संत रज्जब
सोलहवीं शताब्दी में राजस्थान में हुए संत रज्जब, संत दादूदयाल के प्रमुख शिष्य थे। रज्जब जी उस समय जयपुर के बाहरी इलाक़े में रहते थे। इस पुस्तक में संत रज्जब की जीवनी के साथ-साथ उनकी सुंदर बानी का संकलन है। बानी में मनुष्य-जन्म का उद्देश्य, कर्म-सिद्धांत, मन की चंचलता, पूर्ण गुरु के मार्ग दर्शन और शरण में जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। ये सभी विषय उनके प्रभावशाली आध्यात्मिक संदेश का सार हैं। अपनी प्रेरणामयी और मनोहारी बानी से संत रज्जब ने उस विरह की व्यथा का बड़े सुंदर शब्दों में वर्णन किया है जो परमात्मा के सच्चे प्रेमी को सहनी पड़ती है। उनका अपने गुरु के प्रति गहरा प्रेम था। उन्होंने अपनी बानी में कहा है कि सच्चे प्रेम से बढ़कर और कोई प्रार्थना, कोई पूजा नहीं है। ऐसा प्रेम पैदा करने के लिए वह अध्यात्म के जिज्ञासुओं को अंतर में ध्यान-साधना की प्रेरणा देते हैं।
लेखक: जनक गोरवानीऑनलाइन ऑर्डर के लिए: भारत से बाहर के देशों में ऑर्डर के लिए भारत में ऑर्डर के लिए डाउन्लोड (120MB) | यू ट्यूब |
- प्रकाशक की ओर से
- एक परिचय
- जीवन में एक निर्णायक मोड़
- साँईं सबका एक है
- गुरु से मिलाप
- अंतर की साधना
- चाल मन की, पसारा काल का
- कर्म - बंधन संसार का
- प्रेम - सच्ची इबादत
- शरण
- सेवा करे सो बंदगी
- रहनी कैसी हो?
- अंतिम समय
- वाणी – भाग 1
- वाणी – भाग 2
किसी भी किताब को सुनते वक़्त: किताब का जो अध्याय आप सुन रहे हैं, उसे पीले रंग से हाईलाइट किया गया है ताकि आपको पता रहे कि आप क्या सुन रहे हैं। एक बार वेबसाइट से बाहर निकलने के बाद जब आप वापस लौटकर प्ले बटन क्लिक करते हैं, तो ऑडियो प्लेयर अपने आप वहीं से शुरू होता है, जहाँ आपने छोड़ा था।
किताब को डाउन्लोड करने के लिए: डाउन्लोड लिंक को क्लिक करें। आपका ब्राउज़र इसे डाउन्लोड फ़ोल्डर में रख देगा। कई फ़्री ऐप्स हैं जो आपकी किताब प्ले करने, विषय-सूची देखने या पुस्तक चिह्न लगाने में मदद कर सकते हैं ताकि आप दोबारा वहीं से शुरू करें, जहाँ छोड़ा था। आप किताब को म्युज़िक क्लाउड पर भी अप्लोड कर सकते हैं जिससे आप इसे अलग-अलग डिवाइस पर सुन सकतें हैं।
यू ट्यूब पर सुनने के लिए: यू ट्यूब लिंक को दबाएँ। लगातार प्ले करें या किताब के अलग-अलग अध्याय सुनने के लिए उस लिंक को दबाएँ। यू ट्यूब पर जहाँ आपने छोड़ा था, वहीं से ऑडियो शुरू करने के लिए आपको फिर लॉग-इन करना होगा।
सोलहवीं शताब्दी में राजस्थान में हुए संत रज्जब, संत दादूदयाल के प्रमुख शिष्य थे। रज्जब जी उस समय जयपुर के बाहरी इलाक़े में रहते थे। इस पुस्तक में संत रज्जब की जीवनी के साथ-साथ उनकी सुंदर बानी का संकलन है। बानी में मनुष्य-जन्म का उद्देश्य, कर्म-सिद्धांत, मन की चंचलता, पूर्ण गुरु के मार्ग दर्शन और शरण में जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। ये सभी विषय उनके प्रभावशाली आध्यात्मिक संदेश का सार हैं। अपनी प्रेरणामयी और मनोहारी बानी से संत रज्जब ने उस विरह की व्यथा का बड़े सुंदर शब्दों में वर्णन किया है जो परमात्मा के सच्चे प्रेमी को सहनी पड़ती है। उनका अपने गुरु के प्रति गहरा प्रेम था। उन्होंने अपनी बानी में कहा है कि सच्चे प्रेम से बढ़कर और कोई प्रार्थना, कोई पूजा नहीं है। ऐसा प्रेम पैदा करने के लिए वह अध्यात्म के जिज्ञासुओं को अंतर में ध्यान-साधना की प्रेरणा देते हैं।
लेखक: जनक गोरवानी