अंगदान: जीवन का एक अमूल्य तोहफ़ा
हैं ऐसे सितारे जिनकी चमक देखी जा सकती है,
पृथ्वी पर अब भी
ख़ुद चाहे वे विलुप्त हो गए बहुत समय पहले।
हुईं हैं ऐसी हस्तियाँ प्रतिभा जिनकी कर रही
है आलोकित जग को अब तक
ख़ुद चाहे अब वे ज़िंदा रहे नहीं।
जब रात अँधेरी होती है तो उन ज्योतियों का
प्रकाश कुछ ज़्यादा ही उज्ज्वल होता है॥
हाना सेनेश
मृत्यु जीवन का एक अटल सत्य है! हम जीने और मरने के लिए जन्म लेते हैं। टैगोर के शब्दों में, “जन्म की तरह मृत्यु भी ज़िंदगी का हिस्सा है। चलने के लिए पैर ऊपर उठाकर फिर नीचे भी रखना होता है।” लोग ऐसा मानते हैं कि मृत्यु जीवन का अंत है। लेकिन इनसान मरने के बाद भी ज़िंदा रह सकता है। मौत के मुँह में जा रहे कई रोगियों को अंगदान का अमूल्य तोहफ़ा देकर आप अपनी मृत्यु को भी जीवन की तरह सार्थक बना सकते हैं।
किसी अंग के नाकाम हो जाने पर यह अनमोल जीवन व्यर्थ नहीं हो जाना चाहिए। लेकिन ऐसे लाखों लोग हैं जो किसी महत्त्वपूर्ण अंग के काम न करने से अपना जीवन गँवा चुके हैं। सच तो यह है कि अंग प्रत्यारोपण विज्ञान में, ऑपरेशन और अंग संरक्षण के क्षेत्र (Organ preservation) में इतनी तरक़्क़ी हो चुकी है कि महत्त्वपूर्ण अंगों का प्रत्यारोपण करना संभव है। इसलिए कुछ रोग जो किसी अंग को हमेशा के लिए नाकाम कर देते हैं, उनके इलाज के लिए कुछ सार्थक क़दम उठाए जा सकते हैं। आपको बस अंगदान करने की प्रतिज्ञा करनी है और अनमोल ज़िंदगियों को समय से पहले खो जाने से बचाना है।
अंग प्रत्यारोपण से लोग फिर से सामान्य और उपयोगी ढंग से जीवन व्यतीत कर सकते हैं जिससे जीवन काफ़ी बेहतर हो जाता है। गुर्दे के रोगियों में गुर्दे के प्रत्यारोपण से व्यक्ति सामान्य जीवन बिता सकता है और उसे रोज़ाना डायलेसिस (dialysis) पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। हृदय और लिवर के रोगियों में जहाँ डायलेसिस जैसी कोई रक्षा प्रणाली भी नहीं है, उनके लिए तो बचाव का एकमात्र उपाय प्रत्यारोपण ही है।
अंगदान करनेवालों की कमी के कारण अनेक रोगी मर जाते हैं और उनके परिवार दुःख के सागर में डूब जाते हैं। लेकिन खेद की बात तो यह है कि यदि हम में से कुछ लोग भी मृत्यु के बाद अंगदान की प्रतिज्ञा करें तो प्रत्यारोपण के लिए अंगों की कमी नहीं होगी।
पूछो अपने आप से
कि क्या स्वर्ग और महानता का स्वप्न
हमें क़ब्रों में हमारा इंतज़ार करता मिले
या वह स्वप्न हम अभी और यहाँ इस धरती पर साकार करें।
आयन रैंड
अंगदान का अर्थ है, किसी को जीवन दान देना। जब लोग अंगदान करते हैं तो इसका मतलब है कि वे अंग से भी क़ीमती वस्तु दान कर रहे हैं। दरअसल वे किसी को ज़िंदगी दे रहे हैं। इसका अर्थ है कि लोग अपने जीवन में ही यह प्रतिज्ञा कर लेते हैं कि उनकी मृत्यु के बाद उनके अंगों को उन मरीज़ों में प्रत्यारोपण के लिए इस्तेमाल कर लिया जाए जिनके बचने की आशा नहीं है, ताकि उन्हें एक नई ज़िंदगी मिल सके।
रोज़ी चलती है उससे जो हमें मिलता है,
ज़िंदगी बनती है उससे जो हम देते हैं।
नोर्मन मैकइवन
जीवित दानी: ‘मानव अंगों के प्रत्यारोपण अधिनियम’ 1994 (Transplantation of Human Organs act 1994) के अनुसार, कोई व्यक्ति जीते‑जी अपने परिवार में केवल ख़ून के रिश्तेदारों (भाई, बहन, माता‑पिता और बच्चे) को ही अंगदान कर सकता है। एक जीवित अंगदान करनेवाला व्यक्ति कुछ ही अंग दान कर सकता है जैसे एक गुर्दा (क्योंकि एक गुर्दा भी शरीर का कार्य करने में सक्षम है), पैन्क्रियास (Pancreas) का कुछ हिस्सा (आधे पैन्क्रियास से भी शरीर का कार्य चल सकता है) और जिगर (लिवर) का कुछ हिस्सा (क्योंकि प्रत्यारोपण किया गया भाग कुछ समय बाद अपने आप पुनर्विकसित हो जाता है)।
मरणोपरांत अंगदानी: दिमाग़ी मृत्यु के बाद सारे अंग और ऊतक (tissues) दान में दिए जा सकते हैं।
अंगदान तभी दिया जा सकता है जब किसी को दिमाग़ी तौर पर मृत (Brain Dead) घोषित कर दिया जाए। ‘दिमाग़ी तौर पर मृत’ का क्या अर्थ है? यह ऐसी अवस्था है जब दिमाग़ के सभी सामान्य कार्य हमेशा के लिए बंद हो जाएँ और उन्हें फिर शुरू न किया जा सके यानी जब दिमाग़, शरीर को उसके ज़रूरी काम (जैसे साँस लेना, महसूस करना, कोई आदेश मानना) करने के लिए कोई संदेश न भेज सके। ऐसे लोगों को वेंटीलेटर (Ventilator) पर रखा जाता है, ताकि अंगों में ऑक्सीजन का प्रवाह बना रहे और जब तक उन अंगों को निकाल न लिया जाए तब तक वे स्वस्थ हालत में रहें। दिमाग़ी मृत्यु अधिकतर सिर पर चोट लगने के कारण या आइ.सी.यू. में मौजूद दिमाग़ के कैंसर के रोगियों की होती है। इनके अंग निकालकर उन रोगियों के शरीर में डाल दिए जाते हैं जिनके अपने अंग काम करना बंद कर चुके होते हैं।
घर पर हुई मृत्यु में केवल कॉर्निया (आँखें) ही निकाली जाती हैं लेकिन हृदय के वॉल्व, अस्थियाँ, मध्य कर्ण, लिगामेंट और त्वचा आदि लेने के लिए शरीर को मृत्यु हो जाने के कुछ घंटों के भीतर ही अस्पताल ले जाना पड़ता है।
ले चलो मुझको असत्य से सत्य की ओर,
अँधेरे से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर।
दूसरों के जीवन का सहारा बनो।
इसका निर्णय डॉक्टरों का दल करता है, जिनके पास इस कार्य के लिए प्रमाणित योग्यता और अनुभव है। ये डॉक्टर दिमाग़ी मृत्यु की पुष्टि करने के लिए अनेक प्रकार की जाँच करते हैं।
कम से कम 6 से 12 घंटे के अंतराल में दो तरह के टेस्ट किए जाते हैं। दूसरे टेस्ट को मृत्यु का क़ानूनी वक़्त माना जाता है। जब व्यक्ति को दिमाग़ी तौर पर मृत घोषित कर दिया जाता है, तो उसके बाद कोई भी जीवन रक्षक प्रणाली व्यर्थ है तथा इससे मानसिक और आर्थिक हानि ही होती है। यही वक़्त है जब मृत व्यक्ति के अंगों के दान का निर्णय लिया जा सकता है।
अंग कितनी जल्दी दान दिए जाने चाहिएँ?दिमाग़ी मृत्यु के बाद जितनी जल्दी हो सके, स्वस्थ अंगों को अंगदानी के शरीर से निकालकर रोगी के शरीर में प्रत्यारोपित कर देना चाहिए।
अंगदान कौन कर सकता है?कोई भी व्यक्ति—आयु, जाति और लिंग के भेदभाव के बिना अंग और ऊतक दान कर सकता है। 18 वर्ष से कम उम्र वालों को अंगदान की प्रतिज्ञा के लिए अपने माता‑पिता या क़ानूनी अभिभावकों (Legal Guardian) की अनुमति लेना ज़रूरी है। कोई व्यक्ति मेडिकल तौर पर अंगदान करने के क़ाबिल है कि नहीं—इसका फ़ैसला मृत्यु के समय ही किया जाता है। एच.आई.वी., हेपेटाइटिस‑बी, हेपेटाइटिस‑सी इत्यादि के रोगी अंगदान करने के योग्य नहीं हैं।
दिमाग़ी मृत्यु के बाद अंगदान की अनुमति कौन दे सकता है?जिन्होंने अपने जीवन काल में दो गवाहों (जिनमें से एक क़रीबी रिश्तेदार होना ज़रूरी है) की मौजूदगी में अंगदान करने की मंज़ूरी दी है, उन्हें अपने साथ यह कार्ड रखना चाहिए तथा अपनी इस इच्छा के बारे में अपने नज़दीकी लोगों को भी बताना चाहिए। लेकिन यदि किसी ने ऐसी कोई इच्छा ज़ाहिर न की हो या अंगदान का कार्ड न भरा हो, तो जिस व्यक्ति का उसके मृत शरीर पर क़ानूनी अधिकार होता है, वही व्यक्ति अंगदान की मंज़ूरी दे सकता है।
प्रत्यारोपण से कौन-सी जानलेवा बीमारियाँ ठीक हो सकती हैं?अंगदान से जिन गंभीर बीमारियों को दूर किया जा सकता है, वे हैं:
अंग/ऊतक | रोग |
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हृदय | हार्ट फ़ेलe |
फेफड़े | फेफड़ों की बीमारी |
गुर्दे | गुर्दा फ़ेल हो जाना |
लिवर | लिवर का काम करना बंद होना |
पैन्क्रियास | मधुमेह |
आँखें | अंधापन |
हृदय के वॉल्व | वॉल्व की बीमारी |
त्वचा | त्वचा का जल जाना |
हड्डियाँ | जन्मजात दोष, चोट या कैंसर आदि |
मुख्य अंग और ऊतक जो दान किए जा सकते हैं—हृदय, फेफड़े, लिवर, पैन्क्रियास, गुर्दे, आँखें, हृदय के वॉल्व (Valve), त्वचा, अस्थियाँ, मज्जा (bone Marrow), संयोजी ऊतक (connective Tissue), मध्य कर्ण (Middle Ear) और ख़ून की नाड़ियाँ। इसलिए एक अंगदानी मरणोपरांत गंभीर रूप से बीमार ऐसे अनेक रोगियों को जीवन दान दे सकता है जिनके बचने की उम्मीद नहीं होती।
जो पीछे है हमारे, वह जो आगे है हमारे,
वे दोनों तुच्छ हैं तुलना में उसके
जो हमारे अंदर है।
राल्फ़ वॉल्डो एमर्सन
अंग और ऊतक जो दान किए जा सकते हैं
आपके आंतरिक अंग उन रोगियों में प्रत्यारोपित किए जाएँगे जिन्हें इनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। जीवन के ये तोहफ़े (अंग) रोगियों की प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा सूची, तालमेल, उनकी ज़रूरत और भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करते हैं।
क्या अंगदान के लिए मेरे परिवार को पैसे देने पड़ेंगे?नहीं। अंग या ऊतकों के प्रत्यारोपण के लिए कोई पैसे नहीं देने पड़ते। अंगदान एक सच्चा तोहफ़ा है।
क्या अंगदान या ऊतक दान से अंतिम संस्कार/दफ़नाने की तैयारी में या शरीर के आकार में कोई फ़र्क़ पड़ता है?नहीं। अंगों या ऊतकों के निकाले जाने से अंतिम संस्कार या दफ़नाने की तैयारी में कोई अंतर नहीं पड़ता। बाहरी तौर से शरीर में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। प्रत्यारोपण में माहिर, कुशल डॉक्टरों का दल शरीर से अंगों या ऊतकों को निकालता है जिन्हें किसी दूसरे मरीज़ में रोपित किया जा सकता है। सर्जन बड़ी कुशलता से शरीर की सिलाई कर देते हैं, इसलिए शरीर के आकार में कोई अंतर नहीं आता। शरीर किसी सामान्य मुर्दे की तरह ही दिखता है और अंतिम संस्कार में देरी नहीं लगती।
ऐसा नहीं कि ज़िंदगी की बेइंसाफ़ी दूर न कर सकें;
हम दूसरों के लिए तो पलड़ों को बराबर
करने में सहायक हो ही सकते हैं, भले ही
हमेशा अपने लिए बराबर न कर सकें।
ह्यूबर्ट हम्फ़्रे
जी हाँ। यदि आपके हस्ताक्षर वाला अंगदान कार्ड मिल जाता है तो भी डॉक्टर आपके परिवार की अनुमति ज़रूर लेंगे। इसलिए यह ज़रूरी है कि आप अपने परिवार वालों और प्रियजनों से अंगदान करने के अपने फ़ैसले की बात ज़रूर करें, ताकि उन्हें आपकी यह इच्छा पूरी करने में आसानी हो।
अंगदान क़ानूनी है। भारतीय सरकार ने फ़रवरी 1995 में “मानव अंगों का प्रत्यारोपण अधिनियम 1994” पारित किया था, जिसके अनुसार जिस व्यक्ति की क़ानूनी तौर पर दिमाग़ी मृत्यु हो चुकी है, उसके अंग दान किए जा सकते हैं।
क्या मानव अंगों को बेचना क़ानूनी है?जी नहीं। “मानव अंगों का प्रत्यारोपण अधिनियम 1994” के अनुसार मानव अंगों और ऊतकों को बेचा नहीं जा सकता। ऐसा करनेवालों को जुर्माना या जेल की सज़ा हो सकती है।
क्या मृत्यु के बाद घर पर ही अंग निकाले जा सकते हैं?जी नहीं। अंग तभी निकाले जा सकते हैं जब किसी व्यक्ति की दिमाग़ी मृत्यु अस्पताल में हुई हो और उसे तुरंत ही वेंटीलेटर या किसी दूसरी जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया हो। मृत्यु के बाद घर पर केवल आँखें ही निकाली जा सकती हैं।
सामने क्या है यह जब निश्चित नहीं।
तो आशा मन में रखना कोई ग़लती नहीं॥
ओ.कार्ल सिमंटन
नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गेनाइज़ेशन (ORBO) की स्थापना से अंगदान एक हक़ीक़त बन गया है। यह देश का केंद्रीय सेंटर है जिसका मक़सद लोगों को अंगदान की प्रेरणा देना, मानव अंगों का सही एवं बराबर वितरण तथा इनका एकदम सही इस्तेमाल करना है।
ORBO उन लोगों की सूची रखता है जो गंभीर रूप से बीमार हैं और जिन्हें अंग प्रत्यारोपण की ज़रूरत है। यहाँ दानियों की सूची भी होती है। इसके काम हैं—दानी और रोगी के अंगों का तालमेल, अंग निकालने से लेकर उनके प्रत्यारोपण तक तालमेल, संबंधित अस्पतालों और लोगों तक जानकारी पहुँचाना और अंगदान तथा प्रत्यारोपण की गतिविधियों का प्रचार करना। इसका संपर्क दिल्ली के लगभग सभी अस्पतालों से है और यह दायरा बढ़ता जा रहा है।
अंगदान की प्रतिज्ञा करें!
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
ORBO ओ.आर.बी.ओ.
ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गेनाइज़ेशन
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान,
(All India Institute of Medical Sciences)
अंसारी नगर, नई दिल्ली 110029
फ़ोन:1060 (विशेष 24 घंटे हेल्पलाइन),
2659 -3444/2658 8360
फ़ैक्स: 011 -2658 -8402
E-Mail Addresses
Stem Cells: [email protected]
ORBO (ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गेनाइज़ेशन):
[email protected] / [email protected]
Web site: www.aiims.edu/aiims/orbo www.orbo.org
अंगदान की सुविधा देश के कई भागों में उपलब्ध है जैसे चेन्नई, बैंगलुरू, मुंबई, हैदराबाद और चंडीगढ़। यह सुविधा देश के अन्य भागों में उपलब्ध करवाई जा रही है।