रूहानियत का मार्ग
महाराज सावन सिंह जी द्वारा की गई व्याख्या
सन्तमत सुरत-शब्द के मार्ग का नाम है, यानी यह सुरत के उस परिपूर्ण प्रभु (शब्द) के साथ जुड़ने का अन्तर्मुख अनुभव है। यह अनुभव मत-मतान्तरों से कहीं ऊँचा है। इसी को हम सन्तमत या सन्तों की शिक्षा कहकर पुकारते हैं। यह शिक्षा परमार्थ के असली सिद्धान्तों का वर्णन करती है। यह धर्मों से कहीं बढ़कर है, क्योंकि धर्म तो केवल सिद्धान्तों, मान्यताओं और चमत्कारों का ही वर्णन करते हैं।
सुरत-शब्द मार्ग सच्चा विज्ञान (साइंस) है जो किसी बात को यों ही मान लेने की शिक्षा नहीं देता। जब भी किसी जाति के लोगों ने इस शिक्षा को धारण करके अपने अनुभवों का वर्णन किया है, वे सब गणित की तरह एक ही नतीजे पर पहुँचे हैं। रूहानी विज्ञान का यही उद्देश्य है कि मनुष्य माया के पर्दों से मुक्त होकर स्वयं को पहचान ले कि वह आत्मा है, जो स्वयं चेतन है और महाचेतन के समुद्र का अंश है। जब आत्मा उस महाचेतन सागर में समा जाती है, तो उसमें परमात्मा के गुण प्रकट हो जाते हैं, जिस तरह पानी की बूँद समुद्र में समाकर समुद्र हो जाती है।
बाहरी रचना को लाँघकर, कुल मालिक तक पहुँचने का यह काम मनुष्य अपने यत्न से लाखों वर्षों में भी नहीं कर सका है जबकि गुरु की सहायता से यह काम आसानी से किया जा सकता है। गुरु सुरत-शब्द योग का मार्ग बताते हैं जो सरल और सीधा है। अमीर या ग़रीब, उच्च या नीच, विद्वान या अनपढ़, पूर्वी या पश्चिमी, उत्तरी या दक्षिणी, हर मनुष्य के लिए यह एक ही मार्ग है। सुरत-शब्द योग का अभ्यास अमर जीवन और आनन्द प्रदान करता है। जो लोग इस मार्ग को ठीक तरह समझकर इस पर चलते हैं, उनके लिए यह मार्ग क़ुदरत के दूसरे क़ानूनों की तरह सादा और क़ुदरती है, परन्तु जो लोग बिना सोचे समझे अंधाधुंध इस मार्ग पर चलते हैं, उनके लिए यह मार्ग कठिन है।
सन्तजन संसार-सागर के मल्लाह हैं, आत्मा को परमात्मा के साथ मिलाने का ज़रिया हैं। सन्त वे पवित्र आत्माएँ हैं जो धुर-धाम से आकर शरीर रूपी पिंजरे के बन्धनों को स्वीकार करके, आत्माओं को मालिक की ओर, जो हमारा स्रोत है और जिसके साथ हमारा क़ुदरती सम्बन्ध है, ले जाने का व्यापार करती हैं:
चीस्त रूह आं तायरे-क़ुदसी सिफ़त,
दर कफ़स महबूस बहरे-मअरिफ़्त।
आमदा बहरे-तिजारत अज़ अदम,
रू बदां सू बाशद ऊ रा दम-ब-दम।
मसनवी, मौलाना रूम
मौलाना रूम का कहना है कि आत्मा वह सद्गुणी पक्षी है जो तन के पिंजरे में बंद है और आज़ाद होना चाहती है। यह सत्य का व्यापार करने के लिए इस संसार में आई है, और इसका ध्यान हमेशा अपने रूहानी स्रोत से जुड़ा रहता है।
सन्तों के अनमोल रूहानी भण्डार, सुरत-शब्द के अनुभव भरे वचन, धर्म-पुस्तकों में दर्ज हैं। ये सारे संसार की सांझी सम्पत्ति हैं। जिस प्रकार परमात्मा सबका सांझा है, उसी प्रकार सन्तजनों के अनुभव सम्पूर्ण मानव-जाति के मार्गदर्शन के लिए हैं। ये किसी विशेष जाति या धर्म की सम्पत्ति नहीं, परमात्मा उनका है जिन्हें परमात्मा ने अपना बना लिया है:
आपन बापै नाही किसी को भावन को हरि राजा॥
मोह पटल सभु जगतु बिआपिओ भगत नही संतापा॥
गुरु रविदास
सुरत-शब्द योग का ध्येय हमारी आत्मा को सीधे मालिक से जोड़ने का प्रयत्न करना है। यह आत्मा को मालिक का अनुभव करवाने का मार्ग है। दीक्षा के समय गुरु शिष्य को भली प्रकार समझाकर इस मार्ग पर लगा देता है। यह साइंस उतनी ही पुरानी है जितना मनुष्य है और यह मार्ग सतपुरुष का बनाया हुआ है।
गुरुमत सार से उद्धरित