सेवा
सेवा का अर्थ है ‘निस्स्वार्थ कार्य’। सेवा का मतलब केवल अपनी इच्छाओं और ज़रूरतों पर ध्यान देने के बजाय दूसरों की सेवा करना है। परमपिता के प्रति प्रेम और भक्ति भाव ही सेवा की नींव है। इस पुस्तक में अलग-अलग प्रकार की सेवा के अनेक पहलुओं तथा आपसी तालमेल, आत्मसंयम और हुक्म में रहने पर विचार किया गया है। साथ ही परस्पर सहयोग, सुनने के महत्त्व और संतुलन पर भी चर्चा की गई है और सबसे महत्त्वपूर्ण सेवा — भजन-सुमिरन के लिए प्रेरित किया गया है।
लेखक: लीना चावला राजनऑनलाइन ऑर्डर के लिए: भारत से बाहर के देशों में ऑर्डर के लिए भारत में ऑर्डर के लिए डाउन्लोड (273MB) | यू ट्यूब |
- प्रकाशक की ओर से
- बुनियाद
- सेवा क्या है ?
- तन की सेवा क्या है?
- हम सेवा क्यों करते हैं?
- हम सेवा किस तरह करें?
- तन और मन से सेवा
- सेवा भाव
- ज़िम्मेदारी की भावना
- आत्मसंयम
- सुनने का महत्त्व
- विनम्रता
- निष्काम भावना
- हुक्म में रहना
- शरण
- प्रेम
- तालमेल
- मन और सुरत से सेवा
- संतुलन
- भजन-सिमरन भाग -1
- भजन-सिमरन भाग -2
- तोहफ़े की क़द्र करना
- शुक्राना
- आख़िर में
किसी भी किताब को सुनते वक़्त: किताब का जो अध्याय आप सुन रहे हैं, उसे पीले रंग से हाईलाइट किया गया है ताकि आपको पता रहे कि आप क्या सुन रहे हैं। एक बार वेबसाइट से बाहर निकलने के बाद जब आप वापस लौटकर प्ले बटन क्लिक करते हैं, तो ऑडियो प्लेयर अपने आप वहीं से शुरू होता है, जहाँ आपने छोड़ा था।
किताब को डाउन्लोड करने के लिए: डाउन्लोड लिंक को क्लिक करें। आपका ब्राउज़र इसे डाउन्लोड फ़ोल्डर में रख देगा। कई फ़्री ऐप्स हैं जो आपकी किताब प्ले करने, विषय-सूची देखने या पुस्तक चिह्न लगाने में मदद कर सकते हैं ताकि आप दोबारा वहीं से शुरू करें, जहाँ छोड़ा था। आप किताब को म्युज़िक क्लाउड पर भी अप्लोड कर सकते हैं जिससे आप इसे अलग-अलग डिवाइस पर सुन सकतें हैं।
यू ट्यूब पर सुनने के लिए: यू ट्यूब लिंक को दबाएँ। लगातार प्ले करें या किताब के अलग-अलग अध्याय सुनने के लिए उस लिंक को दबाएँ। यू ट्यूब पर जहाँ आपने छोड़ा था, वहीं से ऑडियो शुरू करने के लिए आपको फिर लॉग-इन करना होगा।
सेवा का अर्थ है ‘निस्स्वार्थ कार्य’। सेवा का मतलब केवल अपनी इच्छाओं और ज़रूरतों पर ध्यान देने के बजाय दूसरों की सेवा करना है। परमपिता के प्रति प्रेम और भक्ति भाव ही सेवा की नींव है। इस पुस्तक में अलग-अलग प्रकार की सेवा के अनेक पहलुओं तथा आपसी तालमेल, आत्मसंयम और हुक्म में रहने पर विचार किया गया है। साथ ही परस्पर सहयोग, सुनने के महत्त्व और संतुलन पर भी चर्चा की गई है और सबसे महत्त्वपूर्ण सेवा — भजन-सुमिरन के लिए प्रेरित किया गया है।
लेखक: लीना चावला राजन