प्रेम से सेवा
राधास्वामी सत्संग ब्यास की इस छोटी-सी डॉक्यूमेंटरी फ़िल्म ‘प्रेम से सेवा: पैक्ड भोजन की तैयारी’ में दिखाया गया है कि कैसे कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान अपने स्थानीय हालात को देखते हुए डेरा मदद के लिए आगे बढ़ा। डेरा के आसपास के गाँवों के लोग ज़्यादातर दिहाड़ी मज़दूर हैं। लॉकडाउन में काम न मिलने के कारण उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वे अपने परिवार को खाना खिला सकें। इस बात का पता लगते ही बाबा जी ने तुरंत डेरा सेवादारों को भोजन तैयार करके आसपास के गाँवों में बाँटने का हुक्म दिया। इस वीडियो में सेवादारों के प्रेम और समर्पण की भावना और पैक्ड भोजन की सेवा के प्रबंध का हुनर दिखाया गया है कि कैसे इतने कम समय में सेवादार एक दिन में 125,000 भोजन के पैकेट तैयार करते और फिर उन्हें वितरण के लिए भेजा जाता। इस वीडियो में हर रोज़ इतनी बड़ी मात्रा में भोजन तैयार करने की पूरी प्रक्रिया दिखाई गई है। अवधि: 7:06 मिनट
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शीर्षक: प्रेम से सेवा – पैक भोजन बनाते हुए- पैक्ड भोजन की सेवा का अवलोकन
- 125,000 से ज़्यादा पैक्ड भोजन रोज़ बाँटे गए
- पूरियों के लिए आटा तैयार करते हुए
- मिक्सिंग मशीन से गूँथा हुआ आटा निकालते हुए
- गूँथे हुए आटे को रोटी बनाने वाली मशीन में डालते हुए
- दो रोटी बनाने वाली मशीने लगभग 25,000 रोटियाँ प्रति घंटे बनाती हैं।
- हाथों से पूरियाँ बेलते हुए सेवादार
- पूरियों को डीप-फ़्रायर में तैयार करते हुए
- पूरियों को मुलायम रखने के लिए ढकते हुए
- मसाला चावल: चावल को पानी में भिगोते हुए
- मसालों को उबलते पानी और तेल में मिलाते हुए
- चावल डालकर पकाते हुए
- पैकिंग करने से पहले चावल को ठंडा करते हुए
- पैकिंग के लिए फ़ूड-ग्रेड बैग खोलते हुए
- पूरियों और अचार को इकट्ठा करके डालते हुए
- मसाला चावल को पैक करते हुए पाथसीकर्स स्कूल के बच्चे
- बच्चे पैक्ड भोजन को डिब्बों में डालते हुए
- डिलीवरी के लिए तैयार भोजन को ट्रकों पर लादते हुए
- भोजन को डेरा गेट पर लाते हुए
- वितरण के लिए भोजन को गेट पर सरकार द्वारा भेजे गए ट्रकों पर लादते हुए
- राधास्वामी सत्संग ब्यास ने भारत में अपने सेंटरस् में रोज़ क़रीब 12 लाख ज़रूरतमंद लोगों के लिए भोजन तैयार किया और परोसा।
सेवक सेवा में रहे
सेवक सेवा में रहै, सेवक कहिये सोय।
कहै कबीर सेवा बिना, सेवक कबहुँ न होय॥
सेवक सेवा में रहै, अनत कहूँ नहिं जाय।
दुख सुख सिर ऊपर सहै, कह कबीर समुझाय॥
सेवक स्वामी एक मति, जो मति में मति मिलि जाय।
चतुराई रीझैं नहीं, रीझैं मन के भाय॥
द्वार धनी के पड़ि रहै, धका धनी का खाय।
कबहुँक धनी निवाजई, जो दर छाड़ि न जाय॥
कबीर गुरु सब को चहैं, गुरु को चहै न कोय।
जब लग आस सरीर की, तब लग दास न होय॥
सेवक सेवा में रहै, सेव करै दिन रात।
कहै कबीर कुसेवका, सन्मुख ना ठहरात॥
निरबंधन बंधा रहै, बंधा निरबँध होय।
करम करै करता नहीं, दास कहावै सोय॥
गुरु समरथ सिर पर खड़े, कहा कमी तोहि दास।
ॠद्धि सिद्धि सेवा करैं, मुक्ति न छाड़ै पास॥
दास दुखी तो हरि दुखी, आदि अंत तिहुँ काल।
पलक एक में प्रगट ह्वै, छिन में करै निहाल॥
दात धनी याचै नहीं, सेव करै दिन रात।
कहै कबीर ता सेवकहिं, काल करै नहिं घात॥