दाँतों की देखभाल
मुँह और दाँतों की सफ़ाई शरीर के स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। भारत में बहुत‑से लोग मुँह से संबंधित रोगों से ग्रस्त हैं जैसे—दाँतों में खोड़, मसूड़ों के रोग, दाँतों का आकार बिगड़ना, मुँह का कैंसर आदि। सब जानते हैं कि दाँतों का इलाज काफ़ी महँगा है, इसलिए ज़रूरी है कि शुरू में ही इन बीमारियों की जाँच करके इनकी रोकथाम की जाए।
दाँत शरीर का एक जीवित अंग हैं। इनकी सबसे बाहर वाली सफ़ेद और सख़्त सतह को इनेमल (Enamel) कहते हैं। इसके अंदर के हिस्से को, जो इससे कम सख़्त होता है डैंटाइन (Dentine) कहते हैं। यह पल्प के इर्द‑गिर्द होता है, जिसमें दाँतों की नसें और ख़ून की नाड़ियाँ होती हैं। दाँत जबड़े की हड्डी में गड़े होते हैं जो बाहर से मसूड़ों द्वारा ढकी होती है। दाँत जीवन में दो बार आते हैं।
- दूध के दाँत
इनकी संख्या बीस होती है। ये 6 महीने की आयु से निकलने शुरू हो जाते हैं और दो साल तक बीस दाँत निकल आते हैं। इन्हें दूध के दाँत भी कहते हैं। ये प्रारंभिक दाँत 6 साल की आयु से गिरना शुरू होकर 12 साल तक गिर जाते हैं। इनकी जगह स्थायी दाँत आ जाते हैं। - स्थायी दाँत
इनकी संख्या 32 होती है। ये 6 साल की आयु से निकलना शुरू हो जाते हैं और 12‑13 साल तक 28 दाँत निकल आते हैं। बची हुई चार अक़्ल दाढ़ें (Wisdom teeth) आम तौर पर 18 से 24 साल तक निकलती हैं।
मीठा या नमकीन, कुछ भी खाएँ
खाने के बाद कुल्ला करना न भूलें
दाँतों की चार आम बीमारियाँ और उनकी रोकथाम
1. दाँतों की सड़नदाँतों की सड़न या दाँतों में कीड़ा लगना बच्चों और बड़ों, सबके दाँतों में हो सकता है। यह बीमारी आम तौर पर चबानेवाली सतह पर या दो दाँतों के बीच के जुड़े हुए स्थान के नीचे होती है।
जब भोजन और भोजन के अवशेषों में पाए जानेवाले बैक्टीरिया दाँत की सतह के साथ चिपककर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं तो यह बीमारी उत्पन्न होती है। हर व्यक्ति के मुँह में बैक्टीरिया होते हैं। ये बैक्टीरिया दाँतों पर पाई जानेवाली लिसलिसी (slimy) और पारदर्शी तह में रहते हैं। इस लिसलिसी तह को प्लाक कहते हैं। जब मुँह में पड़े खाने के अवशेष बैक्टीरिया के संपर्क में आते हैं तो ख़मीर बनने (fermentation) की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस प्रक्रिया के कारण तेज़ाब बनता है जिससे दाँतों की सतह घुलनी शुरू हो जाती है और इस प्रकार दाँतों की सड़न शुरू हो जाती है।
2. मसूड़ों के रोग (Gingivitis)मसूड़ों के रोग प्लाक यानी पपड़ी जम जाने से भी हो जाते हैं। प्लाक में मौजूद बैक्टीरिया विषैला पदार्थ उत्पन्न करते हैं जिससे मसूड़ों में सूजन आ जाती है। यदि प्लाक को नियमित रूप से न उतारा जाए तो यह सख़्त होकर टार्टर (tartar) यानी दाँतों की मैल बन जाता है।
दाँतों को मोतियों जैसा सफ़ेद रखने के लिए
दिन में दो बार ब्रश करें
दाँतों की सड़न और मसूड़ों के रोगों का प्रमुख कारण दाँतों में प्लाक का जमना है। इसलिए यदि प्लाक को जमने से रोक लिया जाए तो बीमारियों की रोकथाम हो सकती है। प्लाक इन तरीकों से रोका जा सकता है:
यांत्रिक विधियाँप्लाक को रोकने में यह तरीक़ा सबसे महत्त्वपूर्ण है। दाँतों में ब्रश पेस्ट के साथ करना है। इनकी सफ़ाई का सबसे अच्छा तरीक़ा है कि ऊपर के दाँतों को ऊपर से नीचे की ओर, और नीचे के दाँतों को नीचे से ऊपर की ओर साफ़ किया जाए। दाँतों को अंदर और बाहर, दोनों तरफ़ से साफ़ करना चाहिए। खाना चबानेवाली सतह को साफ़ करने के लिए ब्रश को गोलाकार घुमाएँ ताकि गड्ढों और दरारों की सफ़ाई ठीक से हो। ब्रश करने के बाद अच्छी तरह से कुल्ला करें, उँगली से जीभ को साफ़ करें और मसूड़ों की मालिश करें।
एक टाँका गर उखड़ जाए और जल्दी लगा लिया जाए,
तो दूसरे टाँके बच जाते हैं।
एक दाँत में गर पस पड़ जाए और जल्दी इलाज कर लिया जाए,
तो और सब दाँत बच जाते हैं।
कुछ रसायन जैसे कि क्लोरहैक्सीडाइन (chlorhexidine) और फ़्लोराइड (fluoride) बैक्टीरिया के प्लाक को कम करने में सहायक होते हैं। ये कुल्ला करनेवाली दवाइयों (mouth wash) के रूप में मिलते हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल डॉक्टर की सलाह से ही करना चाहिए।
दाँतों की सड़न रोकने में आहार का योगदानदाँतों की सड़न में मीठे का बहुत योगदान है, इसलिए भोजन में मीठे की मात्रा कम लेनी चाहिए। ख़ासकर दो बार के भोजन के बीच में मीठे खाद्य पदार्थ, जैसे टॉफ़ी, चॉकलेट्स, मीठे बिस्कुट, केक, पेस्ट्रीज़, शीतल पेय और आइसक्रीम आदि का सेवन कम करें। मीठे का प्रयोग किसी मुख्य भोजन के साथ ही होना चाहिए। दो बार के भोजन के बीच में फल, सलाद, गिरियों, मकई, सब्ज़ियों और सैंडविच आदि का सेवन किया जा सकता है।
मीठा खाने के बाद अच्छी तरह कुल्ला करना चाहिए। दाँतों के अच्छे विकास के लिए विटामिन और खनिजों का महत्त्वपूर्ण योगदान है इसलिए बच्चों को छोटी आयु में ही कैल्शियम और विटामिन‑युक्त भोजन दिया जाना चाहिए। गर्भवती महिलाओं और बच्चों को स्तनपान करानेवाली माताओं को भी ऐसा ही आहार लेना चाहिए। छोटे बच्चों को रात के समय बोतल से दूध नहीं पिलाना चाहिए।
सड़न! सड़न! सड़न!
दूर भाग जाओ!
मैं खाने के बाद ब्रश करती हूँ
जिससे मेरे दाँत हर समय सुरक्षित रहते हैं!!
फ़्लोराइड दाँतों को मज़बूत बनाते हैं और सड़न को रोकते हैं। फ़्लोराइड का प्रयोग करने का सबसे आसान तरीक़ा है कि फ़्लोराइड‑युक्त पेस्ट से ब्रश किया जाए। 6 साल से अधिक आयु के सभी लोगों को फ़्लोराइड‑युक्त पेस्ट का इस्तेमाल करना चाहिए।
मसूड़ों के रोगों की रोकथाम और उनका नियंत्रणहम जानते हैं कि सही तरीक़े से ब्रश करने से प्लाक और बैक्टीरिया कम होंगे और इससे मसूड़ों को भी फ़ायदा होगा। इसके अतिरिक्त मसूड़ों को स्वस्थ रखने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिएँ:
- धूम्रपान न करें क्योंकि ज्यों‑ज्यों उम्र बढ़ती है, धूम्रपान से मसूड़े अस्वस्थ होते जाते हैं।
- खाने के बाद हर बार सादे पानी या माउथ वॉश (Mouth wash) से कुल्ला करें।
- उँगलियों से दाँतों और मसूड़ों की मालिश करें।
- दो दाँतों के बीच की जगह साफ़ करने के लिए डैंटल फ़्लौस या सिंगल‑टफ़्ट ब्रश या रबर टिप का प्रयोग करें।
- समय‑समय पर दाँतों के डॉक्टर से दाँत साफ़ करवाकर पॉलिश करवाएँ।
- 6 महीने में कम से कम एक बार दाँतों के डॉक्टर से ज़रूर मिलें।
मैं रोज़ दो बार ब्रश करता हूँ
और धूम्रपान तो कभी नहीं करता।
तभी मेरे जीवन में प्लाक नहीं सिर्फ़ मुस्कराहट ही रहती है!
इस विकार में दाँत एक‑दूसरे के बहुत ज़्यादा क़रीब होते हैं या उनमें बहुत ज़्यादा ख़ाली जगह होती है; वे ज़्यादा आगे या ज़्यादा पीछे झुके होते हैं या टेढ़े‑मेढ़े होते हैं।
हमारे देश में लगभग 30‑40% बच्चों के दाँत टेढ़े‑मेढ़े होते हैं। इसके मुख्य कारण हैं—अँगूठा चूसना, जीभ बाहर निकालना और मुँह से साँस लेना। लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण है दाँतों की सड़न या किसी कारणवश दूध के दाँतों का जल्दी गिर जाना। दूध के दाँत स्थायी दाँतों के लिए उचित जगह बनाकर रखने में सहयोग देते हैं। दाँत यदि टेढ़े‑मेढ़े हों, तो इसके कारण सड़न या मसूड़ों के रोग और टैंपोरो‑मैंडीबुलर (Temporo-mandibular) यानी जोड़ में तकलीफ़ हो जाती है।
दाँतों के टेढ़ेपन की रोकथामदाँतों को इस रोग से बचाने के लिए ज़रूरी है कि दूध के दाँतों को सड़न से बचाया जाए और बच्चों को मुँह की सफ़ाई की आदत डाली जाए। यदि दूध के दाँत ज़्यादा समय तक रह गए हैं, तो उन्हें दाँतों के डॉक्टर की सलाह के अनुसार निकलवाना ही सही है।
4. मुँह का कैंसरभारत में यह तीसरा सबसे ज़्यादा पाया जानेवाला कैंसर है। जो लोग ज़्यादा पान, सुपारी तथा तंबाकू चबाते हैं, धूम्रपान और मद्यपान करते हैं, उनको यह बीमारी अधिक होती है। इस बीमारी के अन्य कारण हैं:
- मुँह की सफ़ाई न रखना।
- मुँह में लंबे समय तक कोई चुभन रहना (जैसे खुरदरे दाँत, नक़ली दाँत और दाँतों की फ़िलिंग इत्यादि)।
मुँह के कैंसर का पता जल्दी नहीं चलता क्योंकि इस रोग के लक्षण शुरू में प्रबल नहीं होते। यदि आपको निम्नलिखित लक्षण दिखाई दें तो तुरंत सावधान हो जाना चाहिए:

- दो हफ़्ते या उससे ज़्यादा समय से मुँह में कोई ज़ख़्म हो, जो ठीक न होता हो।
- मुँह में सफ़ेद या लाल रंग का उभरा हुआ धब्बा।
- मुँह खोलने में दिक़्क़त होना।
- मुँह में कोई उभार (Lump) या ग्रंथि (Growth) बनना।
- दाँतों का ज़्यादा ढीला हो जाना या बिना कारण ख़ून बहना।
- गले में ख़राश होना या ऐसा महसूस होना कि कुछ अटका हुआ है।
- चबाने और निगलने में दिक़्क़त होना।
- जीभ और मुँह के अन्य हिस्सों का सुन्न होना या संवेदना की कमी होना।
- आवाज़ का भारी होना या फटा स्वर।
सावधान! सावधान!! सावधान!!!
पान‑मसाला और गुटका चबानेवालो,
और बीड़ी‑सिगरेट पीनेवालो,
आप शायद कैंसर के अभिशाप को निमंत्रण दे रहे हैं।
- तंबाकू से बने हर पदार्थ से परहेज़ रखें। शराब से भी दूर रहें।
- अपनी जाँच ख़ुद करें ताकि कैंसर का संकेत देनेवाले घावों का जल्दी पता लग सके और उनका इलाज हो सके:
- अपने मुँह के अंदर की जाँच, अच्छी रोशनी में शीशे के सामने खड़े होकर दो मिनट में ठीक तरह से हो सकती है।
- दोनों होंठ, दोनों गाल, जीभ के आसपास का ऊपरी और नीचे वाला हिस्सा, मुँह का ऊपर और नीचे वाला हिस्सा तथा गले की अच्छी तरह से जाँच करें।
- ध्यान दें कि इनमें कहीं भी रंग और लिसलिसेपन में कोई बदलाव तो नहीं अथवा कहीं कोई सूजन, रसौली या फोड़ा तो नहीं है।
यदि आपको इनमें से कोई भी लक्षण मिलता है तो जल्द ही अपने नज़दीकी डॉक्टर से मिलें।
शिशु के दाँतों की देखभालबच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं। यदि हम बच्चों को बीमारियों से दूर रखेंगे, तो आनेवाली पीढ़ी स्वस्थ और प्रगतिशील होगी। गर्भवती महिलाओं और माताओं को यह जानकारी दी जानी चाहिए:
- पौष्टिक आहार महत्त्वपूर्ण है। गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार और संतुलित भोजन करना चाहिए ताकि बच्चे के साथ‑साथ उसके दाँतों तथा मसूड़ों का सही और स्वस्थ विकास हो सके।
- गर्भवती महिलाओं को डॉक्टर की राय के बिना किसी भी दवा का सेवन नहीं करना चाहिए। उन्हें अपने डॉक्टर को अपने गर्भवती होने के बारे में बताना चाहिए ताकि उन्हें टेट्रासाइक्लीन (tetracycline) जैसी दवाएँ न दी जाएँ। इनसे बच्चों के दाँतों का रंग ख़राब हो सकता है।
- जन्म के समय बच्चे के मुँह में बैक्टीरिया नहीं होते। दरअसल जब माँ‑बाप बच्चे को प्यार से सहलाते और चूमते हैं तो बच्चे के मुँह में कीटाणु चले जाते हैं। इसलिए यह ज़रूरी है कि माता‑पिता अपना मुँह साफ़ रखें और बच्चे को मुँह पर चूमने से परहेज़ करें। एक दूसरे के चम्मच और बरतन इस्तेमाल करने से भी परहेज़ करें।
- ऐसा देखने में आया है कि छोटे बच्चों के दाँतों में सड़न होने का मुख्य कारण दूध की बोतल है। इसलिए माताओं को चाहिए कि वे बच्चे को पहले साल तक स्तनपान कराएँ और उसके बाद बोतल का प्रयोग करने के बजाय सीधे ही कप या चम्मच का इस्तेमाल करें।
- बच्चे को दूध पिलाने के बाद हर बार एक घूँट पानी पिलाना चाहिए ताकि मुँह में बचा बाक़ी दूध साफ़ हो जाए। उसके बाद बच्चे को पाँच से दस मिनट के लिए सीधा उठाकर पकड़ें।
- माँ को चाहिए कि दूध पिलाने के बाद हर बार एक साफ़, गीले, मुलायम सूती कपड़े से बच्चे के मसूड़ों और जीभ की सफ़ाई करे। साफ़ सूती कपड़े को पहले उबाल लें। फिर इसे उँगली पर लपेटकर ऊपरी और निचले मसूड़ों को एक ही बार में साफ़ करें। इसके बाद कपड़े की तह बदलकर जीभ को भी एक ही बार में साफ़ करें।
- जब बच्चे के मुँह में दूध के दाँत निकल आएँ तो बच्चों के नरम ब्रश का प्रयोग शुरू कर दें।
- जब बच्चों के दाँत निकल रहे होते हैं तो उन्हें मसूड़ों में खुजली महसूस होती है इसलिए वे मुँह में कोई न कोई वस्तु, खिलौने आदि डालने की कोशिश करते हैं। ऐसी आदत से उन्हें संक्रमण हो सकता है जिससे दस्त लग सकते हैं। इसलिए माताओं को चाहिए कि अपने बच्चे की पूरी निगरानी रखें। बच्चे को रस्क (Rusk) या फल दे दिए जाएँ ताकि उन्हें खुजली से भी राहत मिले और वे चबाना भी सीखें।
- यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि दूध के दाँतों का पूरा ख़याल रखा जाए। यदि दूध के दाँतों में सड़न नहीं है तो इससे स्थायी दाँतों को एक स्वस्थ शुरुआत मिलती है और वे सही जगह पर निकलते हैं।
बच्चों में दंत‑रोगों की रोकथाम
1. दिन में दो बार ब्रश = स्वस्थ दाँत
2. संतुलित आहार = स्वस्थ दाँत
3. स्वस्थ दाँत = स्वस्थ शरीर
भोजन में मीठा कम = 32 दाँत सही‑सलामत
बच्चों में गिरने से, खेलते समय चोट लगने से, साइकिल चलाते समय या सड़क दुर्घटनाओं के कारण चेहरे और मुँह पर चोट लगने के आसार ज़्यादा होते हैं। कभी‑कभी एक छोटी‑सी लापरवाही से गंभीर चोट लग जाती है जिससे बच्चे और उसके परिवार के जीवन पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ता है। कुछ बातों का ख़याल रखकर इन छोटे‑बड़े हादसों से बचा जा सकता है:
- तीन साल तक का बच्चा जब चलना सीखता है तो उसकी पूरी सहायता करें।
- जब बच्चा साइकिल चलाना सीखता है तो साइकिल में दोनों तरफ़ सप्पोर्ट स्टैंड (छोटे पहिए) लगवाएँ।
- बच्चे को समझाएँ कि जब वह सीढ़ियाँ चढ़ या उतर रहा हो तो अपने हाथ जेब में न डाले।
- बच्चे को सड़क‑सुरक्षा नियम सिखाएँ और देखें कि वह उनका पालन कर रहा है।
- जो दाँत कुछ ज़्यादा ही आगे की तरफ़ आ रहे हों, उन्हें दाँतों के डॉक्टर से ठीक करवाएँ।
- जो बच्चे या युवा खेलों में भाग लेते हैं, वे अपने चेहरे और दाँतों की सुरक्षा के लिए दाँतों के डॉक्टर से ख़ास सुरक्षा यंत्र बनवा सकते हैं।
यदि दाँत हैं स्वस्थ, तो ज़िंदगी है मस्त