नारी को अधिकार दो
![]() नारी को अधिकार दो पुस्तक आजकल भारतीय समाज में पनप रही एक विकट स्थिति को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है। बच्चियों को गर्भ में ही मार डालने का रिवाज आजकल बल पकड़ता जा रहा है। हमारे समाज में प्रचलित बेटों को महत्त्व देने की प्रथा की जड़ें बहुत गहरी हैं; इस पुस्तक में उन सांस्कृतिक मापदंडों पर एक नज़र डाली गई है जो इस प्रथा के मूल में हैं। हमारा ध्यान इस ओर आकर्षित किया गया है कि स्थिति ने कितना गंभीर रूप ले लिया है; हमें सावधान किया गया है कि अगर समाज में पुरुषों की संख्या इसी गति से स्त्रियों की संख्या के मुक़ाबले बढ़ती रही तो इसके दुष्परिणाम भयंकर होंगे । पुस्तक में सशक्त रूप से इस बात पर बल दिया गया है कि हमारी नैतिकता और आध्यात्मिकता अलग-अलग नहीं है और अगर हम अपने आप को नेक इनसान कहते हैं, तो नारी के प्रति हमारे रवैये में नेकी ज़रूर झलकनी चाहिए। हमें समझाया गया है कि बेटियों को बोझ समझने के बजाए, स्त्रियों को हमें प्रकृति का एक अनमोल उपहार समझना चाहिए। इस पुस्तक में उन्हें अबला से सबला बनाने के लिए बड़े सरल, सीधे-सादे उपाय बताए गए हैं। लेखक: लीना चावला राजन
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