सब कुछ उसी ने रचा
आदि में शब्द था और शब्द परमात्मा के पास था, और शब्द ही परमात्मा था।…सब कुछ उसी ने रचा; जो कुछ रचा गया उसमें से कुछ भी ऐसा नहीं है, जो उसने न रचा हो। उसमें जीवन था; और यह जीवन मनुष्यों की ज्योति था।
गॉस्पल ऑफ़ सेंट जॉन 1:1, 3-4
परमात्मा के दिव्य शब्द का वर्णन करते हुए सेंट जॉन के ये भावपूर्ण और अर्थपूर्ण कथन न्यू टेस्टामेंट के सभी वचनों में से सबसे प्रसिद्ध हैं। लेकिन यह कहना भी ग़लत नहीं होगा कि हम इनके वास्तविक अर्थ को बाइबल की सभी शिक्षाओं में से सबसे कम जानते हैं।
यदि आप पश्चिमी ईसाइयों के किसी प्रतिनिधि समूह से यह पूछें कि इस कथन में ‘सेंट जॉन’ का ‘शब्द’ से क्या अभिप्राय था जो परमात्मा के पास था और परमात्मा था? संभवत: आपको अलग-अलग उत्तर मिलेंगे।…
हालाँकि पिछले समय में हो चुके और वर्तमान समय के पूर्ण संत-सतगुरुओं के लिए, इस कथन में बयान किया गया ‘शब्द’ कोई बोला जानेवाला या लिखा जानेवाला शब्द या उपदेश नहीं है। यह इससे बिलकुल भिन्न है।
तो फिर यह दिव्य शब्द है क्या?
यह दिव्य शब्द परमपिता परमात्मा की सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान रूहानी शक्ति है जिसने सृष्टि की रचना की है और जो इसकी सँभाल कर रही है। अत्यंत शक्तिशाली रूहानी स्पंदन की धारा या लहर के रूप में रचयिता में से निकलने वाली यह शक्ति रचना में निरंतर बहती रहती है और संपूर्ण ब्रह्मांड में विद्यमान है व सभी सृजित वस्तुओं और जीवों में समाई हुई है।
यह दिव्य शब्द इस ब्रह्मांड में संपूर्ण जीवन और ऊर्जा का स्रोत है। इस संसार में हम जितनी भी शक्तियों के बारे में जानते हैं, यह शक्ति उन सभी में से सबसे अधिक शक्तिशाली है, क्योंकि यह सभी अन्य शक्तियों की शक्ति है। अन्य सभी शक्तियाँ सीमित हैं, पर यह शक्ति असीमित है। यह ब्रह्मांड की मूलभूत शक्ति है। यह शक्ति ऊर्जा के विभिन्न रूपों में प्रकट होती है; लेकिन अगर उनके वास्तविक स्रोत की तलाश की जाए तो आप पाएँगे कि मूल रूप से उन सब के पीछे एक ही शक्ति विद्यमान है–परमात्मा की गतिशील शक्ति। यह गुप्त होने के बावजूद भी अत्यंत सक्रिय है और संपूर्ण ऊर्जा का आधार है।
यह दिव्य शब्द वह अपार शक्ति है जो सूर्य और ग्रहों को उनके कक्ष में संचालित रखती है। यही महान शक्ति परमाणु के केन्द्र में अणुओं को बाँधकर रखती है जो आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा खोजी गई सबसे बड़ी शक्ति है। ब्रह्मांड की संपूर्ण ऊर्जा, चाहे गुप्त हो या प्रकट, इसी में समाई हुई है। यह केवल उपयुक्त परिस्थितियों में ही क्रियाशील शक्ति के रूप में प्रकट होती है जिसे पूर्व के कुछ संत-महात्मा ‘परमात्मा का क्रियाशील रूप’ कहते हैं। इसकी अभिव्यक्ति कई रूपों में होती है, जिनमें से अधिकांश के बारे में आधुनिक वैज्ञानिकों को ज्ञान नहीं है।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि यह महान शक्ति—परमेश्वर का दिव्य शब्द—योग व संत-सतगुरुओं के आत्मिक विज्ञान की बुनियाद है। यह सभी पूर्ण संत-महात्माओं के उपदेश का मूल आधार है और मुख्य तौर पर इसी का अभ्यास आध्यात्मिक उन्नति के लिए संतों द्वारा अपनाई जानेवाले युक्ति को अन्य युक्तियों से अलग करता है। यह दिव्य शब्द ही वह एकमात्र कसौटी है जिससे एक पूर्ण संत की पहचान की जा सकती है, क्योंकि जो इस दिव्य शब्द का उपदेश नहीं देता और जिसने स्वयं इसकी कमाई नहीं की, वह वास्तव में पूर्ण सतगुरु हो ही नहीं सकता।
बिजली की भाँति, शब्द हर जगह विद्यमान है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड में समाया हुआ है और हर एक व्यक्ति तथा हर एक सृजित वस्तु में व्याप्त है। इसकी सर्वव्यापकता द्वारा परमेश्वर की सर्वव्यापकता को समझने में मदद मिलती है।
हाल ही के वर्षों में वैज्ञानिकों ने पाया है कि ऊर्जा हर जगह मौजूद है और यह ब्रह्मांड के सभी पदार्थों के हर एक अणु में विद्यमान है। आइंस्टीन ने यह सिद्ध कर दिया है कि पदार्थ और ऊर्जा वास्तव में एक ही वस्तु के विभिन्न रूप हैं। वैज्ञानिक अब पदार्थ और ऊर्जा को अलग-अलग नहीं मानते। उनके अनुसार ये दोनों एक समान हैं और इसका कारण यह है कि सभी पदार्थ अणुओं से बने हैं जिनमें परमात्मा की असीम ऊर्जा संचित है। इस भौतिक संसार में जिस भी वस्तु का अस्तित्व है, उसमें ऊर्जा है, किसी न किसी रूप में विद्युत स्पंदन। यहाँ तक कि सभी पत्थरों और चट्टानों में भी उनके अणुओं के रूप में परमात्मा की जीवंत शक्ति समाई हुई है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह शक्ति इतनी अद्भुत है कि यदि थोड़ी-सी भी शब्द की शक्ति को एकत्रित कर लिया जाए तो यह पचास लाख टन के भारी वज़न को समुद्र तल से माउंट एवेरेस्ट के शिखर तक ले जा सकती है।…
यह हमारे इस स्थूल शरीर के साथ-साथ हवा व उन सभी भौतिक वस्तुओं के बारे में भी सच है जो हमारे चारों ओर मौजूद हैं और इसी शक्ति की वजह से हम हर पल परमात्मा के साथ हैं और परमात्मा हमारे भीतर है। वह दूर नहीं है। वह जहाँ कहीं भी हो, वह हमेशा यहाँ मौजूद है, हर एक के साथ और हममें से हर एक के भीतर। सब कुछ परमेश्वर ही है और कोई भी उससे अलग नहीं हो सकता। किसी भी समय कोई भी उससे जुदा नहीं होता।
सबका जीवन
यह दिव्य शब्द हमारी जीवन-शक्ति भी है, क्योंकि यह संपूर्ण जीवन का स्रोत है। यह सभी वस्तुओं का सार और अस्तित्व है; हमारे सहित सभी प्राणियों का जीवन है। इस संपूर्ण स्थूल जगत में ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जो इस जीवन-धारा से जीवन और ऊर्जा प्राप्त न करता हो। वह परमात्मा जीवन है, ज्ञानरूप जीवन-शक्ति है और बिना उसके कुछ भी एक पल के लिए भी जीवित नहीं रह सकता या यूँ कह लें कि बिना उसके किसी भी वस्तु का अस्तित्व क़ायम नहीं रह सकता।…इस प्रकार प्रेम, जीवन और परमात्मा की शक्ति जिसके द्वारा यह ब्रह्मांड अस्तित्व में आया है, वह हमारा अपना वास्तविक जीवन है। यही वह आंतरिक रूहानी शक्ति है जो स्थूल शरीर को क़ायम रखती है। दिव्य जीवन-शक्ति की यह धारा हर एक व्यक्ति के शरीर के हर इलेक्ट्रॉन में निरंतर बहती रहती है। यह मानव तंत्रिका तंत्र के ज़रिए प्रकाश की धारा के रूप में बहती है, जो स्पंदन की उच्च दर के कारण इन स्थूल आँखों से दिखाई नहीं देती है। यही पवित्र शब्द वास्तव में हमारे शरीर को जीवित और क़ायम रखता है। यदि यह हमारे शरीर और सभी जीवों में अदृश्य रूप से उपस्थिति न हो तो सभी जीव तुरंत कार्य करना बंद कर देंगे और पदार्थ के निष्क्रिय टुकड़े मात्र रह जाएँगे।
वह परमपिता परमात्मा हमारे दिल की धड़कन है और वह हमारी रगों में दौड़ता हुआ रक्त है। वह हमारी स्वाँस है और वही वह हवा है जिसमें हम स्वाँस लेते हैं। इस तरह परमात्मा हमारे भीतर निवास करता है और हमारा असल जीवन है। वह इतना क़रीब है कि हमारी सबसे मद्धिम खुसफुस को भी सुन लेता है, सचमुच, हमारे बोलने से भी पहले।
हम परमेश्वर के उतना ही क़रीब हैं, जितना कि कभी हो पाएँगे। आवश्यकता इस बात की है कि हम स्वयं प्रयोग और अनुभव द्वारा इसे जानें। जो कोई भी संत-महात्माओं द्वारा बतलाए मार्ग पर चलता है उसके लिए यह सब अनुभव करना बहुत आसान हो जाता है।
योगा एण्ड बाइबल