दिव्य संबंध
हम इस रूहानी मार्ग पर खिंचे चले आए और सतगुरु ने हमें नामदान की बख़्शिश कर दी, मगर इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि हमने परमात्मा को पा लिया है। प्रभुप्राप्ति के लिए अभी हमारा मार्गदर्शन किया जाएगा। संत-महात्मा हमें समझाते हैं कि यह एक ऐसा सफ़र है, जो हमारे निज-घर और हमारे परमपिता के पास पहुँचकर ही समाप्त होगा। हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हमें ऐसे पूर्ण सतगुरु की शरण प्राप्त हुई है जो इस मायावी संसार में सभी कठिनाइयों का सामना करने और बाधाओं को पार करने के लिए हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। सतगुरु अपने प्रत्येक शिष्य को निज घर वापस पहुँचाने के लिए वचनबद्ध हैं।
परमात्मा को जानने के लिए हमें उपयुक्त रूहानी अभ्यास करने की आवश्यकता है। हमारी सीमित समझ और सत्य के आधे-अधूरे ज्ञान के बावजूद, परमात्मा को जानने की हमारी इच्छा ही हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। इसी इच्छा के कारण हम अपने इस रूहानी सफ़र को जारी रखने के लिए विवश हो जाते हैं।
ऐडवेंचर ऑफ़ फ़ेथ नामक पुस्तक की लेखिका श्रद्धा लायर्ज़ ने परमात्मा की खोज की अपनी कहानी का वर्णन किया है। इस खोज में उसके जीवन का बहुत ज़्यादा समय लग गया। जब उसकी मुलाक़ात महाराज चरन सिंह जी से हुई और उनसे नामदान की बख़्शिश हुई, तब उसकी यह खोज पूरी हुई।
लेखिका की कहानी उस समय शुरू होती है जब तेरह साल की उम्र में उसे पहली बार गूढ़ आध्यात्मिक अनुभव हुआ। रेलगाड़ी द्वारा स्कूल से घर लौटते समय, वह ऊपर से आनेवाली एक अदृश्य रोशनी की अनुभूति से मोहित हो गई। इस रोशनी में से, उसने अपने अंतर में एक स्पष्ट और अलग प्रकार की आवाज़ सुनी, जो कह रही थी: “अपने हृदय में प्रेम की भावना को बनाए रखो, क्योंकि पता नहीं कब परमात्मा तुम से तुम्हारा संपूर्ण प्रेम-भरा हृदय माँग ले।” यह अनुभव इतना गहरा था कि इसने लेखिका के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। वह लिखती है: “यह मेरे विश्वास के रोमांच का प्रारम्भ था।”
लेखिका को इस बात में कोई संदेह नहीं था कि परमात्मा ने ही उससे बात की थी। उसने इस आवाज़ को “आग्रहपूर्ण और साथ ही अत्यंत कोमल और प्रेम से परिपूर्ण” बताया। जिस दिशा में जाने के लिए उसका मार्गदर्शन किया गया था वह स्पष्ट रूप से आध्यात्मिक खोज की यात्रा थी। उसके प्रभाव का वर्णन लेखिका ने इस प्रकार किया:
उन्होंने अपना हाथ मेरे सिर पर रख दिया था और इस प्रकार वे मेरे निजी परमात्मा बन गए थे, बिना कोई प्रश्न किये और बिना किसी शर्त के मैंने अपना जीवन उन्हें समर्पित कर दिया था, यह जाने बिना कि इसके परिणाम क्या होंगे।
ऐडवेंचर ऑफ़ फ़ेथ
संत-सतगुरु इस बात की पुष्टि करते हैं कि हम सभी रूहानी जीव हैं और वास्तव में, परमात्मा का ही रूप हैं। सच्चे दिल से किए गए रूहानी अभ्यास द्वारा जैसे-जैसे हम इस मायामय जगत से बेलाग होंगे, हम इस दिव्य संबंध का अनुभव करना शुरू कर देंगे। इस बात की पुष्टि फ़्रॉम सेल्फ़ टू शब्द पुस्तक में की गई है:
आध्यात्मिक अभ्यास द्वारा, धीरे-धीरे, हम उन सभी चीज़ों से बेलाग होना शुरू हो जाएँगे, जो पहले हमें मज़बूती से जकड़े हुए थीं। इससे हमें यह यक़ीन हो जाएगा कि हम सही रास्ते पर हैं और शब्द के साथ जुड़ने के सच्चे मार्ग पर हैं। जैसे-जैसे हमें अपने वास्तविक स्वरूप—शब्द के साथ अपनी एकता का एहसास होगा, हम इस संसार से प्राप्त होनेवाली शांति और ख़ुशी से कहीं अधिक शांति और सुख का अनुभव करेंगे।
संत-महात्मा हमें समझाते हैं कि भजन-सिमरन, विशेष तौर पर नामदान के दौरान मिलनेवाले पाँच पवित्र शब्दों के सिमरन द्वारा हम संसार से विरक्त हो जाते हैं। जब हम संसार के बारे में सोचने के बजाय सिमरन करते रहने की आदत डाल लेते हैं, तब हम अधिक शांति महसूस करते हैं। सिमरन हमारे ख़याल को दुनिया की ओर से मोड़ता है। संसार के इस रंगमंच पर हम जिस किरदार को निभा रहे हैं, सिमरन उस किरदार और हमारे आस-पास होनेवाली घटनाओं से विरक्त होने में हमारी मदद करता है।
अगर हम सिमरन करने की आदत डाल लेते हैं तो धीरे-धीरे हमारा मन अधिक शांत और निर्मल होता जाएगा और ऐसी अवस्था को प्राप्त कर लेगा जिसमें संसार का आकर्षण कम होने लगता है। सतगुरु यही चाहते हैं कि अगर हम परमात्मा से मिलाप करना चाहते हैं और मन को वश में करना चाहते हैं तो सुरत को जाग्रत करके ऐसी अवस्था प्राप्त कर लें।
हमारे लिए अपने आप को यह याद दिलाते रहना आवश्यक है कि एकाग्रता से किए सिमरन द्वारा एवं वर्तमान पल में मौजूद रहने से, हम अपने अनियंत्रित मन को वश में कर सकते हैं। मन को स्थिर करना संभवतः हमारा सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है और हम जब भी भजन-सिमरन के लिए बैठें, मन को स्थिर करना ज़रूरी है। मन स्वभाव से बहुत चंचल है; इसे लगातार व्यस्त रखना ज़रूरी है। मन को स्थिर करने का, सिमरन से बढ़कर दूसरा कोई कारगर तरीक़ा नहीं है।
हो सकता है कि संत मत के मारग पर हम अध्यात्म के जिज्ञासु हों, लेकिन फिर भी हमें इस मायामय मंच पर अपनी भूमिकाएँ निभानी होंगी। हमारा भाग्य तय हो चुका है। हमें अपनी तरफ़ से अपनी ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। साथ ही, हमें संसाररूपी भ्रमजाल में फँसने से बचना चाहिए। इस सृष्टि में कुछ भी स्थायी नहीं है—सुख सदा नहीं रहता, संतुष्टि थोड़े समय की है, सुरक्षा स्थायी नहीं है और रिश्ते भी सदा साथ नहीं निभाते।
यह सृष्टि हमें बंदी बनाने के लिए रची गई है। इस सृष्टि में हमें अपने आध्यात्मिक लक्ष्य से भटकाने की हर तरह से कोशिश की जाती है। हमारा सच्चा निज-घर सचखंड है, जहाँ परमात्मा रहता है। इसलिए हमें अपने घर वापस लौटने की कोशिश करनी चाहिए। हमारी यह कोशिश पूरी तरह से हमारे भजन-सिमरन और हमारे सतगुरु की दया-मेहर पर निर्भर करती है।
इस संसार में हमें जितना भी समय ज़िंदगी जीने के लिए मिला है, उस समय का उपयोग अपने सांसारिक कर्तव्यों को सच्चे दिल से पूरा करने के लिए करना चाहिए। लेकिन ऐसा करते हुए हमें अपना ध्यान प्रभु की ओर लगाए रखना चाहिए। दूसरे शब्दों में, इस संसार में अपनी प्रारब्ध को भोगते हुए हमें अपने आध्यात्मिक उद्देश्य को नहीं भूलना चाहिए।
निरंतर सिमरन हमारे मन को दुनिया में उलझने से बचाने का अचूक उपाय है। सचेत होकर, पूर्ण एकाग्रता के साथ किए सिमरन द्वारा हमारा मन इतना शांत हो जाएगा कि हम सतगुरु द्वारा बताई ‘जीते-जी मरने’ की अवस्था को प्राप्त करने के लायक़ बन जाएँगे।
अपनी पुस्तक जीवत मरिए भवजल तरिए में महाराज चरन सिंह जी फ़रमाते हैं:
सतगुरु की दया-मेहर से हम अपने सांसारिक बंधनों को काट देते हैं और संसार की मुसीबतों और दुःखों को भूल जाते हैं। इस रूहानी अभ्यास के द्वारा हम रोज़ मरते हैं। हम ज़िंदा रहने के लिए रोज़ मरते हैं, ताकि हम अपने सच्चे घर के स्थायी आनंद को प्राप्त करके सदा के लिए जीवित हो जायें, अमर हो जायें।
संत-महात्मा हमें समझाते हैं कि रूहानी यात्रा के दौरान अपने उद्देश्य को ध्यान में रखना कितना महत्त्वपूर्ण है। दुनियारूपी मेला रंग-तमाशों और प्रलोभनों से भरपूर है। हम इस मेले में भटक जाने का ख़तरा मोल नहीं ले सकते। हमें पता होना चाहिए कि हमें अपना ध्यान किस तरफ़ लगाना है क्योंकि सच्चे दिल से, एकाग्रचित्त होकर किए गए भजन-सिमरन द्वारा ही परमात्मा का अनुभव हो सकता है।
सन्त संदेश पुस्तक में गुरु नानक देव जी के वचनों का हवाला दिया गया है, आप फ़रमाते हैं: “निरन्तर सिमरन मालिक के महल पर चढ़ने की सीढ़ी है। यह सिमरन एक अनमोल साधन है और परमात्मा की दया से किसी श्रेष्ठ भाग्य वाले बिरले मनुष्य को सतगुरु से प्राप्त होता है।”
हम सब के मन में किसी न किसी रूप में दिव्य संबंध जोड़ने की चाहत होती है, जिससे हम अधिक से अधिक समय परमात्मा की हुज़ूरी में बिता सकें। अवेयरनेस ऑफ़ द डिवाइन पुस्तक में से लिया गया निम्नलिखित उद्धरण हमारे समक्ष इसका प्रभावपूर्ण सार प्रस्तुत करता है:
अंतत:, यह सब बहुत सरल है, और यह सब पहले भी कहा जा चुका है। हम रूहानी जीव हैं जो परमात्मारूपी दिव्य-सत्ता के समुद्र में रहते हैं। दुनिया की सभी समस्याओं, चाहे वे व्यक्तिगत हों या अन्य, का एक ही कारण है—हमारा भूलना या हमें इस वास्तविकता का ज्ञान न होना कि वह परमात्मा सृष्टि के कण-कण में मौजूद है। जीवन का अर्थ और उद्देश्य इसी रहस्य में समाया हुआ है और आत्मबोध का अर्थ है इस बात को जानना कि हम वास्तव में कौन और क्या हैं।