हमारे जीवन में औरत की अहमियत - नारी को अधिकार दो

हमारे जीवन में औरत की अहमियत

औरत संपूर्ण है क्योंकि उसमें जीवन देने की, पालन-पोषण करने की और बदलाव लाने की शक्ति है।
डाऐन मरीचाइल्ड

एक औरत के कई रूप हैं और उसका हर रूप अपने आप में ख़ास और अनमोल है।

परिवार में औरत की भूमिका

हमारी संस्कृति को क़ायम रखने में औरत का बहुत बड़ा योगदान है। ज़रा सोचिये! दादी-माँ की कहानियों के बिना, माँ के प्यार-दुलार के बिना, पत्नी के जीवन भर के साथ के बिना, हमारी ज़िंदगी कैसी होती? बहन की प्यार भरी छेड़छाड़, एक बेटी की प्यार भरी देखभाल, इसके बिना हमारा जीवन कितना नीरस होता? औरत ही सब में प्यार और ख़ुशी बाँटती है, सबका ध्यान रखती है। क्या हम सोच सकते हैं कि औरत के बिना हमारा परिवार कैसा होता?

भगवान् ने औरत को जननी होने की एक अनमोल देन और ख़ास ज़िम्मेदारी दी है—केवल औरत में जन्म देने की सामर्थ्य है। संसार को नवजीवन का उपहार केवल औरत ही दे सकती है।

सब को प्यार देना—यह ख़ूबी, यह शक्ति, औरत में तब और उभर आती है, जब वह माँ बनती है। माँ बनना, यह औरत को भगवान् का वरदान है।
मदर टेरेसा

माँ की ममता के बारे में जितना कहा जाए उतना कम है। औरत अपनी जान को ख़तरे में डालकर, बेहद शारीरिक पीड़ा सहकर, ख़ुशी-ख़ुशी अपने बच्चों को जन्म देती है। बच्चों की देखभाल करते हुए वह अपने आराम के बारे में नहीं सोचती। वह बेग़रज़ होकर अपनी ज़िम्मेदारी निभाती है। ज़रूरत पड़ने पर ख़ुद भूखी रहकर अपने बच्चों का पेट भरती है। बच्चों को चोट लगने पर बड़े प्यार और दुलार से मरहम-पट्टी करती है। अगर बच्चे बीमार हो जाएँ तो रात भर जागकर उनकी देखभाल करती है। थकान की परवाह किये बिना वह अपने बच्चों की हर ज़रूरत का ध्यान रखती है—बच्चों ने क्या खाया, क्या वे ठीक तरह से पढ़-लिख रहे हैं, क्या वे अच्छी संगति में हैं, क्या वे ख़ुश हैं? बच्चे बेशक अपनी माँ को भूल जाएँ या बेपरवाह हो जाएँ, लेकिन माँ का प्यार कभी कम नहीं होता।

वह कौन है, जो मुझे प्यार करता है और हमेशा करता रहेगा? वह कौन है जो मेरी हर ग़लती के बावजूद मुझे नहीं ठुकराएगा? वह तुम हो, मेरी माँ।
टॉमस कारलायल

माँ के प्यार में उसका अपना मतलब नहीं झलकता। किसी ने ठीक ही कहा है कि एक माँ के प्यार से ज़्यादा पवित्र प्यार किसी का नहीं हो सकता।

भगवान् हर जगह नहीं हो सकता, इसीलिये उसने माँ को बनाया।
यहूदी कहावत

एक बच्चे का सबसे पहला और प्रभावशाली गुरु उसकी माँ होती है। दुनिया की हर संस्कृति और समाज में यही दिखाई देता है कि बच्चे के साथ सबसे ज़्यादा वक़्त माँ ही गुज़ारती है, ख़ासकर उसके बचपन में। वह अपने बच्चे को बोलना सिखाती है—उसको ‘मातृभाषा’ सिखाती है। वह अपने बच्चे को ज़िंदगी के उसूल सिखाती है और सही-ग़लत में फ़र्क़ करना बताती है। माँ अपने बच्चे की सोच और उसके चरित्र को सँवारती है। उसकी आदतों, धारणाओं और दृष्टिकोण पर गहरा असर डालती है।

एक अच्छी माँ सौ अध्यापकों के बराबर है।
जॉर्ज हर्बर्ट

पढ़ी-लिखी समझदार माँ न केवल पढ़ाई-लिखाई में अपने बच्चे की मदद करती है, बल्कि उसके सुरक्षित और अच्छे भविष्य की नींव रखती है।

एक बच्चे के भाग्य का निर्माण उसकी माँ ही करती है।
नपोलियन बोनापार्ट

मेरी माँ सबसे सुंदर औरत थी ìआज मैं जो कुछ हूँ उसी की बदौलत हूँ। मैं तो यही कहूँगा कि मुझे सदाचार, समझदारी और सफलता देनेवाली शिक्षा अपनी माँ से ही मिली।
जॉर्ज वॉशिंग्टन

औरत सहज ही अपने घर में प्यार, अपनापन, साफ़-सफ़ाई और सुखद माहौल पैदा करती है। औरत हमें दुनियादारी के तौर-तरीक़े सिखाती है कि परिवार में और समाज में किस ढंग से एक दूसरे के साथ बर्ताव करना चाहिये, एक दूसरे की इज़्ज़त करनी चाहिये।

जीवन को सही तरीक़े से जीने के लिये जो सभ्य आचरण होना चाहिये, वह हमें औरत ही सिखाती है, जैसे—एक दूसरे का आदर करना, वे छोटी-छोटी बातें जिनसे हम दूसरों का दिल जीत सकें, हालात के मुताबिक़ अपने रवैये को ढालना और समाज के साथ क़दम मिलाकर चलने के तौर-तरीक़े आदि।
रेमि द गूरमौं

एक सच्चे साथी के रूप में औरत ही अपने पति का साथ निभाती है। वह सुख-दु:ख में वफ़ादारी से उसका साथ देती है। वह न केवल अपने माता-पिता को प्यार और इज़्ज़त देती है, बल्कि अपने पति के परिवार को भी प्रेम की डोरी में बाँध लेती है। वह सभी रिश्तेदारों और सगे संबंधियों के साथ मेलजोल बढ़ाकर, अपनेपन से रिश्तों का एक सुंदर और मज़बूत ताना-बाना बुन लेती है। बच्चों से लेकर बूढ़ों और बीमारों तक, सभी की देखभाल प्रेम और प्यार से करती है।

औरत घर की शांति और ख़ुशहाली की कुंजी है। वास्तव में औरत ही घर को बनाती है।

समाज में औरत की भूमिका

हमारी संस्कृति, रीति रिवाज और परंपराओं को जीवित रखने में औरत का बड़ा योगदान है। सदियों से औरतें अपने बच्चों को कहानियाँ सुनाती आई हैं जो उन्होंने अपनी माँ और दादी से सुनी थीं। औरतों की वजह से ये कहानियाँ और लोककथाएँ आज भी बच्चों को सुनाई जाती हैं। अगर हम अपनी संस्कृति के किसी भी पहलू पर नज़र डालें—चाहे लोक संगीत, नृत्य या कला हो, चाहे कपड़े पहनने का, भोजन बनाने का या पूजा-पाठ करने का ढंग हो—इन सभी रिवाजों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने में औरतों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। इनके ज़रिये औरत उन सामाजिक मूल्यों को आगे बढ़ाती है जो परिवार और समाज को जोड़े रखते हैं।

लड़ाई के मैदान में जब हज़ारों आदमी शहीद हो जाते हैं, उस समय औरतें कई मुश्किलों का सामना करते हुए भी परिवार को जोड़े रखती हैं। उस वक़्त औरतें बूढ़ों, बीमारों और ज़ख़्मियों की सेवा करती हैं और बच्चों की देखभाल करती हुईं अगली पीढ़ी को तैयार करती हैं। औरत हमारे समाज की रीढ़ की हड्डी है।

अगर समाज को तेज़ी से बदलना है तो औरतों को एकजुट होकर आगे बढ़ाना होगा।
चार्ल्ज़ मलिक, पूर्व अध्यक्ष, संयुक्त राष्ट्र संघ—जनरल असेम्बली

आजकल वोट के अधिकार का इस्तेमाल करनेवाली औरतों की गिनती बढ़ती जा रही है। इसके ज़रिये वे अपने मुद्दों की सुनवाई करवा रही हैं। आजकल हर जगह औरत आगे बढ़ रही है—चाहे वह सरकारी नौकरी हो या पुलिस विभाग, चाहे वकील, जज या ज़ोरदार नेता। वे मीडिया के ज़रिये समाज में बदलाव ला रही हैं। इसके अलावा बहुत-सी औरतें समाज सुधार का काम कर रही हैं। बहुत-सी सरकारी और ग़ैरसरकारी संस्थाएँ औरतों द्वारा चलाई जा रही हैं। चाहे बच्चों का कल्याण हो या पर्यावरण, इन सब बातों में औरतें काफ़ी बदलाव ला रही हैं।

अर्थ व्यवस्था में औरत की भूमिका

औरत न सिर्फ़ समाज का एक ज़रूरी हिस्सा है, बल्कि हमारे देश की अर्थ व्यवस्था यानी धन संबंधित प्रबंध व्यवस्था में भी मददगार साबित हो रही है। आजकल बहुत-से परिवार ऐसे भी हैं जिनमें यदि औरत कामकाज करके धन कमाकर न लाए, तो घर चलाना मुश्किल हो जाता है। पुराने ज़माने में कुछ काम औरत की शारीरिक शक्ति के बाहर माने जाते थे जैसे—शिकार करना, लड़ाई के मैदान में लड़ना, हल चलाना आदि। इसलिये वह अपने शरीर की ताक़त के मुताबिक़ घर के कामकाज सँभालती थी। हालाँकि घर सँभालना भी बड़ा महत्त्वपूर्ण काम है।

अब दुनिया बदल रही है। आजकल ज़्यादातर कामों के लिये ताक़तवर होना उतना ज़रूरी नहीं है। आज अगर औरत को बराबर का मौक़ा मिले तो कौन-सा ऐसा काम है जो वह नहीं कर सकती। आज औरतें भी डॉक्टर, वकील, जज, नेता, व्यापारी, इंजीनियर और वैज्ञानिक हैं। वे खेलकूद, कला और मीडिया में भी आगे हैं। औरतें फ़ौज और पुलिस में भी शामिल हैं। आज की औरत देश की प्रधानमंत्री बन सकती है, ट्रैक्टर चलाने या हवाई जहाज़ उड़ा सकने में भी औरत पीछे नहीं है। यहाँ तक कि वह चाँद तक भी पहुँच सकती है।

शोध-अध्ययनों से साबित हुआ है कि औरतें कामकाज में कई ख़ूबियाँ ला रही हैं।1 आज औरतें कई कंपनियों की मैनेजर हैं। वे अपनी कंपनी के विकास की अच्छी समझ रखती हैं और अपने कर्मचारियों से काम लेने की सूझबूझ रखती हैं। वे बहुत-सी ज़िम्मेदारियाँ एक साथ निभा लेती हैं। औरत नरमी और प्यार से अपनी बात मनवा लेती है और सब को साथ लेकर आगे बढ़ती है। उसमें दूसरों का नज़रिया समझने का गुण होता है और इसी वजह से औरतों के साथ काम करनेवाले यह समझते हैं कि उनके काम और योग्यता की क़द्र है।

आज के नये ज़माने में गुणों के मूल्यांकन में औरतों का दर्जा ऊँचा है। मिल-जुलकर काम करना और दूसरों को साथ लेकर आगे बढ़ना सफलता की निशानी है और औरतों में ये गुण भरपूर हैं।
रोज़ाबेथ मॅास कैन्टर, हार्वर्ड बिज़्नस स्कूल प्रोफ़ेसर

हालाँकि कंपनी में औरतों को पुरुषों के बराबर की संख्या में नौकरी पर रखना, न तो ज़रूरी है और न ही कोई कानूनी मजबूरी है, फिर भी आजकल ज़्यादातर कंपनियाँ औरतों के काम करने के ढंग को देखते हुए उन्हें ही नौकरी पर रखना पसंद करती हैं, क्योंकि वे कामकाज और व्यापार के लिये फ़ायदेमंद साबित हुईं हैं।

औरत के ख़ास गुण

पुराने ज़माने से ही हम यह मानते चले आ रहे हैं कि कुछ ख़ासियत और गुण सिर्फ़ आदमियों से जुड़े हुए हैं, जैसे—ताक़त, अधिकार जमाना, हिम्मत, मनमानी करना, लीडरी, दलीलबाज़ी आदि। इसी तरह कुछ ख़ासियत और गुण औरतों से जुड़े हुए हैं, जैसे—सूझबूझ, सहनशीलता, नम्रता, सब्र, दया, त्याग भरा प्यार आदि।

इसका मतलब यह नहीं है कि आदमियों में सिर्फ़ आदमियोंवाले और औरतों में सिर्फ़ औरतोंवाले गुण होते हैं। औरतों और आदमियों में दोनों प्रकार के गुण अलग-अलग मात्रा में होते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि यह मात्रा कैसे तय होती है? यह कई बातों पर निर्भर करता है। सबसे पहला कारण है पैदाइशी गुण। आज वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि पैदा होते ही कुछ गुण हमारे अंदर होते हैं, जैसे—औरतों में बच्चों के लिये स्वाभाविक प्यार या आदमियों में अधिकार जमाने की भावना।

दूसरा कारण है समाज के बनाए नियम और घर-घर के अपने क़ायदे-कानून, जो बच्चों के विचारों पर गहरा असर डालते हैं। बचपन से बच्चों को यही समझाया जाता है कि ‘लड़के नहीं रोते।’ जब बचपन से लड़कों को सिखाया जाता है कि अधिकार जमाना, रोब और अहंकार उनके अधिकार हैं तब सब्र, दया और सहानुभूति जैसे गुण, जो जन्म से उनमें मौजूद होते हैं, धीरे-धीरे दब जाते हैं। ऐसे गुण अगर न दबें तो दुनिया उन्हें कमज़ोर कहेगी। ठीक इसी तरह कई घरों में लड़कियों को बलिदान की मूरत बनने और दबकर रहने की शिक्षा दी जाती है। ताक़त, अधिकार जमाना, लीडरी आदि गुण जो आदमियों में शोभा बढ़ानेवाले माने जाते हैं, यही गुण औरतों में ग़लत माने जाते हैं। ज़िंदगी भर इन बातों को सुनते-सुनते, बच्चे इन ‘आदमियों’ और ‘औरतों’ वाले गुणों को अपनाकर अपने जीवन का हिस्सा बना लेते हैं।

सच तो यह है कि सबसे ज़्यादा सफल और संतुष्ट आदमी वही है जिसमें दोनों प्रकार के गुणों का संतुलन होता है। यही संतुलन आदमी को एक बेहतर और पूर्ण इनसान बना सकता है और यही बात औरतों के बारे में भी सच है।

दूसरी सच्चाई यह है कि अगर हमें क़ुदरत में संतुलन बनाए रखना है, तो हमें दोनों गुणों की ज़रूरत है। अगर संसार में, देश में या हमारे अंदर, केवल आदमियों के ही गुण हों तो ज़्यादा युद्ध होंगे, ज़्यादा ग़ुस्सा होगा और संसार में हाहाकार मच जाएगा। इस नज़रिये से औरत केवल क़द्र के लायक़ ही नहीं, बल्कि उसके गुण समाज में प्यार और संतुलन बनाए रखने के लिये बेहद ज़रूरी हैं।

परिवार में, समाज में और संसार में,
औरत का योगदान है बेमिसाल।
उसके बिना पूर्णता नहीं जीवन में,
और न ज़िंदगी बनती है ख़ुशहाल॥