ख़ामोशी से मुस्कुरानेवाला
इतनी सारी बातचीत।
संसार में हर किसी का हर विषय पर पंडित बन जाना।
जानते हैं हम जो, क्यों ज़रूरी है वह सब दूसरों को बताना?
हमारे मन की पुरानी लाइब्रेरी में जमा
संसार के बारे में जो थोड़ा-बहुत ज्ञान है हमारा,
उस ज्ञान से भरे शब्द ऐसे फिसलते हैं हमारी ज़ुबान से
कालीनों के उस व्यापारी की तरह जो इतराता हुआ
एक-एक करके खोलता है कालीन अपने,
बाज़ार में भावी ख़रीदारों को दिखाने के लिए।
और वहीं, एक कोने में,
बैठा हुआ ख़ामोशी से मुस्कुरा रहा कोई,
उस प्रकाश और संगीत के सागर में डूबा हुआ
जिसे कोई और नहीं देख पाता।
बच्चे की-सी मासूम हैरानी से,
देखता है वह अपने इर्द-गिर्द इस क़ायनात को,
जानता है कि वह इसे पूरी तरह से समझ नहीं सकता।
उसकी अर्थपूर्ण ख़ामोशी कहती है –
वह केवल इतना ही जानता है…कि
वह कुछ नहीं जानता।
उसके वुजूद से निकलती आनंद की अनगिनत तरंगें,
जिन्हें भी छूती हैं उन सभी को आनंदित करती हुईं,
अनंत तक फैल जाती हैं।