चढ़ चंना ते कर रुशनाई
चढ़ चंना ते कर रुशनाई, ज़िकर करेंदे तारे हू।
गलियां दे विच फिरन निमाणे, लालां दे वणजारे हू।
शाला कोई न थिवे मुसाफ़र, कक्ख जिन्हां तों भारे हू।
ताड़ी मार उडा न सानूं, आपे उड्डणहारे हू।
हज़रत सुलतान बाहू
चढ़ चंना ते कर रुशनाई, ज़िकर करेंदे तारे हू।
गलियां दे विच फिरन निमाणे, लालां दे वणजारे हू।
शाला कोई न थिवे मुसाफ़र, कक्ख जिन्हां तों भारे हू।
ताड़ी मार उडा न सानूं, आपे उड्डणहारे हू।
हज़रत सुलतान बाहू
भाग 21 • अंक 6
चढ़ चंना ते कर रुशनाई, ज़िकर करेंदे तारे हू। …
कल्पना कीजिए कि अगर हम अपने सतगुरु को कोई ऐसा उपहार दे सकें जो उन्हें सचमुच पसंद आए …
हम में से बहुत-से सत्संगी कई वर्षों से इस मार्ग पर चल रहे हैं। समय के साथ हम सभी ने यह महसूस …
इनसान स्पष्ट रूप से समझ नहीं पाता और इसकी सोच बहुत सीमित है। जब हमें लगता है कि हम …
हम शरीर नहीं हैं। न ही हम विचार, कर्म और भावनाएँ हैं। हमारी असली पहचान हमारी आत्मा है …
स्वामी जी महाराज हमें समझाते हैं कि हम वास्तव में इस दुनिया के नहीं हैं। आप इसे पराया देश …