आइए, सीखना सीखें
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण प्राचीन लंका का प्रसिद्ध राजा था। उसके दस सिर थे। वह बहुत बड़ा विद्वान था। उसमें बहुत-से अच्छे गुण थे। छ: शास्त्रों और चार वेदों में पारंगत होने के कारण उसका बहुत सम्मान किया जाता था। अनेक सिरों के साथ उसका चित्रण इस बात का प्रतीक है कि वह बहुत ज्ञानी था। लेकिन अपने अहं के कारण वह धर्म के मार्ग से भटक गया और आख़िरकार उसका यही अहं उसके पतन का कारण बना।
कहा जाता है कि अपनी इच्छाओं के अधीन होकर उसने श्री राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लिया और उसे अपने राज्य में बंदी बना लिया। श्री राम ने अपने वफ़ादार साथियों को इकट्ठा किया और अपनी सेना की मदद से अपनी पत्नी सीता को रावण की क़ैद से आज़ाद करवाया। अंत में रावण की हार हुई। विजय प्राप्त करने के बाद श्री राम सीता के साथ अपने साम्राज्य वापस लौट आए। उनकी इस वापसी को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि सबसे बड़े विद्वान को भी अपने बेक़ाबू मन के कारण पराजय का सामना करना पड़ा। सतगुरु समझाते हैं कि जब ज्ञान का विवेकपूर्ण ढंग से इस्तेमाल नहीं किया जाता है तब परिणाम प्रतिकूल होता है। यह हमारे अंदर घमंड और अहं पैदा करता है, जिसके कारण हमें लगता है कि हम सब कुछ जानते हैं। हालाँकि, हम मार्ग पर जितना आगे बढ़ते हैं और अपने रूहानी अभ्यास को जितनी ज़्यादा लगन से करते हैं, उतनी जल्दी हमें एहसास होता है कि हम कुछ भी नहीं जानते हैं।
हमें विनम्र होकर इस भावना के साथ जीवन जीना चाहिए कि हम कुछ नहीं जानते। अगर हमें यह एहसास हो जाए कि हम कुछ नहीं जानते, इसका अर्थ है कि हम सीख रहे हैं। यहाँ तक कि सुप्रसिद्ध कलाकार माइकल एंजेलो ने भी कहा: “मैं अभी तक सीख रहा हूँ।” जब हम यह कह देते हैं कि हम सब कुछ जानते हैं; हम सीखना बंद कर देते हैं और हमारा अहं हम पर हावी हो जाता है।
ऐसे सीखो जैसे कि तुम हमेशा के लिए जीने वाले हो।
ऐसे जियो जैसे कि तुम कल ही मरने वाले हो।
महात्मा गांधी, क्यूटेशन्ज़ फ़ॉर ऑल ओकेशन्ज़ से उद्धरित
हर दिन एक नया दिन है, इसलिए हर दिन हमें कुछ नया सीखने का अवसर प्रदान करता है। अगर हम सीखने के लिए तैयार रहते हैं और अपने दायरे को खोलते हैं, तो हम आगे बढ़ेंगे। हालाँकि, अपने अहं के कारण जब हम यह सोचने लगते हैं कि हम सब कुछ जानते हैं, तब हम जीवन में ज़्यादा आगे नहीं बढ़ पाएँगे।
आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हुए हम अधिक जागरूक होना चाहते हैं। जैसे-जैसे हम अधिक जागरूक होते हैं, हमें समझ आने लगती है कि हम वास्तव में बहुत कम जानते हैं। बुद्धिमत्ता व ज्ञान में बहुत अधिक अंतर है। आधुनिक युग में, जानकारी आसानी से उपलब्ध है। सर्च इंजन जानकारी का भण्डार है; एक बटन दबाने पर कोई भी व्यक्ति किसी भी विषय के बारे में असीमित जानकारी प्राप्त कर सकता है। दूसरी ओर, बुद्धिमत्ता या ज़िंदगी द्वारा सिखाए गए सबक़ किसी भी क़ीमत पर नहीं ख़रीदे जा सकते।
महान यूनानी दार्शनिक सुकरात ने भी स्वीकार किया था, “जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मैं केवल इतना जानता हूँ कि मैं कुछ भी नहीं जानता।” सोक्रेटस, ए कंप्लीट बायोग्राफ़ी से उद्धरित
हम जितना अधिक ज्ञान प्राप्त करते हैं, हमें उतना ही एहसास होता है कि हम कितना कम जानते हैं। हुज़ूर महाराज चरन सिंह जी समझाते हैं कि रचयिता और उसकी रचना को जानना और यह जानना कि यह रचना किन नियमों के अनुसार चल रही है और रचयिता के पास वापस जाने का साधन क्या है, ही सच्चा ज्ञान है।
हुज़ूर महाराज जी ने जो समझाया है, उसे केवल अंतर्मुख होकर ही प्राप्त किया जा सकता है। भजन-सिमरन के अभ्यास द्वारा ही हम अपने आप को परमपिता परमात्मा के प्रेम से सराबोर कर सकते हैं। जब हम परमात्मा के प्रेम और भक्ति-भाव से सराबोर हो जाते हैं, तब हमें सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है। जब मन परमात्मा की तलाश शुरू कर देता है, तब हम वास्तव में बुद्धिमान, विवेकशील और ज्ञानी बनते हैं। एक साधारण इनसान जिसे हर व्यक्ति में, सृष्टि के हर कण में परमात्मा नज़र आता है, वह सच्चा ज्ञानी है। चाहे वह पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़; वह सांसारिक दृष्टिकोण से अज्ञानी ही क्यों न हो, शायद वही सच्चा ज्ञानी हो।