बुरे का भी भला करो
जो तो को काँटा बुवै, ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है, वा को है तिरसूल ॥
दुर्बल को न सताइये, जा की मोटी हाय।
बिना जीव की स्वास से, लोह भसम ह्वै जाय॥
कबीर आप ठगाइये, और न ठगिये कोय।
आप ठगा सुख होत है, और ठगे दुख होय ॥
या दुनिया में आइ के, छाड़ि देय तू ऐंठ।
लेना होइ सो लेइ ले, उठो जात है पैंठ॥
लेना होइ सो लेइ ले, कही सुनी मत्त मान।
कही सुनी जुग जुग चली, आवा गवन बँधान॥
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय॥
कबीर काहे को डरै, सिर पर सिरजनहार।
हस्ती चढ़ि दुरिये नहीं, कूकर भुँसै हजार॥
संत कबीर