परमात्मा की आवाज़
जब हम रात के समय आकाश में झिलमिलाते सितारों को देखते हैं तब यह कल्पना करना मुश्किल होता है कि वे कई प्रकाश वर्ष दूर हैं। परंतु संपूर्ण ब्रह्मांड में गूँज रही शब्द-धुन, जो इनसान के शरीर के रोम-रोम में समाई हुई है–वह बहुत दूर और पहुँच से परे लगती है।
पूरे ब्रह्मांड में ऐसी कोई जगह नहीं है जो इस संगीत की गूंज से रहित हो। इस सृष्टि में इसकी अत्यंत मधुर और दिव्य धुनों का स्पंदन सभी लोकों के हर छोटे-बड़े प्राणी में हो रहा है।
अध्यात्म मार्ग
हम शायद ही कभी सितारों के बीच के ख़ाली स्थान पर ध्यान देते हों। दूर-दूर तक फैला यह विशाल आकाश भी शब्द द्वारा ही रचा गया है। यह सृष्टि का आधार है और शब्द इसमें समाया हुआ है। हमारा ध्यान सितारों पर ही केंन्द्रित रहता है और हम कभी सोचते ही नहीं कि वे कितने अद्भुत ढंग से शून्य में लटके हुए हैं। यह ख़ाली स्थान हमारा ध्यान अपनी तरफ़ नहीं खींचता और न ही यह चाहता है कि हम इसकी अहमियत को पहचानें कि इसने 13.8 अरब वर्षों से इस ब्रह्मांड को सहारा दे रखा है–यह ऐसा ही है। हमारा ध्यान इस हद तक स्थूल जगत से जुड़ा हुआ है कि निस्स्वार्थ सेवा का सबसे उत्तम उदाहरण हमारी आँखों के सामने होने पर भी हम इसकी तरफ़ ध्यान नहीं देते।
खगोलशास्त्री अभी तक ब्रह्मांड के अंतिम छोर का पता नहीं लगा पाए हैं, इसलिए हम कभी भी सितारों की सही गिनती को नहीं जान पाएँगे। वैज्ञानिकों ने आधुनिक दूरबीनों की मदद से यह अनुमान लगाया है कि खरबों आकाश गंगाएँ हैं और लगभग अरबों-खरबों सितारे हैं, ऐसा माना जाता है कि यह संख्या पृथ्वी पर मौजूद रेत के कणों से भी कहीं अधिक है।
भौतिक जगत् केवल एक नहीं है, बल्कि कई हैं और ऐसे ही अपने-अपने सूर्य के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं और जहाँ हर एक का अपना आध्यात्मिक स्वामी है। ऐसे ग्रहों की संख्या इतनी अधिक है कि कोई गणितशास्त्री हज़ारों जन्म लेकर भी उनकी गिनती नहीं कर सकता।
अध्यात्म मार्ग
आकाश में झिलमिलाते ये सभी सितारे हमारे सूर्य की तरह अपनी ऊष्मा, ऊर्जा और प्रकाश शब्द से प्राप्त कर रहे हैं। अध्यात्म मार्ग में कहा गया है, “ब्रह्मांड में प्रकाश की हर किरण इस अनंत धारा का ही अद्भुत दृश्य है। हर नक्षत्र अपने कक्ष में इसी शक्ति के आधार पर क़ायम है।”
ब्रह्मांड का वास्तविक आकार हमारी सोच से परे है, फिर भी सब कुछ, यहाँ तक कि छोटा-सा जुगनू भी, उसी शब्द का प्रकट रूप है। जब शब्द-धुन, जिसे बाइबल में वर्ड कहा गया है, की महानता को समझने की बात आती है तब यह शानदार ब्रह्मांड केवल शुरुआत है। हमारे ब्रह्मांड से ऊपर और परे अनगिनत ऐसे मण्डल हैं जो क्रमश: अधिक प्रकाशवान तथा सूक्ष्म हैं।
शब्द ने इस विशाल ब्रह्मांड के सभी मुख्य भागों की रचना की है। गुरु अमरदास जी फ़रमाते हैं:
उतपति परलउ सबदे होवै॥
सबदे ही फिरि ओपति होवै॥
आदि ग्रन्थ, गुरुमत सिद्धांत, भाग 1 से उद्धरित
जब यह सच हमारी समझ में आ जाता है कि वह शब्द, जो हमारे अंतर में चौबीस घण्टे गूँज रहा है, वह केवल इस असीम स्थूल जगत और हर प्रकार के जीवन की ही सँभाल नहीं कर रहा बल्कि उसी शब्द ने सबसे दूर के सितारों से परे के अनंत रूहानी मण्डलों की रचना की है और वही उनकी सँभाल भी कर रहा है, तब हमारा दिमाग़ चकरा जाता है।
शब्द-धुन की यह धारा वही सृजनहार है, जिसका स्पंदन सारे ब्रह्मांड में हो रहा है। यह परमात्मा से आ रही आध्यात्मिक जीवन की वह लहर है जो संपूर्ण सृष्टि में हर जीव तक पहुँच रही है। इसी शब्द-धुन से उस सृजनहार ने समस्त रचना की है और इसकी सँभाल कर रहा है।
अध्यात्म मार्ग
जब हमें शब्द के सर्वव्यापक होने का बोध हो जाता है तब हमें प्रभु की सर्वव्यापकता का भी एहसास हो जाता है। इस शब्द-धुन को कोई भी दुनियावी नाम नहीं दिया जा सकता, हालाँकि इस स्वयं प्रकाशित सत्य के तीन गुण हैं: प्रेम, ज्ञान और शक्ति और इन तीनों में उत्तम गुण प्रेम है। लेकिन प्रेम क्या है? महाराज चरन सिंह जी हमें समझाते हैं:
प्रेम परमात्मा है और परमात्मा ही प्रेम है। प्रेम की इस जादुई शक्ति द्वारा ही परमात्मा तक पहुँचा जा सकता है।
स्पिरिचुअल डिस्कोर्सेज़, वॉल्यूम I
हमारा परम सौभाग्य है कि प्रेम के रूप में शब्द की जिस अनंत शक्ति ने अरबों-खरबों सितारों और अनगिनत दिव्य मण्डलों की रचना की है और जो उनकी सँभाल कर रही है, पूर्ण सतगुरु से नामदान प्राप्त करते ही वह शक्ति हमारे लिए व्यक्तिगत तौर पर मौजूद हो जाती है।
वह शब्द जो आंतरिक जगत और बाहरी संसार दोनों में व्याप्त है, हमारी त्वचा से भी अधिक हमारे नज़दीक है और हमारी मुक्ति का एकमात्र साधन है।
सभी संत-महात्मा हमें यही उपदेश देते हैं कि दु:खों से भरे इस संसार से मुक्ति का एकमात्र साधन यह दिव्य शब्द-धुन है। स्पिरिचुअल डिस्कोर्सेज़, वॉल्यूम I में हुज़ूर महाराज जी फ़रमाते हैं: “निज-घर जाने का एक ही रास्ता है, अपनी सुरत को शब्द-धुन के साथ जोड़ना जो हर इंसान के अंदर तीसरे तिल पर गूँज रही है।”
पूर्ण संत-सतगुरु भजन-सिमरन के अभ्यास द्वारा सतगुरु के देहस्वरूप से नहीं बल्कि उस शब्दरूपी सच्चे गुरु के साथ जुड़ने के लिए हमें निरंतर प्रोत्साहित करते हैं, जो हम में से हर एक के भीतर गूँज रहा है।सारबचन राधास्वामी वार्तिक में स्वामी जी महाराज फ़रमाते हैं, शब्द की इस “धुन को पकड़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर दर्जे-बदर्जे ऊँचे की तरफ़ यानी धुर स्थान तक सुरत चढ़ सकती है।” कैसा अद्भुत विरोधाभास है कि इस संसार में सबसे अधिक शांत, पूर्ण रूप से गुप्त ध्वनि ही सबसे अधिक शक्तिशाली, बुद्धिमान और सबसे मीठी-प्यारी ध्वनि है–यही परमात्मा की आवाज़ है।