प्यार सहित आपका
सत्संगी को यह अच्छी तरह जान लेना चाहिये कि मनुष्य-जन्म कितना अनमोल है और परमात्मा ने यह दुर्लभ दात किस उद्देश्य की पूर्ति के लिये हमें प्रदान की है। आहार, निद्रा, प्रजनन, विषय-सुख आदि के अनुभव तो हम पिछले लाखों जन्मों में, यहाँ तक कि फिर से मनुष्य-जन्म पाने से पहले अनेक निचली योनियों में भी कर चुके हैं। मनुष्य-जन्म का उद्देश्य अपने आपको तथा परमात्मा को पहचानना है, जो मनुष्य के सिवाय और किसी चोले में सम्भव नहीं है। आत्मा को मनुष्य का चोला मिले बग़ैर इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकती। इसलिये अब हमें परमात्मा की प्राप्ति की ओर ज़्यादा से ज़्यादा ध्यान देना चाहिये, बाकी सब चीज़ें और रुझान अनावश्यक तथा तुच्छ हैं।
हमें प्रतिदिन अपना भजन इतनी लगन और मेहनत के साथ करना चाहिये कि वह हमारे जीवन का अंग ही बन जाए। अगर हम रोज़ कम से कम ढाई घण्टे भजन नहीं करते हैं तो हम उस उद्देश्य को पूरा नहीं कर रहे हैं जिसके लिये यह मनुष्य चोला बख़्शा गया है। अगर सत्संगी प्रेम और भक्ति के साथ मालिक के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करेगा तो उसे पता लगेगा कि सतगुरु हर क़दम पर उसकी सँभाल और रहनुमाई कर रहे हैं, सतगुरु हमेशा उसके अंग-संग हैं और न सिर्फ़ इस ज़िन्दगी में बल्कि मौत के समय तथा उसके बाद भी हमेशा के लिये उसके साथ होंगे और उसकी सँभाल करेंगे। सो प्रण कर लें कि आज से ही, चाहे मन लगे या न लगे, आप नियमपूर्वक हर रोज़ भजन-सिमरन को ढाई घण्टे देंगे। कभी एक दिन का भी नाग़ा न होने दें और रोज़ एक नियत समय पर अभ्यास करें, जो यदि प्रात: काल का समय हो सके तो अच्छा है। रूहानी तरक़्क़ी के लिये यह नियमितता बहुत ज़रूरी है। इसके बदले किसी चीज़ की याचना या आशा न करें, केवल अपना कर्त्तव्य पूरा करते चलें।
इस बात की चिन्ता न करें कि अन्दर प्रकाश दिखाई देता है या नहीं देता अथवा शब्द सुनाई दे रहा है या नहीं। आप तो अपना फर्ज़ अदा करते जाएँ और नतीजा सतगुरु पर छोड़ दें। जब एक इनसान भी अपना काम करनेवाले मज़दूर को उसका पूरा मेहनताना देता है, तो क्या परमात्मा मेहनत का फल नहीं देगा? केवल वही जानता है कि हमारे लिये क्या अच्छा है और कब दिया जाना चाहिये। वह झोली भरकर देगा। उस पर विश्वास रखें।
महाराज चरन सिंह जी, दिव्य प्रकाश