गुजरात

26 जनवरी 2001 को गुजरात में एक ज़बरदस्त भूकंप आया जिसमें 20,000 लोगों की मौत हो गई और हज़ारों घर, इमारतें और भवन बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए। विनाश इतना ज़्यादा था कि भुज, अंजार और भचाऊ की सभी इमारतें और गाँव मलबा बन गए। राधास्वामी सत्संग ब्यास ने तुरंत भुज, कच्छ, पाटण और अहमदाबाद ज़िलों के सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाक़ों में सहायता प्रदान करने का अनुरोध किया। राज्य और स्थानीय सरकार के साथ मिलकर सबसे पहले टेंट स्कूलों की तैयारी की गई। 250 सेवादारों ने तुरंत राहत कार्य शुरू कर दिया। केवल 16 दिनों में, 56 गाँवों में और कच्छ तथा भुज ज़िले के 120 स्कूलों में, 1,250 टेंट वाले स्कूल के कमरे तैयार किए गए। ये अस्थायी स्कूल, राज्य में भूकंप के बाद के राहत कार्य में बनने वाले सबसे पहले ढाँचे थे। इन स्कूलों के बनने से बच्चों, माता-पिता, अध्यापकों और पूरे समुदाय को स्थायी और सामान्य माहौल का एहसास होने लगा। उस समय जल्दी से टेंट स्कूल बनाने का नतीजा यह हुआ कि स्कूल दोबारा अपने नियमित समय पर खुलने शुरू हो गए, जबकि उस इलाक़े में अभी कुछ भी सामान्य नहीं था। इनमें बहुत से स्कूल रात को सोने के लिए इस्तेमाल किए गए। तब गुजरात सरकार ने राज्य में भविष्य की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए राधास्वामी सत्संग ब्यास से ऐसे और स्कूल बनाने के लिए कहा। राधास्वामी सत्संग ब्यास ने पहले स्कूल का एक डिज़ाइन बनाया जो भूकंप के झटकों को सह सके, फिर उसका पूरा मॉडल तैयार किया, जिसे राज्य सरकार ने अपनी सहमति दी। इन इमारतों को डिज़ाइन नीचे दी गई बातों को ध्यान में रखते हुए किया गया।
- सभी स्कूल की इमारतें भूकंप ज़ोन- V की ज़रूरतों को ध्याने में रखते हुए डिज़ाइन की गईं ।
- चूँकि ये सरकारी इमारतें हैं, इसलिए निर्माण सामग्री का 1.5 गुणा घटक लिया ताकि स्कूल का डिज़ाइन आई.एस. मानक के अनुकूल हो।
- डिज़ाइन करते वक़्त यह ध्यान रखा गया कि सांतलपुर गाँवों में कोई सामग्री उपलब्ध नहीं है, इसलिए ज़्यादातर ढाँचों को पहले अहमदाबाद सेंटर में तैयार किया गया।
- फैक्टरी में बनी निर्माण सामग्री से पहले एक मॉडल ढाँचा राधास्वामी सत्संग ब्यास के गुजरात सेंटर में तैयार किया गया जिसे गुजरात के मुख्यमंत्री और उनके केबिनेट मंत्रियों ने अपनी मंज़ूरी दी।
इसके बाद राधास्वामी सत्संग ब्यास ने मार्च 2001 में अपने अहमदाबाद सेंटर पर इन ढाँचों के प्री फ़ैब्रिकेशन का कार्य शुरू किया। सभी स्कूल गाँव या राज्य सरकार द्वारा दी गई ज़मीन पर बनाए गए। एक स्कूल को पूरा करने में 10 से 15 दिन का समय लगा। हर स्कूल में कम से कम 3 कमरे, शौचालय, खेलकूद की सुविधाएँ, सुरक्षा बाड़ और गेट बनाए गए। नीम के पेड़ों के कारण स्कूल पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित हैं। कुल मिलाकर 69 भूकंप अवरोधी स्कूल बनाए गए जिनमें 481 कक्षा के कमरे थे। 3000 सेवादारों ने 7 महीनों में यह काम पूरा किया। सभी स्कूलों का निर्माण करके 31 अक्तूबर 2001 को उन्हें शिक्षा विभाग को सौंप दिया गया।
इन स्कूलों की कुछ मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- भूकंप अवरोधी इमारतें कम से कम डेढ़ एकड़ भूमि पर बनाई गईं।
- हर स्कूल में कम से कम तीन कमरे और आधुनिक सुविधाओं वाले शौचालय हैं।
- स्कूल में बाड़ और गेट लगाए गए।
- सभी कक्षाओं में पंखे और ट्यूब लाइट लगाए गए।
- आंगन में नीम के पेड़ और बाड़ पर बोगनविला लगाए गए।
