परमात्मा के प्यार का जादू
इनसान स्पष्ट रूप से समझ नहीं पाता और इसकी सोच बहुत सीमित है। जब हमें लगता है कि हम बेसहारा हैं तब हो सकता है कि वह हमारी रक्षा कर रहा हो। जब हमें ताज्जुब होता है कि वह हमारी मदद क्यों नहीं कर रहा तब हो सकता है कि वह हर क़दम पर हमारा साथ दे रहा हो। जब हमें लगता है कि कोई हमसे प्रेम नहीं करता तब हो सकता है कि उसने हमें अपनी गोद में उठाया हो। जब हमें लगता है कि हमें कभी माफ़ नहीं किया जा सकता, शायद वह हमें पहले ही क्षमा कर चुका हो और सिर्फ़ इस बात के इंतज़ार में हो कि हम अपनी ख़ुदी को भूल जाएँ और आत्मग्लानि की भावना से मुक्त हो जाएँ। जब हमें लगता है कि हमारे मन में संदेह हैं तब हो सकता है कि वह हमारे विश्वास को और दृढ़ कर रहा हो। ऐसा है उसके प्रेम का जादू जिससे वह हमारी सँभाल करता है और इसी प्रेम का ताना-बाना वह हमारे चारों ओर बुनता है। मगर चूँकि उसने ख़ुद हमें स्वतंत्र-इच्छा और जुदाई के भ्रम में डाला है, इसलिए वह हमारे साथ एक खेल खेलता है ताकि हम धीरे-धीरे स्वयं इस पहेली को सुलझाएँ। वह परम सत्ता जिसने समय को बनाया है वह ख़ुद समय के दायरे से परे है। और अंत में, हमें पता चलता है कि हमारा कभी कोई अलग अस्तित्व था ही नहीं, बल्कि हम हमेशा उसके प्रेम की पनाहगाह में ही रहे हैं। इस प्रकार हम रूहानी तौर पर विकसित होते हैं। और जैसे-जैसे हमारी चेतना का विस्तार होता है, जैसे-जैसे हमारा छोटा-सा अस्तित्व उस परम सत्ता में विलीन होता है, वैसे-वैसे हम उस अवस्था के और निकट आ जाते हैं जिसे आम तौर पर निर्वाण, आत्मज्ञान, परमात्मा का साक्षात्कार, परमात्मा से मिलाप, प्यार के सागर में समाना कहा गया है। और जब हम अपने अंदर उसका अनुभव कर लेते हैं तब वह हमें सर्वत्र दिखाई देता है। तब हमें समझ आता है कि प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक स्थान पवित्र-पावन है।
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