नशा – बर्बादी है
जीवन अनमोल है
नशे को "ना" कहें
नशा क्या है?
नशे की समस्या
नशे की लत के कारण
जोख़िम और बचने के उपाय
पहली बार नशीले पदार्थ को इस्तेमाल करने वाला
नशे की लत क्या है?
नशे की लत का वैज्ञानिक आधार
नशे की लत का शरीर पर असर
नशीले पदार्थों की लत के लक्षण और संकेत
नशे की लत का इलाज
पुनरावृत्ति को रोकना
नशे की लत की रोकथाम
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रकाशक:
डी. के. सीकरी, सेक्रेटरी
राधास्वामी सत्संग ब्यास
डेरा बाबा जैमल सिंह
पंजाब 143 204
© 2024 राधास्वामी सत्संग ब्यास
सर्वाधिकार सुरक्षित
पहला संस्करण 2024
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यह पुस्तक केवल आपको जानकारी देने के लिए है, डॉक्टर की राय के स्थान पर प्रयोग के लिए नहीं। आवश्यकता पड़ने पर डॉक्टर की सलाह अवश्य ली जाए।
बदलते समय के साथ मनोरंजन के साधन भी बदल गए हैं। पहले बच्चे अपने ख़ाली समय में किताबें पढ़ा करते थे, क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल और खेलकूद जैसे आउटडोर गेम्स खेला करते थे। उस समय कोई वीडियो गेम, मोबाइल फोन, टी.वी., लैपटॉप, टैबलेट, आई-पैड और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण नहीं थे। माता-पिता अपने बच्चों के साथ समय बिताया करते थे और बच्चों की पढ़ाई, खेल-कूद, उनके शौक़ एवं रूचियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करते थे। पारिवारिक संबंध आपसी मान-सम्मान और परस्पर प्रेम पर आधारित थे। पारिवारिक पिकनिक, मूवी देखने बाहर जाना और आपस में मिलने-जुलने जैसी साधारण गतिविधियाँ तनावमुक्त और तरोताज़ा होने के लिए काफ़ी थीं।
परंतु आजकल स्थिति बिलकुल अलग है। हर किसी का ध्यान अपने स्मार्टफ़ोन, लैपटॉप, टैबलेट, आईपैड और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर रहता है। बच्चे वीडियो गेम में घंटों व्यस्त रहते हैं और बाक़ी के लगभग सभी लोग इंस्टाग्राम, टिकटॉक, स्नैपचैट, फेसबुक, व्हाट्सएप और यू-ट्यूब आदि के द्वारा सोशल मीडिया की मायावी दुनिया में खोए रहते हैं। पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में अपनेपन का एहसास एक दूर का सपना है क्योंकि हर कोई अपने ही तनाव और चिंताओं से जूझ रहा है – चाहे वह महसूस किए गए हों अथवा वास्तव में हों।
माता-पिता जो अपनी दुनिया में व्यस्त रहते हैं, उनकी अपने किशोर बच्चों के साथ शायद ही कोई बातचीत होती है। अपने कामकाज की व्यस्तताओं और समय की कमी के कारण माता-पिता अकसर अपने बच्चों के यारों-दोस्तों और मिलने-मिलाने वालों से बेख़बर रहते हैं। यह अलगाव परिवार के सदस्यों को एक दूसरे से दूर ले जाता है, जिसकी वजह से बच्चे जोख़िम भरे रास्तों पर चल पड़ते हैं और अपने संगी-साथियों के प्रभाव में आकर कुछ नया करने की होड़ में लग जाते हैं। ऐसा माहौल युवाओं के जीवन में धूम्रपान, शराब और नशे की शुरुआत की वजह बन जाता है। जीवन की तेज़ रफ़्तार के इस युग में, जहाँ एक दूसरे से होड़ और तनाव बढ़ रहे हैं, हमें बच्चों को अच्छी गतिविधियों, रचनात्मक कार्यों और उनकी रुचियों पर आधारित सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से उपयोगी मेल-मिलाप में व्यस्त रखने की ज़रूरत है। परिवारों में गर्मजोशी और एक दूसरे से जुड़े रहने की भावना को बढ़ावा देने के लिए माता-पिता और उनके बच्चों के बीच खुली और सीधी बातचीत, जिसमें उनके रोज़मर्रा के संशयों, आशंकाओं, चिंता और तनाव को दूर करने के लिए माता-पिता का मार्गदर्शन और भावनात्मक सहारा ज़रूरी है। माता-पिता को अपने बच्चों को जीवन में सही संस्कार और अनुशासन विकसित करने के लिए, शिक्षा एवं खेलकूद तथा सामाजिक-सांस्कृतिक और दीर्घकालिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अवश्य मार्गदर्शन करना चाहिए। ऐसे रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रहने से बच्चों को सकारात्मक मानसिकता विकसित करने में मदद मिलेगी और नकारात्मक प्रभावों के आगे झुकने की और दुस्साहसपूर्ण तथा जोख़िम भरे कार्यों में शामिल होने की संभावना कम हो जाएगी।
नशा क्या है?
नशीले पदार्थों का सेवन करने से व्यक्ति की मानसिक या शारीरिक स्थिति बदल जाती है। ये हमारे मस्तिष्क के काम करने के तरीक़े को, हमारी संवेदना और व्यवहार को, हमारी सोच-समझ और इंद्रियों को बहुत अधिक प्रभावित कर सकते हैं। ये नशा करनेवाले को, विशेषकर युवाओं को, बेक़ाबू और दुस्साहसी बना देते हैं।
ये पदार्थ सामान्य व्यवहार से जुड़ी भावनाओं और प्रेरक शक्ति की सूक्ष्म कार्यप्रणाली में बाधा पहुँचाते हैं। ऐसे व्यक्ति का धीरे-धीरे यथार्थ से संबंध टूट जाता है। नशे से पैदा होने वाला झूठा सुकून, ख़ुशी, तृप्ति और चैन का एहसास नशा करनेवाले पर हावी हो जाता है। इसके अलावा, कई नशीले पदार्थ इनसान की अनुभूति और अच्छे बुरे की पहचान को बदलकर रख देते हैं जिससे सेहत बिगड़ने का ख़तरा पैदा हो जाता है। इसमें नशे की लत लगना, बिगड़ी हुई ड्राइविंग, संक्रामक रोगों के शिकार होने का ख़तरा और गर्भावस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना शामिल हैं।
नशे की समस्या
नशीले पदार्थों की लत या सब्सटेंस यूज़ डिसऑर्डर (SUD) एक बहुत ही पेचीदा, बहुमुखी गंभीर समस्या है। आधुनिक युग में मादक पदार्थों का चलन दूर-दूर तक फैल गया है। शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमज़ोर कर देनेवाले और व्यवहार संबंधी बदलाव जैसे इसके दुष्परिणामों ने समाज को न मिटने वाले गहरे घाव दिए हैं।
लाखों भारतीय शराब, भांग और अफ़ीम के आदी हैं। नशीले पदार्थों का दुरुपयोग एक ऐसी सामाजिक समस्या बन गया है जिसने समाज में गहरी जड़ें जमा ली हैं। शराब, भांग, अफ़ीम और हेरोइन भारत में इस्तेमाल किए जाने वाले प्रमुख नशीले पदार्थ हैं और ब्यूप्रेनोर्फिन, प्रोपोक्सीफीन और हेरोइन ऐसे नशीले पदार्थ हैं जिन्हें इंजेक्शन द्वारा लिया जाता है।
पिछले दो-तीन दशकों में हमारे देश में कई प्रकार के ख़तरनाक नशीले पदार्थों की उपलब्धता और खपत कई गुना बढ़ गई है। वर्ष 2004 तक भारत में नशीले पदार्थों के आदी लोगों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से 7.5 करोड़ तक पहुँच गई थी। इसमें 10 लाख पंजीकृत हेरोइन का नशा करनेवाले शामिल थे (अनौपचारिक अनुमान के अनुसार यह संख्या 50 लाख होगी)। उनमें अधिकांश 18 से 35 आयु वर्ग के हैं, जो जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी समय होता है।
उस समय की (लगभग 100 करोड़ से ऊपर) जनसंख्या के आँकड़ों के अनुमान के अनुसार, देश भर में अंदाज़न 6.25 करोड़ शराब का सेवन करने वाले, 87.5 लाख भांग का इस्तेमाल करने वाले, 20 लाख ओपियेट् का इस्तेमाल करने वाले और 6 लाख सेडेटिव/ हिप्नॉटिक्स का इस्तेमाल करने वाले लोग थे। इन आँकड़ों में अंदाज़न 17 से 26% लोग नशे के मोहताज लोगों की श्रेणी में आते थे जिन्हें तत्काल इलाज की ज़रूरत थी।
नशीले पदार्थ का इंजेक्शन लेने का चलन पूरे देश में काफ़ी फैला हुआ था, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों से भी नशीले पदार्थों के इंजेक्शन लेने वालों (इंजेक्टिंग ड्रग यूज़र IDU) की ख़बरें सामने आ रही थीं। एक दूसरे के साथ सूइयों को साझा करना आम बात थी, औसतन तीन व्यक्ति इन सूइयों को एक दूसरे के साथ साझा करते थे।
नशे से मुक्ति के लिए इलाज चाहने वाले लोगों की संभावित संख्या ने एक कड़ी चुनौती खड़ी कर दी जिसमें लगभग 5 लाख अफ़ीम का इस्तेमाल करने वाले, 23 लाख भांग का इस्तेमाल करने वाले और 1.05 करोड़ शराब का इस्तेमाल करने वाले थे। समाज में नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करने वाले ऐसे लाखों लोगों को आगे आने के लिए, जानकारी हासिल करने के लिए और उपचार लेने के लिए प्रोत्साहित करना एक बहुत ज़रूरी काम बन गया है।
लगभग दो दशक बाद अब हमारी जनसंख्या 140 करोड़ को पार कर गई है, जिसमें नशा करने वालों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो गई है। हमारे समाज में नशीले पदार्थों के ख़तरे को रोकना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गई है क्योंकि सामाजिक-आर्थिक कारणों और इसे बढ़ावा देनेवाले अन्य कारणों ने नशीले पदार्थों की लत के मसले को काफ़ी हद तक बढ़ा दिया है।
वर्ष 2019 से 2021 के दौरान भारत के सभी प्रदेशों में नशीले पदार्थों से संबंधित पंजीकृत FIR की संख्या में उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद पंजाब तीसरे स्थान पर आता है।
एक अध्ययन के अनुसार पंजाब में मादक पदार्थों का इस्तेमाल 65.5% बताया गया। नशे के लिए सबसे ज़्यादा इस्तेमाल शराब (41.8%) और उसके बाद तंबाकू (21.3%) का होता है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि इसके बाद बड़ी संख्या में हेरोइन (20.8%) का इस्तेमाल करने वाले लोग भी पाए गए। शराब और तंबाकू को छोड़कर दूसरे नशों का इस्तेमाल करनेवालों की संख्या 34.8% थी। आम तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले दूसरे नशीले पदार्थ थे भुक्की (11%), भांग (6.3%), चरस और गांजा (1.5% प्रत्येक)।
अध्ययन में इस बात को विशेष रूप से दर्शाया गया है कि नशीले पदार्थों का इस्तेमाल मुख्य रूप से पुरुष, अनपढ़ लोग और 30 वर्ष से अधिक उम्र के लोग करते हैं। AIIMS के एक अध्ययन का अनुमान है कि पंजाब में ओपिऑएड इस्तेमाल करने वालों की संख्या 7 लाख से अधिक है।
कुल मिलाकर पंजाब में (वर्ष 2016 तक) 18 वर्ष और उससे अधिक आयु के लगभग 11 लाख व्यक्तियों की पहचान की गई जिन्हें नशामुक्ति सेवाओं की आवश्यकता थी। इनमें से 7.5 लाख शराब के सेवन से पैदा हुए रोगों से पीड़ित थे, जब कि 2.3 लाख अन्य अवैध नशीले पदार्थों के सेवन से पैदा हुए रोगों के शिकार थे। इसके अलावा हेरोइन, अफ़ीम, खसखस की भूसी (भुक्की), कैनाबिस (भांग) और ट्रामाडोल तथा ब्यूप्रेनोर्फिन जैसी फार्मास्युटिकल दवाएँ आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले अन्य नशीले पदार्थ थे।
हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि पंजाब में नशीले पदार्थों के आदी लोगों में अधिकतर मुख्य रूप से हेरोइन का सेवन करते हैं, जो प्राकृतिक नशीले पदार्थों की तुलना में सिंथेटिक ड्रग्स की लत में बढ़ोतरी का संकेत देता है।
पंजाब में हुए सर्वेक्षण में शामिल लगभग 72% नशेड़ी 15 से 35 आयु वर्ग के अंतर्गत आते हैं। उनमें से 27% आठवीं पास थे जब कि 50% ने दसवीं और बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी की थी। अध्ययन से यह भी पता चला कि 10% ने 14 साल की उम्र से पहले ही ड्रग्स लेना शुरू कर दिया था, 65% ने 15 से 20 आयु वर्ग में और 18% ने 21 से 25 साल के बीच ड्रग्स का इस्तेमाल शुरू कर दिया था। इसके अलावा यह भी पता चला कि इनमें से 54% ग्रामीण क्षेत्रों से थे और 46% शहरों में रहने वाले थे।
फ़रवरी 2022 में चंडीगढ़ स्थित पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पंजाब में हर सात में से एक व्यक्ति (15%) वैध और अवैध नशीले पदार्थों का आदी है यानी कुल मिलाकर 40 लाख लोग नशे के आदी हैं।
ये सभी सरकारी आँकड़ें हैं, लेकिन पूरी रिपोर्ट न मिलने को, नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार के चलन और समाज में इस समस्या की प्रबलता को ध्यान में रखते हुए संभवतः ये वास्तविक स्थिति का केवल एक अंश ही दिखाते हैं। हाल ही के वर्षों में नशीले पदार्थों की उपलब्धता और प्रयोग दोनों में भारी वृद्धि का अर्थ है कि हम बर्फ़ के पहाड़ वाली कहावत जैसी स्थिति का सामना कर रहे हैं।
पंजाब में मादक पदार्थों के सेवन ने महामारी का रूप धारण कर लिया है, जिससे राज्य का सामाजिक-आर्थिक ताना-बाना बरबाद हो गया है और राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को लेकर भी इसके दूरगामी परिणाम होंगे। बड़े पैमाने पर ‘ड्रग्स’ की बुरी लत को उजागर करने वाली कई मीडिया रिपोर्टों से सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर हलचल मच गई है।
नशीले पदार्थों के आदी लाखों व्यक्तियों और उनके परिवारों को जिस भारी शारीरिक और मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है, वह सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से दिल को छू जाने वाली स्थिति है। तेज़ी से बढ़ता हुआ यह मुद्दा केवल चिकित्सा क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि सामाजिक-राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से भी चिंताजनक रूप धारण कर चुका है।
नशे की लत के कारण
- प्रतिकूल पारिवारिक/ सामाजिक परिस्थितियाँ
- बेरोज़गारी
- साथियों का दबाव
- आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति की कमी
- माता-पिता से उचित मार्गदर्शन/देख-रेख न मिलना
- उपेक्षा का भाव
- ग़लत संगत
- तनाव
- ग़रीबी
- पारिवारिक समस्याएँ/तनाव
- बचपन में दुर्व्यवहार का शिकार होना
- चिंता/दुःख/परेशानी
- अनपढ़ता
- नासमझी
- घर में शराब और नशीले पदार्थों का इस्तेमाल
- प्रतिस्पर्धा का दबाव
- जिज्ञासा और नया अनुभव
- फिल्मों, सोशल मीडिया और मल्टीमीडिया के अन्य साधनों का प्रभाव
- ब्याह शादियाँ/त्यौहार
- असंतुलित जीवनशैली
- बिना परिश्रम के प्राप्त हुआ धन
- नशीले पदार्थों के तस्करों/ गिरोह से जुड़े लोगों से संप
- अनुशासन की कमी
- नशीले पदार्थों का आसानी से उपलब्ध होना
जोख़िम और बचने के उपाय
जोख़िम | बचने के उपाय |
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बचपन में उग्रतापूर्ण व्यवहार | आत्मविश्वास (आत्मनियंत्रण में विश्वास) |
माता-पिता की देख-रेख में कमी | माता-पिता द्वारा अधिक निगरानी और सहयोग |
साथियों को न नहीं कह पाना | संबंधों में सहयोग की भावना |
नशीले पदार्थों को इस्तेमाल करने की ललक | पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों में रुचि |
विद्यालय में नशीले पदार्थों की उपलब्ध होना | विद्यालयों में नशे पर रोक लगाने की नीति |
ग़रीब बस्ती | आसपड़ोस की सहायता और सरकार द्वारा रोकथाम |
पहली बार नशीले पदार्थ को इस्तेमाल करने वाला
The first-time drug user is usually a young person, delving into smoking or alcohol under the influence of peers, seeking acceptance, or trying to project a ‘cool’ image, or because it is the ‘in thing’ at a party or in a group setting
ऐसा प्रलोभन अकसर उन साथियों की संगति से उत्पन्न होता है जो इन आदतों के आदी हैं। आम तौर पर ये युवा इस तरह के ग्रुप का एक अभिन्न अंग बन जाते हैं और धीरे-धीरे 'पॉट' या 'वीड' जैसे हलके मादक पदार्थों का सेवन शुरू कर देते हैं, जो स्मैक, हेरोइन जैसे ज़्यादा तेज़ नशीले पदार्थों का प्रवेश द्वार है।
नशीले पदार्थों के तस्कर युवाओं की इस कमज़ोरी का फ़ायदा उठाते हैं और उन्हें नशे की लत में फँसाने के लिए नशीले पदार्थ की एक मात्रा मुफ़्त में देने का लालच देते हैं। एक बार जब यह आदत बन जाती है तो वे अगली हर मात्रा के लिए पैसे की माँग करना शुरू कर देते हैं और इस तरह एक नशाख़ोर जन्म लेता है।
आम तौर पर युवा धूम्रपान, शराब या ड्रग्स के नुक़सान से अवगत होते हैं लेकिन शुरू में इनके अनुभव का प्रतिरोध करने के लिए उनमें इतनी नैतिक दृढ़ता या इच्छाशक्ति नहीं होती है। एक ग़लत धारणा यह भी होती है कि वे जब चाहे इन्हें छोड़ सकते हैं। वे यह सोचते हैं कि नशे की लत दूसरों को लगती है, उन्हें नहीं लगेगी। वे इस बात को समझ नहीं पाते कि नशे को बार-बार लेने से उनके अंदर इसकी लालसा पैदा होती है जो उनके जीवन को ख़त्म कर देती है, यहाँ तक कि उनकी सोच को भी बदल देती है।
जब भी एक व्यक्ति दूसरे को कोई ऐसा सुझाव देता है जो उसके सिद्धांतों के विपरीत है, तब वह उसे 'न' कह सकता है और इस पर दृढ़ भी रह सकता है। ज़रूरत है केवल थोड़ी-सी दृढ़ता और अनुशासन की ताकि हानिकारक प्रभावों से अछूता रहकर वह अपने जीवन के लक्ष्य तक पहुँचने की कोशिश करे और उसे पूरा करने पर ध्यान केंद्रित रखे। पढ़ना, गाना, संगीत सुनना, कला, बाग़वानी, खेल-कूद, आउटडोर गतिविधियों जैसे कितने ही स्वास्थ्यप्रद और दिलचस्प काम हैं जिन्हें कोई भी अपना सकता है।
जिन बच्चों के पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक संबंध मज़बूत होते हैं, उनके नकारात्मक प्रभावों का शिकार होने की संभावना कम होती है। नियमित व्यायाम, योग और आध्यात्मिक शिक्षा से उन्हें अधिक स्वस्थ और सार्थक जीवन की प्रेरणा मिल सकती है। सीबीएसई (CBSE) के पाठ्यक्रमों में तथा यूजीसी (UGC) द्वारा उच्च शिक्षा संस्थानों में 'नशे की लत के दुष्परिणाम' जैसे विषयों को शामिल करना, एक अच्छा प्रयास है। यह युवाओं को नशीले पदार्थों के सेवन से दूर रखने के लिए बचाव का काम कर सकता है।
नशे की लत क्या है?
यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ व्यक्ति को नशीले पदार्थों के सेवन करने की प्रबल इच्छा या लालसा होती है और वह मानसिक और शारीरिक रूप से उनके बिना नहीं रह पाता। नशीले पदार्थों के सेवन की प्रबल इच्छा बाक़ी सभी ज़िम्मेदारियों और यहाँ तक कि परिवार से भी बढ़कर हो जाती है। यह एक गंभीर दिमाग़ी बीमारी है जिसका लक्षण यह है कि इसके सभी बुरे प्रभावों को जानने के बावजूद लोग इसका इस्तेमाल करने को मजबूर होते हैं। यह आदत न केवल लंबे समय तक चलती है बल्कि दोबारा इसका शिकार होने का ख़तरा बना रहता है।
नशे की लत का सीधा-सा अर्थ है किसी व्यक्ति का कुछ करने, लेने या इस्तेमाल करने पर से इस हद तक नियंत्रण खो देना कि वह उसके लिए हानिकारक बन जाए। इसे कुछ समय तक या लंबे समय तक चलने वाली नशे की हालत भी कह सकते हैं जो व्यक्ति या समाज के लिए नुक़सानदेह है और ऐसी हालत नशीले पदार्थों के बार-बार सेवन के कारण पैदा होती है।
शुरू में नशा करने का निर्णय ज़्यादातर स्वेच्छा से होता है। समय के साथ यह एक आदत बन जाती है जिससे व्यक्ति का ख़ुद पर नियंत्रण नहीं रहता और आख़िर वह नशे पर निर्भर हो जाता है। नशे पर निर्भर होने और इसके ज़्यादा सेवन से मस्तिष्क में लगातार बदलाव होते रहते हैं। इसका लंबे समय तक प्रयोग मस्तिष्क के अन्य कार्यों को भी प्रभावित कर सकता है जैसे व्यवहार, सीखने की शक्ति, तनाव, चिंता और याद्दाश्त। दुष्परिणामों को जानने के बावजूद नशीले पदार्थों के आदी लोग इसका इस्तेमाल करते रहते हैं क्योंकि वे इसके बिना रह नहीं पाते।
किसी व्यक्ति को ’नशे का आदी’ कहने से पहले उसके बारे में इन बातों की तसल्ली कर लेनी चाहिए:
मानसिक निर्भरता: नशीले पदार्थ को लेने और उसे किसी भी तरीक़े से हासिल करने की प्रबल इच्छा (मजबूरी) होती है।
शारीरिक निर्भरता: इसका प्रमाण इस तथ्य से मिलता है कि जब नशा करना बंद किया जाता है तो रोगी में 'नशा न करने से पैदा होने वाले लक्षण' (विद्ड्राल के लक्षण) दिखाई देते हैं जैसे विवेकरहित और हिंसा पूर्ण व्यवहार, जी मिचलाना, दस्त, आँखों और नाक से पानी आना आदि।
नशे के असर को झेलते जाना: शरीर को नशे की आदत हो जाती है और वैसे ही प्रभाव को हासिल करने के लिए नशे की मात्रा बढ़ाने की प्रवृत्ति होती है।
नशे की लत का वैज्ञानिक आधार
शुरू में नशे के प्रयोग से 'मस्ती' या ख़ुशी की अनुभूति होती है, जो मस्तिष्क के कुछ ख़ास क्षेत्र को उत्तेजित करके प्राप्त होती है जो मस्तिष्क का ख़ुशी देने वाला केंद्र है। डोपामाइन नामक न्यूरोट्रांसमीटर जो इस उत्तेजना को पैदा करता है, वह ख़ुशी और संतुष्टि की भावना से विशेष रूप से जुड़ा है। आम तौर पर भूख लगने पर खाने जैसा उपक्रम डोपामाइन रिलीज़ को बढ़ाता है जिससे ख़ुशी और संतुष्टि मिलती है। परंतु शराब और अन्य मूड बदलने वाले नशीले पदार्थों के सेवन से बढ़ने वाला डोपामाइन का उफ़ान स्वाभाविक इच्छाओं की पूर्ति से दस गुना अधिक होता है।
नशीले पदार्थों की लत की ख़ास बात यह है कि मस्तिष्क की ख़ुशी पाने की व्यवस्था में नशीले पदार्थों के अत्यधिक और लंबे समय तक सेवन से भारी बदलाव आता है, जिसके परिणामस्वरूप बेबस व्यक्ति नशा करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। डोपामाइन की एक साधारण आनंददायक हिलोर के बजाय ओपिऑएड, कोकीन या निकोटीन जैसे कई नशे डोपामाइन के मुक़ाबले मस्तिष्क में तूफ़ान ले आते हैं। मस्तिष्क इस तूफ़ानी हिलोर को देर तक याद रखता है और इसे उन नशीले पदार्थों के साथ जोड़ देता है। नशे से पैदा हुई उत्तेजना को दो तरह से पहचाना जा सकता है – सकारात्मक पुन: बलीकरण और अंतर में ख़ुशी का एहसास।
नशीले पदार्थों के सेवन का डोपामाइन के बढ़ने के साथ ख़ास संबंध है। यह नशा करने की लालासा को और तीव्र कर देता है, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति मजबूर होकर बार-बार नशा करता है। लंबे समय तक इनके इस्तेमाल के कारण मस्तिष्क बढ़े हुए डोपामाइन रिलीज़ के अनुरूप ढल जाता है, जिससे डोपामाइन की ग्रहणशीलता में कमी आ जाती है।
डोपामाइन की ग्रहणशीलता में कमी के परिणामस्वरूप जो स्थिति पैदा होती है, उसे 'एनहेडोनिया' कहते हैं यानी उन गतिविधियों से ख़ुशी न मिलना जिनसे पहले ख़ुशी का एहसास होता था। प्रतिक्रियावश ‘एनहेडोनिया’ की निराशापूर्ण अवस्था नशा करने वाले को फिर से ख़ुशी महसूस करने के लिए नशीले पदार्थ लेने के लिए मजबूर करती है। लंबे समय तक नशीले पदार्थों के सेवन से मस्तिष्क की बाहरी परत में ग्रे मैटर को हानि पहुँचने से व्यक्ति का ख़ुद पर नियंत्रण नहीं रहता।
नशे की लत का शरीर पर असर
नशे की लत से कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएँ पैदा हो सकती हैं जो शरीर की निम्नलिखित प्रणालियों पर बुरा असर डालती है:

- हृदय प्रणाली: दिल की धड़कन में वृद्धि और इसका अनियमित होना, उच्च रक्तचाप और दिल का दौरा या स्ट्रोक होने का ख़तरा बढ़ जाता है। कोकीन और मेथमफेटामाइन हृदय और रक्त वाहिकाओं को गंभीर हानि पहुँचा सकते हैं।
- श्वसन प्रणाली: कोकीन, हेरोइन और मेथामफेटामाइन जैसी ड्रग्स के कश लेने से क्रौनिक ब्रोंकाइटिस, अस्थमा या निमोनिया हो सकता है और फेफड़ों में संक्रमण का ख़तरा बढ़ सकता है।
- लीवर और किडनी: जिगर की सूजन, हेपेटाइटिस, सिरोसिस और गुर्दों को हानि पहुँचना जो मुँह से और इंजेक्शन द्वारा लिए जाने वाले कई नशीले पदार्थों के कारण होता है।
- गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम: गैस्ट्रिक अल्सर, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रक्तस्राव, कुपोषण और वज़न में कमी।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रणाली: नशीले पदार्थ रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमज़ोर कर देते हैं, जिससे नशा करने वाला संक्रमण और बीमारियों के प्रति अधिक ग्रहणशील हो जाता है। इसके साथ ही शरीर की ख़ुद को ठीक करने की क्षमता भी कमज़ोर पड़ जाती है।
- सेंट्रल नर्वस सिस्टम: सोचने समझने की शक्ति में कमी, याद्दाश्त ख़त्म होना, एकाग्रता में कमी, निर्णय लेने और ख़ुद पर नियंत्रण में कठिनाई। कुछ नशीले पदार्थों से दौरे पड़ते है, कंपकंपी आती है या ठीक से चलने-फिरने में दिक़्क़त आती है।
- हार्मोनल और प्रजनन प्रणाली: सामान्य हार्मोनल कार्य प्रणाली में दिक़्क़त की वजह से महिलाओं में बांझपन, मासिक धर्म की अनियमितता और यौन रोग जैसी समस्याएँ पैदा होती हैं और पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन के स्तर में कमी और शुक्राणुओं की उत्पत्ति में कमी आती है।
- दाँत और मुँह के रोग: कोकीन और मेथामफेटामाइन से दाँतों का सड़ना, मसूड़ों की बीमारी, दाँत टूट जाना और मुँह संबंधी रोग हो सकते हैं।
नशीले पदार्थों की लत के लक्षण और संकेत
- नशे का आदी:
- प्रतिदिन एक बार या कई बार नशीले पदार्थों का सेवन करने की तीव्र इच्छा महसूस करता है।
- भीख माँगकर, उधार लेकर या चोरी करके नशीले पदार्थों के लगातार मिलते रहने को सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।
- नशीले पदार्थों के सेवन के लिए ख़ुद पर कोई नियंत्रण नहीं रहता और अकसर आवश्यकता से अधिक सेवन करने की चाहत होती है।
- नशीले पदार्थों के दुष्परिणामों से अवगत होने के बावजूद लगातार उनका सेवन करता है।
- किसी भी समय नशीले पदार्थों को दोबारा लेने की ज़रूरत महसूस कर सकता है, यहाँ तक कि परिवार और दोस्तों की मौजूदगी में भी।
- पहले जिन गतिविधियों में वह ख़ुशी महसूस करता था, उनमें रुचि खो देता है।
- नशीले पदार्थों के सेवन (सब्सटेंस यूज़ डिसऑर्डर SUD) से शारीरिक तौर पर पैदा होने वाले चिंताजनक लक्षण इस प्रकार हैं:
- लाल सुर्ख़ आँखें; आँखों की पुतलियाँ सामान्य से बड़ी या छोटी
- भूख या नींद के तरीक़े में बदलाव
- बिगड़ा हुआ रंग-रूप और ख़ुद का ध्यान रखने की लापरवाही
- नाक बहना या सूँ-सूँ करना
- अचानक वजन कम होना या बढ़ना
- कंपकंपी, अस्पष्ट वाणी, या बिगड़ी हुई सोच-समझ
- श्वास, शरीर या कपड़ों में अजीब-सी गंध
- SUD के व्यवहार संबंधी चिंताजनक लक्षण:
- मादक पदार्थों के इस्तेमाल से रिश्ते निभाना मुश्किल हो जाना
- छुपाने की प्रवृत्ति या संदिग्ध व्यवहार
- बार-बार पुलिस थाने के चक्कर में पड़ना, जिसमें झगड़े, दुर्घटनाएँ, अवैध गतिविधियाँ और नशे में गाड़ी चलाना शामिल हैं
- ऑफ़िस, स्कूल या घर पर जिम्मेदारियों की उपेक्षा करना, जिसमें अपने बच्चों की उपेक्षा करना भी शामिल है
- दोस्तों में, पहले की पसंदीदा गतिविधियों और रुचियों में अचानक बदलाव
- बिना कारण पैसों की माँग करना, धन संबंधी परेशानियाँ, जिसकी वजह से अकसर उधार लेना या चोरी करना
- जोख़िम भरे हालातों में नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करना (जैसे गाड़ी चलाते हुए नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करना, इस्तेमाल की हुई पुरानी सूइयों का उपयोग करना, असुरक्षित यौन संबंध बनाना)
- अधिक नशा करने की ज़रूरत (उसी प्रभाव का अनुभव करने के लिए अधिक नशीले पदार्थों के सेवन की ज़रूरत पड़ती है जो पहले कम मात्रा से ही मिल जाता था)
- नशा न करने से पैदा हुए (विदड्रॉल के) लक्षण (जैसे जी मिचलाना, बेचैनी, अनिद्रा, डिप्रेशन, पसीना, कंपकंपी, चिंता) से बचने या राहत पाने के लिए और अधिक नशा करना
- नशीले पदार्थों के ग़लत इस्तेमाल (ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल करना और रुकने में असमर्थ होना) पर नियंत्रण न होना
- केवल नशे की लत के बारे में ही सोचते रहना (लगातार नशीले पदार्थ लेने के बारे में सोचना, इन्हें अधिक मात्रा में कैसे हासिल करें या उनके इस्तेमाल से उबरने के बारे में सोचना)
- नशीले पदार्थों के सेवन के लिए शौक़, खेल और सामाजिक मेलजोल जैसी मनोरंजक गतिविधियों को छोड़ देना
- नकारात्मक परिणामों (जैसे ब्लैकआउट, संक्रमण, मूड में बदलाव, डिप्रेशन और उन्माद) के बावजूद नशीले पदार्थों का इस्तेमाल जारी रखना
- SUD के मनोविज्ञान संबंधी चिंताजनक लक्षण:
- बिना किसी कारण के डरना, चिंतित या व्याकुल दिखाई देना
- उत्साह की कमी, थका हुआ या "खोया-सा" दिखना
- असामान्य रूप से ताक़त का बढ़ना, घबराहट या अशांत रहना
- अचानक मूड बदलना, चिड़चिड़ापन बढ़ना या ग़ुस्सा आना
- व्यक्तित्व या व्यवहार में असामान्य परिवर्तन
- कुछ विशेष नशीले पदार्थों के इस्तेमाल करने के संकेत और लक्षण इस प्रकार हैं:
- डेप्रेसेंट्स (जैसे ज़ानैक्स, वैलियम, GBH)
- आँखों की सिकुड़ी हुई पुतलियाँ
- नशे में धुत होने जैसा असर
- एकाग्रता में कठिनाई
- बेढंगापन
- निर्णय लेने की क्षमता न होना
- अस्पष्ट वाणी
- उनींदापन
- इनहेलेंटस (जैसे ग्लूज़, एरोसोल, वेपर्स):
- आँखों से पानी बहना
- नज़र कमज़ोर होना, याददाश्त और विचारशक्ति कमज़ोर पड़ना
- नाक से पानी बहना या नाक और मुँह के आसपास चकत्ते
- सिरदर्द या जी मिचलाना
- नशे में धुत्त रहना
- उनींदापन
- माँसपेशियों पर नियंत्रण कम होना
- भूख-प्यास में बदलाव
- घबराहट
- चिड़चिड़ापन
- कूड़ेदान में बहुत सारे डिब्बे/एरोसोल मिलना
- हेलुसीनोजेन्स (जैसे LCD, PCP)
- फैली हुई आँखों की पुतलियाँ
- उन्माद, आक्रमकता, मतिभ्रम सहित अजीब और विवेकहीन व्यवहार
- मूड में बदलाव
- लोगों से अलगाव
- अपने आप में या अन्य वस्तुओं में खोए रहना
- अस्पष्ट वाणी
- दुविधा
- हेरोइन:
- सिकुड़ी हुई आँखों की पुतलियाँ
- प्रकाश के प्रति आँखों की कोई प्रतिक्रिया न होना
- सुई के निशान
- ग़लत समय पर सोना
- पसीना आना
- उलटी होना
- खाँसना, सूँ-सूँ करना, फड़कन
- भूख में कमी
- स्टिम्युलेंट्स (जैसे एम्फ़ैटेमिन, कोकीन, क्रिस्टल मेथ):
- फैली हुई आँखों की पुतलियाँ
- असामान्य रूप से सक्रिय होना
- बेहद ख़ुशी का एहसास
- चिड़चिड़ापन
- घबराहट
- ज़रूरत से ज़्यादा बातें करना, उसके बाद डिप्रेशन में जाना या बेवक़्त अत्यधिक नींद आना
- लंबे समय तक बिना खाए-पिए रहना या सोए रहना
- वजन घटना
- मुँह और नाक का सूखना
- डेप्रेसेंट्स (जैसे ज़ानैक्स, वैलियम, GBH)
- नशीले पदार्थों के इस्तेमाल के कुछ सामान्य लक्षण जिन पर ध्यान देना चाहिए, वे हैं:
- चिड़चिड़ापन, घबराहट या मानसिक उन्माद
- दिल की धड़कन, रक्तचाप और तापमान बढ़ना
- बार-बार घबराहट महसूस होना
- वज़न कम होने के साथ मितली या उलटी होना
- निर्णय लेने में कठिनाई
- नाक बंद होना और नाक की म्युकस मेम्ब्रेन को नुक़सान (यदि नशे को सूँघता हो)
- (धूम्रपान वाले नशीले पदार्थों से) मुँह के छाले, मसूड़ों की बीमारी और दाँतों की सड़न - "मेथ माउथ"
- नींद न आना
- दवा का असर ख़त्म होने पर डिप्रेशन होना
- स्पष्ट रूप से सोचने में दिक़्क़त
- मांसपेशियों पर नियंत्रण न रहना
- मतिभ्रम
- उन्माद की स्थिति
- मानसिक रुग्णता और हिंसापूर्ण व्यवहार
- असमंजस की स्थिति
- देखने, सुनने और स्वाद की अनुभूति में बदलाव
- मानसिक सजगता में कमी आना
- स्कूल/दफ़्तर में ख़राब प्रदर्शन
- लगातार खाँसी आना और बार-बार फेफड़ों में संक्रमण होना
- ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV) संक्रमण
- हेपेटाइटिस 'बी' वायरस (HBV) या हेपेटाइटिस 'सी' वायरस (HCV) संक्रमण
- लाल आँखें
- मुँह सूखना
- माँसपेशियों के लचीलेपन में कमी
- एकाग्रता या याद रखने में कठिनाई
- धीमी प्रतिक्रिया
नशे की लत का इलाज
- नशे से मुक्ति
उपचार की दिशा में पहला और सबसे कठिन कार्य इस बात को समझना है कि व्यक्ति किसी मुसीबत में है और वह बदलना चाहता है। नशीले पदार्थों की लत एक सामाजिक और मेडिकल समस्या है और इसे पूरी तरह से हल करने की आवश्यकता है। नशामुक्ति एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसका प्रबंधन, निगरानी और व्यवस्था इस कार्य में निपुण लोगों द्वारा की जाती है और इसमें नशे के आदी व्यक्ति और उसके परिवार के पूर्ण सहयोग की आवश्यकता होती है। इसमें ये सारी बातें शामिल है:- नशे के आदी लोगों की पहचान करना और नशे से मुक्ति के लिए उन्हें प्रेरित करना
- इलाज की प्रक्रिया की सफलता तभी संभव है जब नशाख़ोर पूरी तरह से इसके लिए राज़ी हो और इलाज के दौरान पूरा समय सहयोग करे
- नशे से मुक्ति के लिए किसी संस्था या अस्पताल में देख-रेख की आवश्यकता होती है
- नशे से मुक्त होने के बाद क्लिनिक में और घर पर परामर्श और आगे का इलाज
- मनोचिकित्सा
- परिवार और समाज का सहयोग
- पुनर्वास
- समाज के साथ फिर से जुड़ना
- माहौल में तबदीली (घर, स्कूल, कॉलेज, सामाजिक दायरा)। रोगी को अपनी पहले वाली मंडली से पूरी तरह दूर रहना चाहिए वरना फिर से नशे का शिकार होने की संभावना बहुत अधिक होती है।
- केंद्र सरकार की पहल:
नशीले पदार्थों के इस्तेमाल की समस्या के समाधान के लिए विभिन्न सरकारी विभाग और मंत्रालय मिलकर काम करते हैं। इसके मुख्य रूप से तीन तरीक़े हैं - सप्लाई में कमी लाना, माँग में कमी लाना और यह देखना कि नुक़सान कम से कम हो- 'सप्लाई में कमी' – यह कार्य विभिन्न उपायों द्वारा अवैध ड्रग्स की उपलब्धता को कम करना है।
- 'माँग में कमी' – यह कार्य रोकथाम, उपचार और पुनर्वास के माध्यम से ड्रग्स की माँग को कम करने से संबंधित है।
- 'नुक़सान कम से कम हो' - भारत में यह मुख्य रूप से उन लोगों में एच आई वी की रोकथाम से संबंधित है जो नशीले पदार्थों के इंजेक्शन लेते हैं
SUD के इलाज के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत 1988 में एक नशामुक्ति प्रोग्राम (ड्रग डी-एडिक्शन प्रोग्राम DDAP) शुरू किया गया था। केंद्र सरकार द्वारा एक ही बार में वित्तीय अनुदान के साथ DDAP के तहत सरकारी अस्पतालों में नशामुक्ति केंद्र (DAC) स्थापित किए गए हैं, जिनका आगे का रोज़मर्रा का खर्च राज्य सरकारों द्वारा वहन किया जाता है। सरकारी अस्पतालों में उन मेडिकल अफ़सरों DDAP के तहत प्रशिक्षित किया गया है जो इसके विशेषज्ञ नहीं हैं और कई तरह की प्रशिक्षण सामग्री भी तैयार की गई है। DAC में इलाज के इच्छुक व्यक्तियों में नशीले पदार्थों के इस्तेमाल के तरीक़े पर नज़र रखने के लिए एक ड्रग एब्यूज़ मॉनीटरिंग सिस्टम तैयार किया गया है। निगरानी और मूल्यांकन की प्रक्रियाओं से पता चलता है कि केंद्र और राज्यों की साझा ज़िम्मेदारी का यह नमूना कुछ हद तक कामयाब हो रहा है। आउट पेशेंट (OPD) उपचार को मुख्य रखते हुए, एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में ड्रग ट्रीटमेंट क्लीनिकों की स्थापना से तथा कर्मचारियों और दवाओं के लिए DDAP से सीधी सहायता मिलने से उत्साहजनक परिणाम मिल रहे हैं।
- पंजाब की स्थिति:
भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी 15 DDC (ड्रग डी-एडिक्शन सेंटर) को सहायता प्रदान करता है जहाँ उपचार की अवधि एक महीना है। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, नशे की लत के इलाज के लिए 2.5 लाख मरीज़ पंजीकृत हैं। 208 आउटडोर ओपिऑएड असिस्टेड ट्रीटमेंट (OOAT) केंद्र हैं, जिनमें से 16 केंद्र जेलों के अंदर हैं। हर महीने करीब 16.5 लाख मरीज़ इन स्वास्थ्य केंद्रों में आते हैं। छोटे क़स्बों, गाँवों और शहरों में प्राइवेट DDC की संख्या भी बढ़ रही है, जहाँ उपचार की अवधि लगभग 6 महीने है। सभी DDC रोगियों के लिए व्यक्तिगत, सामूहिक और पारिवारिक कांउसलिंग के नियमित सत्र आयोजित करते हैं। देखने में आया है कि प्राइवेट केंद्रों की तुलना में रेडक्रॉस केंद्रों पर अधिक मरीज़ इलाज कराते हैं।
अधिकांश मरीज़ व्यक्तिगत कारणों और पारिवारिक सहयोग न मिलने के कारण DDC को छोड़कर चले गए। रेडक्रॉस DDC से डिस्चार्ज हुए मरीज़ों के पास कांउसलर उनके घरों में भी गए, लेकिन प्राइवेट DDC के मरीज़ों के घरों में नहीं। सभी केंद्रों ने नशा निवारक शिक्षा प्रदान करने, जागरूकता बढ़ाने, नशाख़ोरों के पंजीकरण, कांउसलिंग और नशामुक्ति/नशे की लत के उपचार के लिए शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में सहायता के लिए शिविर आयोजित किए। किसी भी DDC द्वारा पुनर्वास के लिए किसी भी प्रकार का व्यावसायिक प्रशिक्षण नहीं दिया गया।
पंजाब सरकार द्वारा बनाए गए उपक्रमों की योजना:
- गृह विभाग नशीले पदार्थों की सप्लाई को रोकने के लिए एक अभियान शुरू करने के लिए तैयार है, जिसके परिणामस्वरूप नशामुक्ति केंद्रों और OOAT में रोगियों के अधिक संख्या में पहुँचने की उम्मीद है। स्वास्थ्य विभाग को तत्काल OOAT की संख्या बढ़ाकर 500 करने को कहा गया है।
- इन केंद्रों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) और कम्यूनिटी स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) के मौजूदा बुनियादी ढाँचे के अंदर स्थापित करने की योजना है।
- हर 5-10 किलोमीटर के दायरे में एक केंद्र स्थापित करने की योजना है।
- स्वास्थ्य विभाग को राज्य के सभी दवा गोदामों में नशामुक्ति दवा (ब्यूप्रेनोर्फिन) का तीन महीने का बफर स्टॉक और सिविल सर्जन कार्यालय में एक महीने का बफर स्टॉक उपलब्ध करवाने का निर्देश दिया गया है।
- PHC स्तर पर तैनात लोगों सहित सभी मैडिकल अफ़सरों (MO) के लिए नशे से मुक्ति संबंधी उपचार पर चार दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम निर्धारित किया गया है।
- संशोधित योजना के अनुसार, उपचार एक मनोचिकित्सक द्वारा शुरू किया जाएगा, जिसके बाद OOAT केंद्रों में आगे का इलाज किया जाएगा।
- ज़मीनी स्तर पर नशीले पदार्थों के इस्तेमाल को रोकने में समाज को शामिल करने के लिए 23 मार्च 2018 को एक ड्रग एब्यूज़ प्रिवेंशन ऑफ़िसर (DAPO) कार्यक्रम शुरू किया गया था, जिसका लक्ष्य हर गाँव/हर मोहल्ले को कवर करना था। पंजाब में 6.2 लाख से अधिक DAPO पंजीकृत हैं, जिनमें 1.6 लाख अधिकारी और 4.6 लाख नागरिक स्वयंसेवकों के रूप में शामिल हैं।
- छात्रों में नशीले पदार्थों के इस्तेमाल को रोकने के लिए पंजाब शिक्षा विभाग द्वारा 15 अगस्त 2018 को एक ‘बड्डी’ (दोस्त, Buddy) कार्यक्रम शुरू किया गया, जिसमें छात्रों को संबंधित जानकारी प्रदान की गई, व्यवहार कुशलता की शिक्षा दी गई और स्वयं या समूह द्वारा निगरानी और सहायता करने के लिए ‘बड्डी’ बनाने की प्रेरणा दी गई। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 17,416 सरकारी और प्राइवेट शैक्षणिक संस्थानों में ऐसे ‘बड्डी दलों’ की संख्या 8.6 लाख है।
- अगस्त 2018 में पंजाब सरकार ने ‘ड्रग एब्यूज़’ के ख़तरे से जूझने के लिए कई सरकारी विभागों के प्रयासों में तालमेल बिठाने और इस कार्य में पूरे समाज को शामिल करने के लिए ‘ड्रग एब्यूज़ के विरुद्ध व्यापक कार्य योजना’ (CADA) को आरंभ किया।
पुनरावृत्ति को रोकना
एक नशाख़ोर जिसका नशे से मुक्ति के लिए इलाज किया गया है और समाज में उसका पुनर्वास किया गया है, उसे बचाव के लिए यह करना होगा:
- जोख़िम वाली स्थितियों से बचे
- यदि वह दोबारा नशे का इस्तेमाल करता है तो तत्काल सहायता ले
- अपने शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल प्रदान करने वाले से या किसी ऐसे अन्य व्यक्ति से बात करे जो उसकी तुरंत मदद कर सकता है।
नशे की लत की रोकथाम
पारिवारिक माहौल:
- बातचीत: अपने बच्चों के साथ खुलकर बातचीत करते रहें। नशीले पदार्थों के इस्तेमाल और इसके जोख़िमों के बारे में उनसे सहयोगपूर्ण और समझदार तरीक़े से बात करें।
- सुनना: बात ध्यान से सुनें और अच्छा श्रोता बनें। अपने बच्चों को उनके डर, चिंताओं, शंकाओं और अनुभवों को साझा करने के लिए प्रोत्साहित करें, जिसमें साथियों द्वारा दबाव बनाने के उदाहरण भी शामिल हैं। जब वे इन चुनौतियों का सामना करते हैं तो उन्हें सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करें।
- जब वे पढ़ने-लिखने के काम में व्यस्त न हों तो उन्हें कुछ आउटडोर खेलों और उनकी रुचि के कार्यों में व्यस्त रखें।
- एक अच्छा उदाहरण बनें: स्वयं शराब, धूम्रपान या नशीले पदार्थों का इस्तेमाल न करें। जो माता-पिता नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं, उनके बच्चों में नशीले पदार्थों की लत का शिकार होने का ख़तरा अधिक होता है।
- अपने बच्चों के साथ अच्छा समय बिताएँ: उनकी दैनिक गतिविधियों में भाग लें और उन्हें यह एहसास होने दें कि आप हमेशा उनके साथ हैं। उन्हें आश्वस्त करें कि आप उनके लिए हर वक़्त उपलब्ध हैं।
- एक मज़बूत रिश्ते को बढ़ावा दें: अपने बच्चों के साथ अपने रिश्ते को मज़बूत करने की कोशिश करें क्योंकि इससे नशीले पदार्थों के इस्तेमाल/ग़लत इस्तेमाल की संभावना कम हो जाती है।
- उनके प्रयासों और उपलब्धियों को महत्त्व दें और उनकी सराहना करें, भले ही वे कितनी भी छोटी क्यों न लगें। प्रशंसा और प्रोत्साहन से बहुत फ़र्क़ पड़ता है।
- अनुशासन: अपने बच्चों में अनुशासन की भावना पैदा करें और उन्हें अच्छे संस्कार दें।
- आदर्श बनें: कोशिश करें और अपने बच्चों के लिए एक श्रेष्ठ आदर्श बनें। आप उन्हें जो उपदेश देते हैं, उसका ख़ुद पालन करें क्योंकि करनी, कथनी से अधिक महत्त्व रखती है।
सामूहिक/सामाजिक दृष्टिकोण:
- इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के माध्यम से विशेष टारगेट ग्रुप और आम जनता दोनों को जानकारी देकर समस्या के बारे में जागरूक करें।
- स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में नशीले पदार्थों के इस्तेमाल के ख़तरों के बारे में जानकारी शामिल करें।
- युवाओं को नशीले पदार्थों के नुक़सानदेह प्रभावों के बारे में जानकारी देने में मदद करने के लिए सेल्फ़ हेल्प ग्रुप और ग़ैर-सरकारी संगठन (NGO) बनाएँ।
- समाज को नशामुक्त रखने के लिए क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों का समर्थन करें।
- युवाओं का ध्यान नशे से हटाने और उससे दूर रखने के लिए सांस्कृतिक, धार्मिक और खेल-कूद संबंधी समारोह आयोजित करें।
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
इस विषय को समाप्त करते हुए आइए नशीले पदार्थों की लत के बारे में अकसर पूछे जाने वाले कुछ प्रश्नों को सामने रखें जो हमें कुछ तथ्यों को याद रखने में मदद करेंगे:
क्या नशीले पदार्थों की लत एक बीमारी है या दुर्बलता?
नशीले पदार्थों की लत को एक बीमारी माना जाता है क्योंकि इस लत से मस्तिष्क की संरचना और कार्यशैली में परिवर्तन आ जाता है, जिससे व्यक्ति नशीले पदार्थों को इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हो जाता है।
यह लत कितनी ज़बरदस्त है?
नशे की ताक़त में किसी व्यक्ति के व्यवहार, विचारों और भावनाओं को नियंत्रित करने की क्षमता है, जिससे नशीले पदार्थों का इस्तेमाल बंद करना मुश्किल हो जाता है।
नशीले पदार्थ का असर कितनी तेज़ी से होता है?
नशीले पदार्थ का असर कितनी तेज़ी से हो रहा है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसे किस रूप में और किस तरह से लिया जाता है। इन्हेलर और इंट्रावेनस इंजेक्शन मिनटों में असर करते हैं, जब कि गोलियों का असर होने में अधिक समय लग सकता है।
ड्रग का 'फर्स्ट पास इफेक्ट' क्या है?
'फर्स्ट पास इफ़ेक्ट' तब होता है जब हज़म होने के बाद नशीले पदार्थों का लिवर में पाचन होता है, जिससे इसकी रक्तप्रवाह में प्रवेश करने वाली मात्रा कम हो जाती है।
ड्रक्या नशीले पदार्थों की लत एक दिमाग़ी रोग है?
हाँ, नशीले पदार्थों की लत एक दिमाग़ी रोग है। यह मस्तिष्क की संरचना और कार्यप्रणाली को बदल देता है, जिससे फैसले लेने और आवेग के नियंत्रण पर प्रभाव पड़ता है।
क्या यह लत जिनेटिक हो सकती है?
हाँ। जिनेटिक्स किसी व्यक्ति में नशे की लत के ख़तरे को बढ़ा सकती है, हालाँकि कुल मिलाकर पूरा माहौल और व्यक्ति की निजी पसंद भी इसमें भूमिका निभाती है।
हम नशीले पदार्थों की लत वाले मामले का उपचार कैसे कर सकते हैं?
नशीले पदार्थों की लत के इलाज में थेरेपी, दवा, समाज की मदद और इसके बारे में जानकारी शामिल है। इस पर जल्दी रोक लगाना और जागरूकता अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
शरीर में नशा कैसे काम करता है?
नशीले पदार्थ अपना असर पैदा करने के लिए रिसेप्टर्स और एंजाइमों को लक्ष्य बनाने के बाद शरीर में कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं।
नशे की लत मस्तिष्क को कैसे प्रभावित करती है?
नशे की लत मस्तिष्क के रिवार्ड सर्किट को बदल देती है जिससे तीव्र लालसा उत्पन्न होती है। समय के साथ-साथ यह विवेकशीलता, निर्णय लेने, सीखने की क्षमता और याद्दाश्त पर प्रभाव डालती है।
नशे की लत कैसे लगती है?
नशे की लत तब लगती है जब बार-बार नशीले पदार्थों के इस्तेमाल से मस्तिष्क में बदलाव आता है, जिससे नशीले पदार्थ या वैसा माहौल सर्वोच्च प्राथमिकता बन जाता है, तब हानिकारक परिणामों के बावजूद व्यक्ति इसका इस्तेमाल करने को मजबूर हो जाता है।
सरल शब्दों में नशा क्या है?
नशा वह स्थिति है जब इनसान ख़ुद कुछ करने, कुछ लेने या इस्तेमाल करने पर इस हद तक नियंत्रण खो देता है कि वह उसके लिए नुक़सानदेह हो सकता है।