पुस्तक एवं लेखक परिचय
आइंस्टाइन, एल्बर्ट (Einstein, Albert) (879-1955): एल्बर्ट आइंस्टाइन जर्मनी (Germany) में पैदा हुए एक अमरीकन भौतिकशास्त्री थे। सन् 1921 में उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यद्यपि वे सबसे ज़्यादा रिलेटिविटी के सिद्धांतों के लिये जाने जाते हैं; उन्होंने 300 से भी ज़्यादा वैज्ञानिक कार्यों और 150 ग़ैर-वैज्ञानिक कार्यों को प्रकाशित किया। उनको विश्वास था कि विज्ञान की खोज आध्यात्मिक तजरबों की मदद से ही संभव हो सकती है। सन् 1999 में उनको टाइम मैग्ज़ीन (Time Magazine) द्वारा ‘शताब्दी के महापुरुष’ (Person of the Century) का नाम दिया गया। आइंस्टाइन की जीवनी लिखनेवाले डॉन हॉवर्ड (Don Howard) के शब्दों में, ‘विज्ञान से परिचित लोगों और आम जनता के विचारों में आइंस्टाइन एक प्रतिभाशाली बुद्धिजीवी (जीनियस) हैं।’
कबीर साहिब (Kabir Sahib) (1398-1518): संत कबीर का जन्म काशी (वाराणसी) में हुआ। कबीर साहिब कपड़े बुनकर अपना गुज़ारा करते थे। शब्द-धुन के अभ्यास का प्रचार करते हुए उन्होंने भारत का भ्रमण किया तथा हिंदू और मुसलमान दोनों समुदायों के लोगों को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया। कर्मकांडों और रीति रिवाजों के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिये उनको पुजारी वर्ग के कड़े विरोध का लगातार सामना करना पड़ा। आज उनकी रचनाएँ, दोहे और शब्द पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं और बड़े प्रेम से गाए और सुने जाते हैं।
कवी, स्टीफ़न (Covey, Stephen R.) (1932-): सॉल्ट लेक सिटी, यूटा (Salt Lake City, Utah) में जन्मे डॉक्टर कवी ने द सैवन हैबिट्स ऑफ़ हाइली इफ़ैक्टिव पीपल (The Seven Habits of Highly Effective People) लिखी। उनके द्वारा लिखित अन्य किताबों में शामिल हैं—फ़र्स्ट थिंग्ज़ फ़र्स्ट (First Things First), प्रिंसिपल-सैंटर्ड लीडरशिप (Principle-Centered Leadership), द सैवन हैबिट्स ऑफ़ हाइली इफ़ैक्टिव फ़ैमिलीज़ (The Seven Habits Of Highly Effective Families), द एट्थ हैबिट (The 8th Habit) और द लीडर इन मी-हाऔ स्कूल्ज़ एण्ड पैरेन्ट्स अराउण्ड द वर्ल्ड आर इन्स्पाइरिंग ग्रेट्नैस, वन चाईल्ड ऐट अ टाईम (The Leader In Me - How Schools and Parents Around The World Are Inspiring Greatness, One Child at a Time)
कारलायल, टॉमस (Carlyle, Thomas) (1795-1881): कारलायल विक्टोरियन युग के स्कॅाटिश निबंधकार, इतिहासकार और शिक्षक थे। उन्होंने ऐडिनबर्ग ऐनसाइक्लोपिडिया (Edinburgh Encyclopaedia) के लिये लेख लिखे। वे विवादास्पद सामाजिक व्याख्याता बने। उनकी किताबों व लेखों ने समाज सुधारक जैसे—जॉन रस्किन (John Ruskin), चार्ल्स डिकन्स (Charles Dickens); जॉन बर्न्स (John Burns), टॉम मन (Tom Mann) और विलियम मॉरिस (William Morris) को प्रेरित किया।
क़ुरान शरीफ़ (Qur’an): क़ुरान शरीफ़ इस्लाम को माननेवालों का एक पवित्र धर्मग्रंथ है। यह अरबी भाषा में लिखा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि सातवीं शताब्दी में अल्लाह ने इसे पैग़म्बर मुहम्मद साहिब पर नाज़िल किया। इसमें 114 अध्याय हैं जिनमें पवित्रता, नैतिकता, सामाजिकता, वैज्ञानिकता, रूहानियत आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
गुरु अर्जुन देव (Guru Arjun Dev) (1563-1606): गुरु अर्जुन देव, गुरु नानक साहिब की गद्दी के पाँचवें गुरु थे। उन्होंने अत्यंत प्रयास करके गुरु साहिबान की वाणियाँ एकत्र कीं, उनका वर्गीकरण किया और उन्हें आदि ग्रन्थ में संकलित किया। गुरु अर्जुन देव ने भारतीय उपमहाद्वीप के कई अन्य महात्माओं की वाणियाँ भी इसमें सम्मिलित कीं जिनकी शिक्षा एक परमात्मा में आस्था, शब्द साधना का मार्ग, सामाजिक समानता और सत्य की खोज पर बल देती हैं।
गुरु नानक देव (Guru Nanak Dev) (1469-1539): गुरु नानक देव जी का जन्म लाहौर के निकट तलवंडी नामक स्थान (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ। उन्होंने जीवन का एक बड़ा हिस्सा भ्रमण करने और शब्द या नाम के अभ्यास की शिक्षा का प्रचार करने में गुज़ारा। इस भ्रमण को ‘उदासियाँ’ कहा जाता है। उन्होंने इन उदासियों में शब्द या नाम के अभ्यास की शिक्षा का प्रचार किया। वे दस गुरुओं की पीढ़ी के पहले गुरु थे जिनकी वाणी आदि ग्रन्थ में दर्ज है। आदि ग्रन्थ सिक्खों का पवित्र धर्मग्रंथ है। गुरु नानक देव ने लोगों को उनके रूढ़िवादी अंधविश्वासों से मुक्त करने का प्रयास किया और समझाया कि बाहरी पूजा और कर्मकांड सत्य की पहचान में सहायता नहीं करते।
गुरु रविदास (Guru Ravidas): संत रविदास काशी के रहनेवाले थे। वे राजस्थान के अलावा भारत के अन्य भागों में भी जाने जाते थे और स्वामी रामानंद के शिष्य थे। वे कबीर साहिब के समकालीन थे। उनका जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ। वे स्वयं जूते गाँठकर अपने जीवन का निर्वाह करते थे। उनकी रूहानी शिक्षा का लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे मीराबाई एवं राजा पीपा के आध्यात्मिक मार्गदर्शक रहे। उनकी कुछ रचनाएँ आदि ग्रन्थ में सम्मिलित हैं।
गूरमौं, रेमि द (Gourmont, Remy de) (1858-1915): द गूरमौं, फ़्रांसिसी लेखक और कवि थे। उनकी रचनाएँ विश्वभर में प्रसिद्ध थीं। उनको टी.एस.एलियट (T.S. Eliot) और ऐज़रा पाउंड (Ezra Pound) द्वारा सराहा गया। वे कोटंटिन (Cotentin) के प्रकाशक परिवार से थे। द गूरमौं, अगस्त-मॅरी द गूरमौं (Auguste-Marie de Gourmont) और मैथिल्ड द मौंट्फ़र्ट (Mathilde de Montfort) के पुत्र थे। उन्होंने कैन (Caen) से वकालत की थी। उसके बाद वे पैरिस चले गए और वहाँ बिबलियोथैक नेशनल (Bibliotheque Nationale) में नौकरी की।
गैटे (Goethe) (1749-1832): गैटे एक जर्मन लेखक थे। जॉर्ज एलियट (George Eliot) के शब्दों में आप ‘जर्मनीज़ ग्रेटेस्ट मैन ऑफ़ लैट्र्स’ (Germany’s Greatest Man of Letters) थे। गैटे ने अपने जीवन का आधा समय कविताएँ, नाटक, साहित्य, धर्मशास्त्र, दर्शन, विज्ञान और मानवता के बारे में लिखने में लगाया। दो भागों में लिखे गये उनके नाटक फ़ॅास्ट (Faust) की प्रशंसा विश्व भर में हुई। उनके लेखन का प्रभाव पूरे यूरोप में पड़ा और उनके योगदान के कारण ही संगीत, नाटक, कविताओं में लोगों की रुचि बढ़ी। पश्चिमी सभ्यता में वे जर्मन भाषा के सबसे बड़े लेखक माने जाते हैं।
टैगोर, रवीन्द्रनाथ (Tagore, Rabindranath) (1861-1941): रवीन्द्रनाथ बंगाल के कवि, चित्रकार, नाटककार, उपन्यासकार हुए हैं, जिनका कार्य विश्वभर में सराहनीय है। सन् 1913 में एशिया में नोबल पुरस्कार जीतनेवाले वे पहले व्यक्ति थे। 16 साल की उम्र में उन्होंने अपनी कविताओं का प्रथम संग्रह भानूशिंघो (सन-लायन) के उपनाम से प्रकाशित किया। 1877 में उन्होंने अपनी आरंभिक कहानियाँ और नाटक लिखे। बाद में टैगोर ने ब्रिटिश साम्राज्य का विरोध किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग दिया। टैगोर के जीवन की मुख्य उपलब्धि उनके काव्य तथा उनके द्वारा स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय के रूप में स्थायी है। टैगोर ने उपन्यास, कहानियाँ, गीत, नृत्य-नाट्य के अतिरिक्त राजनीति तथा अन्य विषयों पर कई निबंध लिखे। उनके जाने-माने कार्यों में गीतांजलि, गोरा और घरे बाहरे बहुत प्रसिद्ध हैं।
ताओ त्से चिंग (Tao Tse Ching): ताओ मार्ग और उसकी शक्ति संबंधी पुस्तक ताओ त्से चिंग (The Book of the Way and Its Power) के मूल के बारे में जानना कठिन है। यह पुस्तक ताओ के मार्ग से संबंधित मूल ताओवादी सिद्धांतों को गद्य रूप में प्रतिपादित करती है। ये उच्च कोटि के वे सिद्धांत हैं जिनका पालन नम्रता और निष्काम कार्यों द्वारा किया जाता है। ताओ त्से चिंग शायद तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के उत्तरार्ध में तैयार की गई थी, पर ऐसा प्रतीत होता है कि यह पुस्तक चीन की मौखिक परंपरा पर आधारित है जो लिखे जाने के भी बहुत समय पूर्व से चली आ रही थी। यद्यपि इसके लेखन का श्रेय ‘लाओ ज़ू’ (Lao-Tzu) या ‘लाओ त्से’ (Lao-Tse) को दिया जाता है, पर आधुनिक विद्वानों को संदेह है कि इस नाम का कोई व्यक्ति वास्तव में हुआ भी था या नहीं। संभव है कि ‘लाओ ज़ू’ जिसका अर्थ ‘प्राचीन दार्शनिक’ अथवा ‘प्राचीन दर्शन’ है, इसका संबंध पुस्तक में दिये भिन्न-भिन्न विचारों और लेखों के प्राचीन मूल से है।
धम्मपद (Dhammapada) (सत्य का मार्ग): धम्मपद में दी गई कविताओं के रचनाकार का पता नहीं है पर ऐसा विश्वास है कि ये महात्मा बुद्ध की शिक्षा है। यह पुस्तक अपने मूल पाठ सहित महान् बौद्ध सम्राट अशोक के समय, ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से चली आ रही है।
नायडू, सरोजिनी (Naidu, Sarojini) (1879-1949): सरोजिनी नायडू एक क्रांतिकारी और महान् कवयित्री थीं। सरोजिनी नायडू को हम भारत की कोयल (Nightingale of India) के नाम से जानते हैं। वे भारत की पहली महिला थीं जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल पद पर नियुक्त किया गया। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक सक्रिय महिला थीं। उन्होंने महात्मा गांधी के साथ नमक बनाओ आंदोलन और डांडी यात्रा में हिस्सा लिया और महात्मा गांधी के गिरफ़्तार होने के बाद, उन्होंने धरसाना सत्याग्रह का नेतृत्व किया। स्वतंत्रता संग्राम में उनको कई बार जेल भी जाना पड़ा।
नेहरू, जवाहरलाल (Nehru, Jawaharlal) (1889-1964): जवाहरलाल नेहरू बहुत बड़े राजनैतिक नेता, स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस की जानी-मानी हस्ती थे। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे जो काफ़ी लंबे समय तक इसी पद पर बने रहे (1947-1964)। प्रधानमंत्री और कांग्रेस के अध्यक्ष होने के नाते महिला सुधार एवं समानता के अधिकारों के लिये वे संसद में आवाज़ उठाते रहे। औरतों को शक्तिशाली बनाने के लिये उन्होंने विवाह के लिये न्यूनतम आयु को 12 साल से बढ़ाकर 15 साल करवाया। उन्होंने तलाक़ और माता-पिता की जायदाद में लड़की को हिस्सा लेने का अधिकार देने की घोषणा भी की। भारतीय परंपराएँ एवं स्वतंत्र भारत के ढाँचे को नये रूप में परिवर्तित करने पर उनको ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ कहा गया।
तय्हार द शारदैं, पियेर (Teilherd de Chardin, Pierre) (1881-1955): तय्हार फ़्रांस के दार्शनिक और जैज़्यूइट पादरी (Jesuit preist) थे। वे शिलालेख और भूविज्ञान में निपुण थे। इन्होंने ‘पीकिंग मैन’ (Peking Man) की खोज में भाग लिया। इन्होंने ओमेगा पौइंट (Omega Point) की विचारधारा का आधार रखा और व्लाडीमीर वैरनाडस्की (Vladimir Vernadsky) की नूस्फ़ीयर (Noosphere) की धारणा को आगे बढ़ाया। तय्हार की प्रमुख किताब द फ़िनौमिनन ऑफ़ मैन (The Phenomenon of Man) ने प्रकृति का ज्ञान दिया। उन्होंने बाइबल की पुस्तक जैनेसिस (Genesis) में उत्पत्ति के विचार का विरोध किया और पुराने विचारों को एक नया अलग-सा रूप दिया। रोमन क्यूरिया (Roman Curia) के कुछ अफ़सर इससे ख़ुश नहीं थे, क्योंकि यह सेंट ऑगस्टीन (Saint Augustine) द्वारा दिये गए 'ओरिजनल सिन' (Original Sin) के सिद्धांत की महत्ता को कम करता है। तय्हार के दृष्टिकोण का चर्च के अधिकारियों ने विरोध किया और रोमन अधिकारियों ने उनके लेखों को उनके जीवनकाल में प्रकाशित करने से रोक दिया।
फ़िलोकैलिया (Philokalia): फ़िलोकैलिया एक ऐसी रचना है जो चौथी और पंद्रहवीं शताब्दी के बीच आध्यात्मिक संतों द्वारा लिखी गई। यह ईसाई परंपरा पर आधारित थी।
फ़्रैंकल, विक्टर (Frankl, Viktor) (1905-1997): विक्टर फ़्रैंकल ऑस्ट्रिया के स्नायुतंत्र के विशेषज्ञ (neurologist) और मनोचिकित्सक (psychiatrist) होने के साथ एक होलोकॉस्ट सरवाइवर (Holocaust Survivor) भी थे। फ़्रैंकल ने लोगोथैरपी (logotherapy) का निर्माण किया जो एक्ज़िस्टैनशियल एनैलिसिस (Existential Analysis) ‘द थर्ड वीयनीज़ स्कूल ऑफ़ साइकोथेरेपी’ (The Third Viennese School of Psychotherapy) के जैसा है। उनकी सबसे लोकप्रिय पुस्तक मैन्ज़ सर्च फ़ॉर मीनिंग (Man’s Search for Meaning) उनके जेल के अनुभवों का चित्रण करती है और हर तरह की जीवन की स्थिति में मतलब ढूँढ़ने का वर्णन करती है। हर प्रकार की बुरी परिस्थिति में भी जीने का तरीक़ा बताती है। फ़्रैंकल का सिग्मंड फ़्रॉयड (Sigmund Freud) और ऐलफ़्रेड ऐडलर (Alfred Adler) के साथ संबंध था। फ़्रैंकल एक्ज़िस्टैनशियल थेरेपी (Existential Therapy) के लिए प्रसिद्ध हुए।
बाइबल (Bible): बाइबल या होली बाइबल (Holy Bible) यहूदियों और ईसाइयों का पवित्र धर्मग्रंथ है। यहूदी बाइबल हिब्रू भाषा में लिखी है। यह टोरा (Torah), प्रॉफ़िट्स (Prophets) और लेखों (Writings) में विभाजित है। यह ग्रंथ रचना के आरंभ से मानवता का इतिहास, धर्माध्यक्षों और पूर्व के इज़राइलियों का जीवन तथा उनके पैग़ंबरों और महापुरुषों की शिक्षा को दर्शाता है। यह विश्व की उत्पत्ति का इतिहास बताता है, पैट्रिआक्र्स (Patriarchs) की जीवनी और प्राचीन इज़राइल और उनके संतों की वाणी (शिक्षा) का ज्ञान देता है। ईसाइयों की बाइबल ओल्ड टैस्टामैंट (Old Testament) जिसमें जुइश बाइबल की किताबें और न्यू टैस्टामैंट (New Testament), जिसमें ईसा मसीह और उनके शिष्यों की जीवनी के बारे में लिखा गया है, उनका संग्रह है। इसमें ईसा मसीह के चार उपदेशक (मैथ्यू, मार्क, ल्यूक और जॉन) और उनकी साहित्यिक रचना (जोकि शिष्यों की तरफ़ से पत्र हैं), द एक्ट्स ऑफ़ द अपॉसल्ज़ (The Acts of The Apostles) और ईश्वरीय भाषा जो ऐपोकैलिप्स (Apocalypse) के नाम से भी जानी जाती है, सम्मिलित हैं।
बेदी, किरन (Bedi, Kiran) (1949-): किरन बेदी भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो भारतीय पुलिस ऑफ़िसर के रूप में रिटायर हुईं। वे पहली भारतीय महिला हैं जो 1972 में भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुईं। वे बहुत-से चुनौतीपूर्ण कार्यों की सफल अधिकारी रहीं—जैसे कि नई दिल्ली की ट्रैफ़िक कमिश्नर, मिज़ोरम के अशांत क्षेत्रों में डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस, नारकॉटिक कंट्रोल ब्यूरो की डायरेक्टर जनरल और तिहाड़ जेल की इंस्पेक्टर जनरल, जो विश्व की बड़ी जेलों में से एक मानी जाती है। जेल व्यवस्था को सुधारने में इनका विशेष योगदान रहा जिसके लिये इनको प्रतिष्ठित रेमन मैगसेसे अवॉर्ड (Ramon Magsaysay Award) से सम्मानित किया गया। बाद में वे डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस रिसर्च ऐण्ड डिवलपमेंट के रूप में नियुक्त हुईं, जहाँ से उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (इच्छानुसार रिटायरमैंट) ले ली। उन्होंने भारत में दो एन.जी.ओ. की भी स्थापना की: पहली, नवज्योति जो पुलिस व्यवस्था के सुधार के लिये शोध कार्य करती है और दूसरी, इण्डिया विज़न फ़ाउंडेशन (India Vision Foundation) के नाम से जानी जाती है। यह जेल के नियमों को सुधारने, नशा मुक्ति तथा बाल-कल्याण के लिये काम करती है।
बोनापार्ट, नपोलियन (Bonaparte, Napoleon) (1769-1821): नपोलियन बोनापार्ट सम्राट नपोलियन 1 के नाम से जाने गए। वे फ़्रांस के सैनिक और राजनैतिक नेता थे और उनके कार्यों ने उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोपियन राजनीति को आकार दिया। उनका जन्म कोरसिका (Corsica) में हुआ था और वे फ़्रांस महाद्वीप में तोपची नियुक्त किये गए। बोनापार्ट ने सम्राट बनने तक अपनी शक्ति को बढ़ाया। उन्होंने फ़्रांस की सेना को यूरोपियन बलों के विरुद्ध किया और लगातार जीत हासिल करके यूरोप महाद्वीप पर शासन किया। वे सन् 1815 में ‘वॉटरलू’ (Waterloo) नामक स्थान पर संगठित बलों के साथ हुए युद्ध में हार गए। वे नपोलियनिक कोड (Napoleonic Code) के लिये याद किये जाते हैं जिसने पश्चिमी यूरोप के लिये शासन संबंधी और न्यायालय संबंधी अधिकारों की नींव रखी।
ब्रिटेन, वेरा (Brittain, Vera Mary) (1893-1970): वेरा मेरी एक शांतिप्रिय महिला होने के साथ अंग्रेज़ी लेखिका भी थीं जो औरतों के पक्ष में अपनी आवाज़ उठाती थीं। उनको अपनी पुस्तक टैस्टामैंट ऑफ़ यूथ (Testament of Youth) के लिये याद किया जाता है जो उन्होंने 1933 में लिखी थी। पुस्तक में उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के अनुभवों का वर्णन किया और शांति का प्रचार किया।
बुल्लेशाह (Bulleh Shah) (1680-1758): साईं बुल्लेशाह का जन्म एक उच्च श्रेणी के सैयद परिवार में हुआ। उनका पालन-पोषण लाहौर के पास स्थित कसूर नामक स्थान में हुआ। जब वे लाहौर के रहस्यवादी संत इनायत शाह (जो एक साधारण से माली थे) के शिष्य बने तो उनको अपने समुदाय की नाराज़गी सहनी पड़ी। प्रभुभक्ति से ओतप्रोत उनकी कविताएँ और काफ़ियाँ आज भी भारत और पाकिस्तान में प्रेमपूर्वक पढ़ी और गायी जाती हैं।
भगवान् महावीर (Bhagwan Mahavir) (599-527 ईसा पूर्व): राजा वर्धमान को अकसर महावीर के नाम से जाना जाता है। भगवान् महावीर की शिक्षा आज भी जैन धर्म की मुख्य शिक्षा मानी जाती है। जैन धर्म में वे चौबीसवें और आख़िरी तीर्थंकर माने जाते हैं। उन्होंने भारत में आध्यात्मिक स्वतंत्रता की शिक्षा देने में अपना जीवन व्यतीत किया। उन्होंने अपनी शिक्षा का पूरे भारत में प्रचार किया जिससे इस प्राचीन धर्म को जैन दर्शन के रूप में मान्यता मिली।
मदर टेरेसा (Mother Teresa) (1910-1997): मदर टेरेसा एलबैनियन रोमन कैथोलिक चर्च (Albanian Roman Catholic Church) की सेविका थीं। इन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त थी। एग्नेस गौनज़हा बोजाक्सहियू (Agnes Gonxha Bojaxhiu) मदर टेरेसा (Mother Teresa) के नाम से जानी जाती हैं। सन् 1950 में भारत में स्थित कोलकता में इन्होंने मिश्नरीज़ ऑफ़ चैरिटी (Missionaries of Charity) की स्थापना की। इन्होंने 45 सालों तक ग़रीब, बीमार, अनाथ लोगों की सेवा की और साथ में मिश्नरीज़ ऑफ़ चैरिटी को बढ़ावा दिया। बाद में इन्होंने पूरे विश्व को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। सन् 1979 में इनको नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 1980 में मानवता के प्रति कार्य के लिए भारतरत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
मरीचाइल्ड, डाऐन (Mariechild, Diane): डाऐन मरीचाइल्ड मदर विट (Mother Wit) और इनर डाँस (Inner Dance) पुस्तकों की लेखिका हैं। अनेक कार्यशालाओं का आयोजन करके वे महिलाओं और बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये व्याख्यान देती हैं।
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) (1869-1948): महात्मा गांधी भारत के प्रमुख समाज सेवक होने के साथ-साथ अध्यात्म और स्वतंत्रता संग्राम के नेता थे। उन्होंने सच्चाई के रास्ते पर चलते हुए सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की, जो अहिंसा के आधार पर थी और जिसके ज़रिये भारत को स्वतंत्रता मिली। उन्होंने सामाजिक अधिकार और स्वतंत्रता आंदोलनों की विश्व भर में प्रेरणा दी। वे विश्व भर में महात्मा गांधी के नाम से लोकप्रिय हैं। महात्मा गांधी को आधिकारिक तौर से भारत का ‘राष्ट्रपिता’ घोषित किया गया। उनका जन्मदिन, दो अक्तूबर, भारत में राष्ट्रीय अवकाश और अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस (International Day of Non-Violence) के रूप में मनाया जाता है।
महाराज चरन सिंह (Maharaj Charan Singh) (1916-1990): महाराज चरन सिंह जी का जन्म मोगा (पंजाब) में हुआ था। वे राधास्वामी सत्संग ब्यास के संत-सतगुरु हुज़ूर महाराज सावन सिंह जी के शिष्य थे। पेशे से आप वकील थे। सन् 1951 में महाराज जगत सिंह जी ने उनको अपना उत्तराधिकारी बनाया। महाराज जी ने अगले चार दशक तक समस्त भारत और विश्व का भ्रमण किया, स्थान-स्थान पर प्रवचन किये और बारह लाख से अधिक जीवों को नामदान बख़्शा। उन्होंने जीवों को जाति‑पाँति, क़ौम और मज़हब से ऊपर उठकर शब्द या नाम की कमाई करने पर बल दिया। उनकी शिक्षा कई पुस्तकों में दर्ज है जिनमें उनके लेख, वार्तालाप तथा पत्र शामिल हैं। सन् 1990 में नश्वर शरीर त्यागने से पूर्व उन्होंने बाबा गुरिन्दर सिंह ढिल्लों को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
महाराज जगत सिंह (Maharaj Jagat Singh) (1884-1951): महाराज जगत सिंह जी का जन्म जालन्धर ज़िले के नुस्सी गाँव में हुआ और छब्बीस वर्ष की आयु में उन्हें महाराज सावन सिंह जी से नामदान की बख़्शिश हुई। सन 1943 में पंजाब एग्रीकलचरल कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने अपना शेष जीवन ब्यास में रहकर सतगुरु की सेवा में बिताया। सन् 1948 में महाराज सावन सिंह जी ने उनको अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उनके सत्संगों तथा पत्रों से लिये गए अंशों का संग्रह उनकी आत्म-ज्ञान नामक पुस्तक में प्रकाशित हुआ है। यह पुस्तक उनके देह त्यागने के बाद प्रकाशित की गई।
मौलाना रूम (Maulana Rum) (1207-1273): मौलाना रूम के नाम से प्रसिद्ध जलालुद्दीन रूमी फ़ारस (Persia) के बल्ख़ (Balkh) शहर के रहनेवाले थे। बाद में वे तुर्की (Turkey) के कोन्या (Konya) शहर में चले गए और एक धार्मिक शिक्षक बन गए। वहाँ उनकी मुलाक़ात सूफ़ी संत शम्स तब्रेज़ से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। मौलाना रूम ने मसनवी और दीवाने-शम्स तब्रेज़ लिखे हैं। इन ग्रंथों ने इन दोनों महान् सूफ़ी रहस्यवादी संत-कवियों को पूर्व और पश्चिम दोनों क्षेत्रों में लोकप्रिय बना दिया है।
वाइस, डॉ. ब्रायन एल. (Weiss, Brian L.): डॉक्टर वाइस अमरीका में एक मनोरोग चिकित्सक हैं। इन्होंने येल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ मेडिसन (Yale University School of Medicine) से शिक्षा ग्रहण की। आजकल वे मिआमी में माउंट साइनाइ मेडिकल सेंटर (Mount Sinai Medical Center) में मनोरोग चिकित्सा विभाग के चेयरमैन अमेरिटस (Chairman Emeritus) हैं और यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिआमी, स्कूल ऑफ़ मेडिसन (University of Miami School of Medicine) के मनोरोग चिकित्सा विभाग के क्लिनिकल एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं। उन्होंने पुनर्जन्म के विषय पर सात किताबें लिखीं, जिनमें से ओन्ली लव इज़ रिअल (Only Love is Real) सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हुई।
वॉशिंग्टन, जॉर्ज (Washington George) (1732-1799): जॉर्ज वॉशिंग्टन एक सर्वेक्षक, किसान और सिपाही थे, जो अमरीकन आंदोलन के दौरान महाद्वीपीय सेना के प्रमुख अधिकारी बने और 1789 से 1797 तक अमरीका के प्रथम राष्ट्रपति बने। वे अपने देश के ‘राष्ट्रपिता’ माने जाते हैं, क्योंकि अमरीका को प्रारंभिक समय में संगठित करने और नेतृत्व देने के लिये उनका प्रमुख योगदान रहा। वे फ़िलेडेलफ़िया सम्मेलन (Philadelphia Convention) के अध्यक्ष बने जिसने 1787 में अमरीका के संविधान की रचना की। विचारकों व विद्वानों ने जॉर्ज वाशिंग्टन को अमरीका का एक महान् राष्ट्रपति माना है।
विलियम्सन, मेरीएन (Williamson, Marianne) (1952-): मेरीएन विलियम्सन अध्यात्मवाद की कार्यकर्ता, अमरीकन लेखिका और प्राध्यापिका हैं। इन्होंने शांति संगठन (Peace Alliance) बनाया और शासन की तरफ़ से भी युनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ़ पीस (United States Department of Peace) संगठन की स्थापना कराई और उनकी नियमावली बनाने में पूरा सहयोग दिया। इनकी 9 किताबें प्रकाशित हुई हैं। उनमें से इमैजिन वॉट अमेरिका कुड बी इन द 21 सैंचुरी (Imagine What America Could be in the 21st. Century), विज़न्ज ऑफ़ अ बैटर फ़्यूचर फ़्रॉम लीडिंग अमेरीकन थिंकर्ज़ (Visions of a Better Future from Leading American Thinkers), हीलिंग द सोल ऑफ़ अमेरिका: रिक्लेमिंग अवर वॉएसिज़ ऐज़ स्पिरिचुअल सिटीज़न्ज़ (Healing The Soul of America: Reclaiming Our Voices as Spiritual Citizens) और अ वुमन्ज़ वर्थ (A Woman’s Worth) मुख्य हैं।
सेन, डॉ. अमर्त्य (Sen, Amartya): डॉ. अमर्त्य सेन का जन्म 1933 में पश्चिमी बंगाल के शांति निकेतन में हुआ। वे अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने कल्याणकारी आर्थिक सुधारों में योगदान दिया। उन्होंने अकाल, ग़रीबी और असमानता की समस्या को सुधारने तथा मानव-विकास के सिद्धांत में बहुत बड़ा योगदान दिया। सन् 1998 में अर्थशास्त्र में उनको नोबल पुरस्कार मिला और 1999 में उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न मिला। 1998 से 2004 तक वे कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के टिर्निटी कॉलेज में अध्यापक रहे और वे सबसे पहले एशियन हैं जो ऑक्सफ़ोर्ड कॉलेज के अध्यक्ष बने। आजकल वे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र व दर्शन शास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं। उनको विश्वभर के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों से लगभग 80 डॉक्टरेट डिग्रियाँ प्राप्त हैं।
हर्बर्ट, जॉर्ज (Herbert, George) (1593-1633): जॉर्ज हर्बर्ट एक अच्छे वैल्श (Welsh) कवि, वक्ता और महात्मा थे। उनका जन्म एक कलाप्रेमी अमीर परिवार में हुआ था। वे इंग्लैंड के चर्च के पवित्र कार्यों की ज़िम्मेदारी लेने से पहले कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और संसद में अच्छे पद पर थे। उन्होंने जीवन भर धार्मिक कविताएँ लिखीं, जिनमें उन्होंने शुद्ध भाषा का प्रयोग किया और छंद रूप में रचना की जो अध्यात्म विद्या के अनुसार सराहनीय थीं। वे कवि के रूप मे याद किये जाते हैं और उनकी कविताएँ कम, माई वे, माई ट्रूथ, माई लाइफ़ (Come, My Way, My Truth, My Life) काफ़ी प्रचलित हैं।
हज़रत सुलतान बाहू (Bahu, Hazrat Sultan) (1629-1691): सैयद अब्दुल रहमान क़ादिरी के शिष्य हज़रत सुलतान बाहू हिंद महाद्वीप के उच्च कोटि के सूफ़ी संतों में से एक थे। यद्यपि उन्होंने औपचारिक तौर पर शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, फिर भी यह कहा जाता है कि उनकी फ़ारसी और अरबी में सौ से भी अधिक रचनाएँ हैं। उनके पंजाबी भाषा के बैत आज भी सजीव हैं और पंजाब के लोगों में अत्यंत लोकप्रिय हैं।
यह पुस्तक, राधास्वामी सत्संग ब्यास, रजिस्टर्ड चैरिटेबल सोसाइटी (www.RSSB.org), की संगत द्वारा तैयार की गई है। यह सोसाइटी पारमार्थिक ज्ञान और मूल्यों के प्रचार में समर्पित है।