जैसा कि परमात्मा चाहता है
आप अपने देश की राजनैतिक हलचलों के कारण बहुत परेशान नज़र आते हैं। मैं आपसे कहना चाहूँगा कि संसार कभी भी स्वर्ग नहीं बना है और न कभी बनेगा। इस संसार की घटनाओं को हम अपनी सीमित दृष्टि से देखते हैं, इसलिये हमें लगता है कि संसार में बहुत अन्याय हो रहा है। लेकिन सच तो यह है कि हर जीव अपने पिछले जन्मों के या इसी जन्म के अपने ख़ुद के कर्मों का पुरस्कार या दंड प्राप्त करते हुए सुख-दु:ख भोग रहा है। सृष्टा बिना कारण के किसी को न तो पुरस्कार देता है और न दंड। “जैसा बोओगे, वैसा काटोगे” – यह इस संसार का एक ऐसा नियम है जिसमें कोई फेरबदल नहीं हो सकता। इसलिए इसे कोई नहीं बदल सकता। इस विधान को देखते हुए किसको दोषी ठहराया जाए?
इसके अलावा यह संसार रहने लायक़ सुख का स्थान कब रहा है? संसार का पिछला इतिहास पढ़ें तो आप पाएँगे कि यहाँ मारकाट और ख़ून-ख़राबा सदा से चला आ रहा है, यहाँ तक कि जिसे हम शांति काल कहते हैं उसमें भी हमें मानसिक तथा शारीरिक बीमारियों, निर्दयता, हत्या तथा अन्य अपराधों के रूप में कितने दु:ख दिखाई देते हैं। केवल इसी लिए संत हमें इस ‘भय के समुद्र’ को हमेशा के लिए त्यागने और जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने की सलाह देते हैं। अनंत आनंद के अपने धाम में वापस जाने के लिए वे हमें केवल चाबी ही नहीं देते, बल्कि वे उस सुख के धाम तक पहुँचने में हमारी सहायता और मार्गदर्शन भी करते हैं, जहाँ से इस दुनिया में हमें वापस आने की ज़रूरत नहीं।
हर बात उसी तरह हो रही है जिस तरह परमात्मा चाहता है। उसकी आज्ञा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। क़ुदरत की धारा को कोई नहीं रोक सकता। फिर, कुछ थोड़े-से लोग, चाहे उनके उद्देश्य कितने ही भले क्यों न हों, पूरे वेग से बहनेवाली इस धारा को कैसे पलट सकते हैं? बेहतर तो यह होगा कि इन बातों को इसी तरह छोड़ दें और इन्हें अपने क़ुदरती ढंग से चलने दें। संत सांसारिक मामलों में कभी दख़ल नहीं देते। ये सब बातें प्रभु की योजना के अनुसार होती रहती हैं। संत तो हमें यही समझाते हैं कि हम सामान्य जीवन बिताते हुए और अपने सारे सांसारिक कर्त्तव्यों को निभाते हुए, इन सबसे ऊपर उठें और भजन-सिमरन के द्वारा सांसारिक परेशानियों से छुटकारा पा लें।
प्रेम और भक्ति के साथ अपना भजन-सिमरन करते रहें और इस संसार की घटनाओं के बारे में सोच-सोचकर अपने मन को उनमें न उलझने दें। इससे कोई लाभ नहीं होगा। चाहे आपके उद्देश्य कितने ही भले क्यों न हों, यदि आप इनमें उलझेंगे तो इससे और तो कुछ न होगा, केवल आपकी आध्यात्मिक प्रगति में बाधा पड़ेगी।
महाराज चरन सिंह जी, प्रकाश की खोज