हृदय रोग
दुनिया में कॉरोनरी आर्टरी की बीमारी (Coronary Artery Disease/CAD) से मरनेवाले लोगों की संख्या सबसे ज़्यादा भारत में है। भारत के शहरों में रहनेवाले 10% लोग इस रोग से पीड़ित हैं। यूरोप या एशिया के दूसरे लोगों की तुलना में भारतीयों में सी.ए.डी. कुल मिलाकर दो से चार गुणा ज़्यादा है और 40 साल से कम उम्र वालों में तो पाँच से दस गुणा ज़्यादा है। अनुमान लगाया जाता है कि उत्तर भारत के शहरों में रहनेवाले 7‑10% और दक्षिण भारत के शहरों में रहनेवाले 14% लोग सी.ए.डी. से पीड़ित हैं।
हृदय के रोगों में सी.ए.डी. सबसे ज़्यादा पाया जानेवाला रोग है। यह छाती में दर्द, दिल के दौरे और अचानक मृत्यु के रूप में प्रकट होता है।
हृदय शरीर के सभी हिस्सों में नाड़ियों के ज़रिए ख़ून पहुँचाता है ताकि उन्हें ऑक्सीजन और पोषण मिल सके। ऑक्सीजन वह ईंधन है जो शरीर को शक्ति देता है। हृदय को भी ख़ून की ज़रूरत होती है जिसे कॉरोनरी आर्टरीज़ द्वारा पहुँचाया जाता है। जब इन कॉरोनरी आर्टरीज़ में से किसी एक में कोई रुकावट पैदा हो जाती है तो ख़ून का थक्का (Clot) बन जाने के कारण दिल का दौरा पड़ सकता है। वास्तव में आर्टरी की दीवार पर धीरे‑धीरे कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol) जमना शुरू हो जाता है जो जमकर प्लाक (Plaque) बन जाता है। इससे आर्टरी में रुकावट पैदा हो जाती है।
दिल के दौरे की संभावना के लक्षण- छाती में तकलीफ़
यदि छाती में दबाव, कसाव, पीड़ा हो और छाती में भारीपन महसूस हो, जो कुछ मिनटों तक रहे और फिर बार‑बार हो, तो ये दिल के दौरे के सूचक हैं (अगर ऐसा तीस मिनट से ज़्यादा रहे और नाईट्रेट (Nitrate) की गोली का भी कोई असर न हो)।
- छाती के अलावा शरीर के अन्य अंगों में तकलीफ़
बाज़ू, पीठ, गरदन या जबड़े में भी तकलीफ़ (पीड़ा या भारीपन) हो सकती है। छाती से शुरू होकर यह दर्द बाज़ू, कंधे, जबड़े या गरदन तक जा सकता है या इन भागों से शुरू होकर छाती में जा सकता है। इनके अलावा कुछ रोगियों में पेट के ऊपरी भाग में दर्द या भारीपन का एहसास, खट्टापन या बदहज़मी भी होती है और उन्हें ऐंटैसिड (Antacid) दवाइयों से आराम नहीं मिलता। इन अवस्थाओं को नज़रअंदाज़ मत करें और दिल के दौरे की संभावना समझते हुए जाँच करवा लें।
- साँस लेने में तकलीफ़
छाती में दर्द के दौरान, इससे पहले या बाद में, साँस लेने में तकलीफ़ आती है या साँस फूलती है। इसके साथ‑साथ मितली, पसीना या चक्कर भी आ सकते हैं। कभी‑कभी बिना दर्द के साँस फूलना या बिना दर्द के दम घुटना ही दिल के दौरे का एकमात्र लक्षण हो सकता है।

इन्हें दो भागों में बाँटा जा सकता है।
- कारण जिन्हें बदला नहीं जा सकता :
- पुरुषों में 55 और महिलाओं में 65 वर्ष से ज़्यादा आयु।
- पुरुषों की आर्टरीज़ में चर्बी जमने के आसार ज़्यादा होते हैं।
- परिवार में 55 वर्ष की आयु से पहले सी.ए.डी. होने का इतिहास (माता‑पिता, दादा‑दादी या नाना‑नानी को 55 साल की आयु से पहले सी.ए.डी. हुई हो)।
- कारण जिन्हें बदला जा सकता है :
- ख़ून में कोलेस्ट्रॉल की अधिकता।
- धूम्रपान या तंबाकू चबाना (अब कर रहे हों या पहले कभी किया हो)।
- हाई ब्लड प्रेशर (BP)।
- शारीरिक व्यायाम की कमी।
- मधुमेह।
- मानसिक तनाव।
- मोटापा, ख़ास तौर से तोंद होना (कमर और कूल्हे का अनुपात, पुरुषों में 0.95 से ज़्यादा और महिलाओं में 0.85 से अधिक होना।)
- भारत में हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी बहुत ज़्यादा नहीं है; धूम्रपान ज़्यादातर पश्चिमी देशों में ही व्याप्त है।
- भारतीयों में कोलेस्ट्रॉल की औसत मात्रा भी कम है। फिर भी कम उम्र के भारतीयों में सी.ए.डी. होने के आसार काफ़ी हैं।
- मधुमेह के रोगियों की बढ़ती संख्या।
- ख़ून में ट्राइग्लिसराइड्स (Triglycerides) का अधिक होना या अच्छे कोलेस्ट्रॉल (एच.डी.एल.) की मात्रा कम होना।
- पेट का ज़्यादा मोटापा, सी.ए.डी. के ख़तरे का एक बहुत बड़ा कारण है। ऐसा, ख़ून में इंसुलिन की अधिकता के कारण और इंसुलिन के असर में रुकावट के कारण है। इस रुकावट से ख़ून में ट्राइग्लिसराइड्स की मात्रा अधिक और एच.डी.एल. की मात्रा कम हो जाती है, पेट पर चर्बी जमा हो जाती है, हाई ब्लड प्रेशर और मधुमेह होने के आसार अधिक हो जाते हैं और इन सब की वजह से सी.ए.डी. होने का ख़तरा बढ़ जाता है। इसे सिंड्रोम एक्स (Syndrome X) या मेटाबॉलिक सिंड्रोम (Metabolic Syndrome) भी कहा जाता है।
- शारीरिक व्यायाम की कमी।
- देसी घी और नारियल के तेल का अधिक इस्तेमाल।
- वनस्पति घी (हाइड्रोजिनेटड फ़ैट्स) का अधिक प्रयोग।
- लाइपोप्रोटीन ए: यह एक ख़ास तरह का कोलेस्ट्रॉल है जो सी.ए.डी. का ख़तरा पैदा करता है। यूरोप और चीन के लोगों की तुलना में भारतीयों में इसकी मात्रा तीन से चार गुणा अधिक पाई गई है।
- आनुवंशिक तौर पर (Genetically) ट्राइग्लिसराइड्स का अधिक और एच.डी.एल. का कम होना।
आम तौर पर सुबह 4 से 10 बजे के बीच सबसे ज़्यादा दिल के दौरे पड़ते हैं। ऐसा शायद इसलिए है कि सुबह के समय ब्लड प्रेशर अचानक बढ़ जाता है, ख़ून को जमने से रोकनेवाली प्रक्रिया इस समय नाममात्र होती है। सुबह के वक़्त कॉरोनरी आर्टरीज़ भी संकुचित रहती हैं।
यदि दिल का दौरा पड़ने का शक हो तो क्या करें?- तुरंत किसी पास के अस्पताल में जाएँ।
- यदि चक्कर न आ रहे हों तो अस्पताल जाते समय सीधे बैठें।
- यदि डॉक्टर ने छाती में दर्द के लिए पहले से नाइट्रोग्लिसरीन की गोली का सेवन करने को कहा हो तो एक गोली जीभ के नीचे रखें।
- पानी के साथ ऐस्प्रिन की एक गोली लें, यह दिल के नुकसान को रोक सकती है।
सी.ए.डी. की रोकथाम
सी.ए.डी. की रोकथाम में भोजन की भूमिकाइसकी रोकथाम के लिए संतुलित आहार लेना और ख़ुशनुमा जीवन व्यतीत करना बहुत महत्त्वपूर्ण है। कुछ हालात में दवाइयों की ज़रूरत भी पड़ सकती है।

- विविध प्रकार के भोजन का सेवन करें।
- संतुलित मात्रा में ज़रूरत के मुताबिक़ खाएँ।
- चिकनाई वाले पदार्थ कम खाएँ।
- सैचुरेटिड फ़ैट्स (जैसे मक्खन, क्रीम, चॉकलेट आदि) का सेवन कम करें।
- हाइड्रोजिनेटिड फ़ैट्स (जैसे कि वनस्पति घी) कम खाएँ।
- कोलेस्ट्रॉल बढ़ानेवाली चीज़ें कम मात्रा में खाएँ।
- फ़ाइबर वाले खाद्य पदार्थ सही मात्रा में खाएँ।
- चीनी, मैदा, कैफ़ीन (चाय, कॉफ़ी) और नमक आदि का प्रयोग कम करें।
- अनाज, दाल, फल और सब्ज़ियों का सेवन ख़ूब करें।
- कम चिकनाई वाले दूध से बने पदार्थों का सेवन करें।
- चिकनाई वाली चीज़ों का प्रयोग कम करें, ख़ास तौर पर तले और मीठे पदार्थ कम खाएँ।
- बिना चिकनाई का दूध (toned or double toned) पिएँ और इसी दूध के पदार्थों का सेवन करें।
- ताज़ा फल और सब्ज़ियों का सेवन अधिक करें।
- कम चिकनाई की मिठाइयों और स्नैक्स का सेवन करें।
- खाना बनाने में तेल का प्रयोग कम करें ताकि भोजन में चिकनाई की कुल मात्रा कम रहे।
- खाना बनाने की इन विधियों का प्रयोग करें—भाप में पकाना, ग्रिल पर भूनना, उबालना, सेंकना और माइक्रोवेव में पकाना।
सैचुरेटिड फ़ैटी एसिड्स के बजाय अनसैचुरेटिड फ़ैटी एसिड्स (पूफ़ा/PUFA—Polyunsaturated fatty acids और मूफ़ा/MUFA—Monounsaturated fatty acids) का इस्तेमाल बेहतर माना जाता है। सैचुरेटिड फ़ैटी एसिड्स (ख़राब कोलेस्ट्रॉल) एल.डी.एल. को बढ़ाते हैं, जिनसे सी.ए.डी. होने का ख़तरा बढ़ जाता है, जबकि अनसैचुरेटिड फ़ैटी एसिड्स (पूफ़ा और मूफ़ा) एल.डी.एल. को कम करते हैं।
हालाँकि जिन अनसैचुरेटिड फ़ैटी एसिड्स में पूफ़ा की मात्रा ज़्यादा होती है, वे भी हानिकारक हो सकते हैं, क्योंकि इनसे अच्छे कोलेस्ट्रॉल (एच.डी.एल.) की मात्रा कम हो सकती है। इसलिए उन रिफ़ाइंड तेलों का इस्तेमाल करना चाहिए जिनमें पूफ़ा और मूफ़ा का सही संतुलन हो ताकि सैचुरेटिड फ़ैटी एसिड्स का इस्तेमाल कम हो।
कोई भी एक रिफ़ाइंड तेल ऐसा नहीं है जिसमें पूफ़ा और मूफ़ा का सही संतुलन हो। यदि हम भिन्न‑भिन्न प्रकार के तेलों का इस्तेमाल करें तो उपयुक्त संतुलन प्राप्त किया जा सकता है। जैसे सूर्यमुखी तेल (जिसमें पूफ़ा की मात्रा ज़्यादा होती है) और सरसों के तेल (जिसमें मूफ़ा की मात्रा अधिक होती है) का प्रयोग करें। कुछ तेलों के उदाहरण नीचे दिए गए हैं जिनके मिश्रण से पूफ़ा और मूफ़ा का सही संतुलन प्राप्त हो सकता है:- मूँगफली का तेल + सरसों का तेल
- तिल का तेल+सरसों का तेल
- चावल की भूसी का तेल + सोयाबीन का तेल
सैचुरेटिड फ़ैटी एसिड्स सामान्य तापमान पर जमी हुई या आधी जमी हुई (Solid or semi solid) अवस्था में होते हैं। इनके कुछ उदाहरण हैं: नारियल का तेल, वनस्पति और देसी घी। अनसैचुरेटिड फ़ैटी एसिड्स सामान्य तापमान पर तरल अवस्था में होते हैं। इनके कुछ उदाहरण हैं: कुसुंभ (Safflower), सूर्यमुखी, तिल, चावल की भूसी का तेल, सरसों, मूँगफली और सोयाबीन के तेल।
सी.ए.डी. की रोकथाम में फ़ाइबर (Fibre) का महत्त्वफ़ाइबर या रेशा भोजन का वह भाग है जो हज़म नहीं होता। घुलनेवाले फ़ाइबर कब्ज़ और अँतड़ियों के कैंसर को रोकते हैं।
घुलनेवाले फ़ाइबर या रेशे (soluble Fibre) के स्रोत
जई (Oats), फलियाँ, गुड़, जौ, सेब, गाजर और नीबू, संतरा, मौसम्मी आदि फल।
न घुलनेवाले फ़ाइबर (Insoluble Fibre) के स्रोतगेहूँ का बिना छना आटा, चोकर, हरी सब्ज़ियाँ और फल इत्यादि।
फ़ाइबर के फ़ायदे- इससे वज़न घटता है।
- ख़ून में मौजूद ग्लूकोज़ और सीरम लिपिड (Serum lipids) कम रहते हैं।
- आँतों की कई क़िस्म की छोटी‑मोटी बीमारियों, विकारों (disorders) और मलाशय के कैंसर से बचाव होता है।
- कब्ज़ दूर करता है।
- ऐसे भोजन से संतुष्टि मिलती है और कम खाने से भी पेट भर जाने का एहसास होता है।
- यह विटामिन्स और खनिज पदार्थों का भी अच्छा स्रोत है।
- सेब और नाशपाती जैसे फलों को छिलके समेत खाएँ।
- अंकुरित दालें, राजमा, काले चने, सोयाबीन का सेवन करें और धुली हुई दालों के बजाय छिलके वाली दालें (मूँग, उड़द) खाएँ।
- गेहूँ का आटा न छानें।
- सफ़ेद ब्रैड के बजाय ब्राउन ब्रैड का इस्तेमाल करें।
- हरे पत्ते वाली सब्ज़ियाँ और सलाद नियमित रूप से खाएँ।
- इडली, पोहा, उपमा, चावल, दलिया, नूडल्स, मैकरोनी और पास्ता को बहुत‑सी सब्ज़ियाँ डालकर बनाएँ ताकि आपका भोजन फ़ाइबर से भरपूर हो।
- भोजन में मेथी (बीज/पाउडर) का इस्तेमाल करें।
- नाश्ते में कॉर्न फ़्लेक्स की जगह सफ़ेद जई (White Oats) का इस्तेमाल करें।
- नान, रूमाली रोटी और पराँठे के बजाय बिना छने आटे की रोटी या भरवाँ (पालक, गोभी, मूली) रोटी खाएँ।
ज़्यादा चीनी खाने से वज़न बढ़ता है और ट्राइग्लिसराइड्स की मात्रा भी बढ़ती है।
अधिक कोलेस्ट्रॉल होने पर दवाइयाँ लेने की ज़रूरत कब होती है?संतुलित भोजन के साथ‑साथ दवाइयों की ज़रूरत तब पड़ती है जब:
- शरीर में असामान्य लिपिड प्रोफ़ाइल (lipid profile) होने की आनुवंशिक प्रवृत्ति (Genetic Predisposition) हो। (एच.डी.एल, एल.डी.एल, लाइपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स—इन सब के जोड़ को लिपिड प्रोफ़ाइल कहा जाता है।)
- ख़ून में कोलेस्ट्रॉल या ट्राइग्लिसराइड्स की मात्रा बहुत बढ़ जाए (कोलेस्ट्रॉल 250 मिलिग्राम/डी एल और ट्राइग्लिसराइड्स 200 मिलिग्राम/डी एल से अधिक)।
- भोजन और दिनचर्या में बदलाव लाने से भी इनमें कोई फ़र्क़ न पड़े।
दवाइयों के असर और सुरक्षा पर नज़र रखने के लिए समय‑समय पर लिपिड प्रोफ़ाइल और लिवर की जाँच कराते रहना चाहिए। दवाइयों का इस्तेमाल जीवन भर करते रहने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। देखने में आया है कि जब दवाइयों का सेवन बंद होता है तो कोलेस्ट्रॉल की मात्रा फिर से बढ़ जाती है। नियंत्रित भोजन और दवाइयों के इस्तेमाल से हृदय रोग नियंत्रण में रहता है, आर्टरीज़ में कोलेस्ट्रॉल का जमना बंद हो जाता है, यहाँ तक कि पहले से जमा कोलेस्ट्रॉल भी कम होने लगता है।
स्वस्थ दिल के लिए भोजन तालिका
भोजन | क्या खाएँ | क्या कम करें | इन से बचें |
---|---|---|---|
अनाज | गेहूँ, चावल, रागी, बाजरा, मकई, ज्वार | मैदे से बने पदार्थ जैसे (सफ़ेद ब्रैड और बिस्कुट) | केक, पेस्ट्री, नान, रूमाली रोटी, नूडल्स |
दालें | साबुत और अंकुरित दालें | – | – |
सब्ज़ियाँ | हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ और अन्य सब्ज़ियाँ | सब्ज़ियाँ जो ज़मीन के नीचे पैदा होती हैं जैसे आलू, अरबी, ज़मींकंद | तली सब्ज़ियाँ, केले के चिप्स, डिब्बाबंद सब्ज़ियाँ |
फल | ताज़े फल | – | सूखे मेवे, चाशनी वाले डिब्बाबंद फल |
दूध के पदार्थ | कम वसा वाला दूध, छाछ, बिना मलाई का दूध | मलाई वाला दूध, दूध पाउडर | चीज़, मक्खन, खोया, कंडैंस्ड मिल्क, क्रीम |
वसा | एक से अधिक प्रकार का वनस्पति तेल या उनका मिश्रण | कुल वसा की मात्रा, नारियल का तेल, घी | अधिक तेलवाला भोजन, मक्खन, घी, नारियल तेल, वनस्पति घी, अधिक तेल में तला भोजन |
चीनी और चीनी से बने पदार्थ |
चीनी, गुड़ | घर पर बने किसी पेय में चीनी, सब प्रकार की गिरियाँ | मिठाइयाँ, चॉकलेट, आइसक्रीम, गुलाब जामुन, जलेबी आदि |
गिरियाँ | – | सभी गिरियाँ | – |
पेय | पानी, ताज़े फलों का जूस (बिना चीनी के), हलकी चाय | कॉफ़ी, कोला, सॉफ़्ट ड्रिंक्स | अल्कोहल/शराब |
नमक | प्राकृतिक अवस्था में उपलब्ध भोजन (बिना नमक के) (डिब्बाबंद नहीं) | भोजन में अधिक नमक | अचार, पापड़, चटनियाँ, नमक, बिस्कुट, तेल में तले चिप्स आदि |
भोजन में नमक की मात्रा
सब्ज़ियाँ | मिलिग्राम |
---|---|
करेला | 2.4 |
परवल | 2.6 |
बैंगन | 3.0 |
प्याज़ | 4.0 |
फ़्रेंच बीन | 4.3 |
कद्दू | 5.6 |
भिंडी | 6.9 |
हरे मटर | 7.8 |
अरबी | 9.0 |
शकरकंदी | 9.0 |
खीरा | 10.2 |
आलू | 11.0 |
पका हुआ टमाटर | 12.9 |
सफ़ेद मूली | 33.0 |
टिंडा | 35.0 |
गाजर | 35.6 |
फूल गोभी | 53.0 |
लैट्यूस (सलाद के पत्ते) | 58.0 |
पालक | 58.2 |
धनिये के पत्ते | 58.3 |
चुकंदर | 59.8 |
कटहल | 63.2 |
लाल मूली | 63.5 |
मेथी के पत्ते | 76.1 |
कमल ककड़ी (भिस) | 438.0 |
अन्य | मिलिग्राम |
---|---|
भैंस का दूध | 19.0 |
धनिया (साबुत) | 32.0 |
गाय के दूध से बना दही | 32.0 |
नीम के पत्ते | 72.0 |
गाय का दूध | 73.0 |
जीरा | 126.0 |
फल | मिलिग्राम |
---|---|
आलू बुख़ारा | 0.8 |
अनार | 0.9 |
आड़ू | 2.0 |
फालसा | 4.4 |
संतरा | 4.5 |
अमरूद | 5.5 |
चीकू | 5.9 |
पका हुआ पपीता | 6.0 |
नाशपाती | 6.1 |
हरा पपीता (कच्चा) | 23.0 |
पका हुआ आम | 26.0 |
तरबूज़ | 27.3 |
सेब | 28.0 |
अनानास | 34.7 |
केला | 36.6 |
कच्चा आम | 43.0 |
खरबूज़ा | 104.6 |
लीची | 124.9 |
अनाज | मिलिग्राम |
---|---|
ज्वार | 7.3 |
गेहूँ की सेवइयाँ | 7.9 |
गेहूँ का छाना आटा/मैदा | 9.3 |
मक्की सूखी | 15.9 |
गेहूँ का आटा | 20.0 |
सूजी | 21.0 |
मूँग छिलका | 27.2 |
मसूर दाल | 28.5 |
काला चना | 37.3 |
उरद दाल साबुत | 38.8 |
मूँग साबुत | 41.1 |
चना दाल | 73.2 |
चौलाई | 230.0 |
बीस वर्ष की आयु के सभी लोगों को लिपिड प्रोफ़ाइल करवाना चाहिए। इससे सी.ए.डी. होने के ख़तरे का अनुमान लगाया जा सकता है। इससे यह भी पता लग सकता है कि आनुवंशिक रूप से (genetic) कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर ख़तरनाक तो नहीं! यदि बीस वर्ष की आयु में लिपिड प्रोफ़ाइल सही है तो पाँच साल बाद फिर जाँच करवानी चाहिए।

लिपिड की उचित मात्रा
लिपिड | उचित मात्रा |
---|---|
कोलेस्ट्रॉल | 200 मिलिग्राम% से कम |
एल.डी.एल. कोलेस्ट्रॉल | 100 मिलिग्राम% से कम |
एच.डी.एल. कोलेस्ट्रॉल | पुरुषों के लिए 40 मिलिग्राम/डी एल से ज़्यादा महिलाओं के लिए 60 मिलिग्राम/डी एल से ज़्यादा |
ट्राइग्लिसराइड्स | 150 मिलिग्राम/डी एल से कम |
- परिवार में किसी सदस्य का 55 वर्ष की आयु से पहले, सी.ए.डी. या स्ट्रोक होने का इतिहास।
- परिवार में कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा होने का इतिहास।
- पलकों पर दूधिया चर्बी का धब्बों के रूप में जमना।
- मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, मधुमेह या थायरॉयड की समस्या।
- शराब के अत्यधिक सेवन का इतिहास।
- गर्भनिरोधक गोलियों का कई सालों तक सेवन करना।
स्वस्थ जीवन के लिए व्यायाम सबसे ज़रूरी है। नियमित व्यायाम करने से सी.ए.डी. और अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है। इससे ब्लड प्रेशर और दिल की धड़कन नियंत्रण में रहते हैं, जिससे दिल का दौरा पड़ने के आसार बहुत कम हो जाते हैं। व्यायाम करते रहने से ख़ून में एच.डी.एल. कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है जो ख़ून की नाड़ियों में चर्बी को जमने से रोकता है और दिल के दौरे से बचाता है। हाई ब्लड प्रेशर के मरीज़ नियमित व्यायाम से अपनी दवा कम या पूरी तरह से बंद भी कर सकते हैं। व्यायाम से टाँगों में ख़ून का दौरा बढ़ जाता है और टाँगों में ऐंठन कम होती है।
हफ़्ते में 3‑5 दिन, 30 मिनट के लिए हलकी कसरत करनी चाहिए। धीरे‑धीरे व्यायाम का स्तर बढ़ाया भी जा सकता है। तेज़ चलना, तैरना, साइकिल चलाना या हलके खेल जैसे बैडमिंटन या टेबल टेनिस अच्छे व्यायाम हैं। वज़न उठाने (Weight Lifting) जैसा भारी व्यायाम स्वस्थ रहने में मदद नहीं करता परंतु इससे ताक़त ज़रूर बढ़ती है।
व्यायाम में सुरक्षा के नियम- व्यायाम भोजन से पहले या उसके दो घंटे बाद करें।
- बीमारी की हालत में व्यायाम न करें।
- व्यायाम को दो हफ़्ते से ज़्यादा बंद न करें।
- अगर आपको इसकी आदत नहीं है तो ज़्यादा भारी व्यायाम से परहेज़ करें।
- साँस रोककर न रखें।
- मुश्किल और ऐसे व्यायाम जिन्हें करने में तकलीफ़ हो, न करें।
- मोटे लोगों को हलकी कसरत करनी चाहिए जैसे तेज़ चलना। धीरे‑धीरे उसके स्तर को बढ़ा सकते हैं।
- ज़्यादा गरमी में व्यायाम कुछ कम कर दें।
- बहुत ज़्यादा सर्दी के मौसम में बचाव के लिए गरम कपड़े पहनें।
- पानी ख़ूब पिएँ।
तनाव से हमारा सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय हो जाता है जिससे दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है, ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और कॉरोनरी आर्टरीज़ सिकुड़ जाती हैं, जिसके कारण हृदय की मांसपेशियों में ऑक्सीजन की माँग बढ़ जाती है। तनाव से इन नाड़ियों में ख़ून के जमने (clot) के आसार भी बढ़ जाते हैं।
यह कहना आसान है पर करना मुश्किल है, लेकिन इन उपायों द्वारा तनाव दूर करने का प्रयास करें:- तनाव दूर करनेवाले व्यायाम।
- ध्यान‑मनन।
- शुग़ल और शौक (Hobbies) पूरे करें।
- चुस्त रहें (Physical Activity)।
- सकारात्मक सोच रखें।
- योगाभ्यास।
धूम्रपान सी.ए.डी. का एक ख़तरनाक कारण है। दरअसल 40 वर्ष से कम आयु के लोगों में सी.ए.डी. का मुख्य कारण धूम्रपान है। धूम्रपान न करनेवालों की तुलना में धूम्रपान करनेवाले लोग सी.ए.डी. से तीन से पाँच गुणा ज़्यादा पीड़ित हैं। तंबाकू में मौजूद निकोटीन से दिल की धड़कन और ब्लड प्रेशर बढ़ जाते हैं और ख़ून की नाड़ियाँ सिकुड़ जाती हैं।
क्या धूम्रपान छोड़ने से फ़ायदा होता है?ज़िंदगी भर धूम्रपान करनेवाले लोगों में भी देखा गया है कि धूम्रपान बंद करने के एक साल के अंदर ही सी.ए.डी. का ख़तरा कम होना शुरू हो जाता है। धूम्रपान से परहेज़ करने से सी.ए.डी. का ख़तरा लगातार घटता जाता है। (देखें पृष्ठ 71)
तनाव पर नियंत्रणहम तनाव पर नियंत्रण करना सीख सकते हैं। सबसे पहले, अपने तनाव का कारण पता करें। उसके बाद जब भी संभव हो, उन परिस्थितियों में बदलाव लाने की कोशिश करें। तीसरा, रोज़मर्रा की ज़िंदगी में तनाव दूर करने के तरीक़ों को अपनाएँ।

- छोटी‑छोटी बातों से परेशान होकर अपनी ताक़त व्यर्थ न गँवाएँ। याद रखें कि कोई भी स्थिति अपने आप में तनावपूर्ण नहीं होती, बल्कि उसके प्रति हमारी प्रतिक्रिया तनाव पैदा करती है। खुलकर बात करने से अकसर फ़ायदा होता है। दूसरों के विचार सुनकर अन्य पहलू भी सामने आते हैं और अपना दिल हलका करने का अवसर भी मिलता है।
- कुछ समय के लिए तनाव की स्थिति से दूर चले जाएँ। जैसे तनाव दूर करने में सैर फ़ायदेमंद है। सुबह की परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए दोपहर के भोजन से पहले सैर करना या दफ़्तर के काम के बाद सैर करना।
- बड़े‑बड़े ख़याली पुलाव न बनाएँ। अपनी प्राथमिकताएँ तय करें, अपने सामने व्यावहारिक लक्ष्य रखें और अपने ऊपर बहुत ज़्यादा काम का भार न लें।
- आराम के लिए रोज़ समय निकालें, चाहे तनाव दूर करनेवाले व्यायाम द्वारा या अपने मनपसंद के शौक में समय बिताएँ।
- आलोचना या किसी से हुए वाद‑विवाद को दिल से न लगाएँ। यदि आपको लगता है कि आपकी सोच सही है तो उस पर दृढ़ रहिए, लेकिन दूसरे के नज़रिए को स्वीकार करने की भी कोशिश करें। किसी वाद‑विवाद में या किसी आलोचक में भी अच्छाई ढूँढ़ने का प्रयत्न करें और अपनी सोच भी सकारात्मक रखें।
- अंत में, यदि फिर भी तनाव दूर न हो तो डॉक्टर या स्वास्थ्य परामर्श देनेवालों से इसके बारे में बात करें।
मोटापे से दिल का जानलेवा दौरा पड़ने के आसार बढ़ जाते हैं क्योंकि:
- धूम्रपान के सिवाय मोटापा सी.ए.डी. के सभी कारणों से जुड़ा है।
- वज़न बढ़ने के साथ‑साथ ख़ून में कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स तथा शुगर बढ़ जाते हैं, साथ ही ब्लड प्रेशर भी बढ़ता है।
- ज़रूरत से ज़्यादा मोटापे से अच्छा कोलेस्ट्रॉल (एच.डी.एल.) कम हो जाता है।
बॉडी मास इंडेक्स (बी.एम.आई.) से मोटापे को मापा जा सकता है। बी.एम.आई. इस तरह से आँका जाता है।
भार ऊँचाई2 | |
---|---|
सामान्य बी.एम.आई. | 19 – 24.9 |
ज़्यादा वज़न | 25 – 29.9 |
मोटापा | 30 – 40 |
विकृत मोटापा (Morbid Obesity) | 40 से ज़्यादा |
जी हाँ, वज़न कम करने से हाई ब्लड प्रेशर अकसर सामान्य हो जाता है। इससे शुगर का स्तर ठीक होने लगता है और मधुमेह नियंत्रण में आ जाता है। इससे सीने में दर्द का बार‑बार होना और उसकी तीव्रता भी कम हो जाती है, दिल का दौरा पड़ने का ख़तरा कम हो जाता है और हृदय की ख़ून को पंप करने की क्षमता बढ़ती है।
दिल के दौरे के लक्षणों को नज़रअंदाज़ मत कीजिए
डॉक्टरी सहायता माँगने से न हिचकिचाइए।