संत गरीबदास
अठारहवीं शताब्दी में हुए हरियाणा के संत गरीबदास पर कबीर साहिब का बहुत प्रभाव रहा है। परमपिता परमात्मा की खोज के लिए संत गरीबदास ने एक सच्चे गुरु के महत्त्व पर विशेष बल दिया है। आप कहते हैं कि परमात्मा के साथ एकात्म हुआ पूर्ण सतगुरु ही अपूर्ण शिष्य को परमात्मा तक ले जा सकता है। संत गरीबदास समझाते हैं कि बहिर्मुखी साधना के सारे तरीक़े मनुष्य के अपने बनाए हुए हैं, इसलिए ये सभी अधूरे हैं। प्रभु का नाम, शब्द अथवा नाद ही सभी पूर्वकर्मों के प्रभाव को मिटाकर आत्मा को निर्मल करके प्रभु के साथ मिलाने का एकमात्र साधन है। उनके काव्य की भाषा और शैली बड़ी सरल है जिसे लोग आसानी से समझ सकते हैं।
लेखक: डॉ. टी. आर. शंगारीऑनलाइन ऑर्डर के लिए: भारत से बाहर के देशों में ऑर्डर के लिए भारत में ऑर्डर के लिए डाउन्लोड (446MB) | यू ट्यूब |
- प्रकाशक की ओर से
- प्राक्कथन
- जीवन
- उपदेश - भाग 1
- उपदेश - भाग 2
- उपदेश - भाग 3
- उपदेश - भाग 4
- उपदेश - भाग 5
- उपदेश - भाग 6
- उपदेश का सार
- चुनी हुई वाणी - भाग 1
- चुनी हुई वाणी - भाग 2
- चुनी हुई वाणी - भाग 3
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अठारहवीं शताब्दी में हुए हरियाणा के संत गरीबदास पर कबीर साहिब का बहुत प्रभाव रहा है। परमपिता परमात्मा की खोज के लिए संत गरीबदास ने एक सच्चे गुरु के महत्त्व पर विशेष बल दिया है। आप कहते हैं कि परमात्मा के साथ एकात्म हुआ पूर्ण सतगुरु ही अपूर्ण शिष्य को परमात्मा तक ले जा सकता है। संत गरीबदास समझाते हैं कि बहिर्मुखी साधना के सारे तरीक़े मनुष्य के अपने बनाए हुए हैं, इसलिए ये सभी अधूरे हैं। प्रभु का नाम, शब्द अथवा नाद ही सभी पूर्वकर्मों के प्रभाव को मिटाकर आत्मा को निर्मल करके प्रभु के साथ मिलाने का एकमात्र साधन है। उनके काव्य की भाषा और शैली बड़ी सरल है जिसे लोग आसानी से समझ सकते हैं।
लेखक: डॉ. टी. आर. शंगारी