कसकर पकड़ो!
हमारा रूहानी सफ़र शुरू हो चुका है—हम स्वयं की खोज और कायाकल्प की यात्रा पर निकले हैं एक ऐसी यात्रा जो हमें शाश्वत मुक्ति दिला देगी। हालाँकि, मार्ग पर चलते हुए, हमें एहसास होता है कि यह मार्ग उतना आसान नहीं है जितना हमने सोचा था, बल्कि यह उतार-चढ़ाव और आनंद से भरा हुआ है।
सफ़र का आह्वान
हमारा रूहानी सफ़र हमारी अंतर्रात्मा की पुकार से शुरू होता है, जीवन के उद्देश्य को समझने की तीव्र इच्छा और परमात्मा के साथ नाता जोड़ने की चाहत से। इन सवालों के उत्तरों की खोज में एक प्रबल शक्ति हमें स्थूल जगत के दायरे से परे ले जाती है। किसी न किसी रूप में यह कशिश हमें अपने आरामदायक दायरे से बाहर निकलकर उन अद्भुत संभावनाओं की खोज करने के लिए प्रेरित करती है जो हमारा इंतज़ार कर रही हैं। जिज्ञासावश, हम रूहानियत के मार्ग पर अपना पहला क़दम उठाने का साहस जुटाते हैं। यह रोमांचक होने को साथ-साथ डरावना भी होता है। हम अज्ञात की दहलीज़ पर खड़े होते हैं, इस बात को लेकर आशंकित कि आगे क्या होने वाला है। मगर हमें ऐसा लगता है कि कोई अद्वितीय शक्ति हमें आगे की ओर खींच रही है। व्याकुलता और अपेक्षा की कशमकश में, हम विश्वास के सहारे आगे बढ़ते हैं, स्वयं को यह विश्वास दिलाते हैं कि हमारे सतगुरु आगे के इन उतार-चढ़ाव में हमारा मार्गदर्शन करेंगे।
उतार-चढ़ाव में से गुज़रना
‘जीवनशैली’ पद में हमारे द्वारा लिए गए फ़ैसले, हमारी आदतें और हमारी रोज़मर्रा की दिनचर्या शामिल है। हमारी दिनचर्या, रीति-रिवाज और रिश्ते-नातों से झलकता है कि हम कैसे इंसान हैं और हम किस चीज़ को महत्त्व देते हैं। रूहानी कायाकल्प के मूल में कहीं न कहीं यह सोच होती है कि ऐसी जीवनशैली को अपनाना चाहिए जो नैतिकता और रूहानी उसूलों पर आधारित हो। रूहानी मार्ग अपने असल आपे की खोज का मार्ग है, परमात्मा के साक्षात्कार के उद्देश्य को पूरा करने के लिए हम अपनी करनी को उसके अनुसार ढालते हैं। मगर किसी बड़े साहसिक कार्य की तरह, यह चुनौतियों से ख़ाली नहीं है और हो सकता है कि हमें उग्र भावनाओं से जूझना पड़े।
शाकाहारी भोजन को अपनाना केवल बर्गर की जगह ब्रोकॉली खाना नहीं है; इसका संबंध हमारे नज़रिए में आमूल परिवर्तन से है, जिसके फलस्वरूप हम सभी प्राणियों को समान भाव से देखने लगते हैं। अपने पसंदीदा व्यंजनों को छोड़ने पर ऐसा महसूस हो सकता है जैसे कि पुराने दोस्तों को अलविदा कह रहे हों। हालाँकि, पत्तेदार सब्ज़ियों के हर निवाले और नींबू पानी के हर एक घूँट के साथ, हम अपने शरीर और मन को पोषित करते हैं। हमारा आहार जीवन और करुणा का जश्न बन जाता है।
अगला पहलू सामाजिक है। शराब के जाम को अलविदा कह देने से सोच स्पष्ट और दिल स्वस्थ रहता हैं। ख़ुद को बहकने से रोकना हमेशा आसान नहीं होता, ख़ास तौर पर तब, जब परिवार और दोस्त इकट्ठे होकर जाम से जाम टकराते हैं, इस भ्रम में कि वे जश्न मना रहे हैं। लेकिन वास्तविक जश्न तब शुरू होता है जब हम पूरे होश में होते हैं और अपनी अंतर्रात्मा के साथ एकसुर होते हैं।
और आइए यह कभी न भूलें कि हमारा अहम संघर्ष अपने भीतरी विकारों, बुरी आदतों और प्रवृत्तियों से जूझना है, जो हमें अपने पूर्ण सामर्थ्य तक पहुँचने नहीं देते। यह सफ़ेद झूठ बोलने की इच्छा या प्रलोभन में आकर कोई आसान रास्ता लेना या भजन-सिमरन में नाग़ा डालना भी हो सकता है। ऐसा सबके साथ होता है। बेईमानी, आलस्य, लोभ और अभिमान के ख़िलाफ़ संघर्ष ही मन के विरुद्ध हमारी लड़ाई है। लेकिन पूर्ण देहधारी सतगुरु का उपदेश हमारा गुप्त हथियार है। जब मार्ग पर चलना मुश्किल हो जाता है तब हम उनकी शरण लेते हैं, संतमत के उपदेश से हमें हिम्मत और दिलासा मिलता है। उनका मार्गदर्शन हमारे लिए सुख और आश्वासन का निरंतर स्रोत है, जो हमें रूहानी सफ़र की चुनौतियों का सामना करने में मदद करता है।
जब जीवनशैली में परिवर्तन की बात आती है तब सभी को मन के साथ लड़ाई करनी पड़ती है। साथ ही जब पुरानी आदतों को छोड़ने की बात आती है, तब हमें अज्ञात डर सताता है और हमें अपने आरामदायक दायरे से बाहर आना मुश्किल लगता है। हम इस लड़ाई में असफल भी होंगे, जब हमें ऐसा लगता है कि हम इतना सब एक साथ नहीं कर सकते। लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि संघर्ष हमारे सफ़र का एक हिस्सा है। अपने डरों का सामना करके हम बहुत कुछ सीखते हैं और हमारा विश्वास दृढ़ होता है। एक रोमांचकारी रोलर-कॉस्टर की सवारी की तरह हम उल्लास, भय और उन क्षणों का अनुभव करते हैं, जब हम छिपकर रोना चाहते हैं। फिर भी, मार्ग पर दृढ़ रहना चाहिए, ख़ास तौर पर उन कमज़ोर पलों में, यह भरोसा रखते हुए कि हमारे सतगुरु अहंकार पर क़ाबू पाने और जो आदतें हमें आगे बढ़ने से रोकती हैं, उन्हें छोड़ पाने में हमारी हर संभव सहायता करते हैं, जिससे हम आत्म-साक्षात्कार के उद्देश्य के पूरा करने के और क़रीब हो जाते हैं।
सवारी के रोमांच को आनंद लेना
मन सबसे बड़ी चुनौती है—मार्ग से भटकाने में माहिर है—मगर हम इसके बिना कार्य नहीं कर सकते। जब तक हम अपने मन को स्थिर नहीं करते, तब तक हम अपनी इच्छाओं और मोह के बंधनों के अधीन रहते हैं। जिस तरह एक रोलर-कॉस्टर की सवारी के बाद दिमाग़ चकरा जाता है और हम सीधे से चल नहीं पाते हैं, हमारा मन भी भटक सकता है जिस कारण हमारा ध्यान अपने उद्देश्य से हट सकता है।
मार्ग पर दृढ़ रहना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन हमें एकाग्रचित्त होने की ज़रूरत है। ध्यान को एकाग्र रखने में किस चीज़ से मदद मिलती है? उनका उपदेश—वह अमर-अविनाशी ज्ञान जिसे युगों-युगों से संत-सतगुरु हमें देते आए हैं। जीवन रूपी इस रोलर-कॉस्टर पर हम अकेले सवार नहीं हैं; हमारे सतगुरु हमारे अंग-संग होकर हम पर दया-मेहर कर रहे हैं। सत्य की खोज में निकले अन्य जिज्ञासु हमारे साथी हैं, सभी परमात्मा की प्राप्ति के साँझा उद्देश्य की पूर्ति के लिए कोशिश कर रहे हैं। उनकी संगति में, हमें मार्ग पर बने रहने के लिए हिम्मत, सहारा और प्रोत्साहन मिलता है। ऐसे लोगों की संगति में रहकर, सत्संग सुनकर, ख़ुद को सेवा में समर्पित करके, संतमत के साहित्य का गहराई से अध्ययन करके और सबसे महत्त्वपूर्ण नियमित रूप से भजन-सिमरन द्वारा हम विनम्र बने रहते हैं और उद्देश्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते हुए, धीरे-धीरे परम सत्य की प्राप्ति की ओर बढ़ सकते हैं। अपने रूहानी साथियों की संगति में हम जिस भाईचारे का अनुभव करते हैं, वह एक सुकूनदायक आश्वासन है कि हम इस यात्रा पर अकेले नहीं हैं।
अंतिम लक्ष्य: परमात्मा से मिलाप
रूहानी जागरूकता की इस यात्रा का उद्देश्य किसी बाहरी चीज़ की तलाश या परमात्मा को खोज नहीं है। यह आंतरिक पहचान है कि वह परमात्मा हमेशा से हमारे साथ है। यह पहचान हमारे संघर्षों को सार्थक अनुभवों में बदल देती है, क्योंकि धीरे-धीरे हमारी आंतरिक जाग्रता बढ़ती जाती है। हमारे मार्ग की हर बाधा अब बाधा न होकर आगे बढ़ने का ज़रिया बन जाती है। विश्वास, प्रेम और भक्तिभाव से उठाया गया हमारा हर एक क़दम हमें इस पहचान के और अधिक नज़दीक ले जाता है। हमारा संघर्ष व्यर्थ नहीं जाता; यह वह साधन हैं जिसके ज़रिए हमें परमात्मा की पहचान और उस से मिलाप का अनुभव होता है।
जिस तरह रोलर-कॉस्टर जहाँ से सवारी के लिए चलता है अंत में वहीं पर लौट आता है, उसी तरह आत्मा निज-घर परमात्मा की गोद में लौट जाती है। उसकी हुज़ूरी में कोई संघर्ष नहीं, कोई खोज नहीं—केवल सच्ची आंतरिक शांति, प्रेम और एकसुरता होती है। रूहानी कायाकल्प रूपी रोलर-कॉस्टर की सवारी तब समाप्त होगी जब हमें यह अनुभव हो जाएगा कि हम संपूर्ण जीवन के स्रोत उस आलौकिक प्रेम से गूँजती हुई ध्वनि और नूर का ही रूप हैं।