हज़रत सुलतान बाहू
सत्रहवीं शताब्दी के महान् सूफ़ी संत हज़रत सुलतान बाहू, साईं बुल्लेशाह के समकालीन थे। बाहू उत्तरी भारत में विशेष लोकप्रियता प्राप्त करनेवाले सूफ़ी संतों में से एक हैं। बाहू की सबसे प्रसिद्ध रचना ‘अब्याते बाहू’ पंजाबी भाषा में है और इसके चार पंक्तियों वाले पद्य बैतों के रूप में लिखे गए हैं। पुस्तक में हज़रत सुलतान बाहू के जीवन और शिक्षा के उल्लेख के बाद उनके बैतों का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। उनके कलाम में फ़ारसी की सूफ़ी कविता का-सा रस है और उसका विषय आत्मिक अनुभूति, सतगुरु से प्रीति और कट्टरपंथी धर्म के निरर्थक कर्मकांड तथा बहिर्मुखी क्रियाओं का खंडन है।
लेखक: कृपाल सिंह ‘ख़ाक’, जे. आर. पुरीऑनलाइन ऑर्डर के लिए: भारत से बाहर के देशों में ऑर्डर के लिए भारत में ऑर्डर के लिए डाउन्लोड (385MB) | यू ट्यूब |
- प्रकाशक की ओर से
- लेखक की ओर सेe
- जीवन
- मनुष्य-जीवन का उद्देश्य
- शरीर ही हरि-मन्दिर है
- शरीअत या कर्मकाण्ड
- मुर्शिद (गुरु)
- कलमा
- कलमे की कमाई
- इश्क़ (प्रेम)
- वहदत (अद्वैत)
- रूहानियत, इल्म और सूझबूझ
- परमार्थ में सहायक और बाधक अंग
- काव्य-कला, भाषा और शैली
- भाग-2 अब्याते-बाहू 01 से 50
- भाग-2 अब्याते-बाहू 51 से 100
- भाग-2 अब्याते-बाहू 101 से 150
- भाग-2 अब्याते-बाहू 151 से 200
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सत्रहवीं शताब्दी के महान् सूफ़ी संत हज़रत सुलतान बाहू, साईं बुल्लेशाह के समकालीन थे। बाहू उत्तरी भारत में विशेष लोकप्रियता प्राप्त करनेवाले सूफ़ी संतों में से एक हैं। बाहू की सबसे प्रसिद्ध रचना ‘अब्याते बाहू’ पंजाबी भाषा में है और इसके चार पंक्तियों वाले पद्य बैतों के रूप में लिखे गए हैं। पुस्तक में हज़रत सुलतान बाहू के जीवन और शिक्षा के उल्लेख के बाद उनके बैतों का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। उनके कलाम में फ़ारसी की सूफ़ी कविता का-सा रस है और उसका विषय आत्मिक अनुभूति, सतगुरु से प्रीति और कट्टरपंथी धर्म के निरर्थक कर्मकांड तथा बहिर्मुखी क्रियाओं का खंडन है।
लेखक: कृपाल सिंह ‘ख़ाक’, जे. आर. पुरी