सन्त नामदेव – राधास्वामी सत्संग ब्यास ऑडियो बुक्स

सन्त नामदेव

भक्ति परंपरा के आरंभिक संतों में नामदेव जी एक ऐसे संत हैं, जिनके द्वारा रचित वाणी हमें उपलब्ध है। आप तेरहवीं शताब्दी में महाराष्ट्र में हुए और पेशे से दर्ज़ी और छीपा थे। अपने जीवन के आरंभ में आप हिंदुओं के कर्मकांड के दृढ़ अनयुायी थे और मूर्ति-पूजा किया करते थे, किंतु आख़िरकार आपका गुरु से मिलाप हो गया, जिन्होंने आपको समझाया कि प्रभु की सच्ची पूजा अपने अंतर में ही करनी चाहिए। नामदेव जी ने तीर्थयात्रा तथा कर्मकांड को व्यर्थ बताया है और शब्द की साधना का उपदेश दिया है। इस पुस्तक में पहले नामदेव जी के जीवन और उपदेश पर एक संक्षिप्त अध्याय है और फिर उनकी वाणी के कई पदों का अनुवाद है जिनमें गुरु की दया-मेहर और जीते-जी मरने के परम सुख का वर्णन है “मैंने जीते-जी मरना सीख लिया है, अब मुझे मरने का कोई डर नहीं।”

लेखक: जे. आर. पुरी, वी. के. सेठी, टी. आर. शंगारी
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