सतगुरु के उत्तर
महाराज चरन सिंह जी के साथ सवाल-जवाब
प्रश्न: महाराज जी।
महाराज जी: जी।
प्रश्न: मेरी कोई समस्या नहीं है, मैं ख़ुश हूँ और मेरा कोई प्रश्न नहीं हैं। हम 12 दिसंबर को अमेरिका में अपने सतगुरु महाराज चरन सिंह जी का जन्मदिन मनाते हैं और मैं आपको आप ही के जन्मदिन की पार्टी में सादर आमंत्रित करना चाहता हूँ। और अगर आप पहले से ही व्यस्त हैं, तो हम आपके नूरी स्वरूप के साथ जन्मदिन मना लेंगे। कृपया करके अगर आप आ सकें तो ज़रूर आना, आप हमारे परिवार के मुखिया हैं, आपको पता ही है कि आप हमारे आदरणीय अतिथि हैं।
महाराज जी: भाई साहिब, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने अपना जन्मदिन कभी नहीं मनाया। मेरी हमेशा यही कोशिश रहती है कि मैं अपने जन्मदिन पर एक ही जगह न रहूँ, मैं अकसर उस दिन किसी दूसरी जगह चला जाता हूँ और यात्रा कर रहा होता हूँ।
प्रश्न: मुझे पता है।
महाराज जी: ताकि मैं एक ही जगह पर बिल्कुल भी न रहूँ और मेरे जन्मदिन को लेकर कोई ज़िद्द न करे।
प्रश्न: इस विशेष अवसर पर हमारे ख़यालों में सिर्फ़ आप ही होते हैं, कृपया आप ज़रूर आना, आप तो जानते ही हैं कि हम आप ही के बारे में सोचते रहते हैं।
महाराज जी: देखिए, 72 साल की उम्र पूरी कर चुके एक बूढ़े व्यक्ति का जन्मदिन मनाना मेरी समझ में नहीं आता। वह आगे की ओर देखता है न कि पीछे की ओर। जन्मदिन बच्चों का मनाया जाता है। मुझे मालूम है कि आपका राष्ट्र बहुत विकसित है, जन्मदिन मनाने की शुरुआत कैसे हुई, आप देखिए, कहीं न कहीं अब यह पैसा कमाने का साधन बन गया है, ये कार्डस और बहुत-सी चीज़ें: मदर्स डे, फादर्स डे, वैलेंटाइन डे आदि। मेरा मतलब है कि ये सब एक व्यापार बन गया है–हज़रत ईसा का जन्मदिन और क़यामत का दिन और परमात्मा ही जानता है कि ऐसे और कितने दिन हैं।
देखिए, माता-पिता हमेशा ख़ुश ही होते हैं, जब वे देखते हैं कि उनके बच्चे ने घुटनों के बल चलना शुरू कर दिया है, वे तब भी बहुत ख़ुश होते हैं जब वे देखते हैं कि बच्चा खड़ा होने लगा है, बच्चा तोतली आवाज़ में बोलने लगा है, बच्चे ने चलना शुरू कर दिया है, ये सभी घटनाएँ बच्चे के विकास से जुड़ी होती हैं। इसलिए वे हर वर्ष इन सभी घटनाओं का जश्न मनाते हैं जिनमें बच्चा बड़ा हो रहा होता है। छ:-सात साल बाद, जब बच्चा बड़ा हो जाता है और स्कूल जाने लगता है, तो बच्चे का जन्मदिन मनाने का कोई मतलब नहीं रह जाता। फिर भी, आप इसे तब तक उचित ठहरा सकते हैं जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा होकर शादी नहीं कर लेता और जीवन में सफल नहीं हो जाता और यहाँ तक कि अपने माता-पिता को भुला नहीं देता।
और मेरी उम्र में, जब क़ब्र में जाने के लिए बहुत कम समय बचा है और ज़्यादा उम्र व्यतीत हो चुकी है, अब किस बात का जश्न मनाना? यह सिर्फ़ व्यक्ति को यह याद दिलाना है कि “बहुत कम समय बचा है और अगर आप इस बात को भूल चुके हैं, तो हम आपको याद दिलाने आए हैं।” और आप चिंता मत कीजिए, मैं बार-बार ख़ुद को याद दिलाता रहता हूँ। इसलिए मैं आपको यह मौक़ा बिलकुल नहीं दूँगा कि आप मुझे यह सब याद दिलाएँ। मुझे यह मौक़ा नहीं चाहिए।
प्रश्न: लेकिन महाराज जी, मुझे तो आप हमेशा बहुत जवान और युवा लगते हैं, मुझे तो आप बिलकुल बूढ़े नहीं लगते। मुझे तो एक नौजवान दिखाई देता है, मुझे तो…
महाराज जी: लेकिन, देखिए, मैंने तो खड़ा होना, भागना और बातचीत करना शुरू कर दिया है, तो आप चिंता मत करें। मैं अपने पैरों पर खड़ा हूँ और अपनी देखभाल ख़ुद कर रहा हूँ, मुझे इस सबके लिए कोई जश्न मनाने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन मैं नहीं चाहता कि कोई मुझे मेरे अंतिम समय के बारे में याद दिलाए। मुझे हमेशा इसका एहसास रहता है, चिंता मत कीजिए। बल्कि मैं तो उस समय का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा हूँ।
प्रश्न: मैं नहीं चाहता कि कोई मुझे इस बात के लिए ज़िम्मेदार ठहराए कि मैंने आपको निमंत्रण न देकर दया-मेहर पाने का अवसर खो दिया है, आप सादर आमंत्रित हैं।
महाराज जी: जब कभी मेरे परिवार वाले मेरा जन्मदिन मनाने की ज़िद्द करते हैं, तो मैं हमेशा उन्हें समझाने की कोशिश करता हूँ और वे समझ जाते हैं, वे अब इस के लिए ज़िद्द नहीं करते। भारत में लोग कभी भी जन्मदिन नहीं मनाया करते थे, लेकिन अब उन्होंने पश्चिम की नकल करनी शुरू कर दी है। तो आप लोगों ने हमारे समाज को भी बिगाड़ दिया है, बल्कि इसे व्यापार का ज़रिया बना दिया है।
मुझे सितंबर से लेकर अप्रैल तक शुभकामनाओं से भरे कार्ड मिलते रहते हैं, क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं? हज़ारों-लाखों डॉलर यूँ ही फ़ुज़ूल ख़र्च कर दिए जाते हैं। पहले दीवाली आती है जिसे भारत में मनाया जाता है और हर किसी को मुझे कार्ड भेजने का शौक़ है। मैं आपको यक़ीन दिलाता हूँ कि मैं उन्हें कभी नहीं खोलता। प्रोफ़ेसर साहिब उन्हें खोलते हैं या नहीं, मैं नहीं जानता, लेकिन मैं कभी भी किसी का भेजा कोई ग्रीटिंग कार्ड नहीं खोलता। मेरी डाक में हर रोज़ चार या पाँच सौ कार्ड आते हैं, अगर मैं इन्हें देखना शुरू कर दूँ तो मुझे नहीं मालूम कि मैं उनका क्या करूँगा?
और फिर आप देखिए, दूसरे विशेष दिवस आने शुरू हो जाते हैं। गुरु नानक देव जी का जन्मदिन, फिर मेरा जन्मदिन, फिर हज़रत ईसा का जन्मदिन, फिर वैलेंटाइन डे, मुझे नहीं पता कि यह क्या होता है। फिर ईस्टर आ जाता है, फिर दशहरा आ जाता है–मुझे इन त्योहारों के बारे में ज़्यादा नहीं पता। और कार्ड इतने सुंदर होते हैं, कि कई बार बच्चे उन्हें खोल लेते हैं, वे उनके साथ खेलते हैं, लेकिन मेरे हिसाब से पैसों को इस तरह बरबाद क्यों किया जाए?
मैंने बहुत बार मीटिंग्स में भी कहा है कि, “कृपया अपना पैसा, अपनी ऊर्जा और समय इन चीज़ों पर बरबाद न करें, ये व्यर्थ हैं। देखिए, अब हम बड़े हो गए हैं, हम बच्चे नहीं रहे कि हमें अपने आप को याद करवाना पड़े।”
देखिए, ये जश्न आप लोगों के लिए बिलकुल सही है क्योंकि आपकी एक बेटी ऑस्ट्रेलिया में रहती है और बेटा न्यूज़ीलैंड में है और तीसरी बेटी स्पेन में है, इसलिए माँ बच्चों को यह याद दिलाना चाहती है कि वह अभी भी जीवित है। हमारे परिवार एक साथ हैं, हमें एक-दूसरे को यह बताने की ज़रूरत नहीं पड़ती कि हम जीवित हैं या मर चुके हैं। आप लोग बस इन ग्रीटिंग कार्ड्स के ज़रिए संपर्क में रहते हैं, लेकिन हमारे पास एक-दूसरे को जानने के दूसरे रास्ते और ढंग भी हैं, और हम अकसर मिलते रहते हैं।
हम सब संयुक्त परिवारों में रहते हैं और एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, इसलिए हम इन सब पर समय बरबाद नहीं करते हैं, हमें इन चीज़ों पर पैसा बरबाद नहीं करना चाहिए, मगर फिर भी हमने आप लोगों की तरह ही यह सब करना शुरू कर दिया है।
प्रश्न: अमेरिका में हम एक चीज़ करते हैं और मुझे लगता है कि महाराज जी को यह जानकर प्रसन्नता होगी। हमारे पास दरवाज़े बंद करने के लिए अंकों के मेल-जोड़ (संयोजन) वाले ताले हैं, और हम इसमें जो भी मेल-जोड़ रखना चाहें, रख सकते हैं। और इनमें चार रोलर हैं, जिन पर एक से दस तक अंक दर्ज हैं, इसलिए हर कोई बिना ज़्यादा सोचे ही अंकों को चुनकर सेट कर लेता है, जैसे कि कौन-सा दिन सबसे अच्छा है–महाराज जी का जन्मदिन–इसलिए हम इसे 12-12, 1-2-1-2 पर सेट कर लेते हैं। और मुझे लगता है कि हज़ारों सत्संगियों में से, मैं सैकड़ों को जानता हूँ, वे सभी सतगुरु के जन्मदिन के अनुसार तालों के लिए अंक सेट कर लेते हैं।
महाराज जी: आप यह जानकर हैरान होंगे कि जब मुझे स्कूल में दाख़िला मिला था और जो सज्जन स्कूल में मेरा दाख़िला करवाने के लिए मेरे साथ गए थे, उन्हें मेरे जन्मदिन के बारे में पता नहीं था। जब स्कूल के मुख्य अध्यापक ने उनसे मेरे जन्म दिन के बारे में पूछा, तब उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता, आप आज की ही तारीख़ लिख लीजिए।” इस तरह जिस दिन स्कूल में मेरा दाख़िला हुआ था वही तारीख़ स्कूल के रजिस्टर में मेरे जन्मदिन के रूप में दर्ज हो गई।
आप ख़ुद ही अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हमारा परिवार इन जन्मदिनों को कितना महत्त्व देता है। इसलिए, दस्तावेज़ों में मेरा जन्मदिन उसी दिन है; मेरे असली जन्मदिन की तारीख़ बिलकुल ही अलग है। मेरे पासपोर्ट पर मेरा जन्मदिन अगस्त में लिखा हुआ है। मुझे सारे दस्तावेज़ अपने साथ रखने पड़ते हैं क्योंकि मेरी सभी शैक्षणिक डिग्रियों व अन्य डिग्रियों में वही तारीख़ मेरे जन्मदिन के रूप में दर्ज है।
जब मैंने मैट्रिक पास की थी, तो पहली बार विश्वविद्यालय ने हमें हमारी योग्यता का प्रमाण पत्र दिया कि हमने मैट्रिक पास कर ली है। और शायद मैं परिवार में पहला था जिसे यह प्रमाण पत्र मिला था। मैं प्रमाण पत्र लेकर हुज़ूर बड़े महाराज जी के पास गया। उन्होंने इसे पढ़ा। उन्होंने फ़रमाया, “तुम्हारा नाम और तुम्हारा जन्मदिन दोनों ही गलत लिख दिए गए हैं।” मैं हैरान रह गया। क्योंकि मुझे ख़ुद भी मालूम नहीं था। उन्होंने फ़रमाया, “तुम्हारा नाम चरन सिंह नहीं, हरचरन सिंह है और तुम्हारा जन्मदिन अगस्त में नहीं, दिसंबर में होता है।”
फिर उन्होंने भाई शादी को बुलाया, जो उनके बहुत प्रेमी शिष्य थे। वही स्कूल में मेरा दाख़िला करवाने के लिए मेरे साथ गए थे। उन्होंने कहा, “मैं…हम सब इन्हें ‘चनो चनो’ कहते हैं, इसलिए मैंने इनका नाम चरन सिंह लिखवा दिया।” और उन्होंने कहा, “मुझे जन्मदिन पता नहीं था, इसलिए मैंने उनसे कहा कि आज की तारीख़ ही लिख दो।”
इस तरह, नाम और जन्मदिन को केवल इतना ही महत्त्व दिया जाता था, जिसका जश्न आप मनाना चाहते हैं। फिर मैंने बड़े महाराज जी से पूछा, “क्या मुझे यह सब बदलवाना चाहिए?” क्योंकि विश्वविद्यालय में यदि एक बार नाम और जन्मदिन की तारीख़ दर्ज हो जाए तो इसे बदलवाने की प्रक्रिया बहुत लंबी होती थी।
फिर सरदार भगत सिंह को बुलाया गया। वह हमारे पारिवारिक वकील, मुखिया और सलाहकार भी थे। बड़े महाराज जी कोई भी फ़ैसला लेने से पहले उनसे विचार-विमर्श अवश्य किया करते थे। उन्होंने कहा, “महाराज जी, अब इसे ऐसे ही रहने दें क्योंकि यह बहुत लंबी और विस्तृत प्रक्रिया है।” फिर, बड़े महाराज जी ने कहा, “ठीक है, अब इसे ऐसे ही रहने दो।” और अब तक ऐसे ही चल रहा है। इसलिए, मैं नहीं जानता कि अब कौन-सा जन्मदिन मनाऊँ। मेरे स्कूल वाला जन्मदिन या अपना असली जन्मदिन। तो, मेरा ये सब बताने का मक़सद केवल इतना ही है कि हम इन जन्मदिनों को कितना महत्त्व देते हैं।
प्रश्न: महाराज जी, यह तो बस आपको आमंत्रित करने का बहाना था।
महाराज जी: लेकिन मैं तो उस दिन यहाँ पर मौजूद नहीं रहूँगा।
प्रश्न: इस सब से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, मैं तो बस इतना ही जानता हूँ कि आप आमंत्रित हैं, आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद।
महाराज जी: आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।