आख़िरी संदेश: बड़े पैमाने पर कन्या हत्या
कोई भी काम करने से पहले उसके नतीजे को
ध्यान में रखो, ताकि जब कर्मों का
हिसाब देने का वक़्त आए तब पछताना न पड़े।
मौलाना रूम
इनसान की सोच की जड़ें इतनी गहरी होती हैं कि उसे जब अपनी सोच के ख़िलाफ़ क़दम उठाना पड़े, तो उसका मन साहस नहीं कर पाता और इनसान उस काम को अनदेखा कर देता है। जब हम किसी काम को नहीं करना चाहते तब हम उसकी तरफ़ ध्यान नहीं देते, जैसे कि हम उसके बारे में कुछ जानते ही नहीं। लेकिन अब हमारी सोच में बदलाव लाने की सख़्त ज़रूरत है। इस भाग में कुछ चौंकानेवाले आँकड़े दिये गए हैं जो औरतों के नीचे दर्जे की गवाही देते हैं। अगर औरतों को आदमियों के बराबर का दर्जा दिया जाता तो आज हमारे सामने ये आँकड़े कुछ और ही होते।
1. हत्याओं के आँकड़ेजीवित प्राणी को मारना अपने आप को मारना है। दूसरे जीवों के प्रति हमदर्दी रखना अपने आप से हमदर्दी रखना है।
भगवान् महावीर
कहा जाता है कि जो बात एक तस्वीर व्यक्त कर सकती है, उसको हज़ार शब्द भी बयान नहीं कर सकते। आगे दिये गए चार्ट साफ़ तौर पर यह दर्शाते हैं कि पिछले 10 सालों में हमारी बेटियों के साथ क्या अन्याय हुआ है। अगर हम अपनी सोच में तुरंत बदलाव नहीं ला पाए तो 2011 की जनगणना तक लड़कियों की संख्या का अनुपात न जाने कितना बिगड़ जाएगा, ये आँकड़े और भी भयंकर होंगे।
- बच्चों में लिंग अनुपात पिछले 40 साल से तेज़ी से बिगड़ रहा है
स्रोत: भारत की जनसंख्या 2001 अगर हमने अपनी सोच को बदलने के लिये सही दिशा में क़दम नहीं उठाए तो हमारे समाज में कई दशकों तक यह गंभीर ख़तरा मँडराता रहेगा।
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया (गणना) - लिंग जाँच कराने में गाँव के मुक़ाबले शहरी लोग आगे
गाँव/शहरी लिंग अनुपात स्रोत: भारत की जनसंख्या 2001 - अनपढ़ परिवारों के मुक़ाबले पढ़े-लिखे परिवार ज़्यादा कन्या भ्रूणहत्या कर रहे हैं
माँ की पढ़ाई का स्तर और जन्म के समय लिंग अनुपात स्रोत: भारत की जनसंख्या 2001 - लिंग जाँच सभी धर्मों के लोग कर रहे हैं
धार्मिक संप्रदाय और बच्चों में लिंग अनुपात स्रोत: भारत की जनसंख्या 2001 - राष्ट्रीय औसत की वजह से असंतुलन की सही तसवीर सामने नहीं आती
राज्य, जिनमें बच्चों के लिए लिंग अनुपात में सबसे अधिक गिरावट हुई स्रोत: भारत की जनसंख्या 2001 इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी बड़ी संख्या में क़त्ले आम होता है तो सच्चाई को हमेशा शब्दों के ताने-बाने में छिपाया जाता है। आज भी ‘कन्या भ्रूणहत्या,’ ‘बेटे की चाह’ और ‘लिंग चुनाव’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके सच्चाई को छिपाया जा रहा है, हालाँकि ग़ैरकानूनी हत्या बहुत बड़े पैमाने पर करवाई जा रही है। माँ-बाप की इच्छा से डॉक्टर इस काम को धड़ल्ले से कर रहे हैं और हम उन्हें यह करने दे रहे हैं, क्योंकि हम सोचते हैं कि माँ-बाप ग्राहक के रूप में अपनी पसंद रख सकते हैं।
डॉक्टर पुनीत बेदी, कार्यकर्ता, क्रिस्टीन टूमे के शब्दों में,‘जैन्डर जेनोसाइड,’द सण्डे टाइम्स, अगस्त 2007 - दुनिया के बाक़ी देशों के मुक़ाबले भारत में लड़कियों का लिंग अनुपात बहुत कम है और कहा जाता है कि जल्द ही चीन से भी कम हो जाएगा
दुनिया के 10 सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाले देशों के आँकड़े, 2009 जनसंख्या विभाग के आर्थिक और सामाजिक संगठित
सचिवालय, दुनिया की जनसंख्या के आधार पर, 2008जब तक यह बेपरवाही चलती रहेगी, तब तक हमारी लड़कियों की संख्या में कमी होती जाएगी और अगले 10 सालों में हमारा देश लड़की को जन्म से पहले ही मार देने में चीन से भी आगे निकल जाएगा।
डॉक्टर साबू जॉर्ज, कार्यकर्ता, स्टीव हरमन के शब्दों में, वॉयस ऑफ़ अमेरिका, 5 मार्च, 2007
2006 में प्रतिष्ठित ब्रिटिश मेडिकल जरनल, द लैन्सेट में छपे एक अध्ययन में बताया गया कि भारत में पिछले 20 सालों में एक करोड़ कन्या भ्रूणहत्या हुई होंगी।26 इस अध्ययन से यह पता लगता है कि हर साल पाँच लाख कन्याओं की भ्रूणहत्या की जाती है। इसका मतलब है कि हमारे देश में लगभग हर एक मिनट में एक कन्या भ्रूणहत्या होती है, जबकि भारतीय डॉक्टरों के संगठन का इस संख्या पर मतभेद रहा है। वे कहते हैं कि हर साल हमारे देश में 5 लाख नहीं, बल्कि 2.5 लाख कन्या भ्रूणहत्या होती हैं।27
दिसंबर 2006 की यूनीसेफ़ रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में हर रोज़ लगभग 7000 लड़कियाँ कम पैदा होती हैं और पिछले 20 सालों में जितनी लड़कियों को पैदा होना चाहिये था, उससे एक करोड़ कम लड़कियों का जन्म हुआ।28 यह गिनती द लैन्सेट की रिपोर्ट से मिलती है।
2007 में, ‘एक्शन ऐड’ ने उत्तर भारत के पाँच क्षेत्रों के 6000 परिवारों के लोगों से पूछताछ करके एक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ हमारे देश में कुछ ऐसे प्रदेश हैं जहाँ 1000 लड़कों के मुक़ाबले सिर्फ़ 500 लड़कियाँ ही हैं और कुछ ऐसे शहरी इलाक़े हैं जिनमें ऊँची जाति के परिवार रहते हैं, लेकिन जहाँ 1000 लड़कों के मुक़ाबले सिर्फ़ 300 लड़कियाँ ही हैं।29
द पाइनियर, 28 अक्तूबर 2001, अख़बार में लिखा है कि पश्चिम राजस्थान के बाड़मेर ज़िले में 200 राठौर परिवार रहते हैं। हर परिवार में 2 से 4 लड़के हैं, लेकिन 200 परिवारों में सिर्फ़ 2 लड़कियाँ हैं। इसका मतलब इस बिरादरी में 400 लड़कों के मुक़ाबले सिर्फ़ 2 लड़कियाँ ही हैं।30
इस संकट का सही अनुमान हमें 2011 की अगली जनगणना के बाद ही लग पाएगा। लड़कियों की सही गिनती क्या है? इस बारे में विषय के जानकार अपनी-अपनी दलीलें दे रहे हैं। इस दौरान लड़कियों की हत्या का सिलसिला हर रोज़ जारी है।
2. क्या हमारे देश में कानून लागू हो रहा है?हक पराया जातो नाहीं, खा खा भार उठावेंगा।
फेर न आकर बदला देसें, लाखी खेत लुटावेंगा।
दाउ ला के विच जग दे जूए, जित्ते दम हरावेंगा।
साईं बुल्लेशाह
इस बात को ध्यान में रखते हुए कि कभी-कभी औरत को सुरक्षा की दृष्टि से गर्भपात कराने की ज़रूरत पड़ती है, भारत सरकार ने 1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनन्सीज़ एक्ट (एम.टी.पी.एक्ट) नाम का कानून बनाया। औरतों को अनचाहे और ख़तरनाक गर्भावस्था से बचाने के लिये यह कानून बहुत ज़रूरी है। इस कानून के मुताबिक़ गर्भपात कराना कानूनी है, लेकिन एक नये कानून के मुताबिक़ लिंग चुनाव करना (पहले लिंग की जाँच कराना, फिर जब पता चले कि बेटी है, गर्भपात करा देना) बिलकुल ग़ैरकानूनी है। यह कानून प्री-कॉनसेप्शन एण्ड प्री-नेटल डायग्नॉस्टिक टेकनीक्स एक्ट (पी.सी. & पी.एन.डी.टी.एक्ट) 1994 में बनाया गया और 2003 में बदला गया। जानकारों का कहना है कि यह काफ़ी सख़्त कानून है, लेकिन हम इस कानून को लागू नहीं कर पा रहे हैं।
लिंग जाँच करवाना ग़ैरकानूनी हैकानून के मुताबिक़ लिंग जाँच करवाना ग़ैरकानूनी है।
सच्चाई तो यह है कि अगर हर साल पाँच लाख लड़कियों का गर्भपात किया जा रहा है, तो हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हमारे देश में हर साल कम से कम 10 लाख ग़ैरकानूनी लिंग जाँच भी किये जा रहें हैं, क्योंकि साधारणत: हर दो जाँच में से एक लड़की होती है।
क्लिनिक को रजिस्टर्ड होना चाहियेकानून के मुताबिक़ जो भी जेनेटिक क्लिनिक, काउँसलिंग सेंटर या लेबॉरेट्री गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड करते हैं, उन्हें कानून के अनुसार रजिस्टर्ड होना चाहिये।
आज भारत में लगभग 30,000 रजिस्टर्ड अल्ट्रासाउंड केंद्र हैं।31 लेकिन अनुमान है कि इससे दो या तीन गुणा ज़्यादा केंद्र ग़ैरकानूनी तौर से चलाए जा रहे हैं। आज हमारे देश में हज़ारों अल्ट्रासाउंड मशीनें वैन या मोटर साइकिल पर लगाई जाती हैं और पैसे के लालच में लोग इन्हें एक गाँव से दूसरे गाँव ले जाते हैं। वहाँ अनपढ़ लोगों से बहुत ज़्यादा धन लेकर लिंग जाँच और गर्भपात करवाए जा रहे हैं।
अजन्मे बच्चे का लिंग बताना ग़ैरकानूनी हैइस कानून के मुताबिक़ जो डॉक्टर अल्ट्रासाउंड टेस्ट करते हैं, उन्हें माँ-बाप को बच्चे के लिंग की ख़बर नहीं देनी चाहिये। बच्चे की माँ या उसके रिश्तेदारों को शब्दों से, इशारों से या किसी और तरीक़े से बच्चे के लिंग का संकेत देना ग़ैरकानूनी है।
विज्ञापन देना ग़ैरकानूनी हैकई डॉक्टर एक अनोखे तरीक़े से बच्चे के लिंग का संकेत माँ-बाप को देते हैं, जोकि बिलकुल ग़ैरकानूनी है।
‘नीले कपड़े ख़रीदने का वक़्त आ गया है,’ ‘पेड़े ख़रीदो’ या ‘जय श्री कृष्ण’—अगर गर्भ में बेटा है।
‘गुलाबी कपड़े ख़रीदने का वक़्त आ गया है,’ ‘बर्फ़ी ख़रीदो’ या ‘जय माता दी’—अगर गर्भ में बेटी है।
पी.सी. & पी.एन.डी.टी.एक्ट, हैण्ड बुक फ़ॉर द पब्लिक30
लिंग जाँच के बारे में किसी भी प्रकार का विज्ञापन देना ग़ैरकानूनी है।
कुछ डॉक्टर अब भी इस प्रकार के विज्ञापन देते हैं, ‘आज पाँच हज़ार रुपये ख़र्च करो, आगे चलकर पाँच लाख रुपये बच जाएँगे।’ इसका क्या मतलब है? कुछ डॉक्टर अपने धंधे को बढ़ाने के लिये लोगों से कह रहें हैं कि आज लड़की का गर्भपात करवाओ तो आगे चलकर दहेज के ख़र्च से बच जाओगे।
सज़ाइस कानून का पालन न करनेवाले डॉक्टर को जुर्माना देना पड़ सकता है। मई 2008 में यह जुर्माना 3 लाख रुपये से 7 लाख रुपये तक कर दिया गया था। अपराध करनेवाले को 3 महीने से लेकर 3 साल तक की जेल भी भुगतनी पड़ सकती है।
यह कानून 1994 में लागू किया गया था, लेकिन सबसे पहला अपराध साबित हुआ मार्च 2006 में, जिसमें एक डॉक्टर को दो साल के लिये जेल भेजा गया।32
क्या औरतों को न्याय मिल रहा है?
ही चाहता है तो क्या ऐसा कानून कभी सही तरीक़े से
लागू किया जा सकता है?
आज हमारे देश में लिंग जाँच 400 करोड़ रुपये का कारोबार है और बढ़ता ही जा रहा है।27
कई डॉक्टरों को इस तकनीक को बढ़ावा देने से लाभ पहुँचता है। इसलिये डॉक्टरों की किसी भी संस्था ने इस ग़ैरकानूनी कारोबार के विरोध में कोई ठोस क़दम नहीं उठाया। सच तो यह है कि डॉक्टरों के संघ बहुत शक्तिशाली हैं और अपने कारोबार को बचाने के लिये कुछ डॉक्टर इस कानून के ख़िलाफ़ अदालत तक पहुँच गए हैं।
कुछ कंपनियाँ इस बात का ध्यान रखती हैं कि वे अल्ट्रासाउंड की मशीनें केवल रजिस्टर्ड क्लिनिक को ही बेचें, पर ज़्यादातर मशीनें बिना सही काग़ज़ी कार्यवाही के ही बेची जा रही हैं।
अल्ट्रासाउंड की मशीनें केवल लिंग जाँच के ही काम नहीं आतीं, बल्कि इनके द्वारा गर्भ में होनेवाले रोग का भी पता चलता है और माँ और बच्चे को चोट या हानि से बचाया जा सकता है। गर्भ से जुड़ी जानकारी के अलावा इनके द्वारा कैंसर जैसी बीमारियों का भी पता चलता है। लेकिन 20 सालों में इन मशीनों की बिक्री बहुत तेज़ी से बढ़ी है और इसकी मुख्य वजह है लिंग जाँच करवाने की माँग। विदेशी कंपनियाँ इस ज़रूरत को पूरा करने के लिये हज़ारों मशीनें हमारे देश में भेज रही हैं।
2006 में अल्ट्रासाउंड की मशीनों की बिक्री से भारत में 308 करोड़ का कारोबार हुआ जो 2005 की तुलना में 10% ज़्यादा था।34
भारत संसार का सबसे बड़ा प्रजातंत्र है। हम दुनिया के सबसे पहले देशों में हैं, जहाँ सन् 1928 में औरतों को वोट देने का हक़ दिया गया। हमारा संविधान संसार के उत्तम संविधानों में एक है। सबके लिये न्याय का वायदा हमारे संविधान में है। हमें अपने विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता है और अपने धर्म को मानने की आज़ादी है। यहाँ धर्म, जाति, लिंग और जन्म-स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता।
क्या भारत में औरतों को अपने अधिकार मिल रहे हैं?
- लंबा जीवन जीने की आज़ादी
- अच्छी सेहत का हक़
- पढ़ने-लिखने का हक़
- बिना ज़ुल्म के काम करने की आज़ादी
- अपने फ़ैसले लेने की आज़ादी
- डर से छुटकारा पाने की आज़ादी
सच्चाई तो यह है कि जब औरत से उसके जीने का हक़ ही छीन लिया जाता है, तो उसे दिये गए ये सभी हक़ बेमतलब हो जाते हैं।
3. मदद के लिये एक पुकार
कई बार हम सोचते हैं कि ग़रीबी—सिर्फ़ भूखे रहना, कपड़े न होना और बेघर होना है। लेकिन जब किसी को तुम्हारी ज़रूरत न हो, कोई तुम्हारा ध्यान न रखे, तुम्हें किसी का प्यार न मिले—असल में ये सबसे बड़ी ग़रीबी है। अगर हम इस ग़रीबी को ख़त्म करना चाहते हैं, तो हमें इसकी शुरुआत अपने ही घर से करनी होगी।
मदर टेरेसा
जानकारी के लिये गणना, रेखाचित्र, आँकड़े—ये सभी ज़रूरी हैं, लेकिन ये एक औरत के असली दर्द की कहानी कभी नहीं बता सकते। आगे दिये गए उदाहरणों का मतलब किसी को परखना नहीं, बल्कि मक़सद सिर्फ़ यह है कि लोग इन्हें पढ़कर बेटियों के जीवन की सच्चाई को समझें, उनके दर्द को महसूस करें और उनकी सहायता के लिये सामने आएँ।
ख़ुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी के सपने ...उन्नीस साल की रीना ने भी ख़ुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी के सपने देखे थे जो कभी पूरे न हो सके। शादी के एक महीने बाद दहेज की वजह से वह ससुराल में बुरी तरह से सताई गई और शनिवार की सुबह इन्द्रा नगर में जला दी गई। उसका पिता घनश्याम चंद मछली व्यापारी था, जिसकी मृत्यु एक साल पहले हो गई थी। उसकी पुत्री रीना की शादी 19अप्रैल को सुनील के साथ हुई थी ìशादी के तुरंत बाद सुनील के पिता ने एक रंगीन टेलीविज़न और मोटर साइकिल की माँग की। जब रीना की माँ उनकी माँगें पूरी न कर सकी, तो रीना को अपने पति और सास की मारपीट लगातार सहन करनी पड़ी। शनिवार की सुबह रीना की माँ को यह ख़बर मिली कि मिट्टी के तेल की लालटेन गिरने से रीना के कपड़ों ने आग पकड़ ली और वह जलकर मर गई। लेकिन उसकी जाँच के बाद पता लगा कि रीना के साथ कोई हादसा नहीं हुआ, बल्कि जान बूझकर उसे जान से मार दिया गया, क्योंकि उसके दाँत टूटे हुए थे और उसके हाथ और छाती पर भी घाव पाए गए।
टाइम्स ऑफ़ इण्डिया, लखनऊ, मई 27, 2001 [नाम बदले हुए हैं]
वीरो (बदला नाम) ख़ून की कमी और ठीक ख़ुराक न होने की वजह से अपनी असली उम्र 34 साल से भी बड़ी लगती है। उसका आधा जीवन पुत्र पैदा करने की लालसा में ही बीत गया; इस चाह की वजह से उसने लगातार चार गर्भपात कराए। बाक़ी ज़िंदगी इसी अफ़सोस में बीती कि उसको अंत समय में आग देने के लिये कोई पुत्र नहीं होगा। वह कहती है, ‘मुंडे दे बिना माँ-प्यो रुल जांदे ने।’ (बेटे के बिना माँ-बाप बरबाद हो जाते हैं।) उसकी आँखें आँसुओं से भरी हुई हैं और उनमें कोई अनजान डर छिपा हुआ है। वह मानती है कि उसकी तीन बेटियाँ अपनी हैं ही नहीं। वह कहती है, ‘औलाद ते मुंडा ही हुन्दा ऐ, कुड़ियाँ ते बेगानियाँ हुन्दियाँ नें।’ (औलाद तो बेटा ही होता है, बेटियाँ तो पराया धन होती हैं।)
अरूती नैयर, ‘सायलेंट जेनोसाइड’, द ट्रिब्यून, मई 6, 2001
जुलाई 23, 2007 के दिन, उड़ीसा पुलिस ने एक चौंकानेवाली खोज की। उन्हें एक सूखे कुएँ से 30 प्लास्टिक की थैलियाँ मिलीं जो कन्या भ्रूण और नवजात शिशुओं के छोटे-छोटे अंगों से भरी हुई थीं। यह कुआँ एक प्राइवेट अस्पताल के पास नयागढ़ में है जो भुवनेश्वर के नज़दीक है। इस कुएँ की जाँच इसलिये कराई गई, क्योंकि 15 जुलाई, 2007 के आस-पास कन्या भ्रूण से भरी सात थैलियाँ इसी गाँव के नज़दीक एक सुनसान जगह पर मिलीं। इन दोनों घटनाओं की वजह से पुलिस को शक हुआ कि यहाँ कोई कन्या भ्रूणहत्या की कड़ी है। कन्या भ्रूणहत्या देश के विभिन्न भागों में लगातार हो रही है। दिल्ली के नज़दीकी क्षेत्र में प्रसूति क्लिनिक की बेसमेंट में पुलिस को सैप्टिक टैंक में हड्डियाँ मिलीं, जिसके बाद एक डॉक्टर को 260 ग़ैरकानूनी कन्या भ्रूण गर्भपात करने के जुर्म में गिरफ़्तार किया गया।
‘भारत में कन्या भ्रूणहत्या का कोई अंत नहीं’ डाँस विद शैडोज़, 24 जुलाई, 2007
राजस्थान के एक छोटे-से गाँव में एक वर्कशॉप में एक औरत अपने 8 महीने के बेटे और 3 साल की बेटी के साथ आई थी। अचानक उसका बेटा तेज़ बुख़ार से बीमार पड़ गया। लड़के को साँस लेना भी मुश्किल लग रहा था। यह छोटा-सा गाँव, जहाँ कोई दवाख़ाना भी नहीं था। माँ ने अपनी बेटी की तरफ़ उँगली उठाकर कहा, ‘काश! ये इसको हुआ होता।’
पुत्र को किसी न किसी तरह अगले दिन अस्पताल में पहुँचाया गया और वह ठीक हो गया। बाद में जब मैंने उस माँ से कहा कि मैं उसकी बात से दु:खी हुई तो माँ ने जवाब दिया, ‘देखो, अगर मेरी बेटी मर जाती तो मैं फिर भी घर लौट सकती थी। लेकिन अगर मेरा बेटा, जो चार बेटियों के बाद पैदा हुआ है, मर जाता तो मुझे कोई घर में आने भी नहीं देता। मुझे ख़ुदकुशी ही करनी पड़ती। मुझे परिवार में कोई स्वीकार न करता, क्योंकि यह पुत्र अनमोल है।’
कोई भी माँ अपने बच्चे को मारना नहीं चाहती, लेकिन औरत इसी प्रकार जीती आई है। दूसरों के द्वारा इसी तरह उसे दर्द दिया जाता है। उसके जीवन की सच्चाई यही है कि वह ख़ुद के लिये इतना भी निश्चित नहीं कर सकती कि वह कब दु:खी हो, किसके लिये दु:खी हो और कैसे दु:खी हो। यह औरत की ज़िंदगी की हक़ीक़त है।
आभा भइया, जागोरी, जैसे रशीदा भगत को बताया, ‘स्लॉटर इन द वूम्ब’
एक औरत को बताया गया कि उसका बच्चा स्वस्थ और सुंदर है, लेकिन उदास होकर उसने मुँह फेर लिया। नर्स ने बताया, ‘लड़की है, इसलिये।’ देश के किसी दूसरे हिस्से में एक चिंतित औरत अस्पताल में बच्चों के वॅार्ड में बैठी है। उसके गर्भ में सात महीने का बच्चा है। अल्ट्रासाउंड के स्कैन से यह पता चला है कि इस बार बच्चा लड़का है और वह अपने बच्चे को खोना नहीं चाहती। पिछली दो गर्भावस्था के बारे में कहती है; ‘दोनों टाइम टेस्ट में लड़की निकली तो सफ़ाई करा दी।’
वाई.के.सबरवाल, भारत के मुख्य न्यायाधीश, अपने भाषण में, ‘कन्या भ्रूणहत्या का अंत’
पंजाब और हरियाणा राज्यों में औरतों की कमी होने की वजह से आसाम राज्य से औरतों को लाकर बेचा जाता है। कभी-कभी देखने में आता है कि आसाम से लाई गई 4-5 नाबालिग़ लड़कियों को खुले आम, 10,000 रुपये से 30,000 रुपये में हरियाणा की कुछ पंचायतों में बेचा जाता है। हरियाणा में ऐसी कन्या ‘पारो’ के नाम से जानी जाती है।
रवि कांत, एग्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर, शक्ति वाहिनी, सुशान्ता ताल्लुकदार के शब्दों में, ‘ट्रैफ़िकिंग ऑफ़ विमिन फ़्रॉम आसाम ऑन द राइज़’
छत्तीस साल का सुखराज सिंह जो मिलान, इटली में एक डेरी फ़ार्म में मज़दूर का काम करता है, अमृतसर में एक काम से आया है। सुखराज और उसकी पत्नी बीड़ बाबा बुड्ढा के मंदिर में पुत्र के लिये प्रार्थना करने आए हैं। सात साल से बेऔलाद रहने के बाद पिछले साल उसकी पत्नी ने बेटी को जन्म दिया, तो दोनों पति-पत्नी बहुत दु:खी हुए। इसलिये इस साल वे वापिस आए हैं—बेटे के लिये प्रार्थना करने।
सुखराज कहता है, ‘इस मंदिर में हमने प्रार्थना की और हमें बेटी हुई, इसलिये हम फिर से इस मंदिर में वापिस आए हैं ताकि हमें बेटा हो।’ बहुत सालों से देश-विदेश से लोग इस तरह की प्रार्थना लेकर पंजाब के ऐसे मंदिरों और गुरुद्वारों में आते हैं। यहाँ बेटी की प्रार्थना करने कोई नहीं आता।
उन्नीस साल की रजवन्त कौर से मिलकर यह बात स्पष्ट हुई है कि भाई की प्रार्थना लेकर वह इन मंदिरों के चक्कर काटती रहती है। वह जानती है कि वह अपने परिवार पर बोझ है। ‘कोई भी परिवार अब लड़की नहीं चाहता, हर कोई लड़का चाहता है, क्योंकि माँ-बाप दहेज नहीं दे सकते। इसलिये वे प्रार्थना करते हैं कि उनके परिवार में लड़कियाँ पैदा न हों।’
नीलांजना बोस, सीएनएन/आईबीएन, ‘सन टेम्पल्ज़ ऑफ़ पंजाब’
बलबीर कौर कहती है—‘यह भगवान् की मर्ज़ी है कि इस घर में अब सिर्फ़ बेटे पैदा होते हैं।’ उसके पीछे उसका पति टहल रहा है। ‘हम इस बात से परेशान नहीं हैं। असल में जायदाद अपने ही परिवार में रखना इसका मुख्य कारण है। पहले कन्या हत्या होती थी और अब कन्या भ्रूणहत्या, लेकिन हमारे परिवार में ऐसा नहीं होता।’
जब बलबीर मुझे अपनी बहू कुलविंदर के साथ छोड़कर चली जाती है, तो बातचीत में एक उदासी आ जाती है। कुलविंदर कहती है, ‘काश! मेरी एक बेटी होती। औरत बेटी के बिना अधूरी है। बेटियाँ अपनी माँ की मदद करती हैं। मैं अभी भी इस बात को सोचकर उदास हो जाती हूँ।’ फिर मुँह फेरकर कुलविंदर कहती है, ‘लेकिन मेरे कई गर्भपात अपने आप ही हो गए।’
क्रिस्टीन टूमे, ‘जेन्डर जेनोसाइड’ द सन्डे टाइम्ज़, अगस्त 26, 2007. गाँव डेरा मीर मिरान, लिंग अनुपात 361 (जनगणना 2001)