सतगुरु की अहमियत
अगर इस बात पर विचार करें कि हम कितना जानते हैं, तो हमें एहसास होगा कि जो कुछ भी जानने के लायक़ है, हम उसका केवल अंश-मात्र ही जानते हैं। हमें केवल इस संसार के बारे में पता है, इसलिए हमारा ज्ञान इसी भौतिक जगत तक सीमित है। अगर ऊँचे रूहानी नज़रिए से देखें तो यह दृश्यमान जगत, संपूर्ण सृष्टि की तुलना में, एक विशाल महासागर में पानी की बूँद-मात्र है। स्थूल, सूक्ष्म, कारण और आध्यात्मिक मण्डलों की विशालता के बारे में सोचें, तो यह संसार बहुत तुच्छ है। हम स्वयं को बहुत ज्ञानी और बुद्धिमान समझते हैं, लेकिन जब हमें पता चलेगा कि हमारा संपूर्ण ज्ञान असीम महासागर के किनारे पर रेत के एक कण से अधिक नहीं है तब हमें अपनी ग़लतफहमी का एहसास होगा?
हमें जीवन के बारे में पता ही क्या है, और हम कैसे तय करते हैं कि हमारे लिए क्या महत्त्वपूर्ण है और हमें किस दिशा में जाना चाहिए? हम इस संसार में स्थूल शरीर में रहते हैं। हमें यह भरोसा है कि समझदारी भरे निर्णय लेने के लिए हमारे पास पर्याप्त ज्ञान है और हम जो भी निर्णय लेंगे उनके परिणाम अच्छे ही होंगे। लेकिन अभी तक हमने हासिल ही क्या किया है? क्या हमें स्थायी ख़ुशी या मुक्ति प्राप्त हो गई है? क्या हम वास्तविकता और भ्रम के बीच के अंतर को जान गए हैं?
हमें जल्द ही यह एहसास हो जाता है कि हम इस संसार में खो गए हैं। हमें नहीं पता कि किसकी शरण में जाना है; हम नहीं जानते कि हमारा मार्गदर्शन कौन कर सकता है। क्या ऐसा कोई है जो वास्तव में ज्ञानी और बुद्धिमान है, जो हमारा मार्गदर्शन करके हमें इस मुश्किल से बाहर निकाल सके? या क्या हम किस्मत में लिखवाकर आए हैं कि उन्हीं गलतियों को बार-बार दोहराते जाएँगे, जो हमारी वर्तमान दुर्दशा का कारण हैं?
पूर्ण संत-महात्मा अपने आध्यात्मिक अनुभव से हमें समझाते हैं कि कारण, सूक्ष्म और स्थूल जगत के सभी प्राणी भ्रम में खोए हुए हैं और इसी वजह से वे जन्म-मरण के कभी न समाप्त होनेवाले चक्र में फँसकर कष्ट भोगते रहते हैं। हमारे कर्म ही हमें एक योनि से दूसरी योनि में ले जाते हैं। कर्म-सिद्धांत का ज्ञान न होने की वजह से हम अलग-अलग योनियों में अपने पिछले कर्मों का फल भोगते हैं। हम बिना सोच-विचार किए, तुच्छ व क्षणिक लाभ प्राप्त करने के लिए अनगिनत कर्मों का बोझ इकट्ठा कर लेते हैं। हमें एहसास ही नहीं कि यह सृष्टि क्रिया और प्रतिक्रिया, जन्म और पुनर्जन्म, सुख और दु:ख का अनंत चक्र है।
संत-महात्मा हमें समझाते हैं कि मनुष्य-जन्म इसलिए अनमोल है क्योंकि इसे प्राप्त करके ही आत्मा सदा के लिए मुक्ति प्राप्त कर सकती है। मगर मन के प्रभाव के कारण जीवात्माएँ इस सुनहरे अवसर को खो देती हैं। यह जन्म क्षणिक सुखों, इंद्रियों की संतुष्टि और धन-संपत्ति के पीछे भागने में व्यर्थ बरबाद हो जाता है। मन यह नहीं जानता कि इसके कर्म ही इसके बँधन का कारण बन जाएँगे, यह कर्म करता जाता है फलस्वरूप आवागमन के चक्र से और अधिक मज़बूती से बँध जाता है और साथ ही आत्मा को भी बाँध लेता है।
केवल समझदार लोग ही संत-महात्माओं के उपदेश पर ध्यान देते हैं और मानव जन्म के अनमोल अवसर का लाभ उठाते हैं। वे जान जाते हैं कि केवल इसी जन्म में हम अपने अंतर में परमात्मा की प्राप्ति कर सकते हैं। मगर जब तक परमात्मा की दया-मेहर से हमारा मिलाप पूर्ण सतगुरु से नहीं हो जाता, हम इस बात से अनजान रहते हैं। सतगुरु ही हमें समझाते हैं कि जीवन के वास्तविक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य-जन्म के अवसर का उपयोग कैसे करना चाहिए। कबीर साहिब का कथन है:
सार आहि संगति निरबाँनाँ, और सबै असार करि जाना॥
अनहित आहि सकल संसारा, हित करि जाँनियै राँम पियारा॥
कबीर ग्रंथावली
आप इस बात पर बल देते हैं कि दुनियादारों की संगति व्यर्थ है। हम जानते हैं कि अधिकतर संबंध लेन-देन पर आधारित होते हैं, क्योंकि उन सभी में स्वार्थ की भावना होती है। हर इनसान अपनी महत्वाकांक्षाओं को प्राथमिकता देता है। हालाँकि, संतजनों के सिवाय दूसरों को शत्रु मानना निर्दयतापूर्ण लग सकता है, लेकिन हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि हमारा सच्चा दोस्त कौन है। यक़ीनन, जो दिल से हमारी आत्मा की सर्वोत्तम भलाई चाहता है, वही हमारा दोस्त हो सकता है और वह दोस्त हमारे सतगुरु हैं।
उन्हें केवल हमारी आत्मा की चिंता है, इसीलिए वह हमारा मार्गदर्शन करते हैं ताकि हम इस स्थूल जगत से बाहर निकल सकें। यदि वे हमारा मार्गदर्शन न करें तो हम अज्ञानतावश अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अनगिनत कर्म करते चले जाएँगे और इस तरह जीवनरूपी दलदल में फँसते चले जाएँगे। यदि अपनी कोशिश से सच्ची मुक्ति प्राप्त करना मुमकिन होता, तो अब तक हम मुक्त हो चुके होते।
सतगुरु जिस तरह से हमारे जीवन में बदलाव लाते हैं, उसका अंदाज़ा ही नहीं लगाया जा सकता। उनके प्यार, मार्गदर्शन, उपदेश और प्रेरणा से हम आध्यात्मिक मार्ग पर दृढ़ रहते हैं। जितनी जल्दी हम उनके हुक्म में रहना शुरू कर देते हैं, हमें उतनी ही जल्दी मुक्ति प्राप्त हो जाती है, साथ ही हमें इस बात का भी एहसास हो जाता है कि सृष्टि में सिवाय उनके कुछ भी हमारे ध्यान के लायक़ नहीं है। आख़िरकार हमें एहसास हो जाता है कि सब कुछ वही हैं।
बहुत-से लोग अपना जीवन परिवार, समुदाय, देश और धर्म के लिए समर्पित कर देते हैं। ऐसे लोगों से प्रभावित होकर हम भी बचपन से ऐसा ही कर रहे हैं। दुर्भाग्यवश, ऐसे सभी सरोकार जीवनरूपी भ्रम का ही हिस्सा हैं, मगर इनमें कुछ ज़िम्मेदारियाँ भी शामिल हैं, जिन्हें पूरा करना ज़रूरी है। जीवन में होनेवाली कुछ घटनाएँ हमें पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को प्राथमिकता देने के लिए विवश कर सकती हैं, मगर इसका अर्थ यह नहीं है कि वे ज़िम्मेदारियाँ हमारे आत्मिक उद्देश्य की प्राप्ति की राह में बाधा बनेंगी।
जीवन में एक चीज़ अटल है, जिसे हम अकसर अनदेखा कर देते हैं, वह है हमारी मृत्यु। इस बात को ध्यान में रखते हुए यह ज़रूरी है कि हम विचार करें कि हम कौन-सा धन इकट्ठा कर रहे हैं। सच तो यह है कि जब हमारी मौत आती है, तो हम इस दुनिया से ख़ाली हाथ जाते हैं। केवल हमारे सतगुरु और हमारी रूहानी दौलत ही मौत के बाद हमारे साथ जाती है। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि जब तक हमें इस मनुष्य जन्म का सौभाग्य प्राप्त है, हम अपना सारा ध्यान अपने आध्यात्मिक अभ्यास में लगाएँ और उस रूहानी दौलत को इकट्ठा करने का प्रयास करें। मृत्यु की उस मुश्किल घड़ी में हमारे लिए और कुछ भी मायने नहीं रखता।
नामदान के समय, सतगुरु द्वारा बतलाई गई भजन-सिमरन की युक्ति वह अनमोल उपहार है जो जीवन के रहस्य को जानने की कुँजी है। अब यह हमारा फ़र्ज़ है कि हम इस कुँजी के साथ आंतरिक द्वार को खोलें और अपने छिपे हुए सामर्थ्य को पहचानें। जब हम दृढ़ लगन और पूरी श्रद्धा से भजन-सिमरन करेंगे तब हमारे सभी संदेह और सवाल समाप्त हो जाएँगे। भजन-सिमरन द्वारा हमारे मन में सतगुरु के लिए प्रेम जाग्रत होगा। जैसे-जैसे यह प्रेम बढ़ेगा, हमारा रवैया अधिक आशावादी होता जाएगा और हम, सतगुरु द्वारा बख़्शी सभी दातों की अधिक क़द्र करने लगेंगे।
धीरे-धीरे हमें यह एहसास होगा कि हम कितने ख़ुशक़िस्मत हैं; हमें कितना अधिक शुक्रगुज़ार होना चाहिए। हमें यह एहसास होगा कि हम कितने भाग्यशाली हैं कि हम एक पूर्ण सतगुरु के शिष्य हैं जो हमें कर्मों के बंधन से मुक्त ही नहीं करवाएँगे, बल्कि जीवन-भर और मौत के बाद भी हमारे मार्गदर्शक और साथी बने रहेंगे। सिर्फ़ वही इस स्थूल जगत से परे भी हमारा साथ निभाएँगे। जब तक वे हमें सुरक्षित रूप से परमात्मा की गोद में नहीं पहुँचा देते, वे सदा हमारे साथ ही रहेंगे। हमारे प्रेम और भक्ति के लायक़ सतगुरु से अधिक क्या कोई और हो सकता है?
प्रकाश की खोज पुस्तक में, हुज़ूर महाराज चरन सिंह जी के ये वचन हमें प्रेरणा देते हैं:
इस मार्ग के प्रत्येक शिष्य का भविष्य आशापूर्ण है। जब प्रभु ने हमारे लिये नामदान की व्यवस्था की है, तो इसका अर्थ है कि वह चाहता है कि एक दिन हम उसके पास पहुँच जाएँ। अगर यह मालिक की इच्छा है तो ऐसी कौन-सी शक्ति है जो हमें ज़्यादा समय तक यहाँ रोक सके? केवल समय की बात है। जब तक हमारे कर्मों के बोझ हलके नहीं होते और हम इतने निर्मल नहीं होते कि प्रभु के सामने खड़े हो सकें, केवल तब तक का ही सवाल है। परमात्मा किसी मनुष्य को जो सबसे बड़ी दात या बख़्शिश दे सकता है, वह यही है और इसके लिये हमें उसके कृतज्ञ और अहसानमंद होना चाहिये। रोज़ भजन-सिमरन करके और परमात्मा की वाणी पूरे ध्यान के साथ सुनकर हम अपना आभार प्रकट कर सकते हैं। इस संसार से छुटकारा पाने का और कोई उपाय नहीं है। बौद्धिक तर्क, बहस और विवाद हमें कहीं नहीं ले जाएँगे। यह मार्ग करनी का है, कथनी का नहीं।