संत धरनीदास
सत्रहवीं शताब्दी में हुए संत धरनीदास का बिहार के संतों में एक प्रतिष्ठित स्थान है। इस पुस्तक का आधार धरनीदास जी की उपलब्ध वाणी है जिसमें मनुष्य जन्म के महत्त्व, इसके मुख्य उद्देश्य तथा परमात्मा की भक्ति पर विशेष बल दिया गया है। उनकी वाणी में हमें उनके आत्म-साक्षात्कार और अपने प्रियतम के विरह से उत्पन्न होने वाले गहन प्रेम का पता चलता है। संत धरनीदास ने प्रभु से मिलाप के लिए एक सच्चे गुरु की शरण लेने और उनके उपदेश पर अमल करने की आवश्यकता पर बल दिया है।
लेखक: डॉ. टी. आर. शंगारीऑनलाइन ऑर्डर के लिए: भारत से बाहर के देशों में ऑर्डर के लिए भारत में ऑर्डर के लिए डाउन्लोड (143MB) | यू ट्यूब |
- प्रकाशक की ओर से
- जीवन
- उपदेश - भाग 1
- उपदेश - भाग 2
- उपदेश - भाग 3
- उपदेश - भाग 4
- वाणी के चुनिंदा प्रसंग – भाग 1
- वाणी के चुनिंदा प्रसंग – भाग 2
- उपदेश का सार
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सत्रहवीं शताब्दी में हुए संत धरनीदास का बिहार के संतों में एक प्रतिष्ठित स्थान है। इस पुस्तक का आधार धरनीदास जी की उपलब्ध वाणी है जिसमें मनुष्य जन्म के महत्त्व, इसके मुख्य उद्देश्य तथा परमात्मा की भक्ति पर विशेष बल दिया गया है। उनकी वाणी में हमें उनके आत्म-साक्षात्कार और अपने प्रियतम के विरह से उत्पन्न होने वाले गहन प्रेम का पता चलता है। संत धरनीदास ने प्रभु से मिलाप के लिए एक सच्चे गुरु की शरण लेने और उनके उपदेश पर अमल करने की आवश्यकता पर बल दिया है।
लेखक: डॉ. टी. आर. शंगारी