माता और शिशु का स्वास्थ्य - स्वास्थ्य की देखभाल

माता और शिशु का स्वास्थ्य

भारत में गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की मृत्यु दर अभी भी बहुत ज़्यादा है। पुस्तक के इस भाग का लक्ष्य गर्भवती महिलाओं के मन से गर्भाधान, डिलीवरी और नवजात बच्चे की देखभाल से जुड़ी सभी भ्रांतियाँ और डर दूर करना है। दरअसल लोगों में गर्भावस्था और नवजात शिशु की देखभाल से संबंधित बुनियादी जानकारी की कमी है जिसकी वजह से उनके मन में कई प्रकार का डर समाया रहता है। यदि हम माँ और शिशु की देखभाल के लिए कुछ ज़रूरी सावधानियाँ बरतें तो अनेक माताओं और बच्चों की ज़िंदगी बचा सकते हैं।

गर्भावस्था के दौरान देखभाल
माँ और उसके होनेवाले बच्चे की अच्छी सेहत के लिए यह जान लेना आवश्यक है कि बच्चे की देखभाल उसके जन्म से पहले ही शुरू हो जाती है। इसका मतलब है कि हर गर्भवती स्त्री को अपनी देखभाल अच्छी तरह से करनी चाहिए। इन छोटी‑छोटी बातों का ख़याल रखना चाहिए:

भोजन में आयरन का अंश

भोजन में आयरन की मात्रा 5 मिलिग्राम/100 ग्राम से अधिक
पूरे गेहूँ का आटा हरे केले
व्हीट जर्म (Wheat germ) भिस (कमल ककड़ी)
दलिया तरबूज़
राइस फ़्लेक्स (पोहा) बादाम
बाजरा किशमिश
सूखे मटर तिल
सोयाबीन कलौंजी
राजमा इमली का गूदा
लोबिया धनिये के बीज
दालें जीरा
चने की दाल अजवायन
साबुत चने अमचूर
भुने हुए चने हल्दी पाउडर
चने के पत्ते मुनक्का
अरबी के पत्ते गुड़
फूल गोभी के पत्ते प्याज़ के पत्ते
सरसों के पत्ते शलगम के पत्ते
मूली के पत्ते
जन में आयरन की मात्रा 5 मिलिग्राम/100 ग्राम से कम
ज्वार हरे मटर
मकई बथुआ के पत्ते
जौ सेम की फलियाँ
चावल सेब
रागी आमला
पालक काजू
मेथी चीकू
चौलाई

जन्म के समय देखभाल

डिलीवरी का स्थान
डिलीवरी के समय सफ़ाई के लिए इन पाँच बातों पर ख़ास ध्यान दें
  1. बच्चा पैदा करने में सहायता करनेवाले के हाथ साफ़ होने चाहिएँ। उसके नाख़ून कटे हों और डिलीवरी से पहले साबुन और साफ़ पानी से हाथ धो लेने चाहिएँ। उसे अपने हाथ पोंछने नहीं चाहिएँ और न ही किसी चीज़ को छूना चाहिए।
  2. डिलीवरी साफ़ जगह या साफ़ बिस्तर पर होनी चाहिए।
  3. नाल (Umbilical cord) को बाँधने के लिए साफ़ धागे का इस्तेमाल करें।
  4. नाल को काटने के लिए नए और साफ़ ब्लेड का प्रयोग करें।
  5. नाल पर कुछ न लगाएँ। इसे साफ़ रखें।
डिलीवरी के समय निम्नलिखित कार्य करें
  1. डॉक्टर, दाई या नर्स को सूचित करें।
  2. नीचे लिखा सामान तैयार रखें: नया ब्लेड, साबुन, धागा, दस्ताने, (दाई द्वारा इस्तेमाल करके फेंके जानेवाला सामान), बच्चे को लपेटने के लिए साफ़ कपड़ा, माँ के लिए सेनिटरी नैपकिन, रुई और कपड़े की पट्टी और गरम पानी।
  3. डिलीवरी की दर्द के दौरान काफ़ी मात्रा में तरल पदार्थ पिएँ।
  4. दर्द के शुरुआती दौर में पैदल चलें।
  5. जब पानी की थैली फट जाए तो बैड पर लेटकर लंबी‑लंबी साँस लें।
लीवरी के समय निम्नलिखित कार्य न करें
  1. पेट को बाहर से न दबाएँ और न ही पेट के बल लेटें।
  2. पानी की थैली को ब्लेड या नाख़ून से न फोड़ें।
  3. बच्चे को जल्दी पैदा करने के लिए कोई टीका न लगवाएँ।
  4. डिलीवरी की दर्दों के बीच के समय में बच्चे को नीचे धकेलने की कोशिश न करें।
  5. बच्चे को ज़बरदस्ती बाहर न खींचें।
  6. योनि की जाँच बार‑बार न करवाएँ।
बच्चा पैदा होने के बादy
  1. पैदा होने पर स्वच्छ और मुलायम कपड़े से बच्चे को साफ़ करें।
  2. कपड़े की दो तह करके बच्चे को उसमें लपेटें और माँ के बग़ल में लिटाएँ। माँ के शरीर की गरमी बच्चे को गरम रखेगी।
  3. बच्चे के पैदा होने के आधे घंटे के अंदर स्तनपान शुरू कर दें। बच्चे को सीधी हवा न लगने दें। यदि बच्चे का भार कम है (2.5 किलोग्राम से कम) तो उसे जन्म के एक सप्ताह तक न नहलाएँ।
  4. ध्यान रखें कि बच्चे की देखभाल सिर्फ़ एक या दो लोग ही करें।
बच्चा पैदा होने के समय ख़तरे के लक्षण

यदि माँ और बच्चे में इनमें से कोई भी ख़तरे का लक्षण दिखाई दे तो उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाएँ:

  1. बच्चा पैदा होने से पहले या बाद में योनि से अत्यधिक रक्त बहना।
  2. अगर डिलीवरी के दर्द को शुरू हुए 24 घंटे हो जाएँ और फिर भी बच्चा पैदा न हो।
  3. बच्चे का हाथ या पैर पहले बाहर आए।
  4. यदि योनि से गंदा द्रव्य निकले।
  5. डिलीवरी के दौरान माँ को दौरे पड़ें।
  6. माँ को पेट में अत्यधिक दर्द हो या त्वचा पीली पड़ जाए या साँस ठीक से न आए।
  7. बच्चे का रंग पीला या नीला हो या वह रोता न हो।
बच्चा पैदा होने के बाद देखभाल
माता में ख़तरे के लक्षण नवजात बच्चे की देखभाल

नवजात बच्चे की देखभाल गर्भ से ही शुरू हो जाती है। डिलीवरी अस्पताल में या कुशल दाई के हाथों घर में करवाएँ। इसके अलावा:

जन्म के समय साँस लेने में तकलीफ़ (Asphyxia) एस्फ़ेक्ज़िया साँस लेने में तकलीफ़ हो तो:
निम्नलिखित कार्य करें
  1. बच्चे को शरीर गरम रखनेवाली मशीन (Warmer) या बल्ब के नीचे लिटा दें।
  2. बच्चे को करवट देकर लिटाएँ ताकि द्रव्य आसानी से बाहर आ सके।
  3. यदि संभव हो तो थूक खींचने वाले यंत्र से द्रव्य को बाहर निकालें। बच्चे का मुँह, नाक और गला साफ़ करें ताकि साँस की नली में कोई रुकावट न हो।
  4. साँस की नली की सफ़ाई के बाद बच्चा आराम से साँस लेता है और उसके बाद रो भी पड़ता है। लेकिन अगर फिर भी ऐसा न हो, तो उँगलियों से उसके पैरों के तलवों या पीठ को धीरे-धीरे मलें।
  5. मुँह से मुँह लगाकर बच्चे को साँस दें। अपने गालों में हवा भरके बच्चे के मुँह में हवा भरें। ज़्यादा ज़ोर न लगाएँ क्योंकि बच्चों के फेफड़े बहुत छोटे व कोमल होते हैं।
  6. यदि ये सभी उपाय काम न करें, तो बच्चे को तुरंत पास के अस्पताल ले जाएँ।
निम्नलिखित कार्य न करें
  1. बच्चे को उलटा न करें।
  2. बच्चे को मुँह के बल न लिटाएँ।
  3. बच्चे की पीठ पर ज़ोर से न थपथपाएँ।
  4. बच्चे का पेट न दबाएँ।
  5. बच्चे पर गरम या ठंडा पानी न छिड़कें।
शरीर का तापमान कम हो जाना (Hypothermia) हाइपोथर्मिया

Iइस रोग में नवजात बच्चे के शरीर का तापमान कम हो जाता है। उसका शरीर सामान्य तापमान बनाए रखने के लिए गरमी पैदा नहीं कर सकता। यदि इसका इलाज न किया जाए तो शरीर का तापमान बहुत जल्दी गिर जाता है, जिससे मृत्यु भी हो सकती है। बग़ल का तापमान लेकर इसका पता लगाया जा सकता है (सामान्य तापमान 98.40 F होता है)।

ठंड का प्रभाव (Cold Stress)

यदि हथेलियाँ और तलवे ठंडे हों, लेकिन छाती और पेट गरम हों, तो यह ठंड का बुरा प्रभाव है।

हाइपोथर्मिया

यदि शरीर के सभी अंग ठंडे हों तो बच्चे को हाइपोथर्मिया है। आम तौर पर स्वस्थ नवजात बच्चे की त्वचा छूने में गरम और देखने में गुलाबी होती है।

हाइपोथर्मिया की रोकथाम
  1. बच्चे के पैदा होते ही उसे साफ़, गरम तौलिए से पोंछें।
  2. फिर उसे सिर से पैर तक गरम, सूखे तौलिए या रुई में लपेटें।
  3. नवजात बच्चे को माँ के साथ लिटाएँ।
  4. कमरा हलका गरम होना चाहिए और पंखे बंद कर दें।
हाइपोथर्मिया का इलाज
  1. यदि गरम करनेवाली मशीन (Warmer) उपलब्ध हो, तो बच्चे को उसमें लिटा दें, नहीं तो 200 वॉट के बल्ब से डेढ़ फ़ुट दूर लिटा दें। कमरे को हीटर से गरम रखें या गरम पानी की बोतल इस्तेमाल करें।
  2. बच्चे को माता के स्तनों के बीच (कंगारू की तरह) रखें।
संक्रमण की रोकथाम

जब बच्चा पैदा होता है तो उसे संक्रमण का ख़तरा बहुत ज़्यादा होता है; बच्चों की मौत का यही सबसे बड़ा कारण है।

निम्नलिखित कार्य करें
  1. प्रत्येक गर्भावस्था के दौरान टेटनस टॉक्सॉयड (Tetanus Toxoid) के दो टीके ज़रूर लगवाएँ।
  2. जहाँ डिलीवरी होनी है, वह जगह साफ़, हवादार और अच्छी रोशनीवाली होनी चाहिए।
  3. डिलीवरी में सहायता करनेवाली नर्स को पहले अपने हाथ पानी और साबुन से अच्छी तरह धोने चाहिएँ।
  4. नाल (कॉर्ड) की देखभाल बहुत ज़रूरी है। इसे एक साफ़ और नए ब्लेड से काटें, कीटाणुरहित धागे से बाँधकर साफ़ और सूखा छोड़ दें।
  5. जिस किसी ने भी बच्चे की देखभाल करनी हो उसे अपने हाथ अच्छी तरह (कम से कम एक मिनट के लिए) धोने चाहिएँ।
  6. बच्चे के नाख़ून काटें।
  7. बच्चे को कम से कम 6 महीने तक स्तनपान करवाएँ।
  8. नवजात बच्चे को साफ़ कपड़े पहनाएँ।
  9. बच्चे का टीकाकरण करवाएँ।
निम्नलिखित कार्य न करें
  1. बच्चे को शहद, चाय, गुड़, पानी या घुट्टी और बोतल का दूध न दें।
  2. किसी बीमार व्यक्ति को नवजात बच्चे को उठाने या सँभालने न दें।
  3. बच्चे को भीड़ वाली जगह पर न लेकर जाएँ।
  4. जहाँ नवजात शिशु हो, उस कमरे में बहुत से लोगों को न जाने दें।
कम वज़न के नवजात बच्चे

नवजात बच्चे का सामान्य वज़न 2.5 किलोग्राम होता है। यदि बच्चे का भार जन्म के समय इस से कम है, तो उसे ‘कम वज़न वाला बच्चा’ माना जाता है। जिन बच्चों का भार 2.0 से 2.5 किलोग्राम के बीच होता है उनकी देखभाल घर पर ही की जा सकती है, लेकिन जिनका वज़न 2 किलोग्राम से भी कम होता है उन्हें अस्पताल में रखने की ज़रूरत पड़ सकती है।

कम वज़न वाले बच्चों की घर पर देखभाल
  1. पहले सप्ताह में बच्चे को रोज़ाना गीले कपड़े से साफ़ करें। सप्ताह के अंत में उसे नहलाएँ।
  2. यदि शरीर का तापमान सामान्य से कम हो जाए तो इलाज करना बहुत ज़रूरी है। बच्चे को गरम कपड़ों में लपेटकर रखें या माता के शरीर के साथ लिटाएँ। कंगारू की तरह, बच्चे को माता के स्तनों के बीच लिटाएँ।
  3. बच्चे को साफ़ और हवादार कमरे में लिटाएँ, कमरे को हलका गरम रखें।
  4. बच्चे को सिर्फ़ स्तनपान ही कराएँ। कम से कम हर दो घंटे बाद दूध ज़रूर दें क्योंकि बच्चा थोड़ा‑सा दूध पीने के बाद जल्दी थक जाता है।
  5. यदि बच्चा स्तनपान न कर पाता हो तो स्तनों से दूध निकालकर बच्चे के मुँह में डालें या किसी कटोरी में डालकर चम्मच से पिलाएँ।
  6. ध्यान रखें कि बच्चे को दस्त या फेफड़ों का संक्रमण न होने पाए। यदि दस्त लगें, तो बच्चे को ओ.आर.एस. (oral rehydration solution) का घोल दें और जल्द ही डॉक्टर के पास ले जाएँ।
  7. कमज़ोर बच्चे संक्रमणों का शिकार जल्दी होते हैं इसलिए टीकाकरण बहुत आवश्यक है।
  8. बच्चे को कम से कम लोग उठाएँ। बीमार लोगों को बच्चे के पास न आने दें।
जन्म के समय बच्चे के कम वज़न की रोकथाम

भविष्य में माँ बननेवाली महिलाओं को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  1. बारह साल की आयु के बाद लड़कियाँ ताक़त (आयरन) की गोलियों का सेवन शुरू कर दें।
  2. 21 वर्ष की आयु से पहले गर्भ धारण न करें।
  3. गर्भावस्था में सामान्य से ज़्यादा भोजन करें और बहुत ज़्यादा मेहनत वाला काम न करें।
  4. धूम्रपान और शराब का सेवन न करें।
  5. दिन में कम से कम दो घंटे आराम करें और रात को आठ घंटे नींद ज़रूर लें।
  6. गर्भावस्था के पहले तीन महीने केवल फ़ोलिक एसिड और उसके बाद आयरन, फ़ोलिक एसिड और कैल्शियम की गोलियाँ लेते रहें।
  7. गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर से कम से कम तीन बार जाँच ज़रूर करवाएँ।
  8. ख़ून की कमी (अनीमिया), हाई ब्लड प्रेशर और ख़ून बहने का पता लगते ही तुरंत अस्पताल जाएँ।
  9. दो बच्चों के जन्म में कम से कम तीन साल का अंतर ज़रूर रखें।
नवजात बच्चे में ख़तरे की पहचान

यदि बच्चे में निम्नलिखित में से कोई भी लक्षण हो, तो उसे अस्पताल ले जाएँ:

स्तनपान निमोनिया और साँस की समस्याएँ

नवजात बच्चे में इन लक्षणों का ध्यान रखें:

साँस की समस्याओं से ग्रस्त नवजात बच्चे की देखभाल
निम्नलिखित कार्य करें
  1. तरल पदार्थ ख़ूब दें।
  2. माँ का दूध देते रहें।
  3. बच्चे को गरम रखें।
  4. बच्चे को साफ़ और धुएँ से रहित कमरे में रखें।
  5. यदि ऊपर दिए गए लक्षणों में से कोई नज़र आए तो बच्चे को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएँ।
निम्नलिखित कार्य न करें
  1. यदि इनमें से कोई लक्षण नज़र आए तो कोई घरेलू नुसख़ा न दें।
  2. बच्चे को किसी नीम‑हकीम डॉक्टर के पास न लेकर जाएँ।
टीकाकरण

बच्चे को टी.बी., डिप्थीरिया, काली खाँसी, टेटनस, पोलियो, खसरा और हेपेटाइटिस‑बी जैसी जानलेवा बीमारियों से बचाना बहुत ज़रूरी है। अगर बच्चे का इन रोगों से बचने के लिए टीकाकरण नहीं करवाया गया है, तो वह विकलांग हो सकता है या कमज़ोरी से उसकी मौत भी हो सकती है।

टीकाकरण की समय सूची

1.जन्म के समय बी.सी.जी. और ओ.पी.वी. (पोलियो) की ज़ीरो ख़ुराक
2.1½ महीना होने परडी.पी.टी. और ओ.पी.वी. की पहली ख़ुराक + हेपेटाइटिस बी की पहली ख़ुराक
3.2½ महीना होने परडी.पी.टी. और ओ.पी.वी. की दूसरी ख़ुराक + हेपेटाइटिस बी की दूसरी ख़ुराक
4.3½ महीना होने परहेपेटाइटिस बी की तीसरी ख़ुराक
5.9 महीना होने परखसरा और विटामिन‑ए की पहली ख़ुराक
6.16 – 24 महीना होने परडी.पी.टी. और ओ.पी.वी. बूस्टर + विटामिन‑ए की दूसरी ख़ुराक
7.2 साल होने परविटामिन‑ए की तीसरी ख़ुराक
8.2½ साल होने परविटामिन‑ए की चौथी ख़ुराक
9.3 साल होने परविटामिन‑ए की पाँचवीं ख़ुराक
10.4½ to 5 साल होने परडी.पी.टी. और ओ.पी.वी. बूस्टर+हेपेटाइटिस बी बूस्टर
11.10 & 16 साल होने परटेटनस टॉक्सॉयड (टी.टी.)+ हेपेटाइटिस बी बूस्टर
दस्त लगना डॉक्टर से तुरंत मिलें अगर:
  1. बच्चे की उलटियाँ और दस्त पर क़ाबू न पाया जा सके।
  2. दस्त में ख़ून आए।
  3. बच्चा कुछ खा‑पी न रहा हो।
  4. बच्चे को बहुत ज़्यादा नींद आती हो और उसे जगाना मुश्किल हो।
  5. बच्चा पानी की कमी के कारण बेहोश हो गया हो।
बहुत ज़्यादा पानी की कमी के लक्षण
  1. बच्चा धीमे‑धीमे रोता हो, आँखों से आँसू न आएँ, मुँह और होंठ सूखे हों।
  2. त्वचा में लचीलापन कम हो।
  3. आँखें धँसी हुई हों और सिर का ऊपरी हिस्सा धँसा हो (बच्चे के सिर की हड्डी में नरम जगह)।
  4. पेशाब कम आए।
दस्त की रोकथाम
  1. केवल माँ का दूध दें: बच्चे को पहले 6 महीने में घुट्टी या बोतल से दूध न दें।
  2. भोजन और पीने के पानी को ढककर मक्खियों से बचाकर रखें।
  3. बच्चे को साफ़–सुथरा रखें और उसके नाख़ून नियमित रूप से काटते रहें।
  4. खाने से पहले और शौच के बाद साबुन और साफ़ पानी से हाथ धोएँ।

कुपोषण (Malnutrition)

कुपोषण के कारण कुपोषण के लक्षण कुपोषण से बचाव
  1. 250 ग्राम भुने हुए चने + 100 ग्राम मुरमुरे लें।
  2. इनको अलग‑अलग पीसें और छान लें।
  3. आपस में मिलाकर, सील बंद डिब्बे में रखें।
  4. एक कटोरी दूध में इस मिश्रण के चार चम्मच और चीनी डालकर खिलाएँ।
युवा लड़की