हमारे जीवन के दिन
कई साल पहले, जब मैं मुश्किल दौर से गुज़र रही थी, मेरे बचपन की एक दोस्त, जिसे नामदान नहीं मिला था, मुझसे बोली: “तुम शाकाहारी हो, तुम शराब नहीं पीती, नशीले पदार्थ नहीं लेती, ध्यान-साधना भी करती हो – और फिर भी तुम्हारे हालात कितने मुश्किल हैं! तुम्हारी समस्या क्या है?” मैं बहुत लज्जित महसूस करती अगर मैं इतनी ज़ोर से हँस नहीं रही होती। मैंने जवाब दिया, “सोचो अगर मैं भजन-सिमरन न करती और मांस, शराब, नशे से दूर न रहती तो मेरे हालात और कितने मुश्किल होते?” इस पर वह आगे से कोई तर्क न दे सकी।
सच कहूँ तो, मैं संतमत की शिक्षाओं का पालन करके एक अच्छी मिसाल क़ायम नहीं कर सकी – हालाँकि मेरी पुरानी दोस्त मानती है कि मैं पचास साल से भी ज़्यादा समय से इस मार्ग पर चल रही हूँ और जैसे-जैसे साल गुज़रते गए, मैं अधिक प्रसन्नचित्त और संतुलित होती गई हूँ।
जब हमें नामदान मिला, तो हममें से कई पुराने लोगों ने यह सोचा था कि हम जल्द ही “अंदर जाएँगे”, सतगुरु के नूरी स्वरूप के दर्शन करेंगे और कुछ ही वर्षों में शब्द-धुन को सुनने लग जाएँगे। हम बहुत मेहनत करेंगे, अपनी कमज़ोरियों पर क़ाबू पा लेंगे, जितना संभव हो सका, सतगुरु से व्यक्तिगत तौर पर मिलेंगे और हमें रूहानी आनंद प्राप्त हो जाएगा – साथ ही हमें अपने पेशे में बहुत सफलता मिलेगी और हमें प्यार करनेवाला एक परिवार भी होगा।
लेकिन फिर हमें समझ आया कि जिस तरह कॉलेज के दिनों में हम अपनी गाड़ी में थोड़ी-सी नींद और थोड़ी-सी भौतिक सुख-सुविधाओं के साथ गुज़ारा करते हुए तीन दिन का सफ़र तय करके न्यूयॉर्क से लॉस एंजिल्स (या बेंगलुरु से अमृतसर) पहुँच जाते थे, शायद हमारा रूहानी सफ़र वैसा नहीं था। उम्र के साथ हमने जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना किया, हमें एहसास हुआ कि यह मार्ग लंबा और कठिन है और उस प्रकाशमय रूहानी लोक में झट से छलाँग लगाकर नहीं बल्कि धीरे-धीरे क़दम बढ़ाते हुए पहुँचा जा सकता है।
यह अच्छी बात है। संत-सतगुरु अपने अनुभवों और ग़लतियों से सीखने के महत्त्व पर बार-बार बल देते हैं। हममें से जो लोग कम उम्र में नामदान प्राप्त करके बुढ़ापे तक पहुँच गए हैं, वे अपने जीवन के लंबे सफ़र को देख सकते हैं और जान सकते हैं कि हमारी क़िस्मत में कितने उतार-चढ़ाव थे जिनमें से हमें गुज़रना पड़ा, जिन्हें स्वीकार करना पड़ा व जिनसे हमने बहुत कुछ सीखा। बीमारियाँ, असफलताएँ, नुक़सान, मुश्किल दौर – साथ ही ख़ुशियाँ और सफलताएँ – इन सब के ज़रिए जीवन के रहस्यों को समझने और शब्द-धुन के इस मार्ग की दीक्षा पाने के सौभाग्य के लिए हम तहे-दिल से आभारी हैं। हाँ, हमसे गलतियाँ हुईं हैं, हमने कुछ ग़लत फैसले भी किए हैं… लेकिन हम आज भी यहाँ हैं, संघर्ष करते हुए, कोशिश करते हुए, सीखते और बढ़ते हुए। हम आज भी नामदान मिल जाने, सतगुरु के साथ मिलाप हो जाने, हर दिन अपने सतगुरु के साथ अपने रिश्ते को और ज़्यादा गहरा और बेहतर बनाने का अवसर पाने के लिए शुक्रगुज़ार हैं।
हमने बहुत कुछ सीखा: जिसके बारे में हम सचमुच कुछ भी नहीं जानते थे, ख़ासकर रूहानियत के बारे में; कि हमें अपने कर्मों की ज़िम्मेदारी लेनी पड़ती है; इस दुनिया की कोई भी चीज़ हमें सच्चा सुख नहीं दे सकती; यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है – न ख़ुशी और न ग़म, न सुख और न दु:ख; सतगुरु सचमुच हमारा सहारा बनकर हमारे साथ खड़े हैं। तब भी जब हमें उनकी मौजूदगी का एहसास न हो पाए, हमें लगता है कि जो कुछ भी हो रहा है हमारी भलाई के लिए हो रहा है, ख़ासकर जब हमें वह नहीं मिलता जो हम सोचते थे कि हमें मिलना चाहिए था। हमने यह भी सीखा कि यह बिलकुल सच है कि सतगुरु हमारी परख नहीं करते; वह हमसे भी अधिक हमें सफल होते देखना चाहते हैं; अगर हम पीछे देखने के बजाय आगे देखते हैं, संसार की ओर देखने के बजाय अंतर में देखते हैं, तो वे हमारी रहनुमाई और मदद ज़रूर करेंगे।
सतगुरु अक़सर समझाते हैं कि शब्द और आंतरिक अनुभव वैसे नहीं है, जैसा हम सोचते हैं। असल में, इस मार्ग पर चलना वैसा नहीं है, जैसा हमने सोचा था। हमारे सतगुरु ने जो कुछ हमें दिया है और जो सब हमारे लिए किया है, उसके लिए हमें उनके आभारी होना चाहिए और उस सब की क़द्र करनी चाहिए। लेकिन जैसा कि हमें बताया गया है, हर किसी को आगे बढ़ने के लिए कोई प्रेरणा चाहिए। एक बात हम यक़ीनन मान सकते हैं: सर्वोत्तम अभी आने वाला है।