क्या आप जानते हैं?
इस दुनिया के भोगों की क्षणभंगुरता और नश्वरता की छाप हमारे हृदय पर डालने के लिये हमारे जीवन में कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ आती हैं। एक विचारशील व्यक्ति के लिये दु:ख के ये क्षण कई बार छिपे हुए वरदान सिद्ध होते हैं।
महाराज चरन सिंह जी, प्रकाश की खोज
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सतगुरु हमेशा आपके साथ हैं, वे सँभाल और रहनुमाई करते हैं। यदि किसी अवसर पर कोई काम आपकी इच्छा के अनुसार नहीं होता तो उसमें भी अपनी भलाई जानिए, क्योंकि जिस चीज़ को सतगुरु अच्छा मानते हैं वही सत्संगी की ज़िन्दगी में घटती है, न कि वह जिसको सत्संगी अच्छा मानता हो। हिम्मत, प्यार और भरोसे के साथ अभ्यास करते रहें और आप एक दिन ज़रूर सफल होंगे। गुरु नानक देव जी कहते हैं: आगाहा कू त्राघ पिछा फेर न मुहडड़ा॥ नानक सिझ इवेहा वार बहुड़ न होवी जनमड़ा॥ मौलाना रूम भी कहते हैं, “अगर प्रियतम के देश को चलना है तो आख़िरी साँस तक क़दम आगे बढ़ाने की कोशिश करो और रुकावटों का मुक़ाबला करते हुए आगे बढ़ो।” नाकामयाबी मन की कमज़ोरी से होती है। इस दुनिया में भी आप देखिए, क़ामयाब वही होता है जो दिलोजान से किसी काम में जुट जाता है।
महाराज सावन सिंह जी, परमार्थी पत्र, भाग 2
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बेमतलब और बेकार की बातचीत में न लगें। अगर आपको अपनी रूहानी ग़रीबी का होश है, तो हर मिनट अपनी रूहानी विरासत को पाने की कोशिश करें। अगर आप फ़ुज़ूल की बातचीत (गप-शप) करते हैं, तो परमात्मा से की गयी आपकी प्रार्थनाएँ मात्र मज़ाक हैं। यह गप-शप आपको ढोंगी साबित करती है; यह रूहानियत की जड़ को ही काट देती है।
एक ओर तो परमात्मा से दया-मेहर की याचना करना और दूसरी ओर अपने क़ीमती समय और शक्ति को बेकार ख़र्च करना–इन दोनों का आपस में कोई मेल नहीं। सोचिये अधिक, बोलिये कम।
महाराज जगत सिंह जी, आत्म-ज्ञान