गहरी ख़मोशी में
कई साल पहले “इन्टू ग्रेट साएलेंस” नाम की एक डॉक्यूमेंट्री बनाई गई थी। यह ईसाई धर्म में रोमन कैथोलिक चर्च के “कार्थूसियन ऑर्डर” के ईसाई भिक्षुओं के जीवन के बारे में थी।
यह मठ फ्रांस देश के ख़ूबसूरत एल्पस पहाड़ों के बीच बसा हुआ है और बाहर की दुनिया से लगभग छुपा हुआ है। यहाँ के ईसाई भिक्षु सदियों पुराने नियमों का पालन करते हुए बड़ी सादगी से जीवन जीते हैं। भिक्षुओं का सबसे महत्त्वपूर्ण काम है अपने छोटे-से कमरे में हर रोज़ नियमित रूप से दिन में कई बार ख़ामोशी से प्रार्थना करना। इस बीच वे ख़ामोशी से अपने रोज़मर्रा के काम भी करते हैं। हर शाम और रविवार को जब वे साथ मिलकर परमात्मा की महिमा गाते हैं, तब पूरे दिन में वही एक समय होता है जब उनकी आवाज़ सुनाई देती है।
इन भिक्षुओं ने यह सादा और भजन-बंदगी का जीवन इसलिए चुना ताकि परमात्मा उन्हें अंतर में ले जाए और वे अंदर सत्य का अनुभव कर सकें। इन भिक्षुओं का मानना है कि परमात्मा इस शरीर के अंदर अपने-आप को ज़ाहिर करता है, यहीं वह अपनी मौजूदगी का एहसास करवाता है और अपने साथ हमारा मिलाप करवाता है।
इस डॉक्यूमेंट्री में एक बुज़ुर्ग और अंधे भिक्षु ने बताया कि उसके लिए ज़िंदगी के क्या मायने हैं। प्रेम से भरी कोमल आवाज़ में उसने कहा –
मेरे लिए जीवन बहुत सरल है। हमारे साथ पूरी कायनात का रचयिता परमात्मा है – जो अनंत गुणों का भंडार है और सर्वशक्तिमान है।
वह सिर्फ़ यही चाहता है कि हम उससे प्रेम करें। हमें हमेशा इस बात का एहसास होना चाहिए कि वह हमारे लिए क्या कर रहा है। अगर हम परमात्मा से प्रेम करेंगे, तो सबकुछ ठीक होगा।
क्या सभी संत-महात्माओं यही सुंदर सरल संदेश नहीं देते? कि हमारा एक रचयिता है – परमात्मा, जो गुणों का भंडार है, सर्वशक्तिमान है। उसकी केवल एक ही चाहत है कि हम उससे प्रेम करें। वह यही चाहता है कि हमें एहसास हो कि वह हमारे लिए क्या करता है और हम उसके शुक्रगुज़ार हों।
सभी संत-महात्मा इस बात की गवाही देते हैं कि परमात्मा सर्वशक्तिमान है, वह सर्वज्ञाता, गुणों का भंडार, प्रेम का सागर है और ऐसा दाता है जो हमेशा देता ही रहता है। अजीब बात यह है कि हम परमात्मा से तरह-तरह की चीज़ें माँगते हैं, जबकि इसकी बिलकुल कोई ज़रूरत नहीं है। अगर उसकी दया-मेहर हमेशा हमारे साथ है तो माँगने की क्या ज़रूरत है? अगर उसकी रहमत हर पल हो रही है? अगर हमारी ज़िंदगी का हर साँस उसकी बख़्शीश है? उसके प्यार का इज़हार है? अगर हर साँस उसका दिया प्रसाद है, तो माँगने के लिए और क्या बचा?
अगर हम इस सच्चाई को हर साँस के साथ महसूस करें और समझें कि यह उसका प्रसाद है, परमात्मा का दिया एक अनमोल और पावन उपहार है जो वह ख़ुद हमें प्यार से दे रहा है और अगर हम हर साँस के साथ उसके प्यार को अपने अंदर समेटें तो फिर माँगने के लिए क्या बचा?
परमात्मा बहुत दयालु, सर्वशक्तिमान, प्रेम की मूरत और दाता है। वह हमें हमसे बेहतर जानता है और यह भी जानता है कि हमें क्या चाहिए।
“इसलिए (ईसा मसीह ने कहा), अपने जीवन की चिंता मत करो कि तुम क्या खाओगे और क्या पियोगे, न ही अपने शरीर के बारे में कि तुम क्या पहनोगे। क्या जीवन का मतलब सिर्फ़ खाना या शरीर को कपड़े पहनाना है? आकाश के पक्षियों को देखो; वे न बीज बोते हैं, न काटते हैं, न भंडार इकट्ठा करते हैं, फिर भी कुल मालिक उन्हें खिलाता है। क्या तुम इनसे किसी भी तरह से कम हो? और चिंता करने से क्या तुम्हारे जीवन के स्वाँस बढ़ जाएँगे? और तुम कपड़ों की क्यों चिंता करते हो? लिली के सुंदर फूलों को देखो, वे कैसे खिलते हैं। वे अपनी देखभाल नहीं करते, न ही सुंदर दिखने के लिए मेहनत करते हैं या अपने आप को सजाते हैं। फिर भी मैं कहता हूँ कि सुलेमान की सजधज उनके आगे फ़ीकी पड़ जाती है। अगर परमात्मा खेत की घास को, जो आज है और कल आग में डाल दी जाएगी, ऐसे सुंदर रंगों से सजाता है, तो क्या वह तुम्हें इससे कहीं अधिक नहीं देगा? ऐ भरोसा न रखने वाले इनसान! चिंता न कर कि ‘हम क्या खाएँगे?’ या ‘हम क्या पीयेंगे?’ या ‘हम क्या पहनेंगे?’ क्योंकि... तुम्हारा परम पिता वाकई जानता है कि तुम्हें इन सब चीज़ों की ज़रूरत है।”1
ईसा मसीह की तरह अंधे भिक्षु ने भी कोमल भाव में अपने अनुभव के आधार पर यही समझाने की कोशिश की है कि हमें कुछ माँगने और चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। परमात्मा न केवल यह जानता है कि हमें क्या चाहिए, वह यह भी जानता है कि हमारे लिए क्या ज़रूरी है, जैसा कि भिक्षु ने कहा:
“हमारा एक रचयिता है – परमात्मा; वह अनंत गुणों का भंडार और सर्वशक्तिमान है...
और क्योंकि वह अनंत गुणों का भंडार है, वह हमेशा हमारा अच्छा ही चाहता है। इसलिए हमारे साथ जो भी होता है, हमें उससे डरने की ज़रूरत नहीं। हमें चिंता करने की ज़रूरत नहीं।
और मैं परमात्मा का धन्यवाद करता हूँ कि उसने मुझे अंधा बनाया। मुझे पूरा विश्वास है कि उसने यह मेरी आत्मा की भलाई के लिए ही किया होगा।”
भिक्षु ने बड़े प्रेम और श्रद्धा से, पूरे विश्वास के साथ समझाया कि जो भी उसके साथ होता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा, उसका कोई मक़सद है। उसे पूरा विश्वास है कि यह उसकी आत्मा की बेहतरी के लिए है। वह अपने हर तरह के हालात को उसकी रहमत समझकर स्वीकार करता है और उसे इस बात का भरोसा है कि यह परमात्मा की दया से बाहर नहीं है। इसलिए वह परमात्मा की रज़ा में सब्र और प्रेम से ख़ुश रहता है, चाहे वे हालात उस समय उसकी समझ से बाहर हों। वह ऐसी ज़िंदगी जीता है जिसके बारे में हुज़ूर महाराज जी फ़रमाया करते थे:
जो भी मालिक से आता है अगर आप उसे क़ुबूल करते हैं, तो जो भी आता है वह इलाही बन जाता है; बेइज़्ज़ती इज़्ज़त बन जाती है, कड़वाहट मिठास बन जाती है, घोर अंधकार प्रकाश में बदल जाता है। हर शै परमात्मा के रंग में रँगी है, इसलिए इलाही बन जाती है; जो भी होता है उसमें परमात्मा ही ज़ाहिर होता है।2
इसका मतलब है कि अगर हम हर सांस को मालिक का तोहफ़ा समझें, तो हमारे जीवन का हर पल दिव्य होगा। जब हम ज़िंदगी के हर हालात को मालिक द्वारा भेजा समझें और सोचें कि यह आत्मा की बेहतरी के लिये है, तब हर चीज़ में वह दिखाई देने लगता है। इसका नतीजा यह होता है कि हम हर चीज़ क़ुबूल करने लगते हैं और उसकी रज़ा में रहकर ज़िंदगी जीने लगते हैं।
अब सवाल उठता है: हम इस बात की गहराई कैसे समझें कि हमारे जीवन का हर पल सच में इलाही है? इसका आसान-सा जवाब है: शांत और स्थिर होकर, गहरी ख़ामोशी में इसका अनुभव करो। जैसा कि बाइबल में कहा गया है:
“स्थिर हो जाओ और जानो कि मैं परमात्मा हूँ।”3
सभी संत-महात्मा हमें समझाते हैं कि शरीर और मन को स्थिर करके ही हम अंदर की निर्मलता और गहरी ख़ामोशी हासिल कर सकते हैं। बाबा जी सवाल-जवाब के दौरान बड़े सुंदर ढंग से समझाते हैं कि जब हम पूरी तरह से स्थिर और शांत हो जाते हैं तब हमारी आत्मा जागृत होती है। तब जागृत हुई आत्मा परमात्मा के अस्तित्व को, उसकी मौजूदगी, उसके प्रेम और मेहर का एहसास करती है। दिल एकांत और गहरी ख़ामोशी में परमात्मा की मौजूदगी का अनुभव करता है और तब एहसास होता है कि सब कुछ उसके प्रेम का ही साकार रूप है। यहाँ पहुँचकर पता चलता है कि हम उससे जुदा नहीं हैं। स्पैनिश संत मिगुल मॅलिनॅस भी इसी बात की पुष्टि करते हैं:
जब परमात्मा कहता है कि वह आत्मा से अकेले में बात करेगा तो वह उसे अंदर दिल की गहराइयों के गुप्त, एकांत और इलाही ख़ामोशी में ले जाता है। अगर तुम उसकी मधुर और दिव्य धुन सुनना चाहते हो तो ऐसी ख़ामोश समाधि की अवस्था में आना होगा। इस रूहानी ख़ज़ाने को पाने के लिए सिर्फ़ दुनिया की ज़िम्मेदारियों से भागना, इच्छाओं का त्याग करना या सभी सांसारिक वस्तुओं से दूर होना ही काफ़ी नहीं है। हमें अपनी सभी चाहतों और ख़यालों से भी मुक्ति पानी होगी। इसलिए इस ख़ामोश समाधि में बैठकर उस दरवाज़े को खोलो जहाँ मालिक ख़ुद आकर तुमसे बात करे, तुम्हें अपने साथ मिला ले और अपने जैसा ही बना ले।4
मॅलिनॅस यह बात साफ़-साफ़ समझाते हैं कि ऐसी ख़ामोशी की गहराई में जाने की पहली शर्त है कि अपने दिल से दुनियावी चाहतों और ख़यालों को दूर करना। आप कहते हैं:
ख़ामोश रहकर, चाहत न रखकर, कोई सोच न रखते हुए, आप अंतर में सच्ची और पूर्ण समाधि की अवस्था में पहुँचते हैं जहाँ परमात्मा आत्मा से बात करता है, वह ख़ुद बात करता है और अंतर की गहराइयों में आत्मा को परम सत्य का भेद बताता है।
बाबा जी अकसर समझाते हैं कि ख़ामोश रहना, कोई चाहत न होना, विचारों का न उठना – यह अवस्था रोज़ाना के भजन-सिमरन से और परमार्थ की ज़िंदगी जीने से ही हासिल हो सकती है, क्योंकि यही वह तरीक़ा है जिससे हमारा शरीर धीरे-धीरे स्थिर होने लगता है। नाम-भक्ति में लगकर मन टिकने लगता है, नेक-पाक होने लगता है। इस तरह परमात्मा की अपार दया मेहर से सोई हुई आत्मा जागती है और फिर आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है।
सबसे ख़ूबसूरत बात यह है कि आत्मा के जागृत होने से हम जीवन के हर पहलू में न केवल परमात्मा की मौजूदगी, उसकी दया-मेहर महसूस करते हैं बल्कि मालिक के लिए हमारे दिल में छिपी हुई भक्ति और प्यार भी उमड़ कर सामने आने लगता है।
सरदार बहादुर जगत सिंह जी फ़रमाया करते थे:
हर इनसान के अंदर परमात्मा के लिए प्रेम का ख़ज़ाना है, भक्तिभाव का भंडार भरा हुआ है। कोई एक या दो बूँदें नहीं, सागर के सागर ऊपर तक भरे हुए हैं।5
जब हम स्थिर होकर ध्यान एकाग्र करते हुए गहरी ख़ामोशी की अवस्था में आते हैं तब मालिक के लिए प्रेम जो हमारी ज़िंदगी का सार है, उसकी ओर बहने लगता है और उसी में समा जाता है।
इसलिए भजन-सिमरन ही वह श्रेष्ठ तरीक़ा है जो हमें परमात्मा और उसके अनंत गुणों के क़रीब ले जाता है। यही वह तरीक़ा है जिससे हम प्रेम ज़ाहिर करते हैं, उसकी महिमा करते हैं, शुक्रगुज़ार होते हैं। यह तभी होता है जब अंतर में टिकाव आता है, हम निर्मल होते हैं। हुज़ूर महाराज जी फ़रमाया करते थे:
एक ख़ास तरीक़ा है और वही सबसे ख़ास तरीक़ा है। वह है भजन-बंदगी। देखो, भजन-सिमरन से प्रेम पैदा होता है। इससे भरोसा आता है। इससे ही प्रेम में गहराई आती है। प्रेम बढ़ता है। आख़िर इससे आपके अंदर प्रकाश प्रकट होता है और यही आपको परमात्मा का रूप बना देता है। यह भजन-सिमरन है। मैं और कोई छोटा तरीक़ा नहीं बता सकता। कोई और छोटा तरीक़ा है ही नहीं। यही एक तरीक़ा है।6
भजन-बंदगी से हर चीज़ उसकी बख़्शिश बन जाती है।7
इसलिए संत-महात्मा हमें प्रेरणा देते हैं कि हम अपने इस ख़ूबसूरत शरीर-रूपी मठ में भजन-बंदगी की ज़िंदगी जीएँ। अपने रोज़मर्रा के काम के दौरान नियमित रूप से वक़्त निकालकर भजन-सिमरन द्वारा ध्यान को तीसरे तिल पर टिकाएँ, मालिक को याद करें और उसकी दी हुई नियामतों के लिए शुक्रिया करें। संत-महात्मा हमें भजन-बंदगी की ज़िंदगी जीने की प्रेरणा देते हैं। वे हमें मालिक से प्रेम करने के लिए कहते हैं; क्योंकि मालिक हमसे सिर्फ़ यही तो चाहता है। जब ईसा मसीह से पूछा गया कि आपके दस हुक्मों में से सबसे ज़रूरी हुक्म क्या है?
तुम अपने परमात्मा से पूरे मन, प्राण और बुद्धि से प्रेम करो।8
यही पहला और सबसे बड़ा हुक्म है: हम जैसे हैं वैसे ही उससे प्यार करें।
साचा साहिबु साचु नाइ भाखिआ भाउ अपारु॥
आखहि मंगहि देहि देहि दाति करे दातारु॥
फेरि कि अगै रखीऐ जितु दिसै दरबारु॥
मुहौ कि बोलणु बोलीऐ जितु सुणि धरे पिआरु॥
अंम्रित वेला सचु नाउ वडिआई वीचारु॥…
नानक एवै जाणीऐ सभु आपे सचिआरु॥9
प्रिय भाईयो और बहनों, इससे ज़्यादा और क्या कहना है? बस हम इतना समझ लें कि ज़िंदगी बहुत सीधी-सादी है। परमात्मा सृजनहार है, वह अनंत गुणों का भंडार है और सर्वशक्तिमान है। वह सिर्फ़ इतना ही चाहता है कि हम उससे प्यार करें। हमें इस बात का एहसास होना चाहिए कि वह हमारे लिए क्या कर रहा है। अगर हम परमात्मा से प्रेम करते हैं तो सब कुछ सही होगा।
- Bible, Matthew 6:23-33
- Maharaj Charan Singh, Spiritual Discourses, Vol. I, 9th revised edition 2020, p. 14
- Bible, Psalms 46-10
- Miguel Molinos, as quoted in Awareness of the Divine, p. 136
- Discourses on Sant Mat, Vol. 2, p.22
- Maharaj Charan Singh, Spiritual Perspectives, Vol. II, p.103
- Maharaj Charan Singh, Spiritual Perspectives, Vol. II, p.103
- Matthew 22-37
- Japji, Adi Granth, p. 2