हमारी करनी का नतीजा
जब तक हम बेटी के जन्म का भी वैसे ही स्वागत नहीं करते जितना बेटे के जन्म का, तब तक हमें समझना चाहिये कि भारत विकलांग रहेगा।
महात्मा गांधी
सच्चाई तो यह है कि आज हमारा देश विकलांग है। क्या औरतों के प्रति इतनी लापरवाही, असमानता और अत्याचार का बर्ताव यों ही लगातार चलता रहेगा? इसके दु:खदायी नतीजे क्या हो सकते हैं? हम ज़रा चारों तरफ़ नज़र दौड़ाएँ और देखें कि असमानता और लिंग चुनाव का हमारे समाज पर क्या असर पड़ रहा है।
नारी जाति पर प्रभाव‘शत पुत्रवती भव’ (तुम सौ पुत्रों की माँ बनो), यह एक बड़ा मशहूर आशीर्वाद है जो नयी शादीशुदा लड़कियों को अकसर दिया जाता है। हमारे देश में औरतों पर बेटा पैदा करने का बहुत ज़्यादा दबाव होता है, इस हद तक कि अगर वे बेटा न पैदा कर पाएँ तो उन्हें यह बताया जाता है कि वे ज़िंदगी में हार गई हैं, वे कुछ नहीं कर पाईं। कई बार उनको धमकाया जाता है कि अगर वे गर्भ में पल रही लड़की को नहीं गिराएँगी, तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा या तलाक़ दे दिया जाएगा।
हर औरत की इच्छा होती है कि वह कम से कम एक बेटे की माँ बने। जिस औरत का कोई बच्चा न हो उसे अधूरी माना जाता है और जिसकी केवल बेटियाँ हों, उसे भी कुछ हद तक अधूरी ही माना जाता है। औरत को समाज में इज़्ज़त तभी मिलती है, जब वह बेटे को जन्म देती है।
एक व्यक्ति के विचार, ‘सायलेंट जेनोसाइड’, अरूती नैयर, द ट्रिब्यून, 6 मई, 2001 12
गर्भपात के कारण औरतों की सेहत के लिए ख़तरा बढ़ता जा रहा है। लिंग चुनाव से जुड़े सभी गर्भपात चौथे से छठे महीने में होते हैं। जब औरतें गर्भपात के लिये चौथे, पाँचवें या छठे महीने तक इंतज़ार करती हैं, तब उनकी मौत का ख़तरा लगभग दस गुणा ज़्यादा होता है। ऐसी भी मिसालें हैं कि परिवार में बेटे को जन्म देने की चाह को पूरा करने के लिये औरत को लगातार आठ बार गर्भपात करवाना पड़ा। भारत में ज़्यादातर औरतें ‘ख़ून की कमी’ का शिकार हैं और लगातार गर्भपात से उनकी सेहत ख़राब हो जाती है। बहुत-सी औरतें शारीरिक पीड़ा और दिमाग़ी तनाव में रहती हैं, क्योंकि उन्हें बार-बार गर्भपात के लिये मजबूर किया जाता है। कितनी ही ग़रीब औरतें गर्भपात के वक़्त पूरी सुविधाएँ न मिलने के कारण बीमारियों का शिकार हो जाती हैं या बिस्तर पर पड़ जाती हैं, यहाँ तक कि कई बार उनकी मौत भी हो जाती है।
आदमी और औरत में अलग-अलग गुणसूत्र (क्रोमोसोम्ज़) होते हैं। गुणसूत्र दो तरह के होते हैं—X और Y। विज्ञान हमें बताता है कि बच्चे के जन्म में औरत सिर्फ़ X गुणसूत्र देती है। अगर आदमी X गुणसूत्र देता है तो लड़की पैदा होगी और अगर आदमी Y गुणसूत्र देता है तो लड़का पैदा होगा।
इसलिये बच्चे का लिंग आदमी के गुणसूत्रों से ही तय होता है। इसमें औरत का कोई हाथ नहीं होता।
बच्चों पर प्रभाव
आज के बच्चे कल का भविष्य हैं। माँ ही बच्चे की पहली शिक्षक होती है। बच्चे के जीवन पर उसका गहरा असर पड़ता है। ज़्यादा दहेज लाने की माँग से या सिर्फ़ बेटे को ही जन्म देने के दबाव से जो माँ हर वक़्त दु:खी और परेशान हो, वह अपने बच्चों के जीवन में ख़ुशी और शांति कैसे ला सकती है? जिस घर में माँ को हर वक़्त दबाया और सताया जाता हो, उस घर के मासूम बच्चों से हम आदर्श जीवन जीने की क्या उम्मीद रख सकते हैं? ज़रा सोचिये! ऐसे बच्चे बड़े होकर समाज में कैसा व्यवहार करेंगे?
आदमियों पर प्रभावआज लिंग चुनाव की वजह से हमारे समाज में औरतों की बहुत कमी हो रही है। औरतों की इस कमी की वजह से कई आदमी अपना जीवन साथी नहीं ढूँढ़ पा रहे हैं। ऐसा भी हो सकता है कि आनेवाले समय में ज़िंदगी को ख़ुशियों से भरपूर करनेवाली पत्नी को साथी और सहयोगी के रूप में पाना, कई आदमियों के लिये सपना बनकर रह जाए।
हमारे समाज में शादी एक ज़रूरी रस्म मानी जाती है। आम तौर पर शादीशुदा और बाल-बच्चेवाले परिवार को बिरादरी में ज़्यादा इज़्ज़त दी जाती है। जो आदमी अपने लिये जीवन साथी नहीं ढूँढ़ पाते, वे समाज से अलग होने का दर्द और अकेलेपन को महसूस करते हैं।
समाज में औरतों के प्रति बढ़ता अपराधजो लोग लिंग जाँच कराना चाहते हैं, वे कहते हैं कि लिंग चुनाव से औरतों का फ़ायदा ही फ़ायदा होगा। वे कहते हैं कि अगर समाज में औरतें कम होंगी तो उनकी माँग बढ़ेगी और इससे समाज में उनकी इज़्ज़त भी बढ़ेगी।
जो जैसे चल रहा है उसको बिना रोके वैसे ही चलने दो। इससे औरतों की क़द्र बढ़ेगी। एक दिन ऐसा आएगा जब औरतें, आदमियों को ले जाने के लिये घोड़ों पर चढ़कर आएँगी।
गर्भपात के पक्ष में बहस करते एक डॉक्टर की राय, ‘सायलेंट जेनोसाइड’ अरूती नैयर, द ट्रिब्यून, 6 मई, 2001 12
लेकिन सच्चाई इसके बिलकुल उलट है। इतिहास गवाह है कि समाज में जब भी औरतों की कमी होती है, उस वक़्त औरतों के प्रति ज़ुल्म कम नहीं होते बल्कि बढ़ते हैं। आज भारत में जिस गाँव या शहर में औरतों की कमी है वहाँ औरतों के प्रति ज़ुल्म बढ़ रहे हैं। सन् 2007 में औरत संबंधी अपराधों के निम्नलिखित मुख्य तथ्य सामने आए:13
- हर 48 मिनट में एक औरत अश्लीलता और ज़बरदस्ती का शिकार हुई।
- हर 26 मिनट में एक औरत या नाबालिग़ लड़की का अपहरण हुआ।
- हर 25 मिनट में एक औरत का बलात्कार हुआ।
- हर 14 मिनट में औरत के साथ छेड़छाड़ की घटना हुई।
इन वारदातों का हमें तब पता चलता है जब कोई मामला दर्ज होता है। सच्चाई तो यह है कि हमारे देश में औरतों के ख़िलाफ़ ज़्यादातर अपराधों को दर्ज ही नहीं किया जाता और न ही कराया जाता है।
यूनाइटेड नेशन्स इंटरनेशनल चिल्डरेन्ज़ ऐमर्जैंसी फ़ंड (UNICEF) की एक रिपोर्ट के अनुसार ‘भारत में बच्चों का लिंग अनुपात तेज़ी से बिगड़ रहा है। इसके कारण आनेवाले समय में ज़्यादातर लड़कियों की कम उम्र में ही शादी हो जाया करेगी। ज़्यादातर लड़कियों को पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ेगी। कम उम्र में बच्चा पैदा करनेवाली औरतों की मौत की संख्या बढ़ेगी। लड़कियों और औरतों के प्रति अत्याचार बढ़ेंगे जैसे—बलात्कार, अपहरण, लड़कियों का व्यापार और एक औरत का कई आदमियों के साथ ज़बरदस्ती शादी कराने का रिवाज।’16
औरतों का व्यापार और द्रौपदी प्रथाभारत में ग़रीब इलाक़ों या पिछड़ी जातियों की लड़कियाँ ख़रीदकर उनसे ज़बरदस्ती शादी करने का रिवाज बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। औरतों के इस व्यापार को दलाल चला रहे हैं और यह व्यापार ख़ूब फल-फूल रहा है। इन ख़रीदी हुई औरतों के पास अपनी शादी का कोई पक्का सबूत नहीं होता, जिसकी वजह से उनके पति के दोस्त और रिश्तेदार भी उन्हें सताते हैं। इन औरतों को सिर्फ़ अपने पति की ही नहीं, बल्कि उसके भाइयों की भी पत्नी बनने के लिये मजबूर किया जाता है। ऐसी भी मिसाल है जहाँ एक औरत की आठ भाइयों के साथ शादी हुई है। इन औरतों को ‘द्रौपदी’ बुलाया जाता है। परिवार और समाज में इनको सबसे नीचा दर्जा दिया जाता है। अपने ही परिवार में, अपने ही आदमियों के हाथों, इनका लगातार बलात्कार होता है और मारपीट भी होती रहती है।
समाज में बढ़ती अशांतिभारत के बहुत-से गाँवों और शहरों में ऐसे कई आदमी हैं जो औरतों की कमी की वजह से जीवन साथी नहीं ढूँढ़ पा रहे हैं और समाज से अलगाव महसूस करते हैं। जब इस तरह के आदमियों की संख्या बढ़ जाती है, तब इनके अपराध करने की संभावना भी बढ़ जाती है। ऐसे हालात में मारपीट, दंगा-फ़साद और अत्याचार की घटनाएँ बढ़ जाती हैं। समाज से अलग हुए ये आदमी समाज की सुरक्षा और शांति के लिये एक बहुत बड़ा ख़तरा बन जाते हैं।17
क्या हम ऐसे दूषित समाज में जीना पसंद करेंगे?
क्या हम अपने बच्चों को यही आदर्श और मूल्य
विरासत में देना चाहते हैं? आओ! ज़रा उन रीति
रिवाजों पर नज़र डालें जो हमारी चाहतों को
प्रेरणा देते हैं।