
सहजोबाई और दयाबाई दोनों संत चरनदास की शिष्या थीं। दोनों ने इस नश्वर संसार के मोह को त्यागकर हृदय में प्रभु का सच्चा प्रेम उत्पन्न करके ऊँचे उठने का उपदेश दिया है। हालाँकि आपने अपनी बानी में परमार्थ के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला है, परंतु इसमें गुरुप्रेम की प्रमुखता नज़र आती है। आपका दृढ़ विश्वास था कि अंतर में ध्यान स्थिर करने और सुरत-शब्द योग के मार्ग पर चलने की युक्ति सतगुरु से ही सीखी जा सकती है।
लेखक: डॉ. टी. आर. शंगारीऑनलाइन ऑर्डर के लिए: भारत से बाहर के देशों में ऑर्डर के लिए भारत में ऑर्डर के लिए डाउन्लोड (201MB) | यू ट्यूब |
- प्रकाशक की ओर से
- भूमिका
- सहजोबाई - जीवन
- सहजोबाई – उपदेश भाग 1
- सहजोबाई – उपदेश भाग 2
- सहजोबाई – उपदेश भाग 3
- सहजोबाई – उपदेश भाग 4
- सहजोबाई – उपदेश भाग 5
- सहजोबाई – उपदेश भाग 6
- दयाबाई - जीवन
- दयाबाई – उपदेश भाग 1
- दयाबाई – उपदेश भाग 2
- सार
किसी भी किताब को सुनते वक़्त: किताब का जो अध्याय आप सुन रहे हैं, उसे पीले रंग से हाईलाइट किया गया है ताकि आपको पता रहे कि आप क्या सुन रहे हैं। एक बार वेबसाइट से बाहर निकलने के बाद जब आप वापस लौटकर प्ले बटन क्लिक करते हैं, तो ऑडियो प्लेयर अपने आप वहीं से शुरू होता है, जहाँ आपने छोड़ा था।
किताब को डाउन्लोड करने के लिए: डाउन्लोड लिंक को क्लिक करें। आपका ब्राउज़र इसे डाउन्लोड फ़ोल्डर में रख देगा। कई फ़्री ऐप्स हैं जो आपकी किताब प्ले करने, विषय-सूची देखने या पुस्तक चिह्न लगाने में मदद कर सकते हैं ताकि आप दोबारा वहीं से शुरू करें, जहाँ छोड़ा था। आप किताब को म्युज़िक क्लाउड पर भी अप्लोड कर सकते हैं जिससे आप इसे अलग-अलग डिवाइस पर सुन सकतें हैं।
यू ट्यूब पर सुनने के लिए: यू ट्यूब लिंक को दबाएँ। लगातार प्ले करें या किताब के अलग-अलग अध्याय सुनने के लिए उस लिंक को दबाएँ। यू ट्यूब पर जहाँ आपने छोड़ा था, वहीं से ऑडियो शुरू करने के लिए आपको फिर लॉग-इन करना होगा।
सहजोबाई और दयाबाई दोनों संत चरनदास की शिष्या थीं। दोनों ने इस नश्वर संसार के मोह को त्यागकर हृदय में प्रभु का सच्चा प्रेम उत्पन्न करके ऊँचे उठने का उपदेश दिया है। हालाँकि आपने अपनी बानी में परमार्थ के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला है, परंतु इसमें गुरुप्रेम की प्रमुखता नज़र आती है। आपका दृढ़ विश्वास था कि अंतर में ध्यान स्थिर करने और सुरत-शब्द योग के मार्ग पर चलने की युक्ति सतगुरु से ही सीखी जा सकती है।
लेखक: डॉ. टी. आर. शंगारी