विचार करने योग्य
सतगुरु के देह-स्वरूप का काम ही हमारे अंदर मालिक के लिए प्यार पैदा करना है, उसे पाने की इच्छा पैदा करना है, हमें रूहानी मार्ग पर लगाना है, हमारे अंदर शब्द या नाम के साथ जुड़ने की तड़प पैदा करना है। इसी लिए हज़रत ईसा ने बाइबल में कहा है, “यह तुम्हारे हित में है कि मैं तुम्हें अब छोड़ जाऊँ क्योंकि तब तुम अंतर में होली घोस्ट (अर्थात् नाम या शब्द) की ओर अधिक ध्यान दोगे।” आपका भाव है कि अब तुम मेरे बाहरी शरीर से इतना प्यार करने लगे हो कि हर समय मेरे पीछे दौड़ते रहते हो और अंतर में नाम या शब्द की ओर पूरा ध्यान नहीं देते। पर जब हमें गुरु के दर्शन बाहर नहीं होते और हम जानते हैं कि गुरु को अपने अंदर कैसे पाया जा सकता है, तब हम अंदर ही उसे खोजने की कोशिश करेंगे। हमें रास्ता मालूम है, रास्ते पर चलने का तरीक़ा मालूम है, इस तरह हम अपने आप अंदर नाम की ओर जायेंगे, जोकि सतगुरु का असली रूप है।
महाराज चरन सिंह जी, जीवत मरिए भवजल तरिए
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इस दुनिया में हरेक के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं, किंतु एक सत्संगी को, जिसकी मदद के लिये सतगुरु की रक्षा के हाथ सदा मौजूद हैं, किसी भी दशा में मायूस नहीं होना चाहिये। जीवन के संग्रामों को पराक्रम के साथ लड़ना चाहिये। एक सत्संगी को दुनिया से न तो कभी भागना चाहिये, न अपने परिवार के प्रति अपने कर्त्तव्यों से जी चुराना चाहिये और न ही सगे संबंधियों का परित्याग करना चाहिये। अपने लिये कोई अच्छा काम ढूँढ़ने की कोशिश करें और उस पर टिके रहें। जीवन में जो कुछ हमारे हिस्से में है, वह हमें अवश्य मिलेगा। चिंता से कभी किसी को मदद नहीं मिली। निराश होना एक सत्संगी को शोभा नहीं देता।
महाराज चरन सिंह जी, प्रकाश की खोज
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मालिक की ओर से जो कुछ भी हमारी ज़िन्दगी में आता है, वह हमारे पिछले कर्मों का नतीजा होता है और उनका भुगतान सिर्फ़ हमारे फ़ायदे के लिए ही कराया जाता है। कई बार उसे सहन करना ज़रा मुश्किल हो जाता है, फिर भी मालिक की मौज में रहने की कोशिश करनी चाहिए। अगर अभ्यासी दुनियावी घटनाओं से विचलित हो जाता है और अपनी एकाग्रता खो देता है और सुख-दु:ख का अनुभव करता है, तो इससे यह साफ़ ज़ाहिर है कि सत्संग का अभी उस पर असर नहीं हुआ है। हिम्मत रखिए, मन को मज़बूत कीजिए और ऊँचा उठाइए तथा अपना कर्त्तव्य निष्ठापूर्वक करते जायें।
हुज़ूर महाराज सावन सिंह जी, परमार्थी पत्र, भाग 2