जज़्बात के बारे में एक नज़रिया
ज़रा सोचिए, ज़्यादा जज़्बाती हुए बिना जीने में कितना मज़ा है। यह सुनने में इतना अच्छा लगता है कि सच नहीं लगता? हम जज़्बातों के ज़रिए संसार में अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। इन जज़्बातों के बिना हम रोबॉट के समान होंगे। संगीत से हमें आनंद नहीं मिलेगा। किसी भी तरह के घाटे का हम पर कोई असर नहीं होगा। किसी भी बात पर हमारी आँखों में आँसू नहीं आएँगे या हम किसी भी बात पर हँस-हँसकर लोटपोट नहीं होंगे।
हमारा मक़सद जज़्बातों के बिना जीना नहीं है बल्कि इन जज़्बातों के ख़ुद पर पड़ने वाले प्रभावों को क़ाबू में करना है। हमें अपने ज़ज़्बातों पर क़ाबू पाने या इससे भी बढ़कर इनसे बेलाग होने की कोशिश करनी चाहिए। हम अकसर इन्हें इनके वास्तविक रूप में नहीं देख पाते—ये सिर्फ़ विचार हैं। इन्हें पहचान लेने और इनसे बेलाग हो जाने पर हमारे जज़्बात हम पर हावी नहीं हो पाते।
सच्चा बैराग भजन-सिमरन द्वारा ही आता है। जज़्बातों के कारण हमारे अंदर जो प्रतिक्रियाएँ पैदा होती हैं भजन-सिमरन उन पर क़ाबू पाने में हमारी मदद कर सकता है। यह संतुलन बनाए रखने में भी हमारी मदद करता है।
हमारे जज़्बात अनिश्चित और गतिशील होते हैं क्योंकि इनका संबंध हमारे मन द्वारा पैदा किए गए विचारों से होता है। यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है, ये जज़्बात पल-पल बदलते रहते हैं, हमें अकसर इनके बारे में एहसास तक नहीं होता। अगर ये जज़्बात बेक़ाबू हो जाएँ तो ये हमारे जीवन में तबाही मचा सकते हैं और जीवन-भर हमें दु:ख दे सकते हैं।
यहाँ पर भजन-सिमरन काम आता है। यह हमें जज़्बात रहित नहीं बनाता। भजन-सिमरन से हम इन जज़्बातों के कारण होनेवाली प्रतिक्रियाओं के प्रति सचेत हो जाते हैं और इन पर क़ाबू पाने के लायक़ बन जाते हैं ताकि इनका हम पर बहुत ज़्यादा असर न हो। अवेयरनैस ऑफ़ द डिवाइन के लेखक लिखते हैं:
जब मन स्थूल जगत से जुड़े विचारों और जज़्बातों के बोझ तले दब जाता है तो अंतरात्मा की तरफ़ ध्यान ही नहीं जाता। हालाँकि यह आत्मा जीवन का आधार है लेकिन रोज़मर्रा के जीवन की ज़िम्मेदारियों को पूरा करते हुए हमें इसके होने का आभास ही नहीं रहता।
मन का सामना करना जीवन का सबसे मुश्किल काम है और इसे चुनौती देते समय हमें इसकी ताक़त का एहसास होना चाहिए। सतगुरु की दया-मेहर और अपनी तरफ़ से किए गए अथक प्रयास के बिना हम अपने मन तथा इसके द्वारा पैदा किए जज़्बातों पर कभी जीत हासिल नहीं कर सकते।
हम अनेक जज़्बातों से घिरे रहते हैं, कुछ इतने सूक्ष्म होते हैं कि हम उन्हें पहचान भी नहीं पाते। हम चाहे किसी भी परिस्थिति का सामना कर रहे हों, हमारे तेज़ी से बदलते जज़्बात हमारे महसूस करने और सोचने के तरीक़े को ही बदल देते हैं जिससे हमारा ध्यान और एकाग्रता भंग हो जाती है। इन जज़्बातों से ऊपर उठने या इन पर जीत हासिल करने का सिर्फ़ एक ही तरीक़ा है—अपने ख़याल को ऊँचा उठाकर तीसरे तिल पर एकाग्र करना।
रूहानी सफ़र की विशेषता है बदलाव; वह बदलाव जिससे हमारा रूहानी विकास होता है, जिससे अंत में आत्मज्ञान प्राप्त होता है। इसके लिए ज़रूरी है कि हम अपनी रहनी, सोच, कर्मों और मान्यताओं में बदलाव लाएँ। जैसे-जैसे हम ये बदलाव लाते हैं, हमारा भजन-सिमरन अधिक फलदायक होने लगता है। यह मार्ग हमें अधिक सच्चा लगने लगता है और हम अपने जज़्बातों और उनके हम पर पड़ने वाले प्रभाव के प्रति अधिक सचेत होते जाते हैं।
फिर हम सचेत रूप से डर, चिड़चिड़ेपन या क्रोध जैसे जज़्बातों को नियंत्रण में रखने की कोशिश करते हैं, क्योंकि हम अच्छी तरह जान जाते हैं कि इनका हम पर और दूसरों पर कितना बुरा प्रभाव पड़ता है। क्रोध और डर जैसे प्रबल जज़्बात अचानक और अनायास ही उभर आते हैं तथा कभी-कभी तो ये प्रचंड रूप धारण कर लेते हैं।
रूहानी मार्ग पर हम अपनी सीमाओं और कमज़ोरियों को भली-भाँति जान जाते हैं। महाराज जी से जब इस बारे में पूछा गया तब उन्होंने समझाया:
जब आप संतमार्ग पर चलते हैं और भजन-सुमिरन करते हैं तो आप पहले से अधिक बुरे नहीं हो जाते। आपको अपनी कमज़ोरियों का पहले से अधिक बोध होने लगता है।… और जब हम अपने दोष जान लेते हैं, तब क़ुदरती तौर पर हमें शर्मिंदगी महसूस होती है और हम उनसे छुटकारा पाने की कोशिश करते हैं।
जीवत मरिए भवजल तरिए
अलग-अलग घटनाओं, हालात और सोच की वजह से हमारे अंदर अलग-अलग जज़्बात पैदा होते हैं। जब हमें कोई ख़ुशख़बरी मिलती है तब हम ख़ुश हो जाते हैं, शायद बहुत आनंदित भी और जब हमारी ज़िंदगी में कोई अप्रिय घटना घटती है तब हम व्यथित और दु:खी हो जाते हैं; जब हमें डराया-धमकाया जाता है तब हम डरने लगते हैं। हम अकसर अपने जज़्बातों के आधार पर तय करते हैं कि हम ख़ुश हैं, क्रोधित हैं, उदास हैं, ऊब गए हैं या निराश हैं, लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि हमारी सोच सही हो।
जब एक ही तरह के विचार लगातार हमारे मन में उठते रहते हैं तब उन्हीं विचारों के अनुरूप हम अपने जज़्बातों को उनसे जोड़ लेते हैं, इससे हमारे अंदर एक ज़बरदस्त अस्वाभाविक प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है, जिसके कारण हम विचलित हो जाते हैं तब हम अपने विचारों को तथ्य मानकर स्वीकार कर लेते हैं। जब हम अपनी आंतरिक मनोदशा को सँवारने या बिगाड़ने वाले कारणों के बारे में जागरूक हो जाते हैं तब अपनी मानसिक स्थिति पर नियंत्रण पाना आसान हो जाता है, जिससे आख़िरकार हमें तनावपूर्ण हालात से बेहतर ढंग से निपटने में मदद मिलती है।
इस बात को समझकर कि हमारे जज़्बातों का हम पर क्या प्रभाव पड़ता है, हम अपना जीवन अधिक सहजता और संतुलन के साथ गुज़ार सकते हैं। अपने जज़्बातों को समझ लेने से हमारा ख़ुद पर पहले से ज़्यादा नियंत्रण हो जाता है जिससे हम अपने बेक़ाबू जज़्बातों का शिकार होने से बच जाते हैं।
रूहानी मार्ग पर हमारा एक ही मक़सद होता है: शांति प्राप्त करना और रूहानी तरक़्क़ी करना। क्रोध की वजह से हम अशांत और विचलित हो जाते हैं—ख़ासकर जब हम संतुलन, धैर्य और आत्म-नियंत्रण का माहौल बनाने की आशा से भजन-सिमरन करते हैं। आपे से बाहर होकर रूहानी तरक़्क़ी कर पाना मुमकिन नहीं है।
चाहे हम अपनी समझ के अनुसार रूहानी मार्ग पर चलने की पूरी कोशिश करते हैं फिर भी हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि जब तक हम तीसरे तिल पर नहीं पहुँच जाते तब तक अलग-अलग तरह के जज़्बातों के कारण अलग-अलग हालात पैदा हो सकते हैं जो मार्ग में रुकावट बन सकते हैं, हमें दु:ख दे सकते हैं और विचलित कर सकते हैं। हम नहीं जानते कि कर्मों के कारण हमें किन हालात में से गुज़रना पड़ेगा, लेकिन अगर हम अपना संतुलन बनाए रखें और अपने जज़्बातों और विचारों पर नज़र रखें तो फिर हमारे लिए हर तरह के कर्मों और हालात का सामना करना आसान हो जाएगा।
इस बात को याद रखने से भी मदद मिलती है कि हमारा प्रारब्ध हमारे जन्म से पहले ही तय हो चुका है। प्रारब्ध की वजह से बने हालात को बदला नहीं जा सकता और सतगुरु इन हालात में से गुज़रने के लिए हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। लेकिन अभ्यास और सिमरन से हम जज़्बातों के कारण होनेवाली प्रतिक्रियाओं पर क़ाबू पा सकते हैं। आत्म-संयम को बढ़ाने के लिए हमएसेंशियल संतमत पुस्तक में दिए गए सुझाव पर अमल कर सकते हैं:
सतगुरु समझाते हैं कि हम अपने ध्यान को उन विचारों और भावनाओं की तरफ़ से हटा सकते हैं जो हमारे ख़याल को ज़बरदस्त तरीक़े से भटकाते हैं। इन विचारों और भावनाओं के बारे में बार-बार सोचते रहने के बजाय हम अपने ध्यान को इनसे अधिक शक्तिशाली, अंतर्मुख लफ़्ज़ों को दोहराने में लगा सकते हैं। इसे सिमरन कहा जाता है।
यह हमारा दुर्भाग्य है कि जब हम बदलते जज़्बातों के आवेग में बह रहे होते हैं तब हम यह भूल जाते हैं कि सिमरन और सतगुरु की याद संतुलन बनाए रखने में हमारी मदद कर सकते हैं।
जिस तरह बाइबल में दाऊद को गोलियत का सामना करना पड़ा था उसी तरह हमें भी अत्यंत शक्तिशाली मन का सामना करना है। शायद हमने यह सोच लिया है कि जैसे दाऊद ने अपनी गुलेल से गोलियत को मार गिराया था, वैसे ही हम भी बड़ी आसानी से मन पर क़ाबू पा लेंगे। लेकिन जल्द ही हमें यह एहसास हो जाता है कि चाहे भजन-सिमरन का उद्देश्य हमारे ध्यान को अंतर्मुख करना और मन पर नियंत्रण पाना है, मगर यह जीवन-भर चलने वाला संघर्ष है।
भजन-सिमरन के दौरान हम मन को स्थिर करने और अपने ध्यान को अंदर एकाग्र करने की कोशिश करते हैं, लेकिन हम यह पाते हैं कि मन फैले हुए विचारों, भावनाओं, धारणाओं और संवेदनाओं के ज़रिए हमारे ख़याल को बाहर भटकाकर हम से एक क़दम आगे रहता है। जब हम एक ही तरह के विचारों और यादों को बार-बार दोहराते हैं तब हम चाबी वाले खिलौनों के समान होते हैं, जो एक ही दिशा में चलते रहते हैं और कभी यह समझ ही नहीं पाते कि उनके पास कोई अन्य विकल्प भी हो सकता है। वह विकल्प सिमरन है।
हमारे अंदर बार-बार वही सब कुछ सोचने की यह फ़ुज़ूल आदत इतनी ज़्यादा पक चुकी है कि हम अकसर इससे अनजान रहते हैं। लेकिन सिमरन के ज़रिए जो कि एक तरह से दोहराना ही है, मन पर नए प्रभाव डालकर मन को बार-बार उन्हीं विचारों और जज़्बातों के बारे में सोचने से रोका जा सकता है।
अपने प्रारब्ध कर्मों, जिसे हम ज़िंदगी कहते हैं, को भोगते हुए हम अकसर यह जान ही नहीं पाते कि कौन-सा रास्ता अपनाएँ या आगे क्या होनेवाला है। हमारे साथ कोई ऐसा मार्गदर्शक नहीं होता जो मार्ग में आनेवाले ख़तरों से सावधान करके हमें सही मार्ग दिखा सके। इसके बजाय हमारे मन में डर और चिंता जैसी भावनाएँ होती हैं जो भ्रम और निर्बलता का कारण बनती हैं।
धीरे-धीरे अब हमें यह एहसास हो रहा है कि अपने विचारों और जज़्बातों पर क़ाबू पाने की हमारी कोशिशें काफ़ी नहीं हैं। उनसे बेलाग होने के लिए हमें अपने सतगुरु की दया-मेहर और मार्गदर्शन का सहारा लेना पड़ेगा। जब हम इस रूहानी मार्ग पर आते हैं तब इस मार्ग की महिमा हमारे मन को मोह लेती है। हम श्रद्धा और आश्चर्य के साथ इस मार्ग पर चलना शुरू करते हैं और वह सब करने के लिए तैयार हो जाते हैं जिसकी उम्मीद हमसे की जाती है। लेकिन निस्संदेह सतगुरु स्वयं हमारे मन को मोह लेते हैं और हमें अपनी ओर खींच लेते हैं। हम उन पर और उनके इस वायदे पर पूरा भरोसा कर सकते हैं कि वह हमारी सँभाल करेंगे और धुरधाम तक इस सफ़र में हमारे अंग-संग रहेंगे।